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7 Golden Formulas for Practicing Maths

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1.गणित की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Formulas for Practicing Maths),छात्र-छात्राओं के लिए सत्य की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Sutras for Students to Achieve Truth):

  • गणित की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Formulas for Practicing Maths) के आधार पर आप जान सकेंगे कि गणित की साधना के लिए मुख्य रूप से किन-किन सूत्रों का पालन करना आवश्यक है।गणित हमारी भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति में कैसे और कितना सहायक है।
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2.वर्तमान में जीना सीखें (Learn to live in the present):

  • जिन्हें साधना की चाहत है,उन्हें कुछ विशेष ढंग से जीना होता है।चाहे भौतिक उन्नति करनी हो या आध्यात्मिक उन्नति करनी हो,दोनों ही क्षेत्रों में साधना जरूरी है।गणित विषय का अध्ययन करना भी साधना ही है,इसी प्रकार अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए समझें।परंतु केवल चाहत काफी नहीं है।जो अकेली चाहत को रखते हैं,वे केवल अपने कल्पना जाल में उलझे रहते हैं।बाद में उन्हें पछतावा और निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगता।साधना के लिए तीव्र अभीप्सा के साथ संकल्प और श्रम भी आवश्यक है।सत्य की साधना के लिए साधक (विद्यार्थी) को चित्त की भूमि वैसे ही तैयार करनी होती है,जैसे फूलों को बोने के लिए पहले भूमि को तैयार किया जाता है।इसके लिए कुछ अनिवार्य सूत्र हैं।
  • इनमें से प्रथम सूत्र है,वर्तमान में जीना।यदि सचमुच ही साधना के लिए तैयार हैं,तो अतीत के ख्यालों में भविष्य के ख्वाबों से बाहर आना होगा।जो बीत गया सो बीत गया,जो भविष्य में होना है वह समय पर अपने आप ही हो जाएगा।अतीत और भविष्य की यांत्रिक चिंतन धारा में बहने वाले अपने वर्तमान को खो देते हैं।वर्तमान का जीवित क्षण उनके हाथों से निकल जाता है,जबकि केवल वही वास्तविक है।ना अतीत की कोई सत्ता है और न ही भविष्य की।एक स्मृति है,तो दूसरी कल्पना।वास्तविक एवं जीवित क्षण तो केवल वर्तमान है।जिन्हें साधना करनी है,उन्हें स्वयं में इतनी जागृति तो लानी ही होगी कि वह अपने आप को अतीत की स्मृति एवं भविष्य के कल्पनापाश से मुक्त रख सकें।जो जाग्रत हैं,वे ही ऐसा कर सकेंगे और जो ऐसा कर सकेंगे,वे स्वतः ही जाग्रत हो जाएंगे।
  • इस सूत्र की साधना के लिए हर रात्रि में ऐसे सोएँ जैसे सारा अतीत छोड़कर सो रहे हैं।सोने से पहले अतीत को भगवत्स्मरण में विसर्जन कर दें।हर रात मरने की अनूठी कला सीखें,मरना अतीत के प्रति और हर सुबह नया जन्म लें।सुबह एक नई सुबह में एक नए मनुष्य की भांति उठें।ध्यान रहे जो सोया था,वह न उठे।वह सोया ही रहे।उसे उठने दें जो कि नित नया है,अभिनव है।तत्त्वबोध और आत्मबोध का यह विज्ञान वर्तमान को ऊर्जावान बना देता है।जिसका वर्तमान,जितना अधिक प्राणवान है,वह उतना ही श्रेष्ठ साधक है।वर्तमान में जीने का अभ्यास सतत चौबीसों घंटे प्रारंभ कर दें।होश में रहे कि कहीं मन फिर से अतीत और भविष्य के झूले में नहीं झूलने लगे।इससे छुटकारा पाने के लिए इसके प्रति जागृत होना ही पर्याप्त है।जागृत होने भर से बेहोशी की गतिविधियां अपने आप ही छूट जाती हैं।
  • गणित विषय का अध्ययन करने के लिए विद्यार्थी को साधक बनना ही होगा।बिना साधक बने केवल आप सवालों को हल कर सकते हैं।संख्याओं से अठखेलियाँ खेल सकते हैं।बौद्धिक रूप से गणित का अध्ययन करना ही गणित नहीं है।सच्ची गणित का अध्ययन तो हमें सांसारिक व व्यावहारिक ज्ञान ही नहीं प्राप्त कराती बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान भी कराती है।दर्शनशास्त्र,तर्कशास्त्र का ज्ञान भी गणित के बिना अधूरा है।अतः वर्तमान में जीने वाला ही गणित का साधक बन सकता है।

