5Techniques of How to Counsel Students
1.छात्र-छात्राओं को परामर्श कैसे दें की 5 तकनीक (5Techniques of How to Counsel Students),शिक्षा संस्थानों में छात्रों की काउंसिलिंग की 5 तकनीक (5 Techniques for Counselling Students in Educational Institutions):
- छात्र-छात्राओं को परामर्श कैसे दें की 5 तकनीक (5Techniques of How to Counsel Students) के आधार पर आप जान सकेंगे कि काउंसलिंग से क्या तात्पर्य है,विद्यार्थियों को काउंसलिंग की आवश्यकता क्यों है और उनके लिए काउंसलिंग की व्यवस्था कैसे की जाए?
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2.विद्यार्थी के सामने मुश्किलें (Difficulties faced by students):
- शिक्षण संस्थानों,विद्यालय तथा महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में युवाओं के भावों में उमगती,विचारों में अंकुरित और क्रियाओं में पुष्पित-पल्लवित होती है। आदर्श रूप में यहाँ के प्रत्येक कार्य में संवेदना की कसक घुली रहनी चाहिए।संवेदना दर्द बांटने का नाम है,हमदर्द बनने की प्रक्रिया है।इस अनुभूति को लेकर प्रत्येक शिक्षण संस्थान को अपने विद्यार्थियों का दर्द बांटने की,उसे कम करने की पहल करनी चाहिए।कई बार विद्यार्थियों का मन पढ़ने से उचाट हो जाता है,उन्हें घर की याद आती है।आयु के क्रम में होने वाली भावनात्मक विक्षोभ एवं वैचारिक द्वन्द्व भी उन्हें सताते हैं।परस्पर का मनमुटाव भी उनके अध्ययन क्रम में बाधा बनता है।जब विद्यार्थी अपनी वैचारिक एवं भावनात्मक मुश्किलों का सामना कर रहे होते हैं तो उनकी शैक्षणिक प्रगति में व्यवधान होना स्वाभाविक है।
- एक तरफ ये विघ्न-व्यवधान,दूसरी तरफ नियमित रूप से क्लास टेस्ट,रैंकिंग टेस्ट,अर्द्ववार्षिक परीक्षा,प्री बोर्ड एग्जाम तथा वार्षिक परीक्षाओं का दबाव,सेमेस्टर की लिखित-मौखिक परीक्षाएं,प्रयोगात्मक कक्षाएं व परीक्षाएँ-इन सबको संभालना उन्हें बहुत दुश्वार होता है।इन दबावों में यह भय भी शामिल होता है कि यदि फेल हो गए तो घर में प्रताड़ना मिलेगी,शिक्षण संस्थानों में पढ़ने से अरुचि हो सकती है और एक दिन पढ़ने-अध्ययन करने से बिल्कुल अरुचि हो सकती है।ये सभी पीड़ाएं विद्यार्थियों को बड़ी मुश्किल में डाल देती हैं।इनसे उबरने का उन्हें कोई रास्ता तो सूझता नहीं है,हां,उल्टे उनमें कई वैचारिक एवं भावनात्मक ग्रंथियाँ अवश्य पनप जाती हैं,जिन्हें खोल पाना उन्हें अपने स्तर पर न केवल कठिन,बल्कि असंभव सा लगता है।
- हमारा ऐसा अनुभव है कि ये परेशानियां हायर सेकेंडरी स्कूल तथा ग्रेजुएट कक्षाओं के विद्यार्थियों में,पी-एच०डी० या पोस्ट ग्रेजुएट कक्षाओं के विद्यार्थियों की तुलना में ज्यादा होती हैं;हालांकि पोस्ट-ग्रेजुएट कक्षाओं के विद्यार्थी भी अपने अध्ययन क्रम की शुरुआत में,पहले सेमेस्टर के प्रारंभ में काफी असहज एवं परेशानी अनुभव करते हैं।हायर सेकंडरी परीक्षाओं के विद्यार्थियों के समक्ष प्रवेश परीक्षाओं जेईई,नीट,नीट-यूजी,सीपीटी,सीयूईटी आदि का दबाव रहता है।इन विद्यार्थियों की कक्षा कोई भी हो,परेशानियों से तकलीफ सभी को एक समान ही होती है।जिन्होंने जिंदगी का अनुभव किया है,वे सभी जानते हैं कि शारीरिक कष्ट से मानसिक कष्ट-बेचैनी,घुटन एवं भावनात्मक उद्विग्नता ज्यादा पीड़ादायी होती है।
- इन सभी स्थितियों को समझते हुए शिक्षण संस्थानों के संचालकों को अपने विद्यार्थियों के लिए काउंसिलिंग की व्यवस्था जुटाने का प्रयास करना चाहिए;क्योंकि हमारे ऋषियों-मुनियों एवं तपस्वियों द्वारा गुरुकुल में चलाई जा रही यह व्यवस्था खत्म सी हो गई है।जब तक विद्यार्थी शिक्षण संस्थानों में पढ़ता है तब तक शिक्षण संस्थानों के शिक्षक,संचालक और विद्यार्थी एक परिवार के सदस्य की तरह ही होते हैं।परिवार में एक का दर्द दूसरे का दर्द बनता है।यही वजह है कि विद्यार्थियों की कोई भी पीड़ा शिक्षण संस्थानों,शिक्षकों व संचालकों की पीड़ा है। उनकी (विद्यार्थियों की) हर समस्या शिक्षकों व संचालकों की अपनी समस्याएं हैं और उसका निदान-समाधान होना ही चाहिए।
