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3 Best Techniques for Writing Articles

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1.लेख लिखने की 3 बेहतरीन तकनीक (3 Best Techniques for Writing Articles),प्रतियोगिता परीक्षाओं में लेख लिखने का अभ्यास करने की 3 टाॅप टिप्स (3 Top Techniques to Practice to Writing Articles in Competitive Exams):

  • लेख लिखने की 3 बेहतरीन तकनीक (3 Best Techniques for Writing Articles) की श्रृंखला में ये मील का पत्थर साबित हो सकता है।यदि आप इनमें दी गई बातों का अनुसरण करके लेख लिखने का अभ्यास करेंगे तो निश्चित रूप से आप प्रतियोगिता परीक्षाओं में ही नहीं बल्कि किसी भी जाॅब या अपने शगल को पूरा करने में महारत हासिल कर सकते हैं।
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2.अपना शब्द भंडार कैसे बढ़ायें? (How to increase your vocabulary?):

  • किसी भी विषय पर लिखने के लिए एक आवश्यक तत्त्व उस विषय से संबंधित शब्द भंडार (vocabulary) का विकास करना होता है।जिस प्रकार किसी मकान के निर्माण के लिए ईंटों की जरूरत पड़ती है,उसी प्रकार किसी लेख अथवा निबंध की रचना हेतु शब्द भंडार का होना जरूरी होता है।लेकिन यहाँ पर यह बात याद रखने योग्य है कि आप अपने शब्द भंडार का विकास एक-दो दिनों में नहीं कर सकते।शब्द भंडार का विकास एक सतत प्रक्रिया है,जिसके लिए आपको निरंतर सचेष्ट एवं जिज्ञासु बने रहना पड़ता है।यदि आप एक वृहद शब्द भंडार का निर्माण करना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको महीनों अथवा वर्षों तक निरंतर अभ्यास करते रहने की जरूरत होगी।
  • एक बार जब आप इसके प्रति जागरूक बन जाते हैं,तो यह एक जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया के रूप में आपकी आदत में शामिल हो जाता है और ऐसी स्थिति में आप अनायास ही शब्दों का विशाल भंडार कायम कर लेते हैं।यदि आप क्रमबद्ध तौर पर अपने शब्द भंडार का विकास करते हैं,तो इससे आपके विचारों को क्रमिक रूप से सशक्तता मिलती जाती है।जब आप अपने विचारों को कागज पर उतारने की कोशिश करते हैं,तो वह आपकी श्रेष्ठ लेखन शैली को प्रतिबिंबित कर पाता है।ऐसी स्थिति में,आप अपने वातावरण को पूरी तरह से समझ पाने की स्थिति में रहते हैं तथा किसी भी विषय पर साधिकार लिख पाने में समर्थ हो जाते हैं।
  • शब्द भंडार बढ़ाने का अर्थ यह नहीं है कि आप कम प्रचलित अथवा अप्रासंगिक शब्दों को याद करते जाएं अथवा असंबद्ध एवं अव्यावहारिक शब्दों को कंठस्थ करते जायें,बल्कि इसका अर्थ यह होता है कि मानव जीवन से संबद्ध सभी पक्षों से संबंधित शब्दों को आप जान सकें तथा उनका अपने दैनिक कार्यकलापों में उचित समय पर प्रयोग कर सकें।क्रमबद्ध रूप से तथा व्यावहारिक स्तर पर अपने शब्द भंडार को बढ़ाने का तात्पर्य यही है कि आप स्वयं को विभिन्न पक्षों से संबद्ध शब्दों के इर्द-गिर्द रख पायें तथा उनका उचित स्थल तथा समय पर प्रयोग कर पाने में समर्थ हो सकें।
  • एक बार जब आप अपने शब्द भंडार का विकास कर लेते हैं तो आप अपनी भावनाओं तथा अपने विचारों को अधिक प्रभावी रूप से रख पाने में समर्थ हो पाते हैं।इससे आपके सोचने के ढंग,सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा मानवीय समस्याओं को समझने में काफी सुविधा हो जाती है।यदि आप अपने शब्द भंडार को बढ़ाना चाहते हैं,तो फिर आपको चाहिए कि आप:
    (i)बच्चों की तरह पढ़ने की आदत डालें;
    (ii)शब्दकोश (डिक्शनरी) की मदद लेने की प्रवृत्ति डालें;
    (iii)शब्द भंडार बढ़ाने संबंधी किसी मान्य पुस्तक का अध्ययन करें;
    (iv)नये सीखे गए शब्दों को लगातार प्रयोग में लाने की कोशिश करें;
    (v)प्रतिदिन किसी खास संख्या में नए शब्दों को सीखने की प्रवृत्ति डालें;
    (vi)दिन-प्रतिदिन के प्रचलन में आने वाले शब्दों को सीखने में अधिक रूचि दिखाएं आदि।
  • यदि आपकी लेखन शैली अच्छी नहीं है,तो इसका एक बहुत बड़ा कारण यह हो सकता है कि आपका शब्द भंडार अच्छा नहीं है।यदि आपके पास शब्दों का एक बड़ा भंडार है,तो इस बात की बहुत कुछ संभावना है कि आपकी लेखन क्षमता अच्छी बन पाये।यदि आप लेखों अथवा निबंधों में गढ़े हुए शब्दों को रखने का प्रयास करते हैं,तो इससे आपका लेख काफी भोथड़ा तथा अव्यावहारिक-सा दिख पड़ता है।ऐसा तब होता है,जब आप किसी शब्द के वास्तविक अर्थ को जाने बिना उसका प्रयोग गाहे-बगाहे करने लगते हैं।
  • दरअसल यदि आप अपने शब्द भंडार को बढ़ाना चाहते हैं,तो इसके लिए तो यह तो जरूरी है कि आप उन शब्दों के अर्थों को जानें,परन्तु इससे भी अधिक जरूरत इस बात की होती है कि आप ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की आदत डालिए,ताकि आपको विभिन्न वाक्यों की संरचना का पता चल सके।यदि आप दूसरी चीजें नहीं पढ़ पायें,तो मात्र समाचार-पत्रों को पढ़कर ही आप एक वृहत एवं सुदृढ़ शब्द भंडार का निर्माण कर सकते हैं।समाचार पत्रों में उद्धृत शब्दों को दिन-प्रतिदिन के प्रयोग में लाकर आप अपने शब्द भंडार में इजाफा करने में समर्थ हो पाते हैं।जिन शब्दों के प्रयोग अथवा अर्थ को आप नहीं जान पाते हैं,उनके लिए आपको किसी शब्दकोश (Dictionary) का उपयोग करना पड़ सकता है।यद्यपि शब्दकोश का उपयोग करना शुरू में काफी जटिल एवं अरुचिकर जान पड़ता है,परंतु यह आपके शब्द भंडार को बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाता है।
  • अपने शब्द भंडार को व्यापकता प्रदान करने के लिए आपको चाहिए कि आप विभिन्न क्षेत्रों से संबद्ध पुस्तकों का अध्ययन जरूर करें।ये पुस्तकें धर्म,संस्कृति,विज्ञान,दर्शन,समाज,अर्थ आदि से संबंधित हो सकती हैं।महापुरुषों अथवा अन्य प्रसिद्ध लेखकों की जीवनियों,आत्मकथाओं,लेखों,निबंधों,साहित्यिक कृतियों आदि का अध्ययन करने से भी आप सुदृढ़ शब्द भंडार का सृजन कर सकते हैं।इन पुस्तकों के अध्ययन से आप विभिन्न लेखन शैलियों से भी अवगत हो पाते हैं,जिसकी बदौलत आप अपनी एक अलग लेखन शैली का विकास कर सकते हैं।
  • यदि आप एक कुशल लेखक बनना चाहते हैं,तो आपको विभिन्न मुहावरों (phrases),लोकोक्तियों (Idoms),कहावतों (Proverbs) आदि को भी जानना होगा।इन विशिष्टताओं से युक्त वाक्यों की प्रभाविता काफी अधिक एवं आकर्षक जान पड़ती है।कभी-कभी एक लोकोक्ति अथवा कहावत दो-चार वाक्यों के बदले में सारे अर्थों को प्रकट कर देता है,जो कि उन वाक्यों से निकल सकते हैं।यदि आप कुशल लेखन की कला विकसित करना चाहते हैं,तो आपको यह चाहिए कि आप छोटे-छोटे वाक्यों का सृजन करें।आपको ध्यान रखना चाहिए कि लंबे एवं जटिल वाक्य जहां काफी बोझिल एवं अस्पष्ट प्रतीत होते हैं,वहीं उनमें अशुद्धियों की संभावना भी अधिक होती है।लंबे एवं जटिल वाक्य कभी-कभी अर्थहीन बन जाते हैं,जबकि छोटे-छोटे वाक्यों से स्पष्ट अर्थ निकल पाते हैं।यदि आप लेखन के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता कायम करना चाहते हैं,तो आपको संक्षिप्त वाक्य का सृजन करना होगा,ताकि कथ्य एवं विचारों में स्पष्टता कायम रह सके।

