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6 Co-ordinated Reading Techniques

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1.तालमेल बिठाकर पढ़ने की 6 तकनीक (6 Co-ordinated Reading Techniques),तालमेल बिठाकर पढ़ाने की कला (Art of Teaching in Harmony):

  • तालमेल बिठाकर पढ़ने की 6 तकनीक (6 Co-ordinated Reading Techniques) और पढ़ाने की कला के आधार पर आप पढ़ने व पढ़ाने की तकनीक व कला जान सकेंगे।अक्सर छात्र-छात्राएं परंपरागत तरीके,घिसे-पिटे तरीके तथा रटने के आधार पर पढ़ते रहते हैं जो हमें उबाऊ और बासी लगती है।
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2.तालमेल बिठाकर पढ़ने की जरूरत (The need to read in harmony):

  • तालमेल बिठाकर पढ़ना और पढ़ाना जिंदगी जीने की सबसे गहरी जरूरत है।छात्र-छात्राओं में आपसी गर्माहट,संबंधों की गरिमा तथा विचारों व भावनाओं के स्पर्श से तालमेल बिठाकर पढ़ना और पढ़ाने की कला पनपती एवं विकसित होती है।छात्र-छात्राओं को हवा,पानी,भोजन और धूप के समान ही इसकी आवश्यकता है।इसके प्रभाव में वैयक्तिक विकास,विद्यालयी वातावरण शांत एवं सामाजिक समृद्धि होती है,परंतु इसका अभाव अत्यंत भयावह एवं भीष्ण होता है।जिस प्रकार भूकंप भौगोलिक मानचित्र को बदलकर रख देता है ठीक उसी प्रकार तालमेल से पढ़ने और पढ़ाने का अभाव छात्र-छात्रा की आंतरिक चेतना को,छात्र-छात्रा से छात्र-छात्रा को,विद्यालयी परिवार,समाज एवं विश्व-राष्ट्र को खंडित-विखंडित एवं विभाजित करके रख देता है।इससे जन्मी पीड़ा और कसक असहनीय होती है।आज छात्र-छात्राएं इसी अभिशाप से अभिशप्त हैं।
  • भारतीय संस्कृति और गुरुकुलों की सर्वोपरि विशेषता रही है-तालमेल एवं सामंजस्य का भाव।मात्र इसी विशेषता के कारण ही अपने देश में संयुक्त रूप से पढ़ने और पढ़ाने,शिक्षा अर्जित करने का अस्तित्व चिरकाल से विद्यमान रहा है।हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि,विद्यार्थी,हमारे सच्चे तालमेल,एकजुटता तथा संगठन के प्रतीक-पर्याय थे।