8 Divine Effective Tips for Success
1.सफलता हेतु दिव्य प्रभावी 8 सूत्र (8 Divine Effective Tips for Success),सफलता कैसे हासिल करें की 8 रणनीतियाँ (8 Strategies of How to Achieve Success):
- सफलता हेतु दिव्य प्रभावी 8 सूत्र (8 Divine Effective Tips for Success) विद्यार्थियों और अभ्यर्थियों के लिए उपयोगी है।विद्यार्थी और अभ्यर्थी चाहते हैं कि उन्हें उनके परिश्रम का फल मिले और सफलता प्राप्त हो।
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2.सफलता के प्रमुख सूत्र (Main Keys to Success):
- सफलता व्यक्तित्व का सम्मोहक प्रकाश है।सफलता समर्पण की चरम परिणति है।सफलता व्यक्तित्व के अंदर गहरी परतों में ढँकी-छिपी रहती है।यह कहीं बाहर नहीं होती,जिसे खरीदकर पाया जा सके।यह अंतः की खदानों में दबी रहती है,जिसे खोदकर एवं खरादकर ही बहुमूल्य रत्नों के रूपों में सजाया-निखारा जाता है।उद्यम एवं समर्पण से ही व्यक्तित्व को गलाया-ढाला जाता है,जिसकी तपन व ताप से सफलतारूपी व्यक्तित्व की मोहक सुगंध महक उठती है।कड़ी मेहनत,धैर्य,लगन एवं साहस के संयोग से ही सफलता का जादुई चिराग हस्तगत होता है,जिससे सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
- सफल व्यक्तित्व को गढ़ने-संवारने के लिए आठ दिव्य सूत्र हैं।ये सूत्र यदि जीवन में शास्त्र बनकर रचे जा सकें तो व्यक्तित्व चमक उठता है।व्यक्तित्व-निर्माण के ये आठ सूत्र हैं:(1.) प्रोएक्टिव होना अर्थात् अपनी पूरी जिम्मेदारी आप उठाना, (2.)सर्वांगपूर्ण योजना बनाना,(3.)योजना का क्रियान्वयन,(4.)प्राथमिकता के आधार पर कार्य का निर्धारण करना,(5.)विजेता के समान सोचना,(6.)दूसरों को सुनने की समझदारी पैदा करना,(7.) सच्चा तालमेल रखना तथा (8.)सदैव नयापन बनाए रखना।
- सफलता के इन दिव्य एवं प्रभावी 8 सूत्रों में वैभव,विभूति एवं ऐश्वर्य के आगार एवं भंडार भरे पड़े हैं। इन सूत्रों में विद्यार्थी जीवन,भौतिक जीवन के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन की अनंत संभावनाएं भी सन्नितहित हैं।इन संभावनाओं को साकार एवं मूर्तिमान करने हेतु प्रथम सूत्र है:प्रोएक्टिव होना,जिसका अर्थ है अपने जीवन की पूरी जिम्मेदारी स्वयं उठाना।इसकी गहरी अनुभूति सफल जीवन का एक निर्णायक बिंदु है।यह बोध हो जाना कि इस अमूल्य जिंदगी का जिम्मेदार कोई और नहीं,स्वयं हम हैं,हमारी अच्छी-बुरी परिस्थिति एवं परिणाम का उत्तरदायित्व हम पर ही है,एक जागृति है,एक सच्ची समझदारी है।इस समझदारी एवं जिम्मेदारी के साथ ही हम अपने जीवन के भाग्य विधाता एवं निर्माता होने का बोध करते हैं और अपने अभीष्ट लक्ष्य और उद्देश्य की ओर आगे बढ़ते हैं।
- विद्यार्थी जीवन का उत्तरदायित्व विद्यार्थी पर ही अधिक है।सफलता या असफलता में वही अधिक जिम्मेदार है अतः अध्ययन पूर्ण जिम्मेदारी के साथ करें,जाॅब का निर्वहन पूर्ण जिम्मेदारी के साथ करें ताकि फल जो भी मिले उसे सहज भाव से स्वीकार कर सको।
- यह जिम्मेदारी हमें स्पष्ट बोध कराती है कि हमारी योजना कैसी हो? पहले से ही बड़ी योजनाएं न बनाओ,धीरे-धीरे कार्य प्रारंभ करो,जिस जमीन पर खड़े हो,उसे अच्छी तरह से पकड़कर क्रमशः ऊंचे चढ़ने का प्रयत्न करो।इसके साथ ही योजना की स्पष्ट रूपरेखा अपने मानस पटल पर अंकित होनी चाहिए।स्पष्ट एवं छोटी-छोटी योजनाओं को जीवन में उतारना एवं उन्हें पूरा करना आसान एवं सरल होता है और उन्हें पूरा करने के पश्चात मन में अपार संतोष एवं प्रसन्नता होती है।कार्य को पूर्ण कर पाने पर आत्मविश्वास पैदा होता है। यही आत्मविश्वास हमें किसी बड़े कार्य एवं बड़ी योजना को पूरा करने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है और जीवन में किसी महान कार्य एवं उद्देश्य तक सफलतापूर्वक पहुंचने में सक्षम बनाता है।महापुरुषों के जीवन की सफलता का मूल मंत्र भी यही है कि वे प्रारंभ में छोटी-छोटी परंतु स्पष्ट योजनाओं को अंजाम देते हैं और क्रमशः महानता के उच्चतर शिखरों की ओर आरोहण करते हैं।
3.योजना और उसका क्रियान्वयन मुख्य स्तंभ (Planning and its implementation are the main pillars):
- योजना एवं क्रियान्वयन एक पहलू के दो स्वरूप हैं।योजना के द्वारा कार्य का प्रारूप तैयार होता है,उसका खाका खींचा जाता है कि किस प्रकार किसी कार्य को चरणबद्ध ढंग से एवं निश्चित समय में पूरा किया जाए।योजना कार्य का बौद्धिक पक्ष है,परंतु जिस माध्यम से बनाई गई योजना को क्रियान्वित किया जाता है,उसे क्रियान्वयन पक्ष कहते हैं।दोनों एक-दूसरे के परिपूरक हैं।केवल योजना हो,उसका क्रियान्वयन न हो तो योजना कागजी स्वरूप बनी रह जाती है,परन्तु केवल क्रियान्वयन हो और उसमें कोई निश्चित योजना न हो तो उसका कोई निश्चित परिणाम नहीं निकल पाता है।अतः दोनों का अपना विशिष्ट महत्त्व है।
- योजना बीज है और क्रियान्वयन उसका कलेवर।योजना मस्तिष्क की उर्वरा भूमि में पल्लवित होती है तो क्रियान्वयन कर्म के क्षेत्र में क्रियान्वित होती है।योजना दूरदर्शी हो और क्रियान्वयन भी चाक-चौबंद,इसके लिए सर्वप्रथम विद्यार्थी अध्ययन को दो भागों में योजना एवं क्रियान्वयन में बांट दे।यदि कुशाग्र बुद्धि का विद्यार्थी है तो योजना एवं क्रियान्वयन उसके स्वयं के द्वारा ही संपादित हो सकती है।परंतु निम्न एवं मध्यम स्तर के बालक योजना एवं क्रियान्वयन को अकेले द्वारा संपादित करना संभव नहीं है,यदि ऐसा करेंगे तो सफलता मिलना संदिग्ध हो जाएगी।क्योंकि उनकी क्षमता एवं सामर्थ्य इतनी नहीं होती है।उनके लिए योजना शिक्षक या अन्य मार्गदर्शक द्वारा बनाई जाएगी और विद्यार्थी क्रियान्वयन (योजना के अनुसार अध्ययन) करेगा।
- कमजोर व मध्यम स्तर का विद्यार्थी अपनी रणनीति और योजना के सामने समय के अभाव के साथ-साथ अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा;क्योंकि योजना बनाना बहुत पेचीदा है और उसका क्रियान्वयन भी उसको ही करना पड़ेगा।इस प्रकार उसे कई मोर्चो पर जूझना पड़ेगा।अध्ययन भी उसे ही करना पड़ेगा,परीक्षा की तैयारी भी उसे ही करना पड़ेगा,परीक्षा के लिए रणनीति भी उसे ही बनानी होगी और अन्य सभी व्यवस्था की देखरेख उसे ही करनी होगी।इसलिए सटीक योजना बनाने में उनसे चूक हो जाती है;क्योंकि योजना बनाने के लिए एकाग्रचित्त,शांत मन एवं पर्याप्त समय तथा सूझबूझ की आवश्यकता पड़ती है।सफलता के लिए योजना सटीक होनी चाहिए और योजना को अमल करने के लिए उसका क्रियान्वयन भी त्वरित ढंग से होना चाहिए।अकेला कमजोर और मध्यम स्तर का विद्यार्थी दोनों मोर्चों पर सफलता दे पाने में चूक जाता है; क्योंकि इसके लिए सामर्थ्य एवं कुशलता की कमी खलती है।
- इसके ठीक विपरीत कुशाग्र बुद्धि एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थी समर्थ होते हुए भी योजना बनाने में शिक्षक,काउंसलर आदि की सहायता लेते हैं,अतः योजना बनाने में उसे सिर खपाने तथा समय खर्च करने की जरूरत नहीं है।क्योंकि कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी जानते हैं कि क्रियान्वयन करने में इतनी कठिनाई नहीं आएगी,परंतु परीक्षा की रणनीति तैयार करने के लिए कुशाग्र बुद्धिसम्पन्न और व्यावहारिक ज्ञान वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है,जो परीक्षा व अध्ययन की बारीकियों को समझ सके।
वस्तुतः क्रियान्वयन के लिए इतनी कुशाग्र प्रतिभा की आवश्यकता नहीं होती है।यदि योजना ठीक-ठाक और व्यावहारिक हो,तो एक सामान्य विद्यार्थी भी क्रियान्वयन को बखूबी संपन्न कर सकता है;क्योंकि तब सामान्य विद्यार्थियों को केवल अपने अध्ययन पर (योजना के अनुसार) फोकस करना होता है।दी गई कार्य-योजनाओं को किस प्रकार क्रियान्वित करना है,उसकी देख-रेख करनी होती है।इसे यों कह सकते हैं कि योजना बनाने वाला एक कुशल रखवाला होता है,उसके निरीक्षण में विद्यार्थी योजना को सही ढंग से क्रियान्वित कर देता है। विद्यार्थी के पास अध्ययन के अलावा और कोई काम नहीं होता है और न कुछ सोचना पड़ता है,अतः अपनी अध्ययन की तैयारी में वह सारी ऊर्जा खपा देता है,जिसे योजना का क्रियान्वयन सँभली रहती है और सुचारु रूप से गति करती रहती है,परंतु यदि विद्यार्थी को योजना बनाने का भी काम दे दिया जाए तो या तो क्रियान्वयन चरमरा जाएगा या फिर योजना डगमगाएगी।सभी मोर्चों में एक साथ काम कर पाना सभी के लिए संभव नहीं हो सकता;हालांकि कुछ विरले विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं,जो दोनों क्षेत्रों में एक साथ कार्य करने की क्षमता रखते हैं। - वस्तुतः क्रियान्वयन ऐसी युक्ति है,जिसको देखने,सँभालने में उर्वर मस्तिष्क भी थककर कुंद हो जाता है।उसे उर्वर बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इस संजाल में अधिक न उलझे।परंतु क्रियान्वयन ऐसी आकर्षक भूमि है,जहाँ अधिकार का प्रभाव एवं प्रतिष्ठा होती है और अधिकार से अहंकार को बड़ी तृप्ति मिलती है,अहंकार तुष्ट होता है।क्रियान्वयन में बड़ा आकर्षण होता है और इस ओर झुकाव भी अधिक देखा गया है।
- योजनाकार नई-नई योजना बनाने में संतुष्टि पाता है।वह तो अपनी योजना को क्रियान्वित होते देखता है और प्रसन्न होता है।वह क्रियान्वयन में अधिक उलझना नहीं चाहता है।अतः कार्य (अध्ययन) की सफलता के लिए आवश्यक है कि योजना एवं क्रियान्वयन को दो अलग-अलग क्षेत्रों में बांट दिया जाए।यही है कार्य (अध्ययन) की सफलता का राज एवं रहस्य।
4.सफलता हेतु अन्य सूत्र (Other Tips for Success):
- योजना की स्पष्ट रूपरेखा बन जाने के बाद ही कार्य का निर्धारण एवं चुनाव संभव है कि कौन-सा कार्य अति महत्त्वपूर्ण है,जिसे सबसे पहले किया जाना है,किसे उसके बाद करना है।कार्यों को सर्वप्रथम करने की,प्राथमिकता एवं महत्त्व देने की निर्णय क्षमता ही सफलता का महान रहस्य है।परीक्षा के समय विद्यार्थी की सर्वोपरि प्राथमिकता है-अपने विषय की तैयारी करना।यदि विद्यार्थी अपने कार्यों की प्राथमिकता का निर्धारण न कर सके तो उनकी सफलता सदैव संदिग्ध बनी रहेगी,परंतु आवश्यकता को ध्यान में रखकर उनके द्वारा किया गया कार्य उनकी सफलता एवं खुशहाली को सुनिश्चित कर देता है।इसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में अपनी अपरिहार्य आवश्यकताओं के आधार पर कार्यों को योजना के अनुरूप चयन करने की कला आनी चाहिए।इस कला-कुशलता के अभाव में जिंदगी पतवारविहीन नाव की भाँति लहरों के थपेड़ों में डगमगाती रहती है और अंत में किसी भँवर में फँसकर नदी की अतल गहराई में समा जाती है।निर्णय लेने वाला व्यक्ति पुरुषार्थी कहलाता है,जो जिंदगी की पतवार को अपने हाथों थामकर भाग्य एवं भविष्य की परवाह किए बगैर सकुशल मंजिल तक पहुंच जाता है।उसकी सोच सदा विजेता के समान होती है और सफलता उसके चरण चूमती है।
- विजेता की तरह सोच जीवन में उत्साह,उमंग एवं सृजनशीलता भर देती है।यह सोच थके-हारे एवं निराश जीवन के अंधकार को तार-तार कर आशाओं का दीप जलाती है।यह विचार विश्वास दिलाता है कि सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे किसी भी कीमत पर प्राप्त करके रहेंगे।विजेता का यह प्रखर आत्म-विश्वास उसे कभी असफलता के गर्त में नहीं गिरने देता।विजेता का विधेयात्मक चिंतन उसके समस्त एवं संपूर्ण नकारात्मक संस्कारों,आदतों एवं वृत्तियों को रौंदता हुआ आगे बढ़ता है।नेपोलियन के समान वह ‘नहीं’ जैसे नकारात्मक शब्द को सुनना तक पसंद नहीं करता,क्योंकि ‘नहीं’ शब्द कार्य प्रारंभ करने से पहले ही मृत्युतुल्य असफलता को आमंत्रण देना होता है।विजेता पुरुषार्थी एवं पराक्रमी होता है।उसके जेहन में सदैव ‘हां’ मंत्र प्रतिध्वनित होता रहता है।वह कहता है:’हाँ ‘ मैं यह कर सकता हूं,चाहे इस अभीष्ट एवं उत्कृष्ट उद्देश्य के लिए मेरे प्राणों की बलि ही क्यों न लग जाए।
- विजेता के समान यह सोच व्यक्ति के अंदर में शाश्वत यौवन को अलभ्य एवं अलौकिक वरदान से भर देती है।यह सोच पूर्ण यौवन की प्रतीक एवं प्रतिनिधि है।यह व्यक्ति को उम्र की सीमित व संकीर्ण सीमाओं में नहीं बांधती।60 से 80 वर्ष की वय का व्यक्ति युवाओं के समान सर्जनशील एवं सक्रिय हो सकता है और 20 से 30 वर्ष का युवा भी बूढ़ों के समान जीवन से हताश-निराश हो सकता है।यही आज के युग की महापीड़ा एवं महावेदना है कि समाज,राष्ट्र एवं विश्व में समझदार एवं सक्रिय युवाओं की घोर कमी हो गई है।युवाओं के मजबूत एवं फौलादी कंधों पर ही किसी राष्ट्र का भार टिका रहता है।क्योंकि युवावय ही समझदारी,जिम्मेदारी एवं सृजन की महाप्रतीक है।इसी उम्र में जीने की अदम्य चाहत,सीखने की अनंत लालसा,प्राणों पर खेल जाने का जुझारूपन और महासाहस का महासमन्वय होता है।युवावय में ही सुनने,समझने एवं विचारने की अपार क्षमता एवं सामर्थ्य होती है।आगत भविष्य की सुनहली कल्पनाओं को मूर्तरूप प्रदान करने का महासाहस इसी उम्र में पूर्ण होता है।यौवन की यह विशेषता किसी भी उम्र में पैदा की जा सकती है।किसी भी उम्र में तल्लीनता एवं लगनशीलता एक सम्मोहक व मोहक व्यक्तित्व को जन्म देती है।यह व्यक्तित्व ही यौवन की सच्ची परिभाषा है,जो बताता है कि श्रेष्ठ,उत्कृष्ट एवं महान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अभी भी प्राण-ऊर्जा एवं शक्ति-सामर्थ्य चुकी नहीं है,अशेष है,जीवंत एवं जागृत है,अभी भी जीवन के आखिरी पड़ाव में समझदारी का जखीरा,लगनशीलता का भंडार एवं जुझारूपन भरा पड़ा है।आवश्यकता है हर युग में यह समझदारी की विचार-तरंग हिलोरें लेने लगे,पाषाणी जड़ता में जड़ हो चुके अंतर में पुनः जीने,सीखने की चाहत सजे और अपने एवं अपने समाज-राष्ट्र के प्रति मर-मिटने का संकल्प जगे।हमारे अंदर संघबद्घ हो सबको साथ लेकर चलने का साहस एवं उदारता का भाव पनपे।जीवन-लक्ष्य के पथ पर हममें से कोई भी छूटने न पाए।पारस्परिक तारतम्य या सच्चे तालमेल का यह भाव ही सफलता का अगला दिव्य सूत्र है,जो आज सिनर्जी के रूप में प्रख्यात है।
- सिनर्जी अर्थात् सच्चे तालमेल में ही प्रेम,आत्मीयता,उदारता,सहानुभूति,सहयोग,सहकार एवं सेवारूपी सद्गुणों का विकास होता है।यह विचार भाव हमें आंतरिक ऊर्जा से भर देता है और जीवन की वीणा बज उठती है।इसके अभाव में ही इतनी उदासी है,दुःख है,इतनी पीड़ा है।इसीलिए व्यक्ति,समाज,देश और विश्व में इतना अँधेरा है,इतनी हिंसा है,इतनी घृणा है।सच्चा तालमेल न होने के कारण ही विसंगतिपूर्ण,विचारहीन एवं गलाकाट प्रतियोगिता जन्म लेती है।सच्चा तालमेल इस विषमता एवं व्यथा को दूर कर एक साथ संघबद्घ व संगठित होकर चलने की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देता है।सच्चे तालमेल के भाव-विचार का अंकुरण हमारी आंतरिक चेतना में होता है।यह भावना अंदर में उमगती है।इसका बाह्य आरोपण स्थायी एवं टिकाऊ नहीं हो सकता।सच्चा तालमेल एक ओर जहां व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी एकजुट बनाए रखता है,वहीं दूसरी ओर प्रगति व विकास के नए-नए आयाम खोलता है।
- सच्चे तालमेल का भाव-विचार हमें प्रतिदिन कुछ नया करने,नया सोचने तथा नई योजना बनाने के लिए उत्साहित-प्रेरित करता है।जो कुछ किया गया है,उससे और भी अच्छा कैसे किया जाए,अपनी परिस्थिति एवं साधन के अनुरूप अच्छे-से-अच्छा और किया जाए,इसकी प्रेरणा हमें प्रतिदिन के मूल्यांकन एवं आंतरिक अवलोकन से मिलती है।आत्मबोध एवं तत्वबोध की साधना से यह निरीक्षण अति सहज और सुगम हो जाता है।इस सहज व सरल साधना के प्रत्येक दिन अपने नए जीवन एवं प्रत्येक रात्रि अपनी मृत्यु का अनुभव करना होता है।इससे हमें प्रतिदिन अपने कार्यों के मूल्यांकन के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व की गहराई में झांकने का अवसर मिलता है।हर दिन एक नए संकल्प के साथ नया कार्य प्रारंभ होता है,जो सफल व्यक्तित्व की सम्मोहक विशेषता है।
- सफलता के 8 सूत्रों में व्यक्तित्व के निर्माण का गहरा मर्म छिपा है।इन सूत्रों को जीवन में संकल्पपूर्वक क्रियान्वित किया जाए तो व्यक्तित्व परिमार्जित होकर महक उठेगा। ऐसे व्यक्तित्व से ही एक नया विद्यार्थी जीवन,व्यावहारिक जीवन एवं आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की जा सकती है।ये सूत्र भौतिक सफलता के साथ ही अध्यात्म जगत में प्रवेश करने के लिए अमोघ मंत्र साबित होंगे।
- विद्यार्थियों के लिए नया सेशन प्रारंभ हो चुका है,अतः अभी से योजना उपर्युक्त मंत्र के अनुसार बनाकर जिम्मेदारी के साथ क्रियान्वित करते हुए अपने विषयों की तैयारी चालू कर दें।ध्यान रहे केवल योजना या टाइम टेबल बनाना जितना जरूरी है,उतना ही जरूरी है योजना पर अमल करने का।योजना किसी अनुभवी,विशेषज्ञ से बनवायें जो आपके बारे में,आपकी सामर्थ्य और योग्यता के बारे में जानता हो और अमल आपको करना है।सत्रारम्भ से ही कड़ी मेहनत करेंगे तो विषयों पर मजबूत पकड़ हो जाएगी और परीक्षा के समय आप तनावग्रस्त नहीं होंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता हेतु दिव्य प्रभावी 8 सूत्र (8 Divine Effective Tips for Success),सफलता कैसे हासिल करें की 8 रणनीतियाँ (8 Strategies of How to Achieve Success) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:5 Tips to Tame Mind to Achieve Success
5.सफलता के मंत्र (हास्य-व्यंग्य) (Mantras of Success) (Humour-Satire):
- एक छात्र (दूसरे छात्र से):क्या जमाना आ गया है,आज ढूँढने से भी कोई सच्चा काउंसलर नहीं मिलता है,जो सफलता के सच्चे मंत्र बताता हो,झूठ बोलने वाले ही मिलते हैं।
- दूसरा छात्र:एक काउंसलर है,जो कभी झूठ नहीं बोलता है,सफलता के सच्चे मंत्र जानता है।
- पहला छात्र:तो फिर उस काउंसलर से मेरी बात करवा दो।
- दूसरा छात्रःयह संभव नहीं क्योंकि वह काउंसलर गूँगा है।
6.सफलता हेतु दिव्य प्रभावी 8 सूत्र (Frequently Asked Questions Related to 8 Divine Effective Tips for Success),सफलता कैसे हासिल करें की 8 रणनीतियाँ (8 Strategies of How to Achieve Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.किसी भी कार्य में सफलता का क्या रहस्य है? (What is the secret of success in any task?):
उत्तर:किसी विद्या,व्यवसाय या जॉब में सफलता पाने का मार्ग उस क्षेत्र में अपने को पूर्ण ज्ञाता बना लेना है।
प्रश्न:2.सफलता किस पर निर्भर है? (What does success depend on?):
उत्तर:जीवन में सफलता पाना प्रतिभा और अवसर की अपेक्षा एकाग्रता और निरंतर प्रयास पर कहीं अधिक अवलंबित है।
प्रश्न:3.सफलता के अमोघ मंत्र क्या हैं? (What are the mantras of success?):
उत्तर:किसी ध्येय की सफलता के लिए मनुष्य की पूर्ण एकाग्रता और समर्पण आवश्यक है और एकाग्रता का अभ्यास होता है अपने आप पर नियंत्रण,आत्मनियंत्रण से।सफलता अनेक गुणों का जोड़ होती है जिनमें कुछ मुख्य गुण हैं और कुछ सहायक गुण हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सफलता हेतु दिव्य प्रभावी 8 सूत्र (8 Divine Effective Tips for Success),सफलता कैसे हासिल करें की 8 रणनीतियाँ (8 Strategies of How to Achieve Success) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.