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9 Best Ways to Know Utility of Life

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1.जीवन की उपयोगिता कैसे जानें के 9 बेहतरीन उपाय (9 Best Ways to Know Utility of Life),जीवन का महत्त्व कैसे जानें के 9 तरीके (9 Ways on How to Know Importance of Life):

  • जीवन की उपयोगिता कैसे जानें के 9 बेहतरीन उपाय (9 Best Ways to Know Utility of Life) के आधार पर आप जान सकेंगे कि जीवन की क्या उपयोगिता और महत्ता है।जीवन कैसे जिएँ,क्या जीवन को जीने का हमारा तरीका सही है।
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2.जीवन को यों ही व्यतीत न करें (Don’t go through life like this):

  • जीवन-साधना चेतना क्षेत्र का ऐसा पुरुषार्थ है,जिसमें सामान्यश्रम एवं मनोयोग का नियोजन भी असामान्य विभूतियों एवं शक्तियों को जन्म देता है।साधारण स्थिति में हर वस्तु तुच्छ है।पर यदि उसे उत्कृष्ट बना दिया जाए,उसकी सूक्ष्मता तक प्रवेश पा लिया जाए,तो उससे ऐसा कुछ मिलता है,जिसे विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण कहा जा सके।ऊपरी तौर पर समुद्र में खारे पानी के सिवा और क्या नजर आता है? पर उसकी गहराई में उतरने वाले उसे रत्नाकर के रूप में अनुभव करते हैं।बात दोनों ही सही हैं,उथली दृष्टि से खारे पानी का गड्ढा बेकार में इतनी जमीन घेरे हुए हैं।सूक्ष्न दृष्टि से देखने पर समस्त भूमंडल को सुखवर्षा के रूप में जीवनरस देने वाला वही प्रतीत होता है।धूलि के छोटे-छोटे  कण यों ही बेकार नजर आते हैं।पर जब उनसे प्रचण्ड अणुशक्ति प्रकट होती है,तो सारी दुनिया चमत्कृत रह जाती है।स्थूल से सूक्ष्म में जितना गहरा उतरा जाता है,उतने ही रहस्मय तथ्यों का उद्घाटन होता जाता है।
  • जीवन मोटी दृष्टि से ऐसा ही एक खिलवाड़ है,जिसे ज्यों-त्यों करके काटना पड़ता है।निर्वाह की आवश्यकता जुटाने,गुत्थियों को सुलझाने और प्रतिकूलताओं के अनुकूलन में माथा-पच्ची करते-करते मौत के दिन पूरे हो जाते हैं।अभावों और संकटों से पीछा ही नहीं छूटता। कई बार तो गाड़ी इतनी भारी हो जाती है कि खींचे नहीं खिंचती।फलतः प्रयत्नपूर्वक अथवा बिना प्रयत्न ही अकाल मृत्यु के मुंह में प्रवेश करना पड़ता है।नीरस और निरर्थक जीवन एक ऐसा अभिशाप है,जिसे दुर्भाग्य के रूप में स्वीकार करना पड़ता है,किंतु लगता यही रहता है कि बेकार जन्में और निरर्थक जिए।साधारण तौर पर जीवन का यही स्वरूप है,जो विपरीत परिस्थितियों में तो अन्य प्राणियों से भी गया-बीता प्रतीत होता है।

3.जीवन असाधारण तरीके से जीने के लिए है (Life is meant to be lived in an extraordinary way):

  • असाधारण जीवन इससे आगे की बात है।सफल-समर्थ एवं समुन्नत स्तर के व्यक्ति सौभाग्यशाली नजर आते हैं और उनकी स्थिति प्राप्त करने के लिए मन ललचाता है। भौतिक संपन्नता से संपन्न और आत्मिक विभूतियों के धनी लोगों की न प्राचीनकाल में कमी थी और न अब है। पिछड़े और समुन्नत वर्गों के बीच अंतर देखने से अचरज होता है कि एक जैसी काया में रहने वाले इंसानों की स्थिति में इतना ऊंचा या नीचा होने का क्या कारण हो सकता है? सृष्टा का पक्षपात एवं प्रकृति के अंधेर कहने से भी काम नहीं चलता।क्योंकि दोनों की सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित सत्ता में अंधेरगर्दी की थोड़ी-सी भी गुंजाइश नहीं है।यदि अव्यवस्था एवं व्यक्तिक्रम होता तो ग्रह-नक्षत्र अपनी धुरी पर घूमते नजर ना आते।परमाणुओं के घटक उच्छृंखलता बरतते और परस्पर टकराकर उसी मूल स्थिति में लौट गए होते,जिसमें कि महत तत्त्व अपनी अविज्ञात स्थिति में अनन्तकाल से पड़ा था।अंधेरगर्दी के रहते इस सृष्टि-संरचना एवं प्रक्रिया की कोई गुंजाइश नहीं थी।
  • मनुष्यों के बीच पाए जाने वाले आसमान-जमीन जैसे अंतर का यही कारण नजर आता है कि जीवन की ऊपरी परतों तक ही जिन्होंने मतलब रखा,उन्हें छिलका ही हाथ लगा,किंतु जिन्होंने गहरे उतरने की चेष्टा की,उन्हें एक के बाद एक बहुमूल्य उपलब्धियां मिलती चली गयीं।गहराई में उतरने को जीवन-साधना कहते हैं। साधना किसकी? इसका एकमात्र एवं सुनिश्चित उत्तर यही है,जीवन की।जीवन मनचाहा फल देने वाला कल्पतरु है।जो भी इसका जितना सदुपयोग कर सका,उतना ही वह धन्य हो जाता है।उसके होठों पर सदा-सर्वदा मुसकराहट के फूल खिलते हैं।स्रष्टा ने बीज रूप में वैभव का अपरिमित भंडार इसी मानवीय काया में समेटा-सँजोया हुआ है।हमारी भूल इतनी ही रही कि न उसे खोजा गया और न काम में लाया गया।इस भूल का परिमार्जन आत्मज्ञान है।यह जागृति जब सक्रिय बनती है,तो आत्मोत्कर्ष के लक्षण तत्काल दृष्टिगोचर होने लगते हैं।इसी आत्म-परिष्कार का नाम जीवन-साधना है।

4.जीवन को जीने के लिए पात्रता (Eligibility to live life):

  • जीवन-साधना से सिद्धि तक पहुंचने की बात 100% सच है।भौतिक जगत में विलक्षण क्षेत्र हैं,जो की जड़-जगत के किसी मूल्यवान एवं महत्त्वपूर्ण घटक से भी कहीं अधिक बहुमूल्य है।जड़ सीमित है,चेतन असीम और अनंत है।जड़ से केवल साधन भर पाए जा सकते हैं,जबकि चेतन में तो आनंद और उल्लास के भंडार भरे पड़े हैं।इनकी साधना का एक सुविस्तृत विज्ञान है।
  • जीवन-साधना के इन अभ्यासों को ऊपरी तौर पर देखने से यह भ्रांति होती है कि यह सब कुछ कहीं बाहर से मांगने-पाने का उपक्रम है,पर वस्तुतः बात ऐसी नहीं है।पात्रता का संम्वर्द्धन ही जीवन-साधना है।इसके लिए जीवन के बहिरंग को व्यवस्थित और अंतरंग को परिष्कृत करना पड़ता है।परिष्कृति को योग एवं व्यवस्थिति को तप करते हैं।जीवन-साधना के यही दो क्षेत्र हैं।बहिरंग को सभ्यता की मर्यादा में रहना पड़ता है और अंतरंग को सुसंस्कृत बनाने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना पड़ता है।साधना का तत्त्वदर्शन यही है।सर्कस में काम करने वाले पशुओं को इस कदर प्रशिक्षित कर देते हैं कि उनके आश्चर्यजनक करतब देखकर बुद्धिमान इंसान भी हैरत में पड़ जाता है।लगभग यही प्रक्रिया अनगढ़ एवं अव्यवस्थित जीवन-संपदा को सुव्यवस्थित और समुन्नत बनाने के लिए करनी पड़ती है।जीवन-साधना के समस्त उपचार इसी महान उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं।

5.कुछ पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है (You have to pay eligibility to get something):

  • सामान्य प्रचलन है कि किसी विषय में प्रवीण होने के लिए गुरु की कृपा होना जरूरी है।साधना इसी के लिए की गयी मनुहार है।यह मान्यता थोड़े अंशों में ही सच है।दुकानदार मांगने से कोई वस्तु निकाल कर दिखा देता है,पर देता तभी है जब उसकी उचित कीमत चुका दी जाए।प्रार्थना को अपनी आवश्यकता की अभिव्यक्ति माना जा सकता है,परंतु इसे याचना कहना या समझना भारी भूल है।याचना का मतलब तो बिना मूल्य दिए कुछ बहुमूल्य पाने के लिए गिड़गिड़ाना है।इस उपाय से पहले तो अनुदान मिलते नहीं है,यदि किसी तरह मिल भी जाते हैं,तो उनका स्तर बहुत हल्का होता है।यह ना तो संतोषप्रद है,न ही सम्मानजनक।उसका उपयोग करते समय आत्मग्लानि ही होती रहती है।
  • फिर यह प्रचलन तो मानवीय है।विश्व व्यवस्था में तो बिना कीमत दिए कुछ नहीं मिलता।यहां तो कर्मफल विधान की अकाट्य विधि-व्यवस्था सब ओर लागू नजर आती है।स्रष्टा की समूची सृष्टि इसी धुरी पर परिभ्रमण करती है।यहां का नियम यही है की पात्रता प्रस्तुत करने वाले को ही कुछ उपलब्ध कराया जाए।पवन प्राणवायु की प्रचुर मात्रा लिए हरेक के सामने खड़ा रहता है,पर उसे सक्षम फेफड़े ही ग्रहण कर पाते हैं।समर्थ एवं सक्षम होते हुए भी पवन मृतकों को कुछ भी दे सकने में असमर्थ,असहाय ही रहता है।मनोरम,मनमोहिनी नजरों से भरी-पूरी इस दुनिया को निहारने का आनंद मात्र उन्हीं को मिलता है,जिनकी आंखें सही हैं।ध्वनिप्रवाह के अगणित उतार-चढ़ावों को समझने एवं सुनने का आनंद उठाने की सुविधा इस दुनिया में विद्यमान है,पर उससे लाभान्वित हो सकना उन्हीं के लिए संभव है,जिनकी कान की झिल्ली ठीक है।बाहर से शिक्षकों,गुरुओं की कृपा बरसने की बात सत्य होते हुए भी यह निर्वाध नहीं है।यह शर्त जुड़ी हुई है कि उपलब्धियां अर्जित (प्राप्त) करने के लिए पात्रता अनिवार्य है।
  • पात्रता का विकास करने वाले को अतिरिक्त याचना नहीं करनी पड़ती।जो उपयुक्त है,वह अनायास मिलता है। उपयुक्त का तात्पर्य है-अपने स्तर के अनुरूप।स्तर को बढ़ाए बिना न तो विभूतियाँ मिलती है और ना मिलने पर ठहरती ही हैं।अतएव पात्रता की समर्थता का अभिवर्द्धन अनिवार्य रूप से आवश्यक है।जीवन-साधना में यही करना पड़ता है।यह प्रयास जितना प्रौढ़,प्रखर एवं परिपक्व होता है,उसी अनुपात में विभूतियाँ ही उफनती और बाहर से बरसती दृष्टिगोचर होने लगती हैं।

6.उपलब्धियों का विज्ञान (The Science of Achievements):

  • पेड़ अपनी आकर्षण-शक्ति से बादलों को खींचते और बरसने के लिए मजबूर करते हैं।पौधों पर ओंस के कण अपने आप ही जमा हो जाते हैं।खदानें अपने सजातीय कणों को दूर-दूर तक आमंत्रण भेजती हैं और उन्हें अपने निकट खींच बुलाती हैं।यह चुंबकत्व है,जो जहां जितना अधिक होता है,सजातियों को उसका उसी स्तर का आह्वान-आमंत्रण मिलता है।परिणाम में वे उसी गति से दौड़ते-भागते चले आते हैं।खिलते फूलों का चुंबकीय आकर्षण मधुमक्खियों,तितलियों और भौरों को न्योत बुलाता है।निखरे यौवन से अनेकों आँखें अनायास ही आकर्षित हो जाती हैं।प्रतिभा अनेकों को अपना प्रशंसक एवं अनुयायी बनाती है।ये आकर्षण शक्ति के चमत्कार हैं।साधक का चुंबकत्व दैवी-शक्तियों को अदृश्य रूप में आमंत्रण देता है और उन्हें अनुग्रह बरसाने के लिए विवश करता है।
  • उपलब्धियों,पुरस्कारों,सिद्धियों-विभूतियों की एक धारा ऊपर से,बाहर से बरसती है और दूसरी नीचे से,भीतर से उभरती है।गुरुओं की कृपा,आशीवादों से अनेकों लाभान्वित होते हैं।ठीक उसी प्रकार आत्मोन्नति की प्रक्रिया द्वारा सुप्त क्षमताओं का जागरण होता है।इसके साथ अनायास ही वे विभूतियाँ प्रकट होती हैं,जिनसे सामान्यजन वंचित ही नहीं अपरिचित बने रहते हैं।मनुष्य के भीतर बहुत कुछ है,इतना कुछ जिसे स्रष्टा की सामर्थ्य के समतुल्य कहा जा सकता है।वृक्ष का विशालकाय ढाँचा छोटे-से बीज में सुनिश्चित रूप में विद्यमान रहता है।सौरमंडल की समस्त प्रक्रिया सूक्ष्मरूप से नए परमाणु में यथावत गतिशील रहती है। जड़ें नीचे से रस खींचती और पेड़ के कलेवर को हरा-भरा,पुष्पित,फलित बनाने के सारे सरंजाम जुटाती है।यद्यपि ये आंखों से दिखती नहीं,जमीन में दबी रहती हैं,तो भी जानवरों को पता रहता हैं कि पेड़ तो मात्र कलेवर है,उसकी शोभा-समर्थता का स्रोत तो अदृश्य जड़ों में ही पूर्णतया सन्निहित है।जीव का छोटा अंतराल लगभग उतना ही समर्थ है,जितना की ब्रह्म का विराट विस्तार।व्यक्ति भीतर से ही उगते-उठते हैं।बाहर तो उस अंतरंग प्रगति का परिचय भर मिलता है।