वहां पर संबंधों को सरस संवेदनाएं बहती थी,विद्यार्थियों में आपसी संबंध संवेदनशील धागे बुनते-मजबूत होते थे,एक अनजाना आनंद उमड़ता-घुमड़ता रहता था,परंतु पिछले तीन दशकों में शिक्षा रूपी परिवार का भव्य भवन,खण्डहरों का अवशेष बनकर अपनी दर्दभरी दास्तान बयान करता नजर आता है और जो विद्यार्थियों में थोड़ी-सी मिठास बच गई है,उन्हें बमुश्किल किसी तरह से निभाया जाता है;मुर्दे की तरह ढोया जाता है।विद्यालय संस्था,शिक्षा संस्थान के विद्यार्थियों में आपसी तालमेल समाप्त होने के कारण विद्यालय,पब्लिक स्कूल,कान्वेंट स्कूलों की बाढ़-सी आ गई है,गली-गली में कुकुरमुत्ते की तरह खुलते जा रहे हैं,परंतु आज की स्थिति यह है कि कुछेक बच्चों के आधार पर विद्यालय,कोचिंग संस्थान भी खण्डों में खंडित हो रहे हैं।एक ही स्कूल की एक ही कक्षा के विद्यार्थियों में ही तालमेल नहीं बन पड़ रहा है,जिसके कारण वे आपस में एक-दूसरे की समस्याओं को हल नहीं कर पा रहे हैं,एक विद्यार्थी कोई सवाल पूछता है तो दूसरा विद्यार्थी खड़ा हो होकर कहता है कि पहले मेरे को बताओ।परिणामस्वरूप आज का छात्र-छात्रा बेहद अकेला रह गया है।भीड़ और कोलाहल के बीच छात्र-छात्रा एकदम एकाकी और अंदर से टूटा-सा बनकर रह गया है।
  • वस्तुतः आधुनिक विज्ञान के महाविकास की महायात्रा के चरम बिंदु पर खड़े आज के छात्र-छात्रा की सर्वोपरि समस्या है तालमेल का अभाव।पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के मॉडल का अछूत और संक्रामक रोग हमारे भारतीय शिक्षा मंदिरों में भी नग्न नर्तन करता दिखाई दे रहा है।आज की गहन समस्या है एक छात्र का दूसरे छात्र के साथ न निभ पाना,छात्र-शिक्षक के साथ मतभेद,छात्रा का अध्यापिका से मतभेद तथा शिक्षकों के मध्य गहरा वैचारिक मतान्तर।यह समस्या किसी विशेष शिक्षा मन्दिर या किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित व सिमटी नहीं है,बल्कि विभिन्न शिक्षालयों,दफ्तर,परिवार,संस्थाओं,संगठनों तथा समाज-राष्ट्र के हर कोने में पसरी पड़ी है।छात्र-छात्राओं में बाहर से तालमेल तो दिखाई देता है,परंतु मन से नहीं,बेमन से,दबाववश,मन मारकर और जबरदस्ती।साथ ही छात्र-छात्रा संबंधों की शुरुआत करते तो बड़ी गरमाहट से,उत्साह-उमंग से हैं,परंतु दूर तक निभा नहीं पाते और असफल हो जाते हैं।ऐसा क्यों होता है? क्यों छात्र-छात्रा तालमेल नहीं कर पाते? असफल क्यों होते हैं? असफलता का वह बिंदु कहां है?

3.तालमेल न होने का कारण (Due to lack of coordination):

  • इन जटिल,अनुत्तरित एवं हताशा पैदा करने वाले प्रश्नों के जवाब हैं-हर कदम पर खड़ा हमारा धनीभूत अहंकार,हमारी दूषित दृष्टि,हमारी कुत्सित भावना,हमारे दिग्भ्रमित मूल्य एवं मान्यताएं तथा हमारी कमजोर-दुर्बल मानसिक संरचना।हमारे विचारों और भावनाओं का पैमाना अत्यंत छोटा एवं क्षुद्र है।इस क्षुद्रता के संग स्थायी तालमेल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।संबंधों के लिए हमारे आदर्श,मूल्य एवं मानदंड स्पष्ट एवं सजीव नहीं रह गए हैं,जबकि सच्चे तालमेल के लिए परिष्कृत मूल्य एवं मानदंड तथा उदात्त भावनाओं की आवश्यकता है,जो कहीं भी दिखाई नहीं देते हैं।इसी के अभाव में हमारे सारे संबंध एवं बच्चों के बीच सौहार्द शीशे के समान दरकते-टूटते हैं।
  • संबंध दो प्रकार के होते हैं:वस्तुपरक और व्यक्तिगत।छात्र का छात्रा से संबंध टिकाऊ होता है।वस्तु से छात्र का संबंध नहीं होता है,अधिकार होता है।आज हम यही कर रहे हैं,छात्र-छात्रा को वस्तु मानकर उस पर अधिकार का भाव रखते हैं।हम छात्र से वस्तुपरक व्यवहार एवं बर्ताव करते हैं।सही मायने में देखें तो हम छात्र-छात्राओं को वस्तुगत भाव से देखने के आदी और अभ्यस्त हो गए हैं।छात्र से छात्र के रूप में अपेक्षाएं समाप्त हो गई हैं,उसे वस्तु के रूप में पहचान बनाने का प्रचलन हावी हो गया है।हजारों हजार साल की मानवीय विकास-यात्रा के बाद भी हमने छात्र-छात्रा के व्यक्तित्व का आदर एवं सम्मान करना नहीं सीखा है।इसी कारण आज जबकि छात्र से विद्यार्थी की यात्रा आरंभ हो चुकी है,छात्र एक सच्चा इंसान बन पाने में असहाय महसूस कर रहा है।
  • छात्र काल साधारण नहीं है,उसमें चेतना के उत्कर्ष एवं उसमें विकास की अपार संभावनाएं संन्निहित हैं,दिव्य बीज दबा पड़ा है।वह चैतन्य है,जागृत-जीवन्त,सचेतन एवं सजीव है।हमें इसका सच्चा सम्मान करना चाहिए।जिस प्रकार हमें आदर-सम्मान तथा भावनात्मक बोध होता है,उसी प्रकार सबमें यही भाव विद्यमान है।जैसा सांस लेने का अधिकार हमको है,वैसा ही अधिकार औरों का भी है।हमने अपना आदर-सम्मान तो स्वीकारा,परन्तु औरों के लिए अमान्य कर दिया एवं नकार दिया।हम भूल गए हैं कि जिससे हम संबंध जोड़ रहे हैं,वह भी हमारे समान ही एक इंसान है,उसे भी प्यार एवं सम्मान चाहिए।परंतु हमने छात्र-छात्राओं को वस्तु बना दिया उससे वस्तुपरक अपेक्षाएं रख लीं।इस वस्तुपरक मान्यता को उछाला।आज के आधुनिक टी०वी० चैनल,उसके अत्याधुनिक सीरियल,अखबार,सोशल मीडिया,इंटरनेट और ढेर सारे मन को लुभाने वाले विज्ञापन इसी वस्तुपरकता की कहानी का बयान कर रहे हैं।हमारी सारी श्रद्धा,भावना और विचार अंकगणित के समान जोड़-तोड़ करने वाले अंक बनकर सिमट गए हैं।ऐसे संबंधों की अवधारणा विद्यार्थी और विद्या दोनों के लिए अपमान है और इस अंध-अपेक्षा में मानवीय संभावनाओं की अपार दक्षता दफन हो गई है।विकास के बीज में घुन लग गया है।परिणामस्वरूप विद्यार्थी गहरी घुटन का शिकार हो गया है,जिससे मानसिक विक्षिप्तता और विकृति पैदा हो गई है और यही वजह है कि आज बड़े पैमाने पर हिंसा,डकैती,बैंक डकैती,अपहरण,साइबर क्राइम,हत्या,आत्महत्या जैसे आत्मघाती अपराधों की बाढ़ आ गई है।मनोवैज्ञानिक दृष्टि बताती है कि यह कुछ और नहीं,सही शिक्षा पद्धति का अभाव है,मानवीय नासमझी है,तालमेल का गंभीर अभाव है।

4.समस्याओं से मुक्त होने का उपाय (The way to get rid of problems):

  • इन महासमस्याओं से मुक्ति पाने के लिए आवश्यक है संबंधों की सही-सही और ठीक-ठीक समझ।छात्र-छात्राओं को एक-दूसरे को समझना,एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करना,आपसी सामंजस्य बिठाना,अहम का त्याग।इसकी शुरुआत विद्यार्थी को सही ढंग से देखकर,उसकी गरिमा का बोध करके ही की जा सकती है।सच्चे तालमेल के लिए हमारा दृष्टिकोण उदात्त तथा भावना निष्कपट होनी चाहिए।आपसी सहयोग,सामंजस्य,संबंधों का निर्वाह किया जा सकता है,यदि इनके बीच ‘हाइपर इमोशन’ तथा ‘हाइपो इमोशन’ दोनों को हावी न होने दिया जाए।’हाइपर इमोशन’ अर्थात् भावना का अतिरेक,अति अपेक्षा का उत्पन्न करना है,जबकि ‘हाइपो इमोशन’ अर्थात् भावना की न्यूनता जो छल और प्रवंचना को जन्म देती है।अतः  संबंधों के स्थायित्व के लिए इन दोनों को स्थान नहीं देना चाहिए।भावनात्मक आवेग भी संबंधों को तार-तार कर देता है,अतः इससे बचना चाहिए।
  • गीता में भगवान कृष्ण ने देवता और मनुष्य के बीच दिव्य और दैवीय संबंधों की ओर संकेत किया है।वस्तुतः विद्यार्थी में अनंत संभावनाओं का महासागर भरा पड़ा है।छात्र-छात्रा का व्यक्तित्व बहुआयामी एवं बहुपक्षीय है।छात्र व्यक्तित्व में विचार और भावनाएं दोनों होती हैं और इनमें बड़े ही संवेदनशील तथा मर्म बिंदु बिखरे पड़े होते हैं।इन मर्म बिन्दुओं पर मर्मांतक चोट करने पर मृत्यु का महासंकट खड़ा हो सकता है।संवेदना के तार अति सूक्ष्म एवं कोमल होते हैं और संबंध के धरातल में जितनी गहराई होगी,संबंध उतने ही नाजुक होते हैं।अतः  ऐसे संबंधों में कोई जल्दबाजी,उतावलापन या किसी प्रकार की छेड़खानी करने पर गहरे रिश्ते पलभर में टूटकर बिखर सकते हैं।
  • इस त्रासदी से बचने के लिए आवश्यकता हैःभावनात्मक परिपक्वता एवं गहरे बोध की।इनके समन्वय से गहरी अंतर्दृष्टि पनपती है।गहन अंतर्दृष्टि कुछ नहीं,बल्कि विचारों और व्यवहारों के बीच का अंतर्संबंध है।यह अंतर्दृष्टि हमारे संबंधों के बीच,रिश्तों के मध्य,एक तादात्म्य एक सच्चा तालमेल स्थापित करती है।अंतर्दृष्टि से भावनाओं और व्यवहार में तालमेल बना रहता है।अतः हमें न भावना का अतिरेक करना चाहिए और न ही संवेदनाशून्य होना चाहिए।व्यवहार में संवेदना और विचारों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए।हमें समय और परिस्थिति के अनुरूप अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना चाहिए।संबंधों के दीर्घावधि निर्वाह के लिए यह अत्यावश्यक है।इससे संबंधों को भले ही पूर्णता तक नहीं पहुंचाया जा सकता हो,परंतु बहुत दूर तक उनका निर्वाह किया जा सकता है।
  • भावना का क्षेत्र बड़ा ही कोमल,नाजुक होता है।भावनाओं को बड़ी मुश्किल से जीता जाता है।यों ही किसी पर भावनाओं को ऊँडेला नहीं जा सकता।यह प्रक्रिया बड़ी लंबी है।उसे दो पल में विनष्ट नहीं कर देना चाहिए।इसके लिए हमें सतत अपने व्यवहार का पैनी दृष्टि से अवलोकन करते रहना चाहिए।सदैव अच्छा-ही-अच्छा करते रहना चाहिए।
  • अच्छाई इंसानियत की सर्वोपरि विशेषता व महत्ता है।बुराई के बदले अच्छाई करना हिम्मत और साहस का कार्य है।अपने प्रति की गई बुराई के बदले कुछ ना कहना बहुत बड़ी विजय है।यह कायरता नहीं,शूरवीरों का क्षमादान है,जो एक दिन वैमनस्य के कड़ुए अहसास से उबरकर थमेगा।बुराई के प्रति की जा रही हर अच्छाई बुराई करने वाले को शर्मिंदा करती रहती है।अतः सदा अच्छाई एवं श्रेष्ठ कर्म को जीवन का ध्येय बनाना चाहिए।यही तालमेल का सच्चा आधार है।इस प्रकार सच्चे तालमेल के लिए निम्न गुणों का सतत अभ्यास अपेक्षित होता है:(1.) भ्रम एवं संदेहरहित बोध,(2.)गहन अंतर्दृष्टि,(3.)अपेक्षा का अभाव,(4.) भावनात्मक परिपक्वता और (5.)व्यक्तिगत अंतर्संबंधों की समझ।
  • इन गुणों का पालन करके ही सच्चे तालमेल का निर्वाह किया जा सकता है जो आज की सबसे बड़ी जरूरत है।इसी से वैयक्तिक उत्कर्ष के साथ स्वयं व राष्ट्र के विकास का आधार प्रशस्त हो सकता है।हम सबको सच्चे तालमेल के साथ ‘संघम शरणम गच्छामि’ के सूत्र को चरितार्थ करना चाहिए।

5.तालमेल बिठाने का निष्कर्ष (Conclusion to Adjustment):

