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8 Ways for Knowing Instincts of Mind

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1.मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके (8 Ways for Knowing Instincts of Mind),छात्र-छात्राओं के लिए मन की वृत्तियों को जानने की 8 तकनीक (8 Techniques for Students to Know Mentality of Mind to Make Proper Use of Mind):

  • मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके (8 Ways for Knowing Instincts of Mind) के आधार पर आप मन को सही दिशा में मोड़ सकेंगे बशर्ते इन वृत्तियों का सदुपयोग किया जाए।आइए जानते हैं इनके बारे में।
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2.संस्कार क्या हैं? (What are the sacraments?):

  • संस्कार चित्त की वृत्तियों द्वारा चित्त पर पड़ी छाप के निशान हैं।संस्कार बड़ी गहराई में चित्त में पड़े रहते हैं।चित्त के इन संस्कारों का परिष्कार-परिमार्जन संसार का सबसे दुस्साहसी कार्य है।संस्कार हमारे जीवन की इच्छाओं,कामनाओं आदि को ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा ये सभी उन्हीं के अनुरूप अभिव्यक्त होती हैं।अचेतन की गहराई में दबे इस महाविशाल क्षेत्र से ही जीवन का स्वल्प एवं दृश्यमान पहलू दृष्टिगोचर होता है।जो बाहर दीखता है,वह सब अंदर से परिचालित होता है।इसे परिष्कृत करने का एकमात्र साधन है तप,अन्यथा यह बीज के समान उगेगा और फसलों में लहलहाएगा ही,जिसे भोगे बिना,बचने का कोई उपाय नहीं है।
  • संस्कार को आधुनिक मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्री पर्सीनन ने ‘एनग्राम’ कहा है।इसका अर्थ उतना व्यापक तो नहीं है,परंतु इससे ‘संस्कार’ शब्द का बोध होता है।संस्कार मुख्य रूप से तीन प्रकार के माने गए हैं: ज्ञानात्मक संस्कार,भावात्मक संस्कार और क्रियात्मक संस्कार।इन तीनों संस्कारों के अलावा पूर्वजन्म तथा जन्म से पूर्व गर्भावस्था के भी संस्कार होते हैं।इन्हें ही  वासनाएं कहा जाता है।ये सभी संस्कार वृत्तियों के द्वारा उत्पन्न होते हैं।यों तो वृत्तियाँ असंख्य एवं अनगिनत हैं परंतु उन्हें पांच वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
  • ये वृत्तियाँ हैं प्रमाण (सम्यक ज्ञान),विपर्यय (मिथ्या ज्ञान,झूठा और गलत ज्ञान),विकल्प (कल्पना),निद्रा और स्मृति।ये पाँचों वृत्तियाँ मन की पांच दिव्य संभावनाएं हैं,पांच रहस्य हैं।इन्हें समझ-बूझ लेने पर समूचे मन एवं संस्कारों को जान समझ लिया जाता है।इन पांच शक्तियों के सही सदुपयोग से संस्कारों के अभेद्य किले में प्रवेश प्राप्त किया जा सकता है।ये पांच वृत्तियाँ ही हमारे सुख और दुःख होने में कारण होती है।लिहाजा इन वृतियों के विषय में ठीक-ठाक जानकारी विद्यार्थियों को होना ही चाहिए।इन पांच वृत्तियों के बारे में विवरण निम्न प्रकार है:

(1.)मन की वृत्ति प्रमाण (Instinct good knowledge of the mind):

