How to Have Stress-free Lifestyle?
1.तनावमुक्त जीवन शैली कैसे हो? (How to Have Stress-free Lifestyle?),तनावमुक्त कैसे हों? (How to Relax?):
- तनावमुक्त जीवन शैली कैसे हो? (How to Have Stress-free Lifestyle?) क्योंकि तनावग्रस्त रहने पर जीवन एक बोझ बन जाता है।तनाव हमारे कार्य को प्रभावित करता है,अध्ययन को प्रभावित करता है।आज के युग में किशोर से लेकर वृद्ध तनावग्रस्त मिल जाएंगे। तनाव के बारे में और भी लेख लिखे गए हैं।इस लेख में तनाव के बारे में अतिरिक्त सामग्री प्रस्तुत है।यह लेख परीक्षा के निकट छात्र-छात्राओं को तनाव मुक्त करने में मदद करेगा।
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2.तनाव के शारीरिक और मानसिक कारण (Physical and mental causes of stress):
- तनाव आधुनिक जीवनशैली का अंग बन गया है।यह महामारी का रूप धर आतंक पैदा कर रहा तथा अनगिनत समस्याओं का कारण बन गया है।एक तो बेवजह तनाव पैदा होता है और उससे अकारण भय की पैदाइश होती है।तनाव और भय का संबंध गहरा है-एक होगा तो दूसरे की उपस्थिति अपने आप हो जाती है।दरअसल तनाव एक ऐसी अवस्था है,जिससे हमारी शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जाओं की मांग बढ़ जाती है और वे नष्ट भी होने लगती हैं।इससे हमारी क्रियाएं भी बाधित होती है।यह शारीरिक एवं मानसिक साम्यावस्था को भंग कर देता है,जिससे अनेक प्रकार की बीमारियां भी जन्म लेने लगती हैं।
- तनाव कई कारणों से जन्म लेता है।इसके पीछे शारीरिक एवं मानसिक,दोनों वजह हो सकती हैं।शारीरिक कारकों में सिरदर्द,अस्थमा,डायबिटीज,हृदयरोग,सर्दी,जुकाम,कैंसर आदि हो सकते हैं एवं मानसिक कारकों में अनिद्रा,थकान,चिंता,अवसाद आते हैं।इससे संबंधित और भी अनेक ऐसे कारण हैं,जिनमें तनाव पैदा होता है। आजकल तनाव का होना एक सामान्य-सी बात है।कभी बड़ों में पाई जाने वाली यह समस्या वर्तमान में नादान बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में कर रही है।तनाव पैदा हुआ है,यह कैसे जानें? इस संदर्भ में जानने योग्य बात यह है कि जब हमारी मांसपेशियां थकने-टूटने लगती हैं,आलस्य एवं तंद्रा घेरने लगे,कभी भी और किसी भी समय चिंता उठने लगे तो समझ लेना चाहिए हम इसकी गिरफ्त में आ गए हैं।
- तनाव हमारी मानसिकता का अंग बन गया है।कुछ लोग इसे अपना साथी-सहचर मानकर अपने पास बनाए रखने में भरोसा रखते हैं और बिना कारण तनाव होने का दोष पीटते रहते हैं।कुछ लोग सचमुच में तनाव पैदा करते हैं।हालांकि इनकी संख्या कम होती है,परंतु इनकी मानसिकता नकारात्मकता से भरी होती है और ये संक्रामक रोग के समान तनाव परोसते रहते हैं।भावुक लोगों को उनकी संगति से सर्वथा बचना चाहिए।