3.सहजता से जीना (Living Effortlessly):

  • गणित की साधना हेतु दूसरा सूत्र है,सहजता से जीना।आज हर विद्यार्थी गणित का अध्ययन करता है तो कुछ समस्याओं के हल ना होने पर ही तनावग्रस्त हो जाता है,गणित का फोबिया हो जाता है।ऐसा क्यों होता है इसे जरा समझें।आज हमारा,हम सबका जीवन कृत्रिम और असहज हो गया है।थोड़े से कम अंक प्राप्त हुए या किसी से कम अंक प्राप्त होते ही असहज हो जाता है।विद्यार्थी पर्याय बन गया कृत्रिमता के आडंबर का।सदा ही हम अपने ऊपर एक झूठ की चादर ओढ़े रहते हैं।100 अंक प्राप्त कर लिए और समझने लगते हैं कि गणित में मास्टरी हासिल कर ली।अंकों की प्रतिशतता,सबसे आगे निकलने की होड़ के इस आवरण के कारण हमें अपनी वास्तविकता धीरे-धीरे विस्मृत हो जाती है।इस झूठे खोल को,झूठी खाल को उतारकर ही हम साधना कर सकते हैं।ठीक वैसे ही हमें अपने मिथ्या चेहरों को उतारकर रखना होगा,क्योंकि गणित साधना का अर्थ ही स्वयं को जानना और स्वयं को देखना है।अपने अस्तित्व में जो मौलिक है और सहज है,उसे प्रकट होने दें,उसमें जिएँ।जीवन यदि सहज और सरल बनेगा,तो साधना अपने आप ही विकसित होगी।
  • जितना सहज होकर कोई भी विद्यार्थी गणित का अध्ययन करेगा उतना ही वह गणित में पारंगत होता जाएगा।गणित की साधना सत्य की साधना है और सत्य ही भगवान है,इसे आगे ठीक से समझेंगे।यहाँ इतना ही समझ लेना पर्याप्त है कि गणित को सहजता से हल करें तो सत्य के निकट पहुंचेंगे,सत्य को उपलब्ध हो जाएंगे।
  • इस सूत्र की साधना तभी होगी,जब यह जान लिया जाए कि असलियत में ना कोई अपना पद है,न प्रतिष्ठा और न कोई वैशिष्ट्य।ये तो सारी नकाबें हैं,केवल मुखौटे हैं।इन्हें जैसे भी बने,जल्दी से हटा देने में ही भला है।हम निपट हम हैं और अतिसाधारण इंसान हैं।जिसका ना कोई नाम है,ना कोई प्रतिष्ठा है,ना कुल है,न वर्ग है,न जाति है।एक नामहीन व्यक्ति,एक अतिसाधारण इकाई मात्र-ऐसे हमें जीना है।स्मरण रहे,यही हमारी असलियत भी है।आत्मा और इंसान के रूप में स्वयं को अनुभव करके ही स्वयं को परमात्मा और भगवान से जोड़ सकते हैं।जिन्हें साधना करनी है,जिन्हें वाकई गणित का ज्ञान प्राप्त करना हैं,जिन्हें गणित की साधना करनी है,जिन्हें गणित में उच्च कोटि की खोज करनी है,जिन्हें शुद्ध गणित के सौंदर्य और सत्य की अनुभूति करनी है,उन्हें उपाधि को व्याधि समझकर इससे छुटकारा पाना ही होगा।

4.अकेले जीने का अभ्यास करना (Practicing Living Alone):