3.शैक्षिक एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं में उत्तर लिखने की टिप्स (Answer Writing Tips in Academic and Competitive Exams):

  • (1.)लेख लिखने में उन तमाम व्यक्तिगत अनुभवों को समेटने की कोशिश करें जो आपने प्राप्त किया है।देश-विदेश की भाषाओं में विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं का वृहद अध्ययन करें,जिससे आपके उत्तर (लेखों) को विविधता एवं नवीनता प्राप्त हो।
  • (2.)जिंदगी की वास्तविकताओं को समझें तथा अपनी इसी समझ को अपनी व्यावहारिकता की कसौटी पर कसने का प्रयास करें।
  • (3.)यदि प्रश्न आध्यात्मिक पुट लिए हुए हो जैसे दर्शनशास्त्र,धर्म तो लेखन शैली प्रभावोत्पादक तथा तर्कपूर्ण होनी चाहिए।हालांकि इनमें जटिल शब्दों का भी प्रयोग करना पड़ता है परंतु यदि उत्तर या लेख इस तरह से लिखा जाए कि वह परीक्षक या पाठक की दिल की गहराइयों से उतर जाए,तो वह लेख या उत्तर काफी सशक्त एवं प्रभावी बन पड़ता है यानी आपको खुद दिल की गहराइयों में उतर कर लिखना होगा।
  • (4.)परीक्षाओं में जो प्रश्न पूछे जाते हैं,उनका उद्देश्य प्रतियोगियों की समुचित जानकारी,उनके सोचने की क्षमता,व्यावहारिकता की पहचान तथा विषय-वस्तु की प्रासंगिकता की समझ का सही अंदाजा लगाना होता है।इन गुणों को परखने के लिए कठिन प्रश्नों को पूछने की कोई जरूरत नहीं होती है।वास्तविकता तो यह है कि सामान्य छात्र भी यदि सही नजरिया कायम रखें तथा प्रश्नों का संतुलित एवं व्यावहारिक उत्तर दे सके,तो वह भी इस तरह के कठिन परीक्षा में सफल हो सकता है।दरअसल,परीक्षकों का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि वे इस बात को भलीभाँति जान सकें कि प्रतियोगी प्रश्नों के उत्तर को किस सीमा तक वस्तुनिष्ठ बनाए हुए लिख सकता है।
  • (5.)प्रश्नों की रूपरेखा काफी वैज्ञानिक तरीके से तैयार की जाती है।अतः अपना उत्तर विषय-वस्तु के जितना करीब रहकर अपनी बातों को कम समय तथा कम शब्दों में अभिव्यक्त करें।एक तरह से देखा जाए,तो इस प्रकार के प्रश्नों का जवाब देना पारंपरिक प्रश्नों की तुलना में कहीं अधिक आसान होता है,बशर्ते कि आपने गहन अध्ययन (extensive study) किया हो,आपकी विषय पर पूरी पकड़ (firm grip) हो तथा विषय के प्रति आपकी स्पष्ट धारणा (clear concept) हो।
  • (6.)प्रश्नों के उत्तर की शब्द सीमा का पालन करने के लिए पूर्वाभ्यास करें।शब्दों की सीमा सीमित रखने के लिए कई तरह के संक्षेपक शब्दों तथा प्रतीक चिन्हों का प्रयोग करें।
  • (7.)प्रश्नों के उत्तर परंपरागत और रटे-रटाये तरीके से न देकर सोच-विचार कर,मस्तिष्क में रूपरेखा बनाकर तथा उचित योजना के अनुसार लिखें।
  • (8.)शब्द-सीमा (word limit) का पालन करना एक अच्छा संकेत माना जा सकता है।परीक्षा में शामिल होने से पूर्व लिखने का पर्याप्त अभ्यास रहने से समय की कमी नहीं अखरती है।प्रश्नों की प्रकृति के अनुरूप संक्षिप्त अनुच्छेदों,संकेतकों तथा प्रतीक चिन्हों का प्रयोग जहाँ एक ओर लाभदायक एवं वैज्ञानिक माना जाता है,वहीं दूसरी ओर समय की दृष्टि से लाभदायक होता है।उत्तर लिखने से पूर्व यह निर्धारित कर लेना आवश्यक होता है कि आप क्या लिखने जा रहे हैं? इससे विषय की प्रासंगिकता बनी रह पाती है तथा उत्तर को व्यावहारिकता मिल पाती है।अतः प्रतियोगियों को चाहिए कि उत्तर लिखने से पूर्व वे उसका एक खाका (sketch) अवश्य ही तैयार कर लें।उत्तर लिखते समय प्रश्नों के ऊपर बार-बार नजर दौड़ते रहना चाहिए,ताकि प्रश्नों में सन्निहित भावों के अनुरूप अपने उत्तर को व्यावहारिकता प्रदान की जा सके तथा भटकाव से बचा जा सके।ऐसी स्थिति में आपके उत्तर संतुलित एवं प्रासंगिक बन पाते हैं।
