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9 Amazing Tips for Being Glad

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1.खुश रहने के 9 अद्भुत सूत्र (9 Amazing Tips for Being Glad),छात्र-छात्राएँ खुश कैसे रहें? (How Do Students Stay Happy?):

  • खुश रहने के 9 अद्भुत सूत्र (9 Amazing Tips for Being Glad) के आधार पर आप जान सकेंगे कि हम आधुनिक युग में,भाग-दौड़ वाली जिंदगी में,व्यस्त रहने वाली लाइफ में खुश कैसे रहें? खुशियाँ हम बाहरी आकर्षणों में ढूंढते हैं परंतु खुशियों का खजाना हमारे अंदर ही स्थित है।
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2.खुश रहने के सूत्र (Tips for being happy):

  • जाने अनजाने में इंसान खुशियों की तलाश में लगा हुआ है।यह बात दूसरी है कि सही माने में कितने खुशकिस्मत इसका स्वाद चख पाते हैं।तथ्य यही संकेत करते हैं कि विरले ही इसको उपलब्ध कर पाते हैं।प्रसन्नता के मर्मज्ञ ऋषियों के अनुसार,खुशियों का बाहरी सुख-साधन एवं उपलब्धियां से अधिक लेना-देना नहीं है।यह मन की एक गहन अंत:अवस्था है,जो जीवन के अंतर्बाह्य पहलुओं के सम्यक-निर्वाह के साथ सहज ही प्रस्फुटित होती है।आज भोगवाद की आंधी में जब व्यक्ति बाहरी चकाचौंध और भाग-दौड़ में,खुशी की तलाश में,दर-दर भटक रहा है,ऐसे में यदि वह निम्न सूत्रों पर थोड़ा चिंतन-मनन कर ले तो शायद उसे भटकन से उबरने की राह मिल जाए।

(1.)विद्यार्जन पर ध्यान केंद्रित करें (Focus on acquiring knowledge):

  • यह विद्यार्थी जीवन पूरे जीवन का अमूल्य समय है,अतः इस समय में कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के साथ व्यावहारिक जीवन व आध्यात्मिक जीवन जीने के बारे में अध्ययन करें।शरीर व स्वास्थ्य की अनदेखी से कुछ ही नुकसान होता है परंतु अज्ञानी रहने का इतना नुकसान है कि पूरे जीवनभर पशुतुल्य जीवन जीना पड़ सकता है। बात-बात पर,कदम-कदम पर दूसरों पर आश्रित रहना पड़ेगा।जलील और अपमानित होना पड़ेगा।दुःखों और कष्टों का सामना करना पड़ेगा।अतः विद्या एक ऐसा धन है जो आपको खुशहाल बना सकती है।विद्या अर्जित  करने पर आपको खुश रहने की तकनीक मालूम पड़ेगी। अज्ञानी रहना मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।विद्या से हमें केवल खुश रहने की ही तकनीक मालूम नहीं पड़ती बल्कि विद्या से मान,प्रतिष्ठा,स्किल,धन आदि अनेक चीज प्राप्त होती है।अतः छात्र-छात्राओं को केवल साक्षर होने,डिग्री प्राप्त करने पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए बल्कि सही मायने में शिक्षित होने का प्रयास करना चाहिए।

(2.)अपनी मौलिक विशेषताओं को खोजें एवं तराशें (Find and sculpt your fundamental attributes):