8 Ways for Knowing Instincts of Mind

8 Ways for Knowing Instincts of Mind

  • प्रमाण को ‘यथार्थ अनुभव करने की शक्ति’,कहा जा सकता है।प्रमाण जीवन की ऐसी बागडोर या स्विच है,जिसका तात्पर्य है-कहीं किसी तरह की कोई भटकन नहीं।किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं।किसी तरह के भ्रम अथवा संदेह की भी कोई गुंजाइश नहीं।
  • प्रमाण का अर्थ बहुत व्यापक और गहरा है।इस शब्द का पर्यायवाची शब्द यानी पूरे अर्थ रखने वाला दूसरा शब्द खोजना मुश्किल है।हम इसका भावार्थ करने के लिए-सम्यक ज्ञान शब्द का प्रयोग कर सकते हैं।यदि मन की शक्ति और क्षमता का उचित प्रयोग करें तो हम सत्य को,सम्यक ज्ञान को उपलब्ध हो सकते हैं।मन में क्षमता है सम्यक ज्ञान,विवेक और प्रमाण को प्राप्त करने की पर हमें इसकी कुछ खबर नहीं होती लिहाजा हम मन की इस क्षमता का लाभ नहीं उठा पाते।जैसे आप एक अंधेरे कमरे में बैठे हैं तथा कहीं जाने का प्रयास कर रहे हैं,अब दीपक या बिजली होते हुए भी आप बल्ब न जलाएं तो दृश्य साफ दिखाई नहीं देगा और अंधकार में गिर पड़ेंगे या दीवाल से टकरा जाएंगे।मन भी प्रकाश की भाँति अंधकार (अज्ञान) को दूर करने की क्षमता रखता है।यह मन दूर-दूर तक जाने में समर्थ है।यदि हम मन की इस वृत्ति से अपरिचित रहेंगे तो ज्ञान के प्रकाश से वंचित रह कर ज्ञान के अंधकार में भटकते रहेंगे और ठोकरें खाते रहेंगे।आप मन की इस शक्ति से,सम्यक यानी सत्यज्ञान प्राप्त करने की क्षमता से न सिर्फ ठीक से परिचित ही रहे बल्कि इसका समुचित प्रयोग भी करते रहें यह बहुत जरूरी है।जिस मन की शक्ति से हम बड़े-बड़े और महान कार्य करने में सफल हो सकते हैं उस मन की शक्ति को वाहियात और दो कौड़ी के कामों में खर्च कर नष्ट करना मूर्खता है।यह वैसा ही मामला है जैसे कोई अपनी वीर्यशक्ति को वेश्यागमन और कॉलगर्ल से संभोग करके नष्ट करते रहते हैं और अपने शरीर और बुद्धि का सत्यानाश करते रहते हैं और बार-बार करते रहते हैं जबकि यह समय विद्यार्जन करने का समय होता है।सम्यक ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी ऐसे बेहूदा काम करना तो दूर,मन में ऐसा विचार तक नहीं लाता।

(2.)मन की दूसरी वृत्ति विपर्यय (The second instinct of the mind is illusive knowledge):

  • विपर्यय का अर्थ होता है मिथ्या ज्ञान,झूठा और गलत ज्ञान।मिथ्या ज्ञान का तात्पर्य है-है कुछ पर दिखता है कुछ,है रस्सी,पर नजर आ रहा है साँप।प्रायः जीवन में यह स्थिति बेहोशी और अंधकार के कारण पनपती है।तो जैसे मन की एक वृत्ति सम्यक ज्ञान प्राप्त करने की है तो दूसरी वृत्ति असम्यक यानी मिथ्या ज्ञान प्राप्त करने की भी है।जैसा है वैसा नहीं जानना और जैसा नहीं है वैसा जानना भी विपर्यय है।मन दोनों तरह की वृत्तियों वाला है,यह ख्याल रखें।मन सिर्फ सम्यक ज्ञान की ही वृत्ति रखता है इस भरोसे में ना बैठे रहें।यह असम्यक ज्ञान भी रख सकता है इसे याद रखें।जो इसका ख्याल नहीं रखते उनके मन मिथ्या ज्ञान में फंस जाते हैं।बहुत से तो जानबूछकर मिथ्या ज्ञान को ग्रहण करते हैं वे वास्तविकता को झुठलाकर मनमाफिक मनःस्थिति में रहना पसंद करते हैं।इसको वे गम गलत करना कहते हैं और नाना प्रकार के गलत उपाय किया करते हैं।
  • यह (विपर्यय) शराबी,नशेड़ी की बेहोशी जैसी ही होती है।इन्द्रिय लालसाओं,मानसिक वासनाओं एवं कामनाओं के ज्वार में भी इस मिथ्या ज्ञान की बाढ़ आती है।सारी उम्र,कभी ना खत्म होने वाली भटकन की,पर्याय बन जाती है।
  • आज बहुत से छात्र-छात्राओं में मादक द्रव्यों,ड्रग्स का प्रयोग करने का चलन बढ़ता जा रहा है।ऐसे विद्यार्थी नशा इसलिए करते हैं जिससे वे अपने आप को आधुनिक और समय के साथ चलने वाला सिद्ध कर सकें क्योंकि नशा उन्हें विपर्यय की स्थिति उपलब्ध करा देता है,असम्यक ज्ञान में उलझा देता है।नशा,ड्रग्स आदि का सेवन करने वाले सारे विद्यार्थी सिर्फ गलतफहमी में मस्त रहने के लिए ही नशा करते हैं।मादक द्रव्य मस्तिष्क के उस केंद्र को उत्तेजित और विचलित कर देता है जो संतुलन यानी सम्यक ज्ञान की स्थिति से वंचित हो जाता है।मन की दूसरी वृत्ति का मतलब है भ्रामक,मिथ्या और असम्यक ज्ञान को उपलब्ध हो जाना।