  • (9.)अक्सर ऐसा देखा जाता है कि प्रतियोगिता परीक्षाओं में कुछ सामान्य स्तर के छात्र भी सफलता प्राप्त कर लेते हैं,जबकि अनेक अधिक प्रतिभाशाली छात्र सफल नहीं हो पाते हैं।अन्य कारणों के अलावा विषयों का चयन तथा लिखने की कला इस स्थिति को लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
  • अभ्यर्थी चाहे कितना ही प्रतिभाशाली क्यों ना हो,यदि वह सही विषय का चयन नहीं करता है अथवा अपेक्षित एवं संतुलित प्रश्नोत्तर नहीं लिख सकता है,तो उसकी सफलता संदिग्ध बनी रहती है।दरअसल,अभ्यर्थी उस विषय की ओर अधिक आकर्षित होते हैं,जिसमें अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक संख्या में छात्र सफलता प्राप्त करते हैं।
  • (10.)समीक्षात्मक अथवा आलोचनात्मक प्रश्नों के उत्तर में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह होता है कि सरकारी नीतियों के सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलुओं का उल्लेख सामंजस्य के साथ किया जाना चाहिए।इसके अलावा,विषयवस्तु के सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक पहलुओं में भी तारतम्यता बनाने की नितान्त आवश्यकता होती है।आंकड़ों की चर्चा करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए की मात्र सरकारी एवं मानक आंकड़ों को ही उद्धृत किया जाए,गैर सरकारी आंकड़ों का प्रयोग बगैर स्रोत के अवांछनीय ही माना जाएगा।
  • (11.)विषय-वस्तु का गहन अध्ययन एवं संकल्प शक्ति का विकास समस्या विशेष के आधारभूत कारणों एवं निदान का संपूर्ण ज्ञान; प्रश्न की जरूरत के मुताबिक संतुलित उत्तर;सही स्थान पर सही शब्दों का चयन; स्पष्ट,बोधगम्य एवं सरलतम भाषा का प्रयोग आदि पर विशेष ध्यान दें।
  • (12.)कतिपय प्रश्नों के स्वरूप ऐसे होते हैं,जिनमें छात्रों को अपना झुकाव (अथवा विचार) स्पष्ट करना होता है।इसके लिए व्यापक अध्ययन (Extensive study) तथा चयनात्मक अध्ययन (selective Study) दोनों में संयोग स्थापित करने की आवश्यकता होती है।दूसरे शब्दों में,बेहतर परिणाम के लिए संपूर्ण पाठ्यक्रम का संक्षिप्त ज्ञान तथा पाठ्यक्रम के चुने हुए अंश का विस्तृत ज्ञान दोनों ही आवश्यक है।दरअसल छात्रों में विश्लेषणात्मक व आलोचनात्मक दृष्टि का विकसित होना आवश्यक है,तभी वे प्रश्नों के साथ न्याय कर पाएंगे।
  • (13.)वस्तुतः अभ्यर्थियों को लेखन के अभ्यास पर अत्यधिक बल देना चाहिए।सामान्यतः छात्रों में इस तरह की कमजोरी देखी जाती है कि वे अध्ययन पर तो पूरा ध्यान देते हैं,परंतु लेखन को नजरअंदाज कर देते हैं।किंतु यहां हमें यह याद रखना होगा कि ज्ञान एवं अभिव्यक्ति के बीच की दूरी को नियमित एवं संतुलित लेखन के अभ्यास द्वारा ही पाटा जा सकता है।परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने का एकमात्र आधार यही है कि आप अपनी परीक्षा भवन में अपने आपको कितने व्यवस्थित रूप में अभिव्यक्त कर पाते हैं।ज्ञान की पहली जरूरत प्रश्नों को समझने में होती है।एक ही प्रश्नों को अलग-अलग छात्र अलग-अलग ढंग से समझ सकते हैं और फिर अलग-अलग दिशाओं में उसका उत्तर लिख सकते हैं।यानी प्रश्नों के सही विश्लेषण के लिए विषय-वस्तु का समुचित ज्ञान होना परम आवश्यक है।