  • आप में ऐसी कुछ विशेषताएं अवश्य हैं,जो आपको दूसरों से अलग करती हैं व जिनकी अभिव्यक्ति में आप अपने जीवन की सार्थकता की झलक पाते हों।अपनी इस मौलिकता को पोषित करने में,इसे सबल-सुदृढ़ बनाने में कोई कसर न छोड़ें।इसी के इर्द-गिर्द अपने जीवन लक्ष्य का निर्धारण करें।व्यावहारिक एवं छोटे-छोटे कदमों के साथ,इसको साकार करने की ओर बढ़े।हर सफल कदम की उपलब्धि आपके जीवन में खुशी की एक बहार लाएगी।
  • अपनी मौलिक प्रतिभा को यदि आप खुद न पहचान पा रहे हों तो किसी अनुभवी मार्गदर्शक,माता-पिता,शिक्षकों या मित्रों से परामर्श लें और फिर अपने विवेक से निर्णय लें कि आपमें कौनसी प्रतिभा है।जिस कार्य को आप दिल से चाहते हैं,आपकी जिसमें लगन और रुचि है,जिसमें आपकी योग्यता और सामर्थ्य है,जिसकी मार्केट में डिमांड है आदि ऐसे कई फेक्टर हैं जिनके आधार पर आप अपनी मौलिक प्रतिभा को पहचान सकते हैं।सच्ची खुशी आपको मौलिक प्रतिभा को निखारने पर ही मिल सकती है।केवल मौलिक प्रतिभा को पहचान कर ही न रह जाएं बल्कि उसको (सुप्त प्रतिभा को) उभारने,तराशने का निरन्तर प्रयास करें।बिना थके,बिना रुके उसमें इतनी धार या पैनापन पैदा करें कि वह प्रतिभा एक मिसाल बन जाए।प्रतिभा जागरण के बाद ही आपको असली खुशी मिल सकती है,अन्यथा जीवन सामान्य तरीके से जीने पर सच्ची खुशी ना मिल सकेगी,यह ध्यान रखें।

(3.) वर्तमान में जिएँ (Live in the present):

  • अपने वर्तमान के क्षणों को पूरी तरह से जिएँ।जो कुछ अभी वर्तमान में है,उस पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित रहे।इस राह में जो कुछ भी आता है,उसे पूरी तरह से स्वीकार करते हुए सामना करें व इससे अभीष्ट शिक्षण लेते हुए इसे विदा करें।भूतकाल की सुखद स्मृतियों व भविष्य की आशाओं को अपनी शक्ति बनाएँ,न कि उनमें डूबने-इतराते वर्तमान को नष्ट करें।न ही भूत के पश्चाताप और भविष्य की चिन्ताओं को वर्तमान की कर्मनिष्ठा में बाधक बनने दें।फ्रेंच दार्शनिक एकहर्ट ने यों ही नहीं कहा है कि वर्तमान के इस नन्हें से क्षण के गर्भ में ही अनंत छिपा पड़ा है।यदि हम वर्तमान का सही इस्तेमाल करते हैं तो भूत के दाग स्वतः धुलते जाएंगे और भविष्य की चिन्ताओं का निराकरण होता जाएगा।खुशियों की महक से वर्तमान जीवन सुवासित हो उठेगा।
    जो विद्यार्थी होशपूर्वक अध्ययन करता है वही वर्तमान में जीता है।होशपूर्वक विद्यार्थी निष्काम कर्म करता है अर्थात् फल में आसक्ति नहीं रखता है अतः सफलता मिलने पर इतराता नहीं है,फूलकर कुप्पा नहीं होता है और असफलता मिलने पर दुखी नहीं होता,काल कोठरी में जाकर नहीं बैठ जाता है बल्कि असफलता से सीख लेता है और आगे अपनी रणनीति में सुधार करता है।
  • परंतु दरअसल हमारा शरीर कहीं और रहता है तथा मन कहीं और जगह दौड़ लगाता रहता है फलतः हम अध्ययन,जाॅब या कार्य को पूर्ण दक्षता के साथ,पूर्ण एकाग्रता के साथ नहीं करते हैं।पूर्ण दक्षता और एकाग्रता के बिना कार्य में सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है? और ऐसी स्थिति में खुश रहना दूर की कौड़ी होती है।समय का सदुपयोग करने,अध्ययन को पूर्ण एकाग्रता और दक्षता के साथ करने के लिए वर्तमान में जीना होता है,होशपूर्वक रहना होता है।यह खुशी पाने का महत्त्वपूर्ण सूत्र है।

(4.)लोकमत की परवाह न करें (Don’t bother about public opinion):

  • यदि आप अपने अंतर्सत्य की अभिव्यक्ति के मार्ग पर अग्रसर है तो दूसरों के समर्थन,प्रशंसा आदि की ज्यादा आशा न करें।बाह्य स्वीकृति या पुष्टि की आशा-अपेक्षा हमें अपनी खुशियों के लिए परावलंबी बनाती है।जब आप पूर्ण जिम्मेदारी के साथ अपनी मौलिक क्षमताओं के प्रकटीकरण के मार्ग पर प्रवृत्त हैं तो इसकी शक्ति-सामर्थ्य सब आपके अंदर से ही प्रस्फुटित होनी हैं।ऐसे में दूसरों के सोचने या मानने से क्या बनने-बिगड़ने वाला है।अतः ऐसे में अंदर ईमान और ऊपर भगवान को लेकर एकाकी साहस के बल पर जीवन-पथ के राही बनें।
  • बहुत से विद्यार्थी लोगों की निंदा,आलोचना से पतले हो जाते हैं और प्रशंसा,मान,बड़ाई से अत्यधिक प्रसन्न हो जाते हैं।वस्तुतः यदि आपने अध्ययन करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है,अपना 100% प्रयास,सामर्थ्य को लगाया है तो लोगों की निंदा व प्रशंसा से प्रभावित नहीं होना चाहिए।कुछ लोगों की आदत ही होती है कि आप कितना ही अच्छा परफॉर्मेंस करके दिखा दें परंतु वे नुक्ताचीनी करेंगे ही।यदि आपने 80% अंक प्राप्त कर लिए हैं तो वे कहेंगे कि आज के जमाने में 90% से ऊपर वालों को ही कोई नहीं पूछता,तुम्हारे 90% या अधिक अंक क्यों नहीं आए?
  • लोगों की राय बदलते देर नहीं लगती है।यदि आप रसातल में है तो आलोचना करेंगे।यदि आप चढ़ रहे हैं और लगातार उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो फिर वे आपका उदहारण देंगे।दूसरों को कहेंगे उस छात्र को देखो वह कहां से कहां पहुंच गया और एक तुम हो जो बिल्कुल भी अध्ययन नहीं करते हो।खाट तोड़ते रहते हो,करते-धरते कुछ नहीं।इस प्रकार एक-दूसरे से तुलना करके हतोत्साहित करने का प्रयास करेंगे।कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वाकई आपके काम की प्रशंसा करेंगे लेकिन ऐसे लोग विरले ही होते हैं।अतः लोकमत या लोगों की टीका-टिप्पणी पर ध्यान मत दो वरना खुशियां तुम्हारे जीवन से ऐसे गायब हो जाएंगी जैसे गधे के सिर से सींग।

(5.)दूसरों का सम्मान करें (Respect others):