- कुछ लोग कभी-कभी और कुछ-कुछ तनाव पैदा करते हैं।इनसे भी सावधान रहना चाहिए,क्योंकि कहीं ये किन्हीं संवेदनशील मुद्दों में तनाव पैदा नहीं कर दें।कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तनाव के प्रति उदासीन होते हैं।ये संरचना पर प्रतिक्रिया करते हैं।इनके अनुसार चीजें ऐसी नहीं होनी चाहिए,ऐसी होनी चाहिए।ये यहां तक सीमित रहते हैं।कुछ लोग आनंद उत्पन्न करने वाले होते हैं।ये मस्त रहते हैं और अपने आस-पड़ोस में खुशी बांटते हैं।10% स्थायी रूप से तनावमुक्त होते हैं।इनको तनाव स्पर्श तक नहीं कर सकता।वे तनाव को तनाव देने वाले होते हैं,अर्थात् इनमें तनाव से मुक्ति की अपार क्षमता होती है।
- मानव जीवन असीम ऊर्जा का भांडागार है।यह ऊर्जा जब नकारात्मक चीजों में खपने लगती है तथा रचनात्मकता के लिए कमी पड़ जाती है तो तनाव पैदा होता है।अतः इसका तात्पर्य है कि तनाव के लिए हम स्वयं दोषी हैं।यदि ऊर्जा का संतुलन,नियमन एवं सुनियोजन होने लगे,तो भी तनाव नहीं रहेगा।दरअसल हमारे लक्ष्य और सपने इतने बड़े नहीं होते,जितना कि तनाव का विशालकाय पहाड़।हमारे अधिकतर कार्य इसलिए अधूरे छूट जाते हैं,क्योंकि हम मान लेते हैं कि ये तनाव एवं परेशानी देंगे;जबकि वास्तविकता इससे भिन्न एवं अलग है।अगर इसकी वजह को शांत मन से तलाशा जाए तो कहीं भी तनाव नहीं होता है।यह तो एक काल्पनिक डर होता है।यही वजह है कि कुशल एवं प्रतिभाशाली भी श्रेष्ठ कार्य को अधूरा छोड़ देते हैं।
3.तनाव से आत्मविश्वास डिगता है (Stress erodes confidence):
- मानव जीवन में खुशियों के अनगिनत पल खुले हैं। मुस्कुराहट एवं उत्साह में निखर उठते हैं।तनाव को जो जीवन का अविभाज्य अंग बना दिया गया है,वह वास्तविक नहीं है।तनाव जीवनशैली भी नहीं है,जो कि वर्तमान में बना दी गई है।यह हमारी अपने शरीर,मन,संवेदनाओं और ऊर्जा को व्यवस्थित न कर पाने की अयोग्यता है।जब इनके बीच असंतुलन एवं असामंजस्य पैदा होता है तो तनाव के रूप में एक अवांछित तत्त्व प्रकट होता है।तनाव प्रकृति,तंत्र और अपने आस-पास के परिवेश की कार्य-प्रणाली की समझ की कमी और सही तरीके का इस्तेमाल न कर पाने की अयोग्यता है।तनाव है,इसका तात्पर्य है कहीं कोई समझ-सामंजस्य नहीं है।यदि समझ आ जाए तो तनाव रहेगा ही नहीं।
- समझदारी के अभाव में तनाव घर कर लेता है,अपनी गिरफ्त में कस लेता है।इससे हमारा आत्मविश्वास डिगता है और हम हर किसी को शंका व संदेह से देखने लगते हैं।कभी भी कोई हमारे जीवन या गतिविधियों के बारे में कुछ उपहास,उपेक्षा या कटाक्ष कर देता है तो इससे हम परेशान होकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।ऐसी स्थिति यदि मन में लंबे समय तक बनी रहे तो हम स्वयं को नकारात्मक ढंग से लेने लगते हैं और कही हुई बातों के अनुसार स्वयं को अक्षम एवं असमर्थ महसूस करते हैं।
4.तनाव का दृष्टांत (Parable of Stress):
- एक विद्यार्थी साइंस मैथ्स सब्जेक्ट लेना चाहता था।उसमें मैथ्स को पढ़ने की इच्छा थी,परंतु गणित शिक्षक ने कटाक्ष करते हुए कहा:अरे! तुम तो गणित में बिल्कुल फिसड्डी हो।गणित पढ़ना तुम्हारे वश की बात नहीं है।अच्छे-अच्छे छात्र-छात्रा गणित विषय ले तो लेते हैं परंतु आगे की कक्षाओं में जब पढ़ते हैं तो उनके छक्के छूट जाते हैं और उन्हें गणित बदलना ही पड़ता है।यह विषय तुम्हारे अनुकूल नहीं है।जाओ और कोई दूसरा विषय लो।शिक्षक ने आगे कहा कि तुम ठस बुद्धि के हो,मेहनत नहीं कर सकते हो,दिमाग भी तुम्हारा बिल्कुल काम नहीं करता है और गणित विषय के लिए तुम बिल्कुल उपयुक्त नहीं हो।
- उस विद्यार्थी को अपने शिक्षक की बात गहरी चुभी और दिल से निकली ही नहीं।प्रेरित करने और आगे बढ़ाने की अपेक्षा निराशाजनक बात कहकर हतोत्साहित करने वालों की कोई कमी नहीं है।उस विद्यार्थी ने कहा महाकवि कालिदास,धनुर्धर एकलव्य और बोपदेव जिसने संस्कृत में मुग्धबोध की रचना की,प्रारम्भ में ठस बुद्धि के ही थे।एकलव्य ने स्वयं अपने अभ्यास,लगन,परिश्रम और अंतर्बोध से धनुर्विद्या सीखी थी।वे जब इतने महान बन सकते हैं तो मैं गणित विषय क्यों नहीं पढ़ सकता हूं।इस प्रश्न का उत्तर गणित शिक्षक से नहीं बन पड़ा।विद्यार्थी के मन को गहरी चोट लगी।वह विद्यार्थी तनावग्रस्त था और तनाव से निराश व हताश भी था।किसी ने उसे काउंसलिंग के लिए एक गणितज्ञ के पास भेजा।काउंसलिंग कुछ नहीं है,बस विधेयात्मक मार्गदर्शन के द्वारा मनोरोगी को उसकी विकृति से हटाकर किसी रचनात्मक कार्य में लगाना है।यह सुविधा पहले परिवार एवं समाज में बड़े सम्माननीय व्यक्तियों द्वारा उपलब्ध थी और व्यक्ति को क्लीनिक में काउंसलिंग के लिए गए बगैर मिल जाती थी।इस परंपरा की उदासीनता के कारण ही इसी का आंशिक एवं आधुनिक रूप है साइकोथेरेपी एवं काउंसलिंग।
- काउंसलिंग के दौरान गणितज्ञ ने विद्यार्थी से कुछ सवाल किये।पहले तो विद्यार्थी ने कुछ कहा ही नहीं।इसके पीछे कारण है कि जब व्यक्ति अंदर से नकारात्मकता से भरा रहता है तो अपने को चारों ओर से बंद कर देता है।वह कुछ भी नहीं बोलता है और जब बोलने को होता है तो आवेशग्रस्त होकर रोने लगता है।यह आम जिंदगी की बात है,जो विद्यार्थी के साथ भी थी।विद्यार्थी से प्रश्न किया गया:शिक्षक के अनुसार तुम्हें नियति ने शरीर,बुद्धि,मन दिया उसमें सुधार किया जा सकता है? क्या तुम जो अध्ययन करते हो उसमें कोई कमी है? क्या तुम गणित शिक्षक के कहने पर अपनी इस इच्छा को छोड़ दोगे,जो तुम्हारे अंदर से निकलना चाहती है? विद्यार्थी ने कहा नहीं,मुझे कितनी भी कीमत क्यों चुकानी पड़े,मुझे गणित सीखना है,पढ़ना है।गणितज्ञ ने कहा कि तुम किसी योग्य गणित शिक्षक से गणित पढ़ सकते हो या वेबसाइट्स,यूट्यूब पर वीडियो देखकर गणित का अभ्यास कर सकते हो।विद्यार्थी को यह बात समझ में आई।कुछ वर्षों बाद विद्यार्थी की मुलाकात से पता चला कि विद्यार्थी तनावग्रस्त नहीं था,प्रसन्न था।वह खुद कोचिंग सेंटर खोल चुका था और विद्यार्थियों को पढ़ाया करता था।
- विद्यार्थी की बात हम सबकी बात है।जो जीना चाहते हैं और जिनमें जीवन के प्रति अगाध निष्ठा है,उनके लिए तनाव एक चुनौती के रूप में आता है।ऐसे लोग तनाव से भयभीत नहीं होते,बल्कि उसे निकलकर कुछ नया एवं अच्छा करने की न केवल ठान लेते हैं,बल्कि कुछ नया करके दिखा देते हैं।ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं जिसमें महान व्यक्तियों को लोगों ने कटाक्ष,व्यंग्य एवं ताना देते थे।यदि वे उनकी बातें सुनकर निराश,हताश और उदास हो जाते तो महामानव नहीं बनते।वे घनघोर अभावों के बीच मस्त एवं प्रसन्न रहते थे।फिर उन्हें कभी तनाव ने नहीं घेरा।वे अपने काम में तल्लीन रहते और हर अभावों को साक्षी भाव से देखते थे।यही तनाव से मुक्ति का दिव्य उपाय भी है।
5.तनावमुक्ति के साधन (Means of Stress Relief):
- तनावमुक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन हैःभगवान के प्रति विश्वास।भगवान इस सृष्टि का रचनाकार है।सबका भरण-पोषण वही करता है।वह हमारा भी अवश्य करेगा,इसमें चिंता-तनाव नहीं करना चाहिए,केवल अपना पुरुषार्थ करना चाहिए।तनावमुक्त जीवन के लिए अभी से शुरुआत कर देनी चाहिए,अपनी सर्वश्रेष्ठ जिंदगी जीने के संकल्प के साथ,जहां हम तनाव के बगैर उस जीवन की ओर बढ़ें,जिसे हम हमेशा से जीना चाहते हैं।जीवन एक कला है और इस कला को बड़ी ही कुशलता के साथ जीना चाहिए।जिसे जीवन जीने की कला आ गई,वह कभी तनावग्रस्त नहीं हो सकता।
- तनावमुक्त जीवन के लिए जीवन में ऐसी छोटी चीजों की तलाश करनी चाहिए,जो हमें खुशी प्रदान करती है।जीवन में इन चीजों में बढ़ोतरी करनी चाहिए और उनसे बचना चाहिए,जो हमें तनाव देती हैं।संबंधों में भी खुशी बांटने का प्रयास करना चाहिए।इंसान की दुखती रग को न तो स्पष्ट करना चाहिए और न करने देना चाहिए।कोई यदि ऐसी तनाव वाली बात करें,तो भी शांत एवं चुप रहना चाहिए।जीवन में खुश एवं प्रसन्न रहने की कला सीखनी चाहिए,यही तनाव दूर करने का सर्वोत्तम माध्यम है।
6.विद्यार्थी तनावमुक्त कैसे हों? (How do students get stress-free?):
- अक्सर विद्यार्थी परीक्षा के निकट अध्ययन करते हैं या बिल्कुल अध्ययन नहीं करते हैं तो वे तनावग्रस्त होते हैं।जाहिर है ऐसे विद्यार्थी तनाव का कारण खुद ही होते हैं और खुद ही तनावमुक्त हो सकते हैं।ऐसे विद्यार्थियों को गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए।
- कुछ विद्यार्थी पिछले वर्षों में मिली असफलता,अनुत्तीर्ण होने के कारण भी तनावग्रस्त हो जाते हैं।कुछ विद्यार्थी अध्ययन करते रहने के कारण भी तनावग्रस्त हो जाते हैं।पढ़ा हुआ याद नहीं रहने के कारण,बार-बार पढ़ने पर भी याद नहीं रहना,परीक्षा में कैसा प्रश्न-पत्र आएगा इस भय के कारण तनावग्रस्त हो जाते हैं।शारीरिक एवं मानसिक दोष,किसी दुर्घटना के कारण भी तनावग्रस्त हो जाते हैं।परीक्षा के दबाव,कोर्स को पढ़ने का दबाव,परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने का दबाव,अव्वल आने का दबाव से भी विद्यार्थी तनावग्रस्त हो जाते हैं।
- इन सब समस्याओं का मूल कारण है छात्र-छात्रा की सही काउंसलिंग न कर पाना,व्यावहारिक व ज्ञानवर्धक,प्रेरक साहित्य का अध्ययन न करना और गलाकाट प्रतिस्पर्धा में शामिल हो जाना।माता-पिता व शिक्षक सही मायने में काउंसलर हों तो वे विद्यार्थी को सही गाइड कर सकते हैं और तनाव से मुक्त कर सकते हैं।केवल शिक्षक द्वारा विषय का ज्ञाता होने से ही काउंसलिंग नहीं की जा सकती है और न माता-पिता द्वारा बच्चों की आर्थिक आवश्यकताएँ,भोजन-पानी,रहने की सुविधा प्रदान करने से की जा सकती है।
- प्राचीन काल में माता-पिता,बड़े-बुजुर्ग और समाज के व्यक्ति आपस में धार्मिक कथाएं,प्रेरक कहानियों,अपने जीवन के ठोस अनुभवों और यथार्थों की बातें बताकर उनका (बच्चों का) चरित्र गढ़ते थे इसलिए वे तनावग्रस्त नहीं होते थे।आज के माता-पिता और शिक्षकों में इस कला का अभाव है।बच्चों का तनाव दूर करना तो दूर इसके विपरीत उनमें परीक्षा का भय दिखाकर,भविष्य बर्बाद होने का भय दिखाकर बच्चों पर दबाव डालते हैं जिससे बच्चे और अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं।
माता-पिता व शिक्षक उन्हें तनावमुक्त करने के लिए यह करें: - (1.)उन पर कटाक्ष,व्यंग्य न कसे एवं ताना ना दें।
- (2.)बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से न करें।
- (3.)बच्चा उदास,चिंतित,तनावग्रस्त दिखाई दे तो उसके प्रति सहानुभूति दिखाकर उसका मूल कारण जानना चाहिए और उसका समाधान करें।
- (4.)अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर कुछ समय बच्चों के साथ बिताना चाहिए।उनकी तकलीफों,समस्याओं को सुनना चाहिए और यथासंभव उनको हल करने का प्रयास करना चाहिए।
- (5.)परीक्षा की वजह से तनावग्रस्त हो,तो बच्चों को समझाएं कि परीक्षा को भी जीवन के अन्य कार्यों की तरह सहजता से लें और उसकी तैयारी सहज होकर करें,तनावग्रस्त होकर नहीं।
- (6.)बच्चों को धार्मिक,सत्साहित्य,ज्ञानवर्धक और व्यावहारिक ज्ञान की पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
- (7.)बच्चे कोई गलती करते हैं,लड़ाई-झगड़ा करते हैं तो उन्हें प्रेम से समझाएं,मारपीट कर नहीं।मारने पीटने से बच्चे ढीढ हो जाते हैं।
- (8.)बच्चों को अकेला ही अकेला न छोड़े,उनको कुछ समय अन्य बच्चों के साथ खेलने-कूदने दें,मनोरंजन करने दें,वार्तालाप करने दें।
तनाव से मुक्त होने के लिए बच्चे यह करें:
- (1.)दूसरे बच्चों के साथ स्वस्थ प्रतियोगिता करना तो ठीक है,परंतु मन में ईर्ष्या-द्वेष रखकर दूसरों से प्रतियोगिता न करें।
- (2.)अपने कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के साथ ही कुछ समय हाॅबी में देना चाहिए जिससे दिमाग का दायरा और सोच बढ़ती है।
- (3.)सत्साहित्य और ज्ञानवर्धक पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए।
- (4.)अच्छे मित्रों,विद्वानों,बड़े-बुजुर्गों के साथ सत्संग करना चाहिए।बड़े-बुजुर्गों के पास जीवन का तजुर्बा,ठोस अनुभव होते हैं जो हमें पुस्तकों और इंटरनेट से नहीं मिल सकता हैं।
- (5.)सोशल मीडिया,इंटरनेट,यूट्यूब चैनल और स्तरीय वेबसाइट्स को अपने लक्ष्य से संबंधित विषय सामग्री प्राप्त करने के लिए उपयोग करना चाहिए।
- (6.)अपने अध्ययन को डूब कर करें,अध्ययन को पूजा और आराधना समझकर करें।
- (7.)किसी भी समस्या के समाधान हेतु चिंता नहीं चिंतन व मनन करें।आवश्यक हो तो किसी की मदद लेने में ना झिझकें।
- (8.)परीक्षा की तैयारी सत्रारम्भ से रणनीति के साथ करें।यदि नहीं कर रहे हैं तो अब प्रारंभ कर देनी चाहिए।जब जागे तभी सवेरा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में तनावमुक्त जीवन शैली कैसे हो? (How to Have Stress-free Lifestyle?),तनावमुक्त कैसे हों? (How to Relax?) के बारे में बताया गया है।
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7.तनावमुक्त होने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to De-stress) (Humour-Satire):
- एक छात्र को कुछ सवाल हल करने के लिए दिए।छात्र ने चिंतित होकर सिर पकड़ लिया।
- गणित शिक्षक (छात्र से):तुम चिंतित और तनावग्रस्त हो रहे हो।
- छात्रःसर,आपने सवाल न मालूम कहां से उठाकर दिए हैं।तनावग्रस्त ना हो होऊँ तो क्या प्रसन्न होऊँ।
- गणित शिक्षकःअरे! सवालों को हल करने से तो तनाव से मुक्ति मिलती है।दिमाग खुलता है।
- छात्र:सर,आप मेरी जगह होते तो पता चलता,इन सवालों में ऐसा कौन सा टॉनिक है जो तनावमुक्त करता है।
8.तनावमुक्त जीवन शैली कैसे हो? (Frequently Asked Questions Related to How to Have Stress-free Lifestyle?),तनावमुक्त कैसे हों? (How to Relax?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.परीक्षा के दिनों में छात्र तनावग्रस्त क्यों जाते हैं? (Why do students get stressed on exam days?):
उत्तर:परीक्षा के दिनों में खेलना भी बंद हो जाता है।उस पर मम्मी-पापा की डांट,पढ़ो-पढ़ो परीक्षाएं सिर पर है।अमुक बच्चा कितना पढ़ रहा है;आदि-आदि।इससे बच्चों को तनाव नहीं होगा,तो क्या होगा।
प्रश्न:2.माता-पिता बच्चों को परीक्षा के दिनों में क्या-क्या कहते हैं? (What do parents say to their children on exam days?):
उत्तर:बच्चों को टोकते हुए वे कहते हैं बेटा पढ़ लो।नहीं तो नंबर कम आएंगे,कहीं फेल न हो जाना।अच्छे नंबर नहीं लओगे तो अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं मिलेगा अथवा श्रेणी अच्छी नहीं आएगी।
प्रश्न:3.बच्चों को तनाव मुक्त करने का श्रेष्ठ साधन क्या है? (What is the best way to de-stress children?):
उत्तर:बच्चों की सही काउंसलिंग करके उसे रचनात्मक कार्य में लगाना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा तनावमुक्त जीवन शैली कैसे हो? (How to Have Stress-free Lifestyle?),तनावमुक्त कैसे हों? (How to Relax?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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