  • अच्छे अंक प्राप्त न होने का यह भी कारण हो सकता है कि अभ्यर्थी द्वारा नवीन विचारों एवं दृष्टिकोण से अनभिज्ञ रहना तथा लेखन शैली का निम्नस्तरीय स्वरूप।यदि अभ्यर्थी इन दोनों पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दें,तो वे निश्चय ही बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
  • (14.)इस संदर्भ में परंपरागत विचारों एवं धारणाओं को त्यागने तथा मान्यताप्राप्त नवीन दृष्टिकोणों को अपनाये जाने की जरूरत होती है।प्रश्नों के बदलते स्वरूप एवं प्रकृति को पहचानने की जरूरत होती है।प्रश्न साधारणतया काफी जटिल एवं गूढ़ हुआ करते हैं,जिन्हें उसी रूप में लिखने की जरूरत होती है।साथ ही,मुख्य बिंदुओं के रूप में आपके पास प्रत्येक प्रश्न के उत्तर का खाका होना चाहिए,ताकि परीक्षा कक्ष में सीधे तौर पर उत्तर को लिखा जा सके और सोच-विचार की अधिक आवश्यकता नहीं पड़े।
  • प्रश्नोत्तर लिखने में पुस्तकों की भाषा की नकल नहीं करें।अपनी भाषा में मौलिकता कायम करने की कोशिश करें।पुस्तकों की विषय-वस्तु को तो ग्रहण करना चाहिए,परंतु इसे प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ अपनी भाषा को ही उपयोग में लाये।
  • (15.)प्रश्नों का श्रेष्ठ उत्तर लिखने में सर्वप्रमुख तथ्य यह है कि प्रश्नों को सही-सही नहीं समझा जाना उत्तर को गलत दिशा देता है।ऐसी स्थिति में संपूर्ण उत्तर ही गलत हो जाता है।इसके लिए आवश्यक है कि प्रश्नों को बार-बार पढ़कर उनके केंद्रीय विचार को जानना चाहिए।अति-शीघ्रता नुकसानदायक हो सकती है।अपनी भाषा का प्रयोग करें।उत्तर में भाषा की मौलिकता पर ध्यान दें।रटे-रटाये उत्तरों में जहां पुस्तकों की नकल दृष्टिगत होती है,वहीं ऐसा करना अच्छे अंक प्राप्त करने में बाधा भी बन सकता है।
  • (16.)आपके उत्तर पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होने चाहिए और न ही उत्तर में आपका कोई विशेष झुकाव प्रकट होना चाहिए।उत्तर लिखते वक्त उग्र विचारों का समावेश नहीं करें।विभिन्न विचारों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करें।आलोचना के अंतर्गत ‘सकारात्मक प्रवृत्ति’ को स्वीकार करें।’अति आलोचना’ से बचें।आलोचना को सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करें।प्रत्यक्ष आलोचना से बचें।सदैव प्रभावी भाषा का ही प्रयोग करें।भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए।
  • (17.)अलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करें।भाषा ऐसी हो,जिसमें स्पष्टता हो और बातें प्रत्यक्ष तौर पर कही गयी हों,ताकि आसानी से विषयवस्तु को समझा जा सके।कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारी दें और लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करें।अखबारी भाषा या पत्रकारिता वाली भाषा का प्रयोग नहीं करें।बोलचाल वाली भाषा का प्रयोग नहीं करें।यानी भाषा के अनौपचारिक स्वरूप का इस्तेमाल नहीं करें।भाषा औपचारिक होनी चाहिए।
  • (18.)उत्तर को अलग-अलग अनुच्छेद में लिखें।एक विषय-वस्तु को एक अनुच्छेद में लिखें।आपका संपूर्ण उत्तर कई अनुच्छेदों में विभक्त होना चाहिए।यह उत्तर को स्पष्टता प्रदान करता है।उद्धरण मूल पुस्तक या स्रोत से दिया जा सकता है।उत्तर में अधिक से अधिक बिंदुओं को डालने का प्रयास करें।कुछ प्रश्नों में भूमिका लिखे जाने की आवश्यकता होती है।लेकिन भूमिका छोटी होनी चाहिए,अन्यथा उत्तर को सीधे शुरू किया जा सकता है।उत्तर को प्रारंभिक वाक्यों में इस तरह से लिखा जाना चाहिए कि इसका सीधा संबंध प्रश्न से हो।
  • (19.)कई प्रश्नों के उत्तर 600 शब्दों में नहीं लिखे जा सकते हैं तो 400-500 शब्दों में लिख सकते हैं।अंक प्राप्ति पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा,बशर्तें कि आप सारे बिंदुओं को उतने ही शब्दों में समेट दें।
  • (20.)अपना उत्तर साफ-साफ शब्दों में लिखें ताकि परीक्षक आपके उत्तर को अच्छी तरह से पढ़ सकें। आपको चाहिए कि आप तथ्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें।
  • (21.)अभ्यर्थियों को चाहिए कि वे अपने उत्तर को नयी दिशा तथा नया स्वरूप प्रदान करें और परंपरागत ढंग से अलग लिखने का प्रयत्न करें।यह एक ओर जहां आपके लेखन की मौलिकता को प्रदर्शित करता है,वहीं दूसरी ओर आपके उत्तर के नवीन पहलुओं को परिलक्षित करता है।यदि आवश्यक हो तो उत्तर के अंत में निष्कर्ष जरूर लिखें।निष्कर्ष लिखते समय एक महत्त्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य यह है कि निष्कर्ष में मुख्य हिस्से का संक्षेपण नहीं होना चाहिए।ऐसा लिखना पुनरावृत्ति की प्रवृत्ति को ही दर्शाता है।निष्कर्ष लेखन को भी नयी दिशा देने की जरूरत है।इसमें आप उन बिंदुओं को समेटने का प्रयत्न करें,जो प्रश्न विशेष से जुड़ी मूलभूत अवधारणा को रेखांकित कर रहे हों।
  • (22.)अपना उत्तर लिखते समय अधिक से अधिक उदाहरण अवश्य दें।इससे न सिर्फ आपको अच्छे अंक मिलेंगे,बल्कि व्याख्या का आपका पक्ष भी मजबूत होगा।
  • (23.)यदि आवश्यक हो तो उत्तर में रेखाचित्र तथा आरेखों का यथासंभव प्रयोग करें।इसके बिना आपके उत्तर अपूर्ण एवं नाकाफी माने जाएंगे और अच्छा उत्तर लिखने के बावजूद आपको अच्छे अंक नहीं मिल पाएंगे।
  • (24.)प्रश्न की प्रकृति अर्थात् विश्लेषण,समालोचना,विवेचना,व्याख्या,विस्तरीकरण,विवरण आदि के अनुसार उत्तर दें।अक्सर अपना पांडित्य दिखाने की खातिर अभ्यर्थी उन तथ्यों को भी अपने उत्तर में शामिल कर लेते हैं जिनका उत्तर से कोई सरोकार नहीं होता।
  • (25.)प्रश्न कई बार देखने में लगता कुछ और है जबकि वह वस्तुतः कुछ और ही प्रकृति लिए हुए रहता है।अतः यह आवश्यक है कि आप प्रश्न को अच्छी तरह से समझने के बाद ही इसका उत्तर लिखने की कोशिश करें।आपको यह समझना होगा कि आपसे क्या पूछा जा रहा है,उसी के अनुरूप आपको अपने उत्तर में तारतम्यता बनाए रखनी होगी।तथ्यपरक तथा गंभीर विषय के लिए यह और भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में लेख लिखने की 3 बेहतरीन तकनीक (3 Best Techniques for Writing Articles),प्रतियोगिता परीक्षाओं में लेख लिखने का अभ्यास करने की 3 टाॅप टिप्स (3 Top Techniques to Practice to Writing Articles in Competitive Exams) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:5 Tips for Writing Articles in Exam