  • पिछले कदम अर्थात् लोकमत की परवाह न करें का अर्थ यह नहीं है कि हम अहंकारी या दुराग्रही बनें।अपनी तरह हम दूसरों में निहित श्रेष्ठ संभावनाओं एवं विशेषताओं के भी दृष्टा बनें।सच तो यह है कि जितना हम अपने आप से गहरा परिचय एवं आत्मसम्मान पाते जाते हैं,उसी अनुपात में बाहर दूसरों की समझ बढ़ती है व उनका सम्मान करना सीखते हैं।दूसरों की अच्छाइयों-गुणों का जहां सम्मान करना सीखें,वहीं उनके दोष-दुर्गुणों एवं मानवीय त्रुटियों के प्रति कटुता से बचें।इनके प्रति उदार एवं सहिष्णुताभरा दृष्टिकोण का विकास करें।किसी के प्रति निंदा,चुगली,दोषारोपण के नकारात्मक व्यवहार से बचें।क्षमा एवं उदारता के साथ हुआ आत्मविस्तार,आपकी खुशियों में आश्चर्यजनक इजाफा करेगा।
  • हर विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थियों से बहुत कुछ सीखता है,समझता है याकि सीख सकता है,समझ सकता है।केवल विद्यार्थी शिक्षकों व माता-पिता से ही नहीं सीखता है बल्कि अनेक लोगों से सीखता है।अब यदि जिन सहपाठियों या लोगों के साथ उठता-बैठता है,वार्तालाप करता है,अपनी समस्याओं के समाधान प्राप्त करता है तो यदि उनकी आलोचना करेगा,निंदा करेगा तो इससे आपस में कटुता बढ़ेगी।कटुता से मन में द्वेष पैदा होगा और मन में द्वेष,दुर्भावना आदि का वास रहेगा तो वहां खुशी कैसे टिकी रह सकती है,इस पर विचार-चिंतन करें।
  • हर व्यक्ति में गुण व दोष-दुर्गुण होते हैं।हमारे अंदर भी दोष-दुर्गुण और अच्छाइयां होती हैं।जब हम अपने आप को गुणों और अवगुणों के समुच्चयों के रूप में स्वीकार करते हैं तो उसी प्रकार दूसरों को भी उनकी कमियों के साथ स्वीकार करना चाहिए तभी आप खुशियों को पा सकते हैं।पर अक्सर विद्यार्थी छोटी-छोटी बातों पर ही फट पड़ते हैं,दूसरों की आधी बात भी सुनने के लिए तैयार नहीं होते हैं,गुस्सा उनके नाक पर ही चढ़ा रहता है।फलतः लड़ाई-झगड़ा,एक-दूसरे को गाली-गलौज यहां तक की कुछ छात्र तो मारपीट तक कर डालते हैं और आपस में एक-दूसरे से शत्रुता पाल लेते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएँ एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं।ऐसे विद्यार्थियों से खुशियां कोसों दूर रहती है।

(6.)प्रतिक्रियाओं के आईने में स्वयं को निहारें (Look at yourself in the mirror of reactions):

  • प्रतिक्रिया के क्षणों में भी आप खुशियों के बीज बो सकते हैं।किसी व्यक्ति या परिस्थिति के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया के क्षणों में वास्तव में हम स्वयं से जूझ रहे होते हैं।हमारे अंदर के राग-द्वेष एवं दमित भाव इन क्षणों में आवेग-आवेश बन फूट पड़ते हैं।बाह्य जगत,अंदर की प्रतिच्छाया मात्र है।बाहर घृणा का तीव्र भाव,अंदर किसी अंधेरे कोने की ओर संकेत कर रहा होता है और बाहर का प्रगाढ़ राग,अंदर की तीव्र चाहत को इंगित कर रहा होता है।इस तरह संबंधों के आईने में प्रतिक्रिया के क्षणों को अपने विकास का साधन बना सकते हैं।याद रखें कि प्रतिक्रियाविहीन जीवन आत्मविकास के चरम का द्योतक है और खुशियों की चरमावस्था भी।
  • आधुनिक युग में छात्र-छात्राओं का अधिकांश जीवन प्रतिक्रियाओं में ही व्यतीत होता है।किसी छात्र ने कहा तो तत्काल दूसरा छात्र प्रतिक्रिया व्यक्त करके अपनी भड़ास निकाल लेता है।इस पर तनिक भी विचार नहीं करता है कि प्रतिक्रिया देनी चाहिए या नहीं,यदि प्रतिक्रिया देनी भी है तो उचित प्रतिक्रिया किस तरह से दें? ऐसी स्थिति में मन में राग-द्वेष तो उत्पन्न होंगे ही फलस्वरूप खुश भी नहीं रह सकेंगे,खुशी ही नहीं पा सकेंगे।
  • खुशी पाने के लिए खुशी पाने के काम करने होंगे,केवल चाहने से खुशी नहीं पा सकेंगे।अध्ययन करने के साथ-साथ कुछ ध्यान,चिंतन-मनन भी करें।केवल पढ़ाई ही पढ़ाई करेंगे और उस पर विचार-चिंतन नहीं करेंगे तो खुशी नहीं पा सकेंगे।आत्मचिंतन भी आवश्यक है।अतः हर बात पर प्रतिक्रिया देने से बचें,जिस पर जरूरी है उसी पर सही प्रतिक्रिया दें।

(7.)अंतर्ध्वनि का अनुसरण करें (Follow the introversion):

  • जीवन में क्या सही है,क्या गलत? इसके समाज एवं प्रचलन में मान्य सूत्र व नियम अलग-अलग हो सकते हैं व उनके प्रति स्वीकृति एवं अनुसरण में भी हमें संशय-दुविधा की स्थिति हो सकती है,किंतु अंतर्ध्वनि के रूप में एक अचूक सूचक हमारे ही अंदर मौजूद है।गलत राह पर कदम रखते ही हमारे पैर लड़खड़ाने लगते हैं। गलत काम में हाथ डालते ही हाथ काँपने लगते हैं।यह ध्वनि इतनी स्पष्ट होती है कि इसको नजरअंदाज नहीं कर सकते,किंतु यह इतनी सूक्ष्म होती है कि इसको आसानी से कुचलकर आगे बढ़ सकते हैं।प्रायः यही मनमानी खुशियों की तमाम संभावनाओं पर तुषारापात का एक प्रमुख कारण बनती है;जबकि अंतर्ध्वनि के रूप में अवतरित होते इन भगवदीय के अनुपालन में खुशियों का राज छिपा है।
  • यदि आप अपने अंदर झांकने की कला में माहिर है,अपने अंदर अपनी अंतरात्मा से सुझाव लेने में सिद्धहस्त हो गए हैं तो किसी भी गलत काम में हाथ डालते ही अंतरात्मा आपको इंटीमेशन दे देगी।लेकिन यदि आप बाहरी जगत में,भौतिक जगत में ही खोए रहेंगे और अपने अंदर झाँकने का अभ्यास नहीं करेंगे तो फिर आपको अपनी आत्मशक्ति का पता नहीं चल पाएगा और उससे काम लेने का तो फिर सवाल ही नहीं उठता है।हालांकि हमारे हर कार्य में आत्मशक्ति का योगदान होता है,परंतु तब हम बेहोशी की हालत में करते हैं।

(8.)अपनी देह के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण (A healthy attitude towards your body):