  • केवल स्वयं के विकास के लिए ही नहीं राष्ट्र के विकास के लिए भी तालमेल बिठाने की कला सीखनी चाहिए।एक कक्षा में 40-50 से अधिक छात्र-छात्राएं शिक्षा अर्जित करते हैं,अतः बिना तालमेल के कक्षा का संचालन सुचारु रूप से नहीं हो सकता।एक शिक्षक इतने अधिक छात्र-छात्राओं की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है।परंतु तालमेल से सभी छात्र-छात्राएं शिक्षा अर्जित कर सकते हैं।तालमेल से आपसी सद्व्यवहार करने की कला आती है।परंतु आधुनिक शिक्षा पूरी तरह व्यावसायिक हो गई है इसलिए दिखावे के तौर पर ऊपर-ऊपर से तालमेल दिखाई देता है।यदि हरेक छात्र-छात्रा का हृदय खोलकर देखा जाए तो अधिकांश छात्र-छात्रा असंतुष्ट दिखाई देंगे।अपने अंदर शिकवा-शिकायतों का ज्वालामुखी अंदर ही अंदर दबाएं रहते हैं जो थोड़ी-सी चिंगारी से फट सकता है।
  • दरअसल आज की शिक्षा पद्धति में मानवीय संबंधों का निर्वाह करने की कला सिखाई ही नहीं जाती।ऐसी स्थिति में छात्र-छात्राएं केवल डिग्री का सर्टिफिकेट लेकर निकलते हैं और जीवन में एक-दूसरे से लड़ाई-झगड़ा करना,अपने अधिकारों की दुहाई देना,अपने स्वार्थ को पूरा करने की जुगत भिड़ाते रहते हैं।उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है कि स्वार्थ सिद्ध करने में दूसरों के अधिकारों का कितना हनन हो रहा है।
  • तालमेल से शिक्षा अर्जित करना न केवल छात्र जीवन के लिए उपयोगी है बल्कि जीवन की नैया को पार लगाने के लिए तालमेल की जरूरत है।तालमेल और सामंजस्य जीवन की सुगंध है,महक है इससे जीवन खिल उठता है,सुगंधित हो जाता है।एक-एक छात्र से परिवार का,परिवार से समाज का और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है।अतः आज जैसे छात्र-छात्राएं तैयार होंगे,कल को वैसा ही राष्ट्र का निर्माण होगा।
  • शिक्षा अर्जित करते समय यदि पाठ्यक्रम में ऐसा समावेश नहीं है तो शिक्षकों को अपने चरित्र व व्यवहार से तथा माता-पिता को भी,आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए ताकि छात्र-छात्राएं मानवीय गुणों को धारण करने में गौरव का अनुभव कर सकें।बिना तालमेल के शिक्षा अर्जित करना असंभव है।एक घंटे का कालांश क्या,एक मिनट भी कालांश को तालमेल के बिना चलाना मुश्किल है।अतः छात्र-छात्राओं तथा शिक्षकों को तालमेल बिठाने की कला सीखनी चाहिए।तालमेल किस प्रकार बिठाना चाहिए इसके लिए ऊपर लेख में बताए गए उपायों को अपनाना चाहिए और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में तालमेल बिठाकर पढ़ने की 6 तकनीक (6 Co-ordinated Reading Techniques),तालमेल बिठाकर पढ़ाने की कला (Art of Teaching in Harmony) के बारे में बताया गया है।

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6.तालमेल बिठाना (हास्य-व्यंग्य) (Adjusting) (Humour-Satire):

  • पिता (पुत्र से):तुम्हारे गणित में कम अंक आए हैं।क्या कारण है?
  • पुत्र:गणित टीचर होशियार छात्र-छात्राओं को ही समझाते रहते हैं,उन पर ही ध्यान देते हैं।कमजोर छात्र-छात्राओं पर ध्यान नहीं देते।
  • पिताजी:तालमेल बिठाओ,होशियार छात्र-छात्राओं से पूछो,मौका मिले तो टीचर से पूछो।
  • पुत्र:क्या खाक तालमेल बिठाएं? टीचर का तालमेल तो इसमें रहता है कि उनके स्कूल का,स्वयं टीचर का नाम वे (मेधावी) ही रोशन करेंगे।

7.तालमेल बिठाकर पढ़ने की 6 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 6 Co-ordinated Reading Techniques),तालमेल बिठाकर पढ़ाने की कला (Art of Teaching in Harmony) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.तालमेल का क्या अर्थ है? (What does harmony mean?):

उत्तर:तालमेल का अर्थ है संगति अर्थात् किसी कार्य को करने के लिए सुर मिलाना।

प्रश्न:2.सामंजस्य का क्या अर्थ है? (What does consistence mean?):

उत्तर:तालमेल और सामंजस्य एक-सा अर्थ रखने वाले शब्द हैं।सामंजस्य का अर्थ है औचित्य,संगति,अनुकूलता,उपयुक्त,विरोध,विषमता न होना,मेल आदि।

प्रश्न:3.अध्ययन को आसान तरीके से करने का क्या तरीका है? (What is the way to do the study in an easier way?):

उत्तर:हमारी सभी उंगलियों लंबाई में बराबर नहीं होती हैं किंतु जब वे मुड़ती है तो बराबर दिखती है।इसी प्रकार यदि किन्हीं परिस्थितियों में थोड़ा झुक जाते हैं या तालमेल बिठा लेते हैं तो अध्ययन करना बहुत आसान और आनंदित हो जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा तालमेल बिठाकर पढ़ने की 6 तकनीक (6 Co-ordinated Reading Techniques),तालमेल बिठाकर पढ़ाने की कला (Art of Teaching in Harmony) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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