3.शिक्षण संस्थानों में काउंसलर भी हो (There should also be a counselor in educational institutions):
- यों विद्यार्थी जाॅब प्राप्त करने,परीक्षा की तैयारी,पुस्तकों और कोचिंग का चयन करने आदि के लिए तो पूछताछ करता है,किसी योग्य मार्गदर्शक से परामर्श लेता भी है।परंतु छात्र-छात्रा के बारे में जितनी जानकारी संबंधित शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को होती है,उतनी जानकारी अन्य व्यक्तियों को नहीं होती है।माता-पिता को भी हो सकती है यदि वे पढ़े-लिखे होते हैं और कुछ समय रोजाना बैठकर उनके साथ अध्ययन करते हैं और उनके सामने आने वाली समस्याओं को वे हल करते हैं।इसका अर्थ यह नहीं है कि पढ़े-लिखे न होने पर माता-पिता शिक्षित नहीं हो सकते हैं परंतु जाॅब संबंधी,कैरियर संबंधी,अध्ययन संबंधी समस्याओं को हल करने के लिए पढ़ा-लिखा होने के साथ-साथ शिक्षित होना भी जरूरी है।
- विद्यार्थी के लिए मार्गदर्शक की क्या भूमिका हो सकती है और कौन-कौन उसके सही और अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं,इसके बारे में लेख लिखा जा चुका है,आप उसे पढ़कर जानकारी हासिल कर सकते हैं।इसलिए लेख में विद्यार्थियों की अन्य पीड़ाओं,दुःख-दर्द को शिक्षण संस्थानों में काउंसिलिंग करके कैसे दूर किया जा सकता है इसके बारे में ही लेख को सीमित रखेंगे।समाधान की यही कोशिश काउंसिलिंग की शुरुआत है।इसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए शिक्षण संस्थानों में काउंसलर भी होना चाहिए जिसे न केवल मानवीय चेतना,योग-विद्या,अध्यात्म-विद्या की जानकारी हो बल्कि व्यावहारिक ज्ञान,जीवन का अनुभव भी होना चाहिए।हालांकि शुरू-शुरू में इसमें कई प्रकार की दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं।हर कार्य की शुरुआत करने में अनेक अड़चनें आती हैं परंतु योजनाबद्ध तरीके से इसे लागू किया जाए तो काफी हद तक इससे पार पाया जा सकता है।हालाँकि शिक्षण संस्थान में ऐसे काउंसलर की नियुक्ति करना थोड़ा अटपटा लग सकता है क्योंकि अधिकांश छात्र-छात्राएं या तो प्रोफेशनल काउंसलर से परामर्श लेते हैं या फिर शिक्षकों से,माता-पिता से,मित्रों से आदि से लेते हैं।परंतु कई बार यह परामर्श छात्र-छात्रा के लिए हितकर नहीं होता है।
- वस्तुतः कष्टों,पीड़ाओं और तकलीफों से विद्यार्थी टूट जाता है,संघर्ष नहीं कर पाता है क्योंकि विद्यार्थी की आध्यात्मिक चिकित्सा व व्यावहारिक समाधान नहीं हो पाती है या ऐसा करने वाला कोई काउंसलर नहीं मिल पाता है।यदि मिल भी जाता है तो विद्यार्थी के संपर्क में रहे बगैर उसकी ठीक-ठीक काउंसिलिंग नहीं की जा सकती है।जब तक उसे (विद्यार्थी) अपने व्यक्तित्व के आध्यात्मिक दायित्व की अनुभूति ना हो,जब तक उसे यह अनुभव न कराया जाए कि ध्यान-योग प्रक्रियाएँ एवं कुछ आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि मिलकर उसके आंतरिक जीवन का कायाकल्प कर सकती है तब तक उसका स्थायी समाधान नहीं हो सकता है।
- यही वजह है कि काउंसलर ऐसा होना चाहिए जिसे ध्यान,योग-साधना,आध्यात्मिकता का भी कुछ ज्ञान हो।विद्यार्थियों को दी जाने वाली काउंसलिंग की प्रक्रिया में यौगिक क्रियाओं,ध्यान-साधना व आध्यात्मिक विचारों व सिद्धांतों का भी कुछ सम्पुट होना चाहिए।इसलिए यह प्रोफेशनल काउंसलर से कुछ हटकर है।इसके पीछे सोच यही है कि विद्यार्थियों की अपरिपक्व चेतना को फ्राॅयड एवं उसके सिद्धांतों,मनोविज्ञान के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए।उसे अनगढ़ से सुगढ़ और अपरिपक्व से परिपक्व बनाने के लिए यौगिक सूत्र-सिद्धांत अपनाने ही होंगे।वही अपनाए जाने चाहिए और वही अपनाए भी जाएंगे तभी समाधान अनुरूप व अनुकूल हो सकेंगे।