  • गणित साधना का तीसरा सूत्र है,अकेले जीना,एकांत का सेवन करना।गणित की साधना का जीवन अत्यंत अकेलेपन में,एकांत में जन्म पाता है,हर विद्यार्थी साधारणतया अकेला नहीं होता।प्रायः वह हमेशा ही अपने मित्रों,सहपाठियों या दूसरों से घिरा होता है।भीड़  सदा उसे घेरे रहती है।कोई जरूरी नहीं है कि वह भीड़ बाहर हो,भीड़ तो भीतर भी हो सकती है,प्रायः होती भी भीतर ही है।भीतर भीड़ को इकट्ठी ना होने दें।बाहर भी ऐसे जिएँ,जैसे सबके बीच अकेले हैं।सब के बीच भी गणित का अध्ययन इतनी एकाग्रता के साथ करें जैसे और कोई है ही नहीं।सबके रहते हुए भी,सबके बीच जीते हुए भी किसी से कोई अंतर्संबंध नहीं रखना है।
  • इस सूत्र की साधना का सार यही है कि भीड़ भरे जीवन में,संबंधों की रेल-पेल में हम उसे भूल गए हैं,जो हम स्वयं हैं।हम या तो किसी के मित्र हैं या शत्रु हैं।पिता हैं या फिर पुत्र,पति हैं अथवा पत्नी।इन संबंधों से हम इतना घिरे हुए हैं कि हमारी निजता ही खो गई है।क्या हमने कभी कल्पना की है कि इन सारे संबंधों से भिन्न हम कौन हैं? यदि नहीं की तो अब करनी है,अपने आप को ढूंढकर स्वयं में जीना है।अपने आप को संबंधों के सभी परतों से भिन्न स्वयं को देखना है।बाहर के संबंध बाहर ही रहें,उनसे अपनी अंतर्सत्ता को मलीन ना होने दें।संबंधों के बिना अपने आपमें,जीने का अभ्यास करना है।
  • गणित की साधना एकांत में,अकेले में जीने में ही हो सकती है।इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दुनिया से कटकर रहें,दुनिया से मेलजोल न रखें,सांसारिक व्यवहार को भूल जाएं।इसका मतलब इतना है कि सांसारिक जीवन जीने के लिए मेलजोल और संबंधों को निभाना जरूरी है परंतु अपने अंतरात्मा पर,अपने मन पर इनकी पकड़ नहीं होने देनी है,वरना आप गणित के साधक,साधक नहीं रहेंगे बिल्कुल एक सांसारिक व्यक्ति कहलाएंगे।ऐसी स्थिति में ना तो आपकी गणित की साधना फलीभूत होगी और न सत्य की उपलब्धि होगी और भगवान की उपलब्धि होना,अनुभूति होना तो फिर संभव ही नहीं है।

5.तीनों सूत्रों के परिणाम (Results of all three formulas):

  • इन तीनों सूत्रों के परिणाम बड़े चमत्कारी हैं।शब्द नहीं, अनुभूति ही इसकी व्याख्या कर सकती है।शब्द तो सिर्फ संकेत कर पाते हैं,वह भी बड़े असमर्थ संकेत।हृदय के द्वार खुल चुके हों,तभी यह संकेत समर्थ बन पाते हैं।यदि ऐसा नहीं है,तो इन पंक्तियों को नहीं,अपने आप को ही पढ़ा जाता रहेगा।स्वयं के भीतर का कोलाहल इतना अधिक घेरे रहता है कि इस घिराव में कुछ भी संप्रेषित होने की गुंजाइश नहीं होती।यदि ये तीनों सूत्र जीवन में आ सकें,तो समूचा अस्तित्व सत्य के लिए खुल जाएगा।आंतरिक मौन में अंतर्मन के द्वार खुल जाएंगे और तब एक अनूठी समझ पैदा होगी,जिसके द्वारा वही समझा जा सकेगा,जो लिखा गया है।वही सुना जाएगा,जो कहा जा रहा है।
  • जिसके पास आंखें हों,वे देखें और जिनके पास कान हों,वे सुनें।क्या जिनसे जिनने यह कहा था,उनके पास कान और आंखें नहीं थी।उनके पास आंख और कान तो जरूर थे,पर आंख और कान का होना ही देखने और सुनने के लिए पर्याप्त नहीं है।कुछ और भी चाहिए,जिसके बिना उनका होना या ना होना बराबर है।यह कुछ और वही है,जो इन सूत्रों की साधना से मिलता है।इस कुछ और से,विराट से संवाद की स्थिति बनती है।इस कुछ और के स्पर्श से गुरु के शब्द फिर शब्द नहीं रहते,मंत्र बन जाते हैं।फिर जो कुछ पढ़ा जाता है,सुना जाता है,उसमें छपे हुए कागज का बासीपन नहीं,आत्मा की मौहक सुगंध छलकती है।
  • साधना के ये सूत्र अद्भुत हैं,इनकी अनुभूति अद्भुत है।बस बात इन्हें अपनाने,आत्मसात करने और अनुभव करने की है।ज्यों-ज्यों इन्हें अपनाया जाएगा,प्रकृति एवं परमात्मा से संवाद का अवसर मिलने लगेगा।हां पहले प्रकृति संवाद करेंगी।आकाश में से गणित के रहस्य प्रकट होंगे।सभी में से मीठे बोल उपजेंगे और फिर यह सब भी मौन में डूब जाएगा।बस फिर परमात्मा का संगीत उपजेगा।सत्-चित्त-आनंद का मधुरगान आत्मा में गूंजने लगेगा,पर यह सब होगा तभी,जब संकल्प और श्रम से साधक की अंतर्चेतना उर्वर बनेगी।जब कागज पर छपे साधना के सूत्र,साधक के जीवन का स्वर बनेंगे।