4.गणित का फेंकू छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Maths Throwaway Student) (Humour-Satire):

  • चिंकू (दर्शनशास्त्र का छात्र):पिंकू से,गणित का एक छात्र कह रहा था की गणित विषय इतना विशाल है कि उसमें सृष्टि समा जाए।
  • टिंकू:फिर तुमने तूने क्या कहा?
  • चिंकू:मैंने भी कह दिया कि हमारा विषय दर्शनशास्त्र इतना विशाल है कि जिसने भी उसमें डुबकी लगायी उसका पता ही नहीं चला कि वह कहाँ गया।

5.लेख लिखने की 3 बेहतरीन तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 3 Best Techniques for Writing Articles),प्रतियोगिता परीक्षाओं में लेख लिखने का अभ्यास करने की 3 टाॅप टिप्स (3 Top Techniques to Practice to Writing Articles in Competitive Exams) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाली प्रश्न:

प्रश्न:1.विवेचना करने वाले प्रश्नों का उत्तर कैसे दें? (How to answer discussion questions?):

उत्तर:विवेचना का तात्पर्य यह है कि किसी भी विषय पर सामान्य तौर पर लिखा जाए।दूसरे शब्दों में दिए गए विषय के विभिन्न पहलुओं पर सीधे रूप से चर्चा की जाए।यानि किसी विषय के बारे में आप जो कुछ जानते हैं,उसे सिलसिलेवार ढंग से लिखने का प्रयास करें।इसके लिए किसी विशेष ‘एप्रोच’ की जरूरत नहीं होती।

प्रश्न:2.टिप्पणी करने वाले प्रश्नों का उत्तर कैसे दें? (How to respond to commenting questions?):

उत्तर:इसमें मुख्य रूप से अभ्यर्थी को अपना मत प्रकट करना होता है।इस प्रकार के उत्तर में परीक्षार्थी के विचार कथन से मेल खाते हुए हो सकते हैं उसके विरोध में भी हो सकते हैं।अभ्यर्थी इन दोनों के बीच मध्यम मार्ग अपनाते हुए एक संतुलित विचार भी प्रस्तुत कर सकते हैं।अभ्यर्थी को कथन का स्वरूप अथवा प्रकृति समझनी चाहिए।

प्रश्न:3.आलोचना करने वाले प्रश्न का उत्तर कैसे दें? (How to answer critical questions?):

उत्तर:’आलोचना’ का सीधा मतलब किसी वस्तु का छिद्रान्वेषण करना अथवा उचित-अनुचित का ज्ञान कराना है।इसके तहत किसी वस्तु के सकारात्मक एवं नकारात्मक तथ्यों को उजागर किया जाता है।लेकिन आलोचना करते समय अभ्यर्थियों को चाहिए कि वे प्रश्न के नकारात्मक पहलुओं पर विशेष जोर डालें।साथ ही प्रश्न के अन्त में एक प्रभावपूर्ण निष्कर्ष (Effective Conclusion) निकालने की भी जरूरत होती है।इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि परीक्षार्थी अंततः क्या विचार रखना चाहता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा लेख लिखने की 3 बेहतरीन तकनीक (3 Best Techniques for Writing Articles),प्रतियोगिता परीक्षाओं में लेख लिखने का अभ्यास करने की 3 टाॅप टिप्स (3 Top Techniques to Practice to Writing Articles in Competitive Exams) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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