4.काउंसिलिंग की व्यवस्था व्यावहारिक है (The counsellor’s arrangement is practical):
- काउंसिलिंग की जरूरत केवल विद्यार्थियों को ही नहीं है बल्कि शिक्षकों को भी है क्योंकि आज के शिक्षक (अधिकांश) विषय के ज्ञाता तो मिल जाएंगे परंतु व्यावहारिक ज्ञान और स्प्रिचुअल ज्ञान से शून्य हैं फलतः विद्यार्थी परेशान होते हैं,इधर-उधर भटकते हैं और कई बार गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं।परेशानी,तनाव,चिंता व अवसाद से इस समूचे युग की किशोर व युवा पीढ़ी गुजर रही है।उसे अपनी परेशानियों के समाधान चाहिए।जीवन की सही दिशा के अभाव में उसकी दशा बद से बदतर होती जा रही है;क्योंकि जब दिशा सुधरेगी,तभी दशा भी सँवरेगी।इस विकट स्थिति का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण वैचारिक एवं भावनात्मक भटकाव है।इस भटकाव से उबरना तभी सम्भव है,जब उसे भटकाव से उबारने वाले (विशेषज्ञ) काउंसलर मिलें।
- यह तथ्य इतना सत्य और मुखर है,जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।इसका तो सामना करते हुए समाधान के लिए अग्रसर होना पड़ेगा,यही सोचकर योग विद्या,स्प्रिचुअल,व्यावहारिक ज्ञान से युक्त काउंसलर होने का प्रस्ताव किया जा रहा है।यह प्रस्ताव लागू करना इसलिए मुश्किल सा लग रहा है क्योंकि एक तो इसका शिक्षण संस्थानों के लिए लागू रूल्स एंड रेगुलेशन में सरकार ने कोई प्रावधान नहीं किया है और जब तक लागू नहीं किया जाता है तब तक शिक्षण संस्थानों के कर्ता-धर्ता इसे आफत समझते हैं।विशेषज्ञों से परामर्श लेकर इस तरफ कदम बढ़ाया जाए और छात्र-छात्राओं तथा देश के हित को सामने रखें तो यह इतना मुश्किल भी नहीं है।इच्छाशक्ति और संकल्पशक्ति से यह कार्य किया जा सकता है।इसके लागू करने से छात्र-छात्राओं की बहुत सी समस्याओं का समाधान एक ही छत के नीचे किया जा सकता है और यह व्यावहारिक भी है क्योंकि आज के बदलते दौर और व्यावसायिक सोच में इसकी अत्यन्त आवश्यकता है।
- काउंसलर की व्यवस्था करना कई अर्थों में विशेष होगा।इसमें योग-विधियों से शारीरिक,मानसिक चिकित्सा के साथ विभिन्न क्षेत्रों में काउंसलिंग की उचित व्यवस्था का लाभ उठाया जा सकता है।इसके जरिए जाॅब,शिक्षा,व्यवसाय,प्रबंधन,परिवार,दैनिक जीवन,व्यावहारिक जीवन आदि विषयों से संबंधित जुड़ी हुई अनेक समस्याओं,कष्टों,पीड़ाओं का समाधान किया जा सकता है।काउंसलर की व्यवस्था केवल औपचारिक तौर पर करने पर ही पूर्ण नहीं मानी जाएगी; क्योंकि जब तक सैद्धांतिक परामर्श को प्रयोग के धरातल पर नहीं उतारा जाता है,तब तक यह व्यवस्था निर्जीव ही बनी रहेगी।अतः शिक्षण संस्थानों की कोशिश होनी चाहिए की यह व्यवस्था लागू हो जाए तो सफल तभी होगी जबकि यह पूर्णतः सजीव,सतेज,सक्रिय एवं प्रभावकारी हो।जिन विद्यार्थियों की काउंसलिंग की जाए तो वे बड़ी सफलतापूर्वक व्यक्तिगत,पारिवारिक,करियर व व्यावहारिक जीवन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हों।