6.गणित की साधना (Practice of Mathematics):

  • गणित-विषय का अध्ययन बुद्धि और अंतर्बोध से किया जाता है।गणित की प्रमेयों,निष्कर्षों,खोजों की सत्यता अनुभव पर निर्भर नहीं होती है क्योंकि गणित की विषयवस्तु तथ्यात्मक (factual) नहीं है अर्थात् किसी तथ्य को वर्णित नहीं करते।गणित विषयवस्तु में प्रयुक्त वाक्यों की सत्यता इनमें प्रयुक्त शब्दों के अर्थों पर निर्भर है।अतः इनकी सत्यता की जांच के लिए इनमें प्रयुक्त शब्दों के अर्थों को जानना आवश्यक है और यह जानना अर्थात यह ज्ञान अनुभव से नहीं होता।यह विशुद्ध बौद्धिक ज्ञान है।इनकी (वाक्यों की) सत्यता या असत्यता में तार्किक अनिवार्यता एवं सार्वभौमिकता (certainty and universality) है।यदि यह कहा जाए कि “तीन और पांच छह नहीं होते” तो यह अनिवार्य और सार्वभौमिक सत्य है।इसके विपरीत “तीन और तीन छह होते हैं” यह अनिवार्य और सार्वभौमिक सत्य है।इन वाक्यों की सत्यता या असत्यता की जांच किसी प्रकार के अनुभव पर आश्रित नहीं है।इन वाक्यों का सत्य अनुभव निरपेक्ष सत्य कहलाता है।
  • गणित प्रेमियों ने इसलिए गणित को विचारों का विज्ञान कहा है और इसे अनेक संज्ञाएँ प्रदान की हैं।किसी ने उसे मानव विचारणा की अनुपम उपलब्धि कहा है,तो किसी ने उसे शुद्ध सौंदर्य का प्रतीक।किसी ने उसमें सत्य की चिरन्तन ज्योति का आभास पाया,तो किसी ने उसे भगवान की प्राप्ति का अंतिम सोपान बताया।उसके सौन्दर्य की अनुभूति (feelings) कर प्रेमी हर्ष से विभोर हो उठा कि सत्य और सौंदर्य के दर्शन करते हैं तो यही है वह वाटिका।उसमें विचरण मात्र ही सत्य की साधना है।गणित सत्य है,और सत्य ही भगवान है।
  • गणित साधना में ही ज्ञान उत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त हो सकता है।शुद्ध गणितज्ञ अपने को सौंदर्य और सत्य का पुजारी मानता है।उसके अनुसार गणित केवल विचारों से ही संबंधित होता है,स्थूल जगत की किसी वस्तु से नहीं।विचार स्थूल जगत से अधिक स्थायी है।इसीलिए गणितीय ज्ञान चिरन्तन है।3+3=6 सदा सत्य था,वर्तमान में भी सत्य है और सदा ही सत्य रहेगा।सौंदर्य दो बातों पर निर्भर रहता है।प्रथम तो कोई वस्तु विचार-जगत से जितनी ही अधिक संबंधित होगी वह उतनी अधिक सुंदर होगी।द्वितीय,वह जितनी अधिक अनुपयोगी होगी उतना ही उसका सौंदर्य निखर उठता है।इसका तात्पर्य यह नहीं है कि व्यावहारिक जगत में,दैनिक जीवन में गणित का उपयोग नहीं होता है।गणित के बिना तो हमारा जीवन चल ही नहीं सकता है।कदम-कदम पर उपयोगी गणित से साबका पड़ता है।परंतु इसका अधिकांश भाग शुद्ध गणित है जो अनुपयोगी गणित कहलाती है।सौंदर्य और उपयोगिता परस्पर विरोधी हैं।
  • उपयोग की भावना मात्र ही सौंदर्य को नष्ट कर देती है।गणितीय सौंदर्य को सभी लोग अनुभव कर सकते हैं और उसका आनंद उठा सकते हैं।यह अवश्य है कि यह सौंदर्य क्या है,उसकी परिभाषा बताना कठिन होगा।यह कठिनाई गणित के साथ भी आश्चर्यजनक नहीं है।उन सभी भावनाओं और विचारों की परिभाषा कठिन है जो मनुष्य के जीवन के अत्यंत निकट है।प्रेम को ही लीजिए।प्रेम क्या है,उसकी व्याख्या असंभव-सी है।उसका अनुभव किया जा सकता है,वर्णन नहीं।वह शब्दों की श्रृंखला में बंध नहीं सकता है।गणितीय सौंदर्य भी प्रेम की भाँति ही शब्दातीत है।
  • गणित के साधक (गणितज्ञ) गणित के विचार जगत में लीन रहते हैं और उसके सौंदर्य तथा सत्यता का दर्शन करते हैं।यही एक शुद्ध गणितज्ञ की सबसे बड़ी साध है।गणितज्ञ (साधक) बौद्धिक जगत (विचार जगत) में गोते लगाते रहते हैं और अंतर्बोध से गणित के अनेक छिपे हुए रहस्यों को प्रकट करते रहते हैं।गणित की साधना करनी है तो इन सूत्रों का पालन करेंःवर्तमान में जिएं,सहजता से जीना और एकांत का सेवन करना।इन तीनों का पालन करने से न केवल आप गणित के नए-नए रहस्यों का पता लगा सकते हैं बल्कि गणित के सौंदर्य और सत्य का अनुभव कर सकते हैं।कई गणितज्ञों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उन्हें गणित का ज्ञान,गणित की अमुक खोजें,गणित के फार्मूले खोजने में अंतर्बोध से मदद मिलती है।हालांकि इसका यह अर्थ नहीं है कि बुद्धि,लगन और कठोर परिश्रम का गणित की खोजों में कोई योगदान नहीं होता है।अवश्य होता है,परंतु अंतर्बोध,आत्मिक शक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है।इसे भी ध्यान में रखना होगा तभी एक गणित का छात्र सच्चा साधक बन सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Formulas for Practising Maths),छात्र-छात्राओं के लिए सत्य की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Sutras for Students to Achieve Truth) के बारे में बताया गया है।

