How Do Thoughts Rise and Fall?
1.विचार कैसे उठाते और गिरते हैं? (How Do Thoughts Rise and Fall?),सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का प्रभाव (Influence of Positive and Negative Thoughts):
- विचार कैसे उठाते और गिरते हैं? (How Do Thoughts Rise and Fall?) विचार दो प्रकार के होते हैं:सकारात्मक और नकारात्मक विचार।सकारात्मक विचार हमें ऊपर उठाते हैं तो नकारात्मक विचार हमें नीचे गिराते है।अतः जैसे विचारों का हम पोषण करते हैं वैसे ही बनते हुए चले जाते हैं।विचारों में बहुत शक्ति होती है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:How to Control Students Their Thoughts?
2.सकारात्मक और नकारात्मक विचारों में शक्ति (Power in Positive and Negative Thoughts):
- विचार मानव जीवन के उत्कर्ष एवं अभ्युदय का आधार है विधेयात्मक विचार से जीवन शक्तिपुंज हो उठता है। विचार एक संसाधन है,जिसे नियंत्रित,संयमित एवं उपयोगी बनाकर जीवन में अनेक चमत्कार एवं आश्चर्यजनक परिणाम उत्पन्न किये जा सकते हैं।जो इनके प्रभाव-परिणाम से परिचित होते हैं,इनका उपयोग कर असंभव रहे चुनौतीपूर्ण कार्यों को भी संभव व सरल बना लेते हैं,परंतु विचारशक्ति की महिमा से अपरिचित-अनभिज्ञ व्यक्तियों को हेय एवं उपेक्षित जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता है।विचार हमारे व्यक्तित्व की रचना करते हैं एवं चरित्र का निर्माण करते हैं,जो जीवन की सर्वाधिक प्रकाशपूर्ण पूंजी है।
- विचार चाहे कोई भी हों,अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों विचारों में शक्ति विद्यमान होती है।नकारात्मक विचार हमारी संवेदनशील संभावनाओं को समाप्त करते हैं,आंतरिक क्षमताओं को नष्ट करते हैं;जबकि सकारात्मक विचार इन क्षमताओं और संभावनाओं को नई ऊंचाइयां प्रदान करते हैं।मन:चिकित्सक डॉक्टर जार्ज आर० बैच ने निषेधात्मक विचारधारा को मनुष्य का सबसे बड़ा आंतरिक शत्रु बताया है।अपनी प्रसिद्ध कृति ‘दि इनर एनिमि’ में उन्होंने उल्लेख किया है कि संसार में इससे बढ़कर नुकसानदेह दुश्मन और कोई नहीं।बाहरी शत्रु तो आज हमारे शारीरिक एवं आर्थिक-क्षेत्र को ही नुकसान पहुंचाते हैं,परंतु यदि सतर्क,सजग एवं सावधान रहा जाए तो इनसे दो-दो हाथ किए जा सकते हैं-निपटा जा सकता है।परंतु आंतरिक शत्रु की घात गहरी होती है,क्योंकि ये अंतराल में पनपने वाले,मन-मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने वाले हेय एवं निकृष्ट विचार ही हैं।
- जीवन के प्रति असावधान व्यक्ति,आलस्य-प्रमाद में जीवन बिताने वाले,न तो इस गुप्त शत्रु को पहचान पाते हैं और ना इसे बचने का या पीछा छुड़ाने का प्रयत्न ही कर पाते हैं।डॉक्टर बैच ने इसे ‘हैंडसम डेविल’ के नाम से संबोधित किया है,क्योंकि यह सुंदर-लुभावने सपने दिखाने और अपने मोह-पाश में फंसाकर अंततः सड़न के गर्त में धकेल देते हैं।नकारात्मक विचारों की शक्ति एवं आवृत्ति अत्यंत सघन एवं शक्तिशाली होती है।ऐसा होने का कारण है,इन विचारों को सतत पोषण मिलना। हर नकारात्मक सोच एवं विचार अंतरिक्ष में फैली इसकी प्रबल नेटवर्किंग को मजबूती प्रदान करते हैं।अतः सभी समवेत नकारात्मक एवं निषेधात्मक चिंतन मिलकर एक चुंबकीय विचार-क्षेत्र का निर्माण करते हैं और उसके स्पर्श मात्र से शक्ति नकारात्मक विचारों के इन चक्रवातों में फंसकर रह जाता है और छटपटाता रहता है। मनोवैज्ञानिक सभी मनोविकारों के पीछे इन विचारों को जिम्मेदार ठहराते हैं।पौराणिक आस्थाओं में इस विचार-प्रक्रिया को दैत्य की श्रेणी में रखा गया है।
- नकारात्मक विचार बड़े ही आकर्षक एवं मनोहरी होते हैं।इनकी आवृत्ति की प्रबलता के कारण उनके गिरफ्त में आने वाले व्यक्ति इसी जाल में उलझे रहना ज्यादा पसंद करते हैं।इससे उबरने और पार पाने की वे सोच भी नहीं पाते।नकारात्मक सोच ऐसी है,जैसे सुंदर-श्वेत वस्त्र पर कालिख का गिर जाना।यह विचार हमारी अंकुरित नवीन योजनाओं,सृजनशील संवेदनाओं को नष्टप्राय कर देते हैं।सतत हेय सोच से हमारे अवचेतन में इसकी गहरी छाप पड़ जाती है और कालांतर में यही आदतें संस्कारों में शुमार हो जाती हैं और व्यक्ति ऐसी सोच को सोचने एवं आचरण में उतारने को विवश एवं मजबूर हो जाता है।अनचाहे वह ऐसी काली एवं निकृष्ट सोच से भर जाता है कि कभी भी उससे उबर नहीं पाता है।जैसे सुअर को दुर्गंध की कीच में सने हुए पड़े रहना अच्छा लगता है,उसी प्रकार उसे भी निष्कृष्ट विचारों के संसार में बड़ा ही सुकून अनुभव होता है।काम,वासना,ईर्ष्या,द्वेष,निंदा आदि से संबंधित विचार इसी कोटि में आते हैं।
3.विचारों का निवास (The Abode of Ideas):
- मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि विचारों का निवास चेतन मस्तिष्क और संस्कारों का आवास अवचेतन मस्तिष्क में होता है।चेतन मस्तिष्क प्रत्यक्ष और अवचेतन मस्तिक अप्रत्यक्ष अथवा गुप्त होता है।यही कारण है कि कभी-कभी विचारों के विपरीत क्रियाएं हो जाया करती हैं।व्यक्ति देखता है कि उसके विचार अच्छे और सदाशयी हैं,तब भी उसकी क्रियाएं इन विचारों के विपरीत हो जाया करती हैं।इस रहस्य को न समझ पाने के कारण कभी-कभी वह बड़ा व्यग्र,व्यथित एवं परेशान हो उठता है।विचारों के विपरीत कार्य हो जाने का रहस्य यही होता है कि मनुष्य की क्रियाप्रवृत्ति पर संस्कारों का प्रभाव रहता है और गुप्त मन में छिपे रहने से उनका पता नहीं चल पाता है।संस्कार विचारों को व्यर्थ कर अपने अनुसार मनुष्य की क्रियाओं को प्रेरित कर दिया करते हैं।
- मानव मन के मर्मज्ञ लिंडजे का शोध अध्ययन ‘थॉट एंड पर्सनैलिटी’ स्पष्ट करता है कि कोई-कोई विचार ही तात्कालिक क्रिया के रूप में प्रतिष्ठित हो पाता है।अन्यथा मनुष्य के वे विचार ही क्रिया के रूप में परिणत होते हैं,जो प्रौढ़ होकर संस्कार बन जाते हैं।वे विचार जो जन्म के साथ ही क्रियान्वित होकर अपने प्रभाव-परिणाम से अवगत करा देते हैं,प्रायः संस्कार जाति के होते हैं।बचपन में धार्मिक रुझान या उपद्रव आदि करना इसी की ओर संकेत करता है।संस्कारों से भिन्न तात्कालिक विचार कदाचित ही क्रिया में बदल पाते हैं,केवल संस्कार के रूप में परिपक्व होने पर ही,ये अपने प्रभाव डाल पाते हैं।संतुलित तथा प्रौढ़ मस्तिष्क वाले व्यक्ति अपने अवचेतन को पहले से ही ऐसा बनाए रहते हैं कि अपने तात्कालिक विचारों को सकारात्मक स्वरूप दे देते हैं।
- यौगिक मान्यता है कि योगी का विचार ही उसका कर्म बनता है।अबूझ-सी लगने वाली यह पहेली यथार्थ है।यह अबूझ लगती है,क्योंकि विचार जब आचरण में उतरते हैं तो कर्म बनते हैं।यहाँ तो विचार कर्म बने बगैर कर्म से रूपाकार हो जाते हैं,इसके पीछे विचारों में शक्ति का सन्निहित होना है।योगी के पास अपने तपोबल से एकत्रित ऊर्जा एवं शक्ति का बड़ा भंडार होता है।यह ऊर्जा जब विचारों के माध्यम से निस्सृत होती है तो कर्म से भी तीव्रगति से क्रियान्वित होने लगती है।संकल्पपूर्वक विचारों को इच्छित दिशा में लगाने पर ये इच्छानुरूप परिणाम देते हैं।यही है,आशीर्वाद एवं अभिशाप का वैचारिक विज्ञान,जो कर्म के समान परिणाम प्रदान करता है।