  • यह देह भोग का साधन नहीं है,बल्कि उच्चस्तरीय विकास यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए मिला एक दुर्लभ उपकरण है।जीवन की चरम संभावनाओं का बीज इसी के भीतर गुह्य केंद्र में अभिव्यक्त होने के लिए छटपटा रहा है।अतः शरीर पर समुचित ध्यान दें,पौष्टिक आहार,संयमित विहार एवं उचित श्रम-विश्राम के साथ इसे स्वस्थ,बलिष्ठ एवं निरोग रखें।तंदुरुस्त देह ही खुशी का प्रथम आधार है।इसे जहरीले आहार,नशीले पदार्थों एवं भ्रष्ट्र आचरण से बर्बाद ना करें।
  • विद्यार्थी अध्ययन करेंगे,जाॅब करेंगे तो इसी शरीर के बल पर करेंगे।कहा भी गया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योगासन-प्राणायाम,दौड़ या अन्य कोई हल्की-फुल्की एक्सरसाइज नियमित रूप से अवश्य करना चाहिए ताकि आपका शरीर एक्टिव रहे;ऊर्जावान रहें।जितना आपका सशक्त शरीर होगा उतना ही आप कठोर परिश्रम करने में सक्षम होंगे और उतनी आपको खुशी मिलेगी।आधुनिक युग कठिन प्रतियोगिता का युग है।अतः अध्ययन के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी होती है।जो छात्र-छात्राएं जी-तोड़ मेहनत करने से बचते हैं,वे इस युग में बहुत पिछड़ जाते हैं।अतः ऐसा कोई काम ना करें जो आपके शरीर को,स्वास्थ्य को कमजोर करते हैं।गरिष्ठ भोजन,चाय-काॅफी,भारी भोजन न लें या बिल्कुल थोड़ा सा लें,इन्हें लेने की अपनी आदत न बनाएँ।लेकिन मादक पदार्थों,शराब,ड्रग्स आदि का बिल्कुल ही सेवन न करें वरना आपके शरीर का सत्यानाश हो जाएगा।तब आप यह बिल्कुल भूल जाएंगे की खुशी किस चिड़िया का नाम है।
  • कितना भी बड़ा लक्ष्य हो उसको प्राप्त करने में बुद्धि,मन और शरीर का योगदान होता है।अतः शरीर का महत्त्व कम न आँके और कुछ भी अनाप-शनाप ठूँसने का काम न करें।हल्का,भूख से कम और सात्त्विक भोजन करें जो आसानी से पच सके जिससे आप अध्ययन करने में सहजता अनुभव करें और अध्ययन से आपको खुशी मिले।
  • खुशियों के अनंत स्रोत से जुड़े रहने के लिए आवश्यक है,कुछ क्षण एकान्त में चिंतन-मनन और ध्यान के लिए निकालें।व्यावसायिक भाग-दौड़ की वर्तमान जिंदगी में कार्य के अतिशय दबाव के बीच,जहां समय की कमी एक ज्वलन समस्या है,वहीं इसके बीच तनाव एवं चिन्ता के आत्मघाती मार्ग से उबरने के लिए,कुछ पल विशुद्ध रूप से अपने लिए निकालना,बुद्धिमानी वाला कदम होगा।एकांत के इन लक्षणों में उपर्युक्त सूत्रों के प्रकाश में अपना मूल्यांकन किया जा सकता है।तन-मन के आवेश-आवेगों को शांत करते हुए,अपने स्रोत की ओर बढ़ते हुए अंतर्संवाद की स्थिति में गहन विश्रांति के पल बिता सकते हैं। स्वाध्याय,सत्संग,आत्मचिंतन-मनन,ध्यान,प्रार्थना आदि इसी की तकनीके हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में खुश रहने के 9 अद्भुत सूत्र (9 Amazing Tips for Being Glad),छात्र-छात्राएँ खुश कैसे रहें? (How Do Students Stay Happy?) के बारे में बताया गया है।

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3.दुखीराम की लंबाई (हास्य-व्यंग्य) (Length of Dhukhiram) (Humour-Satire):

  • सुखीराम:तुम्हारी लंबाई तो मुझे भी ज्यादा है,नाम क्या है तुम्हारा।
  • दूसरा छात्र:मेरा नाम दुखीराम है।

4.खुश रहने के 9 अद्भुत सूत्र (Frequently Asked Questions Related to 9 Amazing Tips for Being Glad),छात्र-छात्राएँ खुश कैसे रहें? (How Do Students Stay Happy?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.खुश व्यक्ति कौन हो सकता है? (Who can be the happy person?):

उत्तर:खुश मनुष्य वह है जो अपने जीवन के आदि और अंत से संबंध स्थापित करना जानता है।

प्रश्न:2.क्या बाह्य पदार्थों से खुशी मिल सकती है? (Can happiness be derived from external substances?):

उत्तर:बाहरी पदार्थों,भौतिक पदार्थों से सच्ची खुशी नहीं मिल सकती है।खुशी तो अंदर से उपजती है।जो व्यक्ति अपने ध्यान को बाहर से हटाकर अंदर की ओर मोड़ लेता है,वही खुश रह सकता है।

प्रश्न:3.अंदर से क्या आशय है? (What do you mean by inside?):

उत्तर:अंदर से तात्पर्य है कि जो अपनी अंतरात्मा की ओर अपने को मोड़ लेता है,अंतरात्मा के साथ अपना एक्य संबंध बना लेता है,अंतरात्मा की अनुभूति करता है वही खुश रह सकता है।अंदर से तात्पर्य शारीरिक रूप से अंदर झांकना नहीं है बल्कि चेतना की अनुभूति से है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा खुश रहने के 9 अद्भुत सूत्र (9 Amazing Tips for Being Glad),छात्र-छात्राएँ खुश कैसे रहें? (How Do Students Stay Happy?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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