(3.)मन की तीसरी वृत्ति विकल्प (The Third Instinct hypothesis of the Mind):

  • इसे आप कल्पना शक्ति भी कह सकते हैं।यह मन की अद्भुत एवं आश्चर्यजनक शक्ति है,परंतु इसके दुरुपयोग की अकथ कथा ख्याली पुलाव पकाते में देखी जाती है। हमारे मन में संकल्प-विकल्प उठा करते हैं,इसे कल्पना करने की वृत्ति कहते हैं।सारे सृजन ही नहीं बल्कि विध्वंस यानी विनाश की जड़ भी यह कल्पना ही है।अच्छी कल्पना सृजन को और बुरी कल्पना विनाश को जन्म देती है।हम जैसी कल्पनाएं करेंगे वैसे ही हमारे संकल्प होंगे।जैसे हमारे संकल्प-विकल्प होंगे वैसा ही हमारा आचरण और व्यवहार भी होगा।अब यदि हमारी कल्पनाएं सत्य,शिव और सुंदर होंगी तो हमारा आचरण और व्यवहार अच्छा होगा जिससे हम मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हुए जीवन में उन्नति और विकास कर सकेंगे।
  • आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम जैसी कल्पनाएं और विचार करते रहते हैं वैसे ही होते भी जाते हैं।कल्पना और विचार का हमारी कार्यप्रणाली (अध्ययन करने) पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।यदि आप हमेशा ही ऐसी कल्पना किया करें कि मैं अध्ययन करूंगा,खूब पढूँगा,अध्ययन करके उन्नति करूंगा और खूब परिश्रम व अभ्यास करके गणित व अन्य विषयों में अच्छे नंबरों से परीक्षा पास करूंगा तो आप देखेंगे कि धीरे-धीरे ऐसा ही होने लगेगा।मनोचिकित्सक अक्सर अच्छे सुझाव देकर बार-बार अच्छे विचार करने और अध्ययन में प्रखर होने की कल्पना दोहराने को कहते हैं और ऐसा करके विद्यार्थी धीरे-धीरे प्रखर व तेजस्वी होते जाते हैं।आप भी स्वसंकेत (auto-suggestion) को आजमा कर देख लें।संकल्प शक्ति बहुत प्रबल होती है।हमारे वैदिक ऋषियों ने भी कहा है कि मन अच्छे और कल्याणकारी संकल्पों वाला होना चाहिए।हमें (विद्यार्थियों) मन की इस तीसरी वृत्ति को खूब जान समझ कर इसका सदुपयोग करना चाहिए।इसका सदुपयोग करके आप इसका चमत्कार स्वयं देख लें।उच्च कोटि के गणितज्ञ,वैज्ञानिक,चित्रकार,कलाकार,कवि आदि इस वृत्ति का प्रयोग करते हैं।

(4.)मन की चौथी वृत्ति निद्रा (The Fourth Instinct of the Mind is Sleep):

  • निद्रा मन की बेशकीमती जीवनदायनी शक्ति है।नैसर्गिक  निद्रा मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक (विश्राम) है।अधिकांश तो स्वपनों के मकड़जाल में उलझ जाते हैं।वे निद्रा के आनंदमय संगीत से हमेशा वंचित रहते हैं।
    निद्रा का मतलब नींद होता है।ऐसी गहरी नींद कि जिसमें मन की गतिविधियां रुक जाएं,मन निष्क्रिय हो जाए।अपनी भावदशा (state of no mind) जैसी स्थिति उपलब्ध हो जाए।यदि आप सपने देख रहे हैं तो फिर आप निद्रा में नहीं स्वप्न की स्थिति में ही हैं।स्वप्न की स्थिति दरअसल जाग्रत अवस्था और सुषुप्त अवस्था के बीच की अवस्था होती है।यदि आप स्वप्न देख रहे हैं तो आप न ठीक से जाग रहे हैं और न ठीक से सो ही रहे हैं।आपने जागना तो छोड़ दिया पर अभी सुषुप्त (गहरी नींद) अवस्था में प्रवेश नहीं किया।आप अभी दोनों के बीच में हैं।
  • जब हम सोने की कोशिश करते हैं तब पहले हमें झपकी आती है जिसे तन्द्रा कहते हैं।यह जाग से निद्रा में प्रवेश करने से पहले की अवस्था होती है।इसमें हम अधजगे और अधसोये से होते हैं।जब जागना बंद हो जाता है पर गहरी नींद में प्रवेश नहीं हुआ होता तब जो स्थिति होती है उसे स्वप्न देखना कहते हैं।तन्द्रा अधजगी सी स्थिति में स्वप्न देखने वाली स्थिति है और स्वप्न अधसोई स्थिति की तन्द्रा है।जब हम गहरी नींद में प्रवेश कर जाते हैं तब हमें दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रहती।तब न तन्द्रा होती है और ना स्वप्न होते हैं क्योंकि तब मन भी नहीं होता।मन के न होने से हमें कोई विचार भी नहीं आता यानी हमें अपने खुद के होने का ख्याल नहीं आता क्योंकि ख्याल तभी आते हैं जब मन सक्रिय रहता है।ख्याल करने का ही तो नाम मन है।मन नहीं तो ख्याल नहीं,ख्याल नहीं तो मन नहीं।अध्ययन के लिए मानसिक और शारीरिक विश्राम भी आवश्यक है इसलिए गहरी नींद बहुत जरूरी है।गहरी नींद सोकर जब हम जगते हैं तब स्फूर्ति और तरोताजगी का अनुभव करते हैं।मन की इस चौथी वृत्ति के अनुसार उचित समय पर उचित अवधि तक गहरी नींद सोना अध्ययन और परिश्रम करने वाले के लिए (हमारे लिए) आवश्यक है।

(5.)मन की पाँचवीं वृत्ति स्मृति (The Fifth Instinct of the Mind Memory):

  • मन की स्मृति के बारे में कई लेख लिखे जा चुके हैं।आप उन्हें देखकर भी इसके बारे में जान सकते हैं।यहां फुटकर रूप से इसके बारे में संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।इस शक्ति का भी जीवन में प्रायः घोर दुरुपयोग होते देखा गया है।हमारे जीवन में तो बस,स्मृतियों के ढेर यों बेतरतीब पड़े हुए रहते हैं कि कौन स्मृति कहां,किस स्मृति में जा मिली है,कोई ठिकाना नहीं है।स्मृतियों की यह गड़बड़ जब-तब हमारे सपनों में उलझती रहती है।
  • स्मरणशक्ति (याददाश्त) स्मृति को बरकरार रखने का काम करती है।हमारा सारा ज्ञान,पूर्ण इतिहास,पुराने संस्कार,पुरानी घटनाएं और सारा व्यवहार इस स्मृति के बल पर ही टिका हुआ है।यदि स्मृति का नाश हो जाए तो हमें यही ख्याल ना रहे कि हम कौन हैं,हमारा घर कहां है और हमारा परिवार कौन है।पागल होने पर भी स्मृति नष्ट हो जाती है और पागल को कोई होश नहीं रहता।स्मृति के लिए होश का बरकरार रहना बहुत जरूरी है।स्मृति का संबंध हमारे अवचेतन मन से है।स्मृति अच्छी भी होती है,बुरी भी होती है,सुखदायक भी होती है और दुःखकारी भी।बुद्धिमानी इसमें है कि मन की इस वृत्ति  का सदुपयोग करते हुए सिर्फ अच्छी और सुखदायक स्मृतियों को ही याद रखें,बाकी भुला दें ताकि हमारी मनोवृत्ति दूषित ना हो जाए।दुःखद स्मृतियों को याद करने के सिवाय दुःख के लाभ कुछ भी नहीं मिलता।प्रकृति ने इसीलिए हमें भूलने की प्रकृति दी है ताकि जो दुःखद है उसे भुला सकें।

3.मन की वृत्तियों का निष्कर्ष (Conclusion of the Instincts of the Mind):

  • इन पांच वृत्तियों के द्वारा चित्त में पड़े हुए अंकनों को ही ज्ञानज संस्कार कहते हैं।ये सब ज्ञानज संस्कार हमारे अचेतन में जन्मांतरों से पड़े हुए हैं।यही उपयुक्त परिस्थिति में हमारे जीवन में घटित होते हैं और हमारे जीवन की दशा एवं दिशा को एक पल में कहां से कहां ला पटकते हैं।एक बुरा संस्कार जब जागता है तो जीवन की समस्त सम्भावनाओं में जहर घोल देता है और एक शुभ संस्कार के जागने से जीवन कितनी ही ऊंचाई को स्पर्श कर जाता है।ये संस्कार सामान्य रूप में भोग के माध्यम से जन्मांतरों की यात्रा में भोगे जाते हैं।संस्कार हमारे भले-बुरे कर्मों का अकल्पनीय जखीरा है।
  • ज्ञानज संस्कार को जाना-पहचाना जा सकता है।अन्य संस्कार को पहचान पाना कठिन होता है।हालांकि,सारे संस्कार चित्त में पड़े रहते हैं।शुभ कर्म के संस्कार एवं अशुभ कर्मों के संस्कार,दोनों ही चित्त के अविभाज्य अंग होते हैं।यौगिक मान्यता है कि शुभ कर्मों से पुण्य उत्पन्न होते हैं तथा अशुभ कर्मों के पाप।इन्हें ही कर्माशय कहा जाता है।ये पाप-पुण्य ही कर्माशय के रूप में हमारे जन्म,जीवन,आयु,भोग और मृत्यु का कारण बनते हैं।इनमें गहरा तारतम्य है,परंतु उनके बीच के संबंध-सूत्र को न जान पाने के कारण ये अबूझ जान पड़ते हैं।इन्हीं पाप-पुण्य के संस्कारों को लेकर जीवात्मा जन्म धारण करती है और जीवन में इसी को भोगती है।भोगकाल में वह जो भी अच्छा-बुरा करती है,संस्कारों के रूप में वे सारे कर्म संचित होते रहते हैं।
  • हमारा चित्त अनादिकाल से संस्कारों का पुंज है।हम संस्कारों को बोझ की तरह ढोते चले आ रहे हैं।अचेतन चित्त के घटक ही ये संस्कार हैं,जिनकी अभिव्यक्ति स्मृतिरूप में उपयुक्त काल में होती है।मनोवैज्ञान में चित्त को अचेतन के रूप में जाना जाता है,किंतु इसकी ऊपरी परत ही मनोविज्ञान जान पाया है।इसकी गहराई में गोता लगाने का दुर्दम्य साहस केवल योगी,तपस्वी ही कर पाए हैं,क्योंकि इसे जितना पढ़ा-सुना जाता है,उतना है नहीं।योगी का अनुभव बताता है कि चित्त के एक मिलीमीटर स्थान का भोगकाल इस धरती में दस साल के बराबर होता है;अर्थात् दस साल तक किसी भोग को भोगने के बाद ही चित्त के एक मिलीमीटर संस्कार को मिटाया जा सकता है।किसी योगी के जीवनकाल की समस्त तपस्या को यदि इस कार्य में लगा दिया जाए तो केवल दो-चार व्यक्तियों के चित्त को परिष्कृत किया जा सकता है।
  • अतः सामान्य रूप से कोई किसी के संस्कार को पूरी तरह से नहीं काटता है,बल्कि कुछ काटता है तथा कुछ उसे भोगने के लिए छोड़ देता है।इस क्रम में जिस संस्कार का परिष्कार किया जाता है;उसे ‘सबीज’ या ‘व्युत्थान संस्कार