- विचारों की ऊर्जा सघन हो एवं इसकी गुह्य तकनीक का ज्ञान हो तो एक साथ इन विचारों से अनगिनत लोगों का भला भी किया जा सकता है।योगी एक समय में अलग-अलग स्थान पर रहने वाले लोगों के कष्ट-पीड़ा का निवारण करता है और यह एक अनुभवी की सच्चाई है।इसके पीछे वैचारिक सामर्थ्य एवं शक्ति का ही चमत्कार है।विधेयात्मक विचारों के माध्यम से इस प्रक्रिया का प्रारंभ होता है।इसे कोई भी व्यक्ति संपन्न कर सकता है,बशर्ते कि उसके विचारों की सामर्थ्य एवं ऊर्जा आपूरित हो।
- विधेयात्मक विचार-प्रक्रिया को अपनाकर सामान्य व्यक्ति से योगी के स्तर पर,आश्चर्यजनक एवं चमत्कारिक स्तर पर पहुंचा जा सकता है।प्रगति एवं व्यक्तित्व की प्रखरता का सूत्र ‘सादा जीवन व उच्च विचार’ में ही निहित है।विश्व प्रसिद्ध लेखक डॉ० वेने डायर ने ‘दि स्काई इज दि लिमिट’ नामक कृति में विचारणा की इस श्रेष्ठतम स्थिति को ‘उत्कृष्ट प्रामाणिक चिंतन’ के नाम से संबंधित किया है और इस तरह की विचार-प्रक्रिया को अपनाने वाले व्यक्ति को ‘नो लिमिट पर्सन’ अर्थात् असीम एवं असाधारण व्यक्तित्व संपन्न माना है।ऐसे व्यक्ति सामान्य जनों की अपेक्षा अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं ढूंढने तथा अपने बारे में निर्णय ले सकते की क्षमता से पूर्ण होते हैं और साथ ही परिस्थितियों के अनुरूप मन:स्थिति को ढालने की कला में पारंगत एवं प्रवीण होते हैं।
4.सकारात्मक सोचने के सरल उपाय (Simple Ways to Think Positively):
- यह कला आए कैसे? किस विधि से सामान्य जन भी इस क्षमता को आचरण में उतार सकते हैं।इस संदर्भ में प्रसिद्ध लेखक वैस वीविस ने अपनी ख्यातिप्राप्त कृति ‘आप भी बन सकते हैं अपने सपनों का इंसान’ में सकारात्मक सोचने के कई सरल एवं प्रभावपूर्ण सूत्र दिए हैं।वह कहते हैं कि टूटी हुई हड्डियां तो जल्दी स्वस्थ हो जाती हैं,परंतु दिल एवं घायल विचार को अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है।वस्तुतः हम शाब्दिक आक्रमण के नासूर एवं घाव को दीर्घ अंतराल तक अपने साथ सहेज-संभाल कर रख लेते हैं।अपनी स्मरणशक्ति में इन हानिकारक आक्रमणों को स्थान देकर,इन्हें इतना बलशाली बनाते हैं कि यह बारम्बार हमें चोट पहुंचाते रहें।हमें सबसे पहले स्मरणशक्ति में इन विचारों को विधेयात्मक विचारों द्वारा विदा करना चाहिए।
- प्रकृति प्रतिदिन हमारे मन-मस्तिष्क में टनों नकारात्मक सूचनाओं और विचारों की बमबारी करती है।किसी व्यक्ति,परिस्थिति,घटना एवं एकाकीपन में भी यह भीषण त्रासदी घटती रहती है।इसे बचने-हटने का एकमात्र उपाय है कि इसे अपने मन-मस्तिष्क में स्थान देने,संबंध बनाने एवं ‘जरा ठहरो इनका मजा ले लें,जैसी मानसिकता से बचना चाहिए।प्रकृति के इन विध्वंसात्मक विचारों को छानकर हानिरहित-प्रभावी विचारों को स्थान देना चाहिए।
- हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है कि वह अपने मन-मस्तिष्क की सामर्थ्य का सदुपयोग करे।आपको क्या सोचना-विचारना है,यह चयन क्षमता,निर्णय एवं कुशलता के ऊपर निर्भर करता है और इसे आपको ही चुनना,विश्लेषण करना है।जब आप सकरात्मक तथ्यों,घटनाओं पर विचार करने का निर्णय लेते हैं तो इससे आपका चिंतन उत्कृष्ट होता है और आप शक्ति एवं ऊर्जा के असीम भंडार से जुड़ जाते हैं।अनायास अनेक सृजनशील योजनाएं बनने लगती है,परंतु जब आप उन घटनाओं या व्यक्तियों के बारे में सोचते हैं,जिनसे आपको बेचैनी होती है तो शक्ति का ह्रास होता है और सृजनशील ऊर्जा का भंडार चुकने लगता है।अतः जो मन को सुकून दे,उसे सोचना चाहिए और जो बेचैन-परेशान करे,उसे बचना चाहिए।