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7.गणित की साधिका (हास्य-व्यंग्य) (Practitioner of Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्रा से):तुम रोजाना गणित के सवालों का अभ्यास करना,उन्हें हल करना,सूत्रों को याद करना,नियमित रूप से गणित का अध्ययन करने का काम कब से कर रही हो,क्योंकि गणित के सच्चे साधिका की यह पहली सीढ़ी है।
    छात्रा:अगले महीने से।

8.गणित की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (Frequently Asked Questions Related to 7 Golden Formulas for Practicing Maths),छात्र-छात्राओं के लिए सत्य की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Sutras for Students to Achieve Truth) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.साधक को कैसे रहना चाहिए? (How should the seeker live?):

उत्तर:नाव जल में रहे तो कुछ हर्ज नहीं परंतु नाव में जल नहीं जाना चाहिए।इसी प्रकार साधक चाहे संसार में रहे परंतु साधक के मन में संसार नहीं रहना चाहिए।

प्रश्न:2.क्या साध्य ही पवित्र होना चाहिए? (Should the end be pure?):

उत्तर:साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हो,साधन की पवित्रता (गणित का अध्ययन,साधना करने के माध्यम) के बिना उसकी उपलब्धि नहीं।

प्रश्न:3.गणित का अध्ययन करने में और क्या ध्यान रखें? (What else should be kept in mind while practicing mathematics?):

उत्तर:पाप कर्म से दूर रहना,निरंतर पुण्य में तत्पर रहना,अच्छी मनोवृत्ति रखना और शुभ आचरण करने से बुद्धि सात्विक होती है और सात्त्विक बुद्धि से ही अंतर्ज्ञान,अंतर्बोध होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Formulas for Practicing Maths),छात्र-छात्राओं के लिए सत्य की साधना हेतु 7 स्वर्णिम सूत्र (7 Golden Sutras for Students to Achieve Truth) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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