- इस लेख की सार्थकता भी तभी होगी जबकि इसके अनुसार व्यावहारिक रूप से अमल किया जाए।हो सकता है कुछ शिक्षण संस्थानों में व्यक्तिगत रुचि लेकर यह व्यवस्था की जा रही हो परन्तु ऐसे शिक्षण संस्थान बहुत ही सीमित मात्रा में होंगे तथा अन्य शिक्षण संस्थान इसे अपनाने की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं या इसको अपनाने में आनाकानी करते हैं क्योंकि उन्हें विद्यार्थियों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है।विद्यार्थियों के लिए काउंसिलिंग की व्यवस्था करना एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।हालांकि इसके परिणाम तो लंबे समय पर जाकर ही मालूम पड़ेंगे क्योंकि इस तरह की व्यवस्थाओं के और विशेष रूप से शिक्षा में किसी भी बदलाव के परिणाम लंबे समय के बाद जाकर मालूम पड़ते हैं।
5.शिक्षण संस्थान को केवल व्यवसाय न मानें (Don’t treat educational institutions as mere commercial ones):
- प्राचीन काल में गुरुकुल या आश्रम विद्यालय हुआ करते थे।उनमें ऋषि,योगी,तपस्वी व्यावहारिक,हुनर की तालीम तो देते ही थे और वे ही उनकी काउंसिलिंग करते थे।आधुनिक युग के स्कूलों को गुरुकुल जैसी व्यवस्था में ढालना तो दुष्कर है परंतु उनके कुछ अंशों को भी शामिल कर लें तो बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है।पहला शिक्षण की प्रक्रिया को केवल व्यवसाय का जरिया और डिग्री बांटने का गोरखधंधा ही ना माना जाए।शिक्षण व्यवस्था का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण होना चाहिए और राष्ट्र का निर्माण होगा शिक्षण-व्यवस्था के द्वारा युवा पीढ़ी को गढ़ने के लिए किया जावे।शिक्षा का उद्देश्य उनके व्यक्तित्व का परिष्कार और उसमें निखार लाने के लिए हो।उनमें मानवीय गुण,राष्ट्र के प्रति निष्ठा और स्वाभिमान का बोध कराने के लिए हो।शिक्षण-प्रक्रिया के अनुपान के साथ विद्यार्थियों में विद्या की औषधि दी जावे।
- वर्तमान समय की विषमताओं एवं काल की उलटवाँसी के चलते यह कार्य आसान नहीं है।समय के झंझावातों ने बहुत कुछ बदला है।ऋषियों की व्यवस्था,परंपरा एवं जीवन मूल्यों के अब ध्वंसावशेष भी ढूंढे नहीं मिलते।ऐसे में ऋषि-परंपरा एवं जीवनशैली असम्भव नहीं तो दुष्कर अवश्य है।यह महत् प्रयास तभी पूरा होगा,जबकि शिक्षक एवं विद्यार्थी तथा व्यवस्था के अन्य प्रतिभागी मिलकर यह कार्य करें।ऋषियों जैसी जीवनशैली तो प्रत्येक शिक्षण संस्थान में अपनाना बहुत दुष्कर है परंतु उनके कुछ अंशों को भी आत्म-सात कर लें तो कायापलट हो सकती है।इस विशिष्टता के अनुरूप ही जीवनशैली,खानपान,रहन-सहन के मूल्य-माददण्ड गढ़े जाने चाहिए।जो विद्यार्थी इन जीवन मूल्यों को अपनाए हुए हैं,वे इन बातों को समझते होंगे,परन्तु जो इन बातों को अब अपनाएंगे,उन्हें यह सत्य शीघ्र समझ लेना होगा और स्वयं में उचित एवं अपेक्षित परिवर्तन कर लेने होंगे।
- गुरुकुल और आश्रम की अपनी विशिष्ट मर्यादाएं होती हैं।कोई कितना ही धनाढ्य और साधन सम्पन्न हों गुरुकुल एवं आश्रम में रहकर संपन्नता का प्रदर्शन नहीं कर सकता था।परंतु आधुनिक शिक्षा-संस्थानों में इन मर्यादाओं का पालन नहीं किया जा रहा है,जो कि सोचनीय विषय है।तपस्वी जीवन में ही गरीब अमीर की घनिष्ठ मित्रता,परस्पर स्नेह एवं कठिन श्रमशील जीवन सक्रिय एवं जीवन्त नजर आ सकती है।काउंसिलिंग का फायदा भी तभी उठाया जा सकता है।यदि काउंसलर के परामर्श को जीवन में नहीं उतारे,उसके परामर्श का पालन न करें तो जीवन में परिवर्तन कैसे संभव है? कैसे विद्यार्थियों की पीड़ाओं और समस्याओं का समाधान हो सकता है यह ध्यान रखना होगा।
- विद्यार्थी को जीवन में कष्ट-पीड़ाएं,परेशानियाँ भी इसीलिए दुःखदायी प्रतीत होती है क्योंकि वे सुख-सुविधाओं का भोग करना चाहते हैं,विलासिता की चीजों से उनका मोह भंग नहीं होता है,तपपूर्ण जीवन से बिदकते हैं।हालांकि इसका अर्थ नहीं है कि कठोर तपश्चर्या का जीवन ही जिया जाए और कोमलता का जीवन में प्रवेश ही नहीं हो।परंतु केवल कोमल जीवन ही जीने के आधार पर कष्ट-कठिनाइयों का सामना कैसे किया जा सकता है?
- छात्र-छात्राएं जहां कठिन दिनचर्या का पालन करना चाहिए वहाँ भी कोमल जीवन जीने के आदी होते हैं।वस्तुतः जीवन में कठोरता एवं कोमलता का मिश्रण होना चाहिए।वैसे भी कठोर जीवनचर्या का पालन हर विद्यार्थी नहीं कर सकता है।विद्यार्थियों को काउंसलर का भरपूर फायदा तभी मिल सकता है जबकि विद्यार्थी अपने आप को हर परिस्थिति के अनुसार जीवनचर्या को ढालने का अभ्यस्त कर लेता है।किसी भी परामर्श,सुझाव का महत्त्व तभी होता है जब उसके अनुसार हम अपने जीवन को ढालने के लिए तैयार होते हैं।अतः छात्र-छात्राओं को कठिन जीवन एवं कोमल दोनों के अनुसार अपने को ढालने का अभ्यस्त कर लेना चाहिए।प्रोफेशनल काउंसलर से इसीलिए छात्र-छात्राओं को फायदा नहीं मिल पाता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं को परामर्श कैसे दें की 5 तकनीक (5Techniques of How to Counsel Students),शिक्षा संस्थानों में छात्रों की काउंसिलिंग की 5 तकनीक (5 Techniques for Counselling Students in Educational Institutions) के बारे में बताया गया है।
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6.छात्र-छात्राओं को परामर्श कैसे दें की 5 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5Techniques of How to Counsel Students),शिक्षा संस्थानों में छात्रों की काउंसिलिंग की 5 तकनीक (5 Techniques for Counselling Students in Educational Institutions) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.परामर्श को स्पष्ट करें। (clarify consultation):
उत्तर:जो काउंसलर नेक सलाह देता है,वह एक ही हाथ से निर्माण करता है और मनुष्य को उपयुक्त परामर्श के साथ दृष्टांत भी देता है,वह दोनों हाथों से निर्माण करता है।
प्रश्न:2.काउंसलर कैसे होने चाहिए? (How should counsellors be?):
उत्तर:काउंसलर निष्कपट,छल रहित हो,भीतर और बाहर से पवित्र हों तथा श्रेष्ठ हों,निष्पक्ष हों।अपना कार्य बिना लोभ-लालच के करता हो।चरित्रवान हों और थोड़ा-बहुत आध्यात्मिक ज्ञान भी हो।
प्रश्न:3.छात्र-छात्राएँ काउंसलर से परामर्श लेते समय क्या ध्यान रखें? (What should students keep in mind when consulting a counselor?):
उत्तर:साधारण काउंसलर का कहा हुआ शास्त्र भी,यदि वह युक्तियुक्त अर्थात् तर्कसंगत है,तो ग्रहण करने योग्य है।इसके विपरीत यदि किसी बहुत बड़े विद्वान तथा ऋषि का भी परामर्श हो तो त्यागने योग्य है।छात्र-छात्रा को न्याय सम्मत,हितकारी और शुभ करने वाली बात ही माननी चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं को परामर्श कैसे दें की 5 तकनीक (5Techniques of How to Counsel Students),शिक्षा संस्थानों में छात्रों की काउंसिलिंग की 5 तकनीक (5 Techniques for Counselling Students in Educational Institutions) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.