- मस्तिष्क को उन विचारों पर मंथन करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए,जो एक सकारात्मक मानसिक अवस्था में होते हैं।नकारात्मक सोच अवनति एवं पतन के मार्ग पर ले जाती है,इसलिए उसके चिंतन से दूर रहना चाहिए।इसका सबसे सरलतम उपाय है कि आप स्वयं से पूछें कि जो विचार आपके अंदर उठ रहा है या उसे उठने दे रहे हैं,क्या आपको अपने इच्छित एवं अभीष्ट लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है या नहीं? यदि आप सोचते हैं कि ऐसा नहीं हो रहा है तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप व्यर्थ समय एवं ऊर्जा की बर्बादी और घाटे का सौदा कर रहे हैं।हमें सदैव श्रेष्ठ,शुभ एवं मंगलमय चिंतन करना चाहिए,जिससे व्यक्तित्व निखर उठे,सुवासित हो।
5.छात्र-छात्राएँ सकारात्मक कैसे सोचें? (How do students think positively?):
- छात्र-छात्राओं को हमेशा सकारात्मक सजेशन देना चाहिए।जब आप मन को सकारात्मक सजेशन देने का अभ्यास करते हैं तो धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों से मुक्त होने लगते हैं।उदाहरणार्थ आपके मन में यह नकारात्मक विचार आकार ले रहा है कि गणित का पाठ्यक्रम इस बार बहुत कठिन है,गणित के सवाल हल नहीं पर हो पा रहे हैं,पता नहीं परीक्षा में उत्तीर्ण हो पाऊंगा या नहीं अथवा पता नहीं अच्छे अंक प्राप्त कर पाऊंगा या नहीं।
- इस प्रकार के नकारात्मक विचार को इस प्रकार परिवर्तित करें कि पिछली कक्षाओं में भी जब प्रवेश लिया था तो उस समय गणित के सवाल कठिन लग रहे थे परंतु सत्रारम्भ से ही जब मैंने गणित के सवालों को हल किया,उनका रिवीजन किया,पिछले वर्ष के प्रश्न-पत्रों को हल किया,मॉडल पेपर्स को सॉल्व किया,मॉक टेस्ट दिया,प्रैक्टिस सेट हल किये तो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ,अनुत्तीर्ण नहीं हुआ।इस बार भी मैं अच्छी तरह से गणित का अभ्यास करूंगा,जहां-जहां कठिनाई आती है उनका रिवीजन के द्वारा,उपर्युक्त पेपर्स को हल करके गणित में निपुण होऊँगा।
- दूसरा उपाय यह है कि कभी भी फालतू की बातें ना करें,कुछ समय मनोरंजन के लिए ठीक है परंतु ऐसी आदत न बनाएं कि आप अपने समय को बर्बाद करने वाले काम करें।फालतू,बेकार,समय बर्बाद करने वाले काम करने से हमारे अंदर नकारात्मकता का प्रवेश हो जाता है और धीरे-धीरे नकारात्मकता हमारे मन में जड़ जमा लेती है।अपने आपको कोर्स की पुस्तकें पढ़ने,सत्साहित्य पढ़ने,व्यावहारिक तौर-तरीके सीखने वाली पुस्तकों का अध्ययन करने में व्यस्त रखें।
- नकारात्मक लोगों,दुर्जनों के साथ सत्संग न करें।हमेशा सकारात्मक विद्यार्थियों व लोगों,सज्जनों,श्रेष्ठ पुरुषों के साथ सत्संग करें।उनके साथ ही मेलजोल बढ़ाएं,अपनी कोई समस्याएँ हों,परेशानी हों तो उनको बताएं,उनके साथ साझा करें और उनका समाधान प्राप्त करने का प्रयास करें।तुलसीदास जी ने कहा है कि ‘बिन सत्संग विवेक ना होई।राम कृपा बिना सुलभ न सोई।।अर्थात् सत्संग के बिना विवेक जागृत नहीं होता परंतु सत्संग भी भगवत कृपा (अच्छे व श्रेष्ठ पुरुषों के आशीर्वाद) से ही प्राप्त होता है।
- अध्ययन करने,स्वाध्याय करने के बाद पढ़े हुए चैप्टर,पाठ,विषयवस्तु आदि पर चिंतन-मनन भी करें,ताकि आपका मस्तिष्क रचनात्मक बन सकें,मस्तिष्क व बुद्धि का विकास हो सके।पढ़े हुए चैप्टर पर जब हम मनन-चिंतन नहीं करते तो मस्तिष्क में जंग लग जाती है,बुद्धि ठस रह जाती है,बौद्धिक बल नहीं बढ़ता है।
- हमेशा शुभ,हितकारी,मंगलमय बातों के बारे में ही विचार करें।धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती जाएगी और नकारात्मकता खत्म होती जाएगी।विद्यार्थी जीवन में कुछ भी सीखना,करना,मनन करना,अच्छी आदतों का विकास करना सरल होता है।जप,तप,ध्यान,उपासना-आराधना,पूजा-पाठ आदि में रोजाना कुछ समय देने से पॉजिटिविटी बढ़ती है।
- अगला बिंदु है अभ्यास और वैराग्य अर्थात् अच्छे कार्यों को करने,अध्ययन करने आदि का बार-बार अभ्यास करें और बुरे विचारों से विरक्ति रखें।इस प्रकार अभ्यास और वैराग्य से सकारात्मक विचार करना और नकारात्मक विचारों को त्यागना संभव हो जाता है।सकारात्मक विचारों से हमारी दिशा और दशा दोनों सुधरती है।आप बिंदु संख्या चार (4) में बताए गए उपाय और उपर्युक्त उपायों में कुछ उपायों पर अमल करेंगे तो सकारात्मक विचार आपके जीवन का अंग बन जाएंगे,फिर आपको नकारात्मक विचार करना अच्छा ही नहीं लगेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में विचार कैसे उठाते और गिरते हैं? (How Do Thoughts Rise and Fall?),सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का प्रभाव (Influence of Positive and Negative Thoughts) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:3 Tips to Improve Thinking by Students
6.क्या सोचता होगा? (हास्य-व्यंग्य) (What Would You Think?) (Humour-Satire):
- संजू:अनपढ़ लड़के-लड़की छात्र-छात्राओं को देखकर क्या सोचते होंगे?
- राजू:यही सोचते होंगे कि काश ये छात्र-छात्राएं भी हमारी तरह अनपढ़ होते तो हमारे बराबर हो जाते।
7.विचार कैसे उठाते और गिरते हैं? (Frequently Asked Questions Related to How Do Thoughts Rise and Fall?),सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का प्रभाव (Influence of Positive and Negative Thoughts) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.सफलता में सकारात्मक विचारों का क्या योगदान है? (What is the role of positive thinking in success?):
उत्तर:सकारात्मक विचार करना सफलता की ओर बढ़ने का पहला कदम है।
प्रश्न:2.क्या हमेशा शत-प्रतिशत सकारात्मक ही सोचना चाहिए? (Should you always think 100% positively?):
उत्तर:यह ठीक है कि प्रतिस्पर्धा और तनाव भरे दौर में सकारात्मक सोच ही सफलता का मूल मंत्र है।हमेशा सकारात्मक सोचने का अभ्यास करने से ही सकारात्मक व्यक्तित्व बनता है।परंतु अति हर चीज की खराब होती है।अतः संतुलित सोच रखनी चाहिए।
प्रश्न:3.क्या नकारात्मक सोच को बदलना संभव है? (Is it possible to change negative thinking?):
उत्तर:नकारात्मक सोच को बदलने के लिए बहुत समय लगाकर प्रयास करना पड़ता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विचार कैसे उठाते और गिरते हैं? (How Do Thoughts Rise and Fall?),सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का प्रभाव (Influence of Positive and Negative Thoughts) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here | |
7. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.