7.सुप्त शक्तियों का जागरण (Awakening of dormant powers):

  • जीवन की प्रसुप्त शक्तियां भीतर से जगती-उभरती हैं। उनके उफनने पर उसी तरह की प्रवाहधारा बहने लगती है,जैसे कि यमुना,नर्मदा आदि कुण्डों से निकलकर भू-तल पर प्रवाहित होती है।भगवान की दिव्यशक्तियाँ व्यक्ति पर अंतरिक्ष से घटाओं की तरह बरसती हैं।निर्झर भी ऊपर से नीचे गिरते और भूमि पर गतिशील होते देखे जाते हैं।ये दोनों ही सौभाग्य हर किसी के लिए सहज सुलभ हैं।पात्रता का परिचय देकर इस संसार के विभिन्न बाजारों में से कुछ भी,कितनी ही मात्रा में खरीदा जा सकता है।दुनिया में पैसे का बोलबाला है।धनवान इच्छानुसार किसी भी स्तर के सुविधा-साधन कितनी ही मात्रा में खरीद सकते हैं।इसी प्रकार बलिष्ठता,बुद्धिमत्ता,प्रतिभा आदि सामर्थ्यों के भी अपने-अपने क्षेत्र हैं और उनमें उपलब्धियां प्राप्त करने वाले अपनी योग्यता एवं तत्परता के अनुरूप जो चाहे सो,जितना चाहे सो पा लेते हैं।जिसकी पात्रता नहीं हैं,उनके प्रार्थना-याचना करते रहने पर भी कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता।
  • जीवन-साधना का यह सिद्धांत शाश्वत सत्य की तरह स्पष्ट है।उसमें न सन्देह की गुंजाइश है,न विवाद की।

8.छात्र-छात्राएं पात्रता प्राप्त करें (Students should get eligibility):

  • जीवन-साधना,जीवन की उपयोगिता,जीवन की महत्ता,जीवन का लक्ष्य छात्र-छात्राओं को तभी मालूम पड़ सकता है जबकि वे पात्रता प्राप्त कर सकेंगे।परंतु होता यह है कि अक्सर अधिकांश विद्यार्थी पात्रता हासिल करते नहीं है और लक्ष्य को,जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की कामना करते हैं।आप जो कुछ भी पाना चाहते हैं,उसे पाने के लिए योग्यता प्राप्त करें फिर कामना करें।लेकिन सिर्फ कामना ही नहीं करते बल्कि कामना पूर्ति के लिए अनैतिक तरीके भ्रष्टाचार,घूस देकर जाॅब प्राप्त करना,अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके पद,जाॅब,नौकरी प्राप्त कर लेते हैं।पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला,राजस्थान में एसआई भर्ती घोटाला तो सिर्फ इसके नमूने हैं और भी अनेक भर्तियाँ इसी तरह होती हैं परंतु उनका पता नहीं चलता है और गुपचुप तरीके से भर्तियाँ करते रहते हैं।
  • इसमें केवल वे अफसर,सरकारे ही जिम्मेदार नहीं हैं,बल्कि वे अभ्यर्थी भी जिम्मेदार हैं जो येनकेन प्रकारेण अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं,नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं।तिकड़में भिड़ाकर,पहुँच का इस्तेमाल करके,घूस देकर नौकरी या जाॅब प्राप्त करते हैं,इसी से सिद्ध होता है कि यह सब उठा-पटक इसलिए की जाती है कि हममें योग्यता नहीं है,उस चीज को पाने की पात्रता नहीं रखते वरना इतने पापड़ बेलने की जरूरत नहीं पड़ती और अयोग्य,कुपात्र होते हुए भी,यदि किसी कारण से या तिकड़म भिड़ाकर,घूस देकर या अन्य अनुचित तरीके अपनाकर उस चीज को प्राप्त कर भी लें तो भी हम उस चीज का न तो उचित उपयोग ही कर पाएंगे और न ही उपभोग ही कर पाएंगे।
  • इसलिए जरूरी यह है कि हम अपने आपको योग्य बनाएं,पात्र बनाएं ताकि जो पाना चाहते हैं उसे पाकर उसका सही उपयोग भी कर सकें।यदि सही उपयोग न कर सकें तो इतनी मगजमारी करके उस वस्तु को प्राप्त करने से भी लाभ क्या होगा?
  • पात्रता,योग्यता केवल डिग्री हासिल करने,साक्षर होने से हासिल नहीं होती है।आपकी आंतरिक सुप्त शक्तियों को जगाना पड़ता है।इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है,विकारों को दूर करना पड़ता है,गुणों को विकसित करना पड़ता है।हमेशा जागरूक और सजग,सावधान रहना पड़ता है।यह काम एक दिन में नहीं हो जाता है।व्यक्तित्व को प्रखर,प्रभावी और तेजस्वी बनाना पड़ता है।आचरण पर ध्यान देना होता है।सदाचार का पालन करना होता है।इतना सब केवल एक दिन में नहीं हो जाता है।शुरू से ही,बचपन से ही व्यक्तित्व को गढ़ने का कार्य करते रहने पर युवावस्था में गुण विकसित हो पाते हैं,फिर आप मनचाही वस्तु को प्राप्त कर सकते हैं,अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
  • प्रारंभ में शक्तियों को जागरण करने में बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है।जैसे किसी विशाल जंगल में घास-फूस,झाड़ियां,कांटेदार पेड़-पौधे उगे हुए होते हैं लेकिन बार-बार,लगातार चलते रहने से पगडंडी बन जाती और फिर रास्ता बन जाता है और कहीं भी आना-जाना सरल हो जाता है।इसी प्रकार शुरू में गुणों को विकसित करना कठिन लगता है,परंतु धीरे-धीरे एक-एक गुण को विकसित करते रहने से आचरण सुधरता है,व्यक्तित्व प्रभावी बन पड़ता है और परिपक्व होने पर हर कार्य को करने की दक्षता हासिल कर लेते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन की उपयोगिता कैसे जानें के 9 बेहतरीन उपाय (9 Best Ways to Know Utility of Life),जीवन का महत्त्व कैसे जानें के 9 तरीके (9 Ways on How to Know Importance of Life) के बारे में बताया गया है।

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9.जीवन का मर्म (हास्य-व्यंग्य) (Essence of Life) (Humour-Satire):

  • छात्र (गणित शिक्षक से):सर जीवन का मर्म क्या है?
  • गणित शिक्षक:तुम्हें जीवन का मर्म जानने की पड़ी है,पहले विद्यार्थी जीवन का मर्म तो जान लो।गणित को ठीक से हल करना सीख लो।विद्यार्थी जीवन का मर्म समझलोगे तो जीवन का मर्म भी समझ में आ सकता है।

10.जीवन की उपयोगिता कैसे जानें के 9 बेहतरीन उपाय (Frequently Asked Questions Related to 9 Best Ways to Know Utility of Life),जीवन का महत्त्व कैसे जानें के 9 तरीके (9 Ways on How to Know Importance of Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गौरवपूर्ण जीवन को स्पष्ट करो। (Explain the glorious life):

उत्तर:गौरव जीवन का एक व्यस्त घंटा कीर्ति-रहित युगों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न:2.विद्यार्थी जीवन का रहस्य क्या है? (What is the secret of student life?):

उत्तर:विद्यार्थी जीवन का रहस्य भोग में नहीं है,वरन शिक्षा प्राप्ति में है।शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आत्मिक विकास में ही विद्यार्थी जीवन का रहस्य छिपा हुआ है।

प्रश्न:3.जीवन सरल कैसे हो सकता है? (How can life be simpler?):

उत्तर:जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है।जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन की उपयोगिता कैसे जानें के 9 बेहतरीन उपाय (9 Best Ways to Know Utility of Life),जीवन का महत्त्व कैसे जानें के 9 तरीके (9 Ways on How to Know Importance of Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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