Menu

How Do Sacraments Affects Us?

Contents hide

1.संस्कार हमें कैसे प्रभावित करते हैं? (How Do Sacraments Affects Us?),संस्कारों द्वारा प्रभावित होने से कैसे बचें? (How to Avoid Being Influenced by Rites?):

  • संस्कार हमें कैसे प्रभावित करते हैं? (How Do Sacraments Affects Us?) अर्थात संस्कारवश हम कर्म करते हैं और संस्कार अच्छे और बुरे दोनों हो सकते हैं।हमें बुरे संस्कारों से प्रभावित होकर कार्य करने से बचना चाहिए।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:How to Control Bad Habits?

2.संस्करों से कैसे प्रभावित होते हैं? (How are they affected by the sacraments?):

  • हमें एक बात ठीक से समझ लेना चाहिए कि जो संस्कार हम ग्रहण करते रहते हैं उनका प्रभाव हमारी मनोवृत्ति पर बहुत गहराई तक पड़ता है।हमारा अंतर्मन हमारे संस्कारों से न सिर्फ प्रभावित ही रहता है बल्कि निर्देशित और नियंत्रित भी रहता है।यही वजह है कि हमारे संस्कारों के विरुद्ध,कोई भी बात,कितनी ही अच्छी हो वह हमें ज्यादा प्रभावित नहीं करती।करती भी है तो मरघटिया वैराग्य की तरह थोड़ी देर के लिए करती है,हमें लगता भी है कि बात तो ठीक है पर थोड़ी देर बाद हमारे पुराने संस्कार जोर मारते हैं और हमें एहसास होता है कि नहीं बात ठीक नहीं थी।बात तो वही ठीक है जो हमें रुचि कर लगे।हमें अपने द्वारा किए गए गलत कामों पर तब तक मलाल नहीं होता जब तक उनके दुष्परिणाम सामने नहीं आते बल्कि मन में यही कसक रहती है कि कुछ वैसा ही और कर लिया जाता।मन की लालसा कभी मिटती नहीं।
  • संस्कार का अर्थ होता है कि जो कर्म हम कर चुकते हैं उसकी अंतर्मन पर छाप।जैसे पानी बहता है तो बह चुकने के बाद जो सूखी रेखा बन जाती है उसे संस्कार कहते हैं।अब पानी दुबारा गिरेगा तो बहुत संभव है कि वह उसी सूखी रेखा के मार्ग को अपनाएगा।इसी प्रकार हम जो कर्म करते हैं वे कर्म हमारे संस्कारों से प्रभावित और नियंत्रित होते हैं।
  • कोई भी व्यक्ति संस्कारों से प्रभावित होकर अच्छे कर्म करता है तो उन संस्कारों को बदलने की जरूरत नहीं होती है परंतु जो बुरे संस्कारों से प्रभावित होकर बुरे कर्म करता है उन्हें बदलने की जरूरत होती है।जब हम संस्कारों से प्रभावित होकर कर्म करते हैं तो वे संस्कार और अधिक मजबूत होते चले जाते हैं।इसलिए कुकर्म करने वाले कुकर्म करना नहीं छोड़ते,उसी प्रकार भले आदमी अच्छे कर्म करना नहीं छोड़ते।अतः कर्म से अधिक संस्कारों का महत्त्व है क्यों कर्म संस्कारों से प्रभावित और नियंत्रित रहते हैं।
  • कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो अपने साथ पिछले जन्म और जन्मों-जन्मों के संस्कार लेकर जन्म लेता है।हम जिस तरह की संगति में रहते हैं,जिस तरह के वातावरण में रहते हैं वैसे ही संस्कार जाग जाते हैं उन्हीं के अनुसार हमारा व्यक्तित्व निर्मित होता चला जाता है।हर बच्चा जो वृत्तियों (tendencies) का प्रभाव शेष रह गया है,उनको लेकर जन्मता है।इसलिए हर बच्चा दूसरे से अलग होता है।हमारा पूरा जीवन हमारे संकल्पों के कारण गतिशील है।जैसा हमारा शुभ-अशुभ संकल्प होगा वैसा ही हमारा आचरण होगा।जैसा हमारा आचरण होगा वैसे हमारे संस्कार बनते चले जाएंगे।पूर्व कर्म के संस्कार और वर्तमान समय के संस्कार हमारे संकल्पों को प्रभावित,संचालित और नियंत्रित करते रहते हैं।जब तक हम इन सबको बदल डालने का दृढ़ संकल्प नहीं कर लेते और वैसा आचरण नहीं कर सकते जैसा करना जरूरी होता है तब तक हम अपना स्वभाव बदल नहीं सकते।

3.बुरे संस्कारों से प्रभावित होने से कैसे बचें? (How to avoid being influenced by bad sanskars?):

  • यह बात तो समझ आ गई होगी कि प्रकृति हमें एक अबोध शिशु के रूप में जन्म देती है और यह प्रकृति की महान कृपा है कि वह हमारे पिछले जन्म-जन्मान्तर की स्मृति को सुप्त करके हमें स्वस्थ,स्वाभाविक,सुख-दुःख से परे आनंद की स्थिति में जन्म देती है वरना हम शायद पैदा होते ही वे सब खोटे कर्म करना शुरू कर देते जो पिछले जन्म में करते रहे हों या जो बड़े होकर करने लग पड़ते हैं।लेकिन बालक जब तक अबोध अवस्था में रहता है तब तक तो ठीक,पर जैसे-जैसे उसे दुनियादारी की हवा लगती है,साथ-संगत मिलता है,जैसे वातावरण में रहता है वैसे-वैसे उसकी मननशीलता की दशा और पद्धति बदलने लगती है।वह अपने जैसा न रहकर दूसरों जैसा होने की कोशिश करने लगता है और आगे चलकर दूसरों से भी आगे निकल जाने की होड़ व आपाधापी में जुट जाता है।बस,यहीं वह प्रकृति और स्वभाव से,प्राकृतिक और स्वाभाविक स्थिति की राह से भटक जाता है और इस तरह भटकता है कि उसे खुद तो सही राह सूझती नहीं बल्कि उसे यदि दूसरा कोई सही राह बताए,यह समझाए कि वह गलत राह पर भटक गया तो भी वह मानने को राजी नहीं होता।वह सही को पहचानने और मानने की क्षमता खो देता है।इसे ही पथ-भ्रष्ट-बुद्धि कहते हैं।
  • विद्यार्थियों में भी कुछ विद्यार्थी इसीलिए नकल करने,परीक्षा प्रश्न पत्र चोरी करने,डमी कैंडिडेट बिठाकर परीक्षा दिलाने,अंक तालिका में घूस देकर अंक बढ़वाने आदि कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।एक बार संस्कारवश,वातावरण,संगी-साथी की वजह से जब वे ऐसा करने लगते हैं तो उनके वैसे ही संस्कार मजबूत होते चले जाते हैं।फिर वे अय्याशी करने,लूटपाट,लड़ाई-झगड़ा करने,शराब व मादक द्रव्यों का सेवन करने,हत्या,डकैती,अपहरण,बैंक डकैती आदि कार्यों को करने में कतई संकोच नहीं करते।जबकि कुछ विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं जो मेहनत करके सही उत्तर लिखकर परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रयास करते हैं।धीरे-धीरे उनके अच्छे संस्कार मजबूत होते चले जाते हैं।वे नेक,सदाचारी,विनम्र,विवेकवान,सद्बुद्धि धारण करने आदि गुणों को धारण करते चले जाते हैं।और एक न एक दिन वे कोई श्रेष्ठ गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष,खिलाड़ी,अध्यापक,प्राध्यापक,इंजीनियर आदि बनते हैं और उन पदों की शोभा बढ़ाते हैं।
  • अब बुरे संस्कारों को कैसे बदलें क्योंकि वे मजबूत होते चले गए हैं।इसके लिए स्टेप-बाय-स्टेप धीरे-धीरे हमें बुरी आदतों,बुरे कर्मों को करना छोड़ना होगा।इसके लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है।लेकिन अच्छे कार्य करने का दृढ़ संकल्प विद्यार्थी करेगा ही क्यों? बुरे परिणामों को भुगतने से उसे यह समझ आ जाती है कि इनको छोड़ने में ही भलाई है।परंतु मजबूत संस्कारों से पीछा छुड़ाना विद्यार्थी या व्यक्ति के वश की बात नहीं है।इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि बचपन से ही बच्चों को अच्छे नियम-संयम,ब्रह्मचर्य का पालन,अनुशासन का पालन,सद्बुद्धि से कार्य करने की सीख दी जाती है।क्योंकि मजबूत संस्कारों को बदल पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।सुदृढ़ संकल्प से हम ऐसी वृत्ति को तत्काल बदल सकते हैं क्योंकि यह सिर्फ कर्मों की मन पर एक छाप है जिसे मिटाना है।हम पुराने संस्कारों से बंधे हुए हैं सिर्फ हमको नए संस्कारों (अच्छे) से जोड़ देने की जरूरत है और हमारी गलत दिशा की यात्रा बदल जाती है।इन संस्कारों को दृढ़ संकल्प से बदल सकते हैं और संकल्प की शुरुआत ही इस बात से होती है कि जब यह ख्याल आ जाए कि आप अपने को बदल सकते हैं तो यह ख्याल ही बदलाहट की बुनियाद बन जाता है लेकिन अगर यह ख्याल आ जाए कि बदलाहट नहीं हो सकती है,यह तो कर्मों का फल है तो हाथ-पैर ढीले पड़ जाते हैं।दरअसल जिंदगी की ऊर्जा आपके ख्यालों से उठती और गिरती है।दृढ़ संकल्प के साथ स्वाध्याय,सत्संग,अध्ययन,मनन-चिंतन भी सही दिशा में हो,सही कार्यों की तरफ कर दी जाए तो आपका रूपांतरण हो जाएगा,कायाकल्प हो जाएगी और आप एक आदर्श विद्यार्थी बन जाएंगे।

4.संस्कारों का दृष्टांत (The Illustration of the Sacraments):

  • एक विद्यार्थी को जेल की सजा हो गई।उसके मित्र-परिजन उससे जेल में मिलने गए।सब तरफ मायूसी और मातम का माहौल था।उस विद्यार्थी का एक अभिन्न मित्र भी वहाँ था,लंगोटिया यार,उसके पास ही खड़ा था।उसने सोचा मेरे दोस्त ने अय्याशी,मौज-मजा करने,चोरी,लूटपाट आदि करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी,अब जेल में उन सभी संगी-साथियों से पीछा छूट जाएगा तो उसके साथ खोटे कर्म करते थे,वातावरण से भी पीछा छूट जाएगा।यहाँ जेल में एकांत में रहेगा तो इन खोटे कर्मों को करने के संस्कार छोड़ सकता है,ऐसा अभ्यास करेगा तो।वरना जेल से छूटने ही फिर वही खोटे कर्म करेगा और जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी।
  • उसने बड़ी आत्मीयता के लहजे में दोस्त से कहा कि यह बदलाहट का वक्त है।जेल में बुरी आदतों,बुरे संस्कारों को छोड़ने का संकल्प लेकर अच्छे कर्म करने का मौका है,पश्चाताप करने का स्थान है अतः भगवान से क्षमा करने की प्रार्थना करो।मुझे विश्वास है कि तुम पश्चाताप जरूर करोगे और इन खोटे कर्मों को करना छोड़ दोगे।उस विद्यार्थी ने कहा कि यह विद्यार्थी जीवन किस तरह गुजर गया,मालूम ही नहीं पड़ा।मेरे से थोड़ी-सी चूक हो गई,यदि वह चूक नहीं होती तो मैं पकड़ा नहीं जाता।मुझे पश्चातप तो हो रहा है पर उन कामों के लिए नहीं जो मैंने विद्यार्थी जीवन में किए।मुझे तो पश्चाताप इस बात का है कि मेरी थोड़ी-सी चूक से मैं पकड़ा गया और जिंदगी में ऐशोइशरत (अय्याशी,खोटे कर्म) के बहुत से काम करना बाकी रह गए।
  • इस प्रकार के ख्याल वाले विद्यार्थी जीवन में कैसे सुधर सकते हैं।मनुष्य स्वचालित ही नहीं स्वेच्छचालित भी है।स्वचालित इसलिए है कि हम संस्कारवश कर्म करते रहते हैं परंतु हमारी स्वतंत्र इच्छाशक्ति भी है जो हमारे अंदर बड़ा रूपांतरण कर सकती है।दुनिया की कोई भी मशीन स्वेच्छाचालित नहीं हो सकती है क्योंकि उसमें प्राण नहीं,मन नहीं लिहाजा स्वेच्छा भी नहीं हो सकती।इस प्रकार हमारा शरीर मशीन से बहुत श्रेष्ठ है क्योंकि वह स्वचालित ही नहीं स्वेच्छाचालित भी है।लेकिन हमारी यह खूबी हमको ले डूबी।हमारी इस विशेषता ने ही हमको नाना प्रकार की उलझनों,मुसीबतों और संकटों में फंसा रखा है क्योंकि दिलोदिमाग से पैदा होने वाली चाहत और इच्छाएँ हमसे वह करवा लेती है जो हमारे लिए विपत्तिकर और अहितकर होता है और हम सिर्फ यह कहते रह जाते हैं कि क्या करें संस्कारों और आदतों से मजबूर है।
  • दुर्व्यसन रूपी आपत्ति में फंसना हमारे स्वेच्छाचालित होने के कारण होती है हमारी इच्छाएं क्योंकि हमारी सभी चेष्टाएं और गतिविधियां हमारी इच्छाओं से प्रेरित,प्रभावित और संचालित होती है।इच्छा ना हो तो कोई चेष्टा भी ना हो।और इन इच्छाओं का हमारी आदतों,संस्कारों से बड़ा गहरा संबंध होता है बल्कि कुछ अंशों में इनमें अन्योन्याश्रय संबंध (एक दूसरे पर निर्भर होना) भी होता है।
  • उस विद्यार्थी के संस्कार फिर से न बदले जाएं,उसकी जो आदत पड़ चुकी है उसके विपरीत आचरण का लगातार वैसा ही अभ्यास न कराया जाए जैसा उसने उस दुर्व्यसन को सीखते समय किया था और अपनी प्रकृति के विरुद्ध लगातार अभ्यास करके उस लत की आदत डाली थी तब तक उसको वह छोड़ कैसे सकेगा।उसकी आदत उसके मन में वैसा ही करने की इच्छा पैदा करेगी जिसका वह आदी हो चुका है और इच्छा वैसा ही चेष्टा करने की प्रेरणा देगी जैसा वह चाहती है लिहाजा वह व्यक्ति फिर उसी राह पर चल पड़ेगा जिस पर वह चलने का आदी हो चुका है।उस पर चलने से उसे कोई रोक नहीं सकेगा क्योंकि जो रोक सकता था वह था उसका विवेक,लेकिन विवेक आदत से मजबूर होकर विवेक भी संस्कारों के दबाव से दब जाता है,विवश और निष्क्रिय हो जाता है।अतः विवेक का साथ न छोड़े और हमेशा अच्छी संगति में रहें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में संस्कार हमें कैसे प्रभावित करते हैं? (How Do Sacraments Affects Us?),संस्कारों द्वारा प्रभावित होने से कैसे बचें? (How to Avoid Being Influenced by Rites?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Influence of Habits in Study of Maths

5.छात्र के संस्कार (हास्य-व्यंग्य) (Rituals of Student) (Humour-Satire):

  • जज (अपराधी छात्र से):वादा करो कि आगे से कभी नकल नहीं करोगे।
  • अपराधी छात्रःमैं वादा करता हूं कि आगे से कभी नकल नहीं करूंगा बल्कि पीछे से नकल करूंगा।
  • जज:ऐसा क्यों?
  • छात्र:जज साहिबा,मैं आपके इस क्यों का जवाब देने से डरता हूँ।क्योंकि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी०वी० नरसिंहाराव की लक्खूभाई ठगी मामले में कोर्ट में क्लास लगा दी (कोर्ट में पेश होना पड़ा)।संत रामदेव जी की क्लास लगा दी।अब दूसरे प्रधानमंत्री भी डरते हैं कि कहीं उन्हें बुलाकर कोर्ट रिपीटेशन न कर दें।इसलिए मुझे भी डर लगता है कि यदि मैं आपके क्यों का उत्तर दे दूँगा तो आगे से नकल करने पर पाबन्दी लगा दी,उसी तरह कहीं पीछे से नकल करने पर भी पाबन्दी न लगा दी जाये।

6.संस्कार हमें कैसे प्रभावित करते हैं? (Frequently Asked Questions Related to How Do Sacraments Affects Us?),संस्कारों द्वारा प्रभावित होने से कैसे बचें? (How to Avoid Being Influenced by Rites?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.माता-पिता द्वारा बच्चों में डाले गए संस्कार क्यों नहीं छूटते? (Why don’t the values instilled in children by parents be missed?):

उत्तर:जैसे कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तन में खींची गई रेखाएं फिर कभी नहीं छूटती,इसी प्रकार माता-पिता द्वारा डाले गए संस्कार बच्चों के मन से कभी नहीं छूटते।

प्रश्न:2.बचपन के डाले संस्कार क्यों नहीं छूटते? (Why don’t we miss the rituals inculcated in childhood?):

उत्तर:बचपन से डाले गए संस्कार हृदय में बद्धमूल हो जाते हैं अतः वे जीवन-पर्यन्त साथ नहीं छोड़ते।

प्रश्न:3.क्या संस्कारी व्यक्ति जन्म से होता है? (Is a cultured person born out?):

उत्तर:जन्म से व्यक्ति अबोध होता है किन्तु अच्छे व बुरे संस्कारवान बड़े होने पर होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा संस्कार हमें कैसे प्रभावित करते हैं? (How Do Sacraments Affects Us?),संस्कारों द्वारा प्रभावित होने से कैसे बचें? (How to Avoid Being Influenced by Rites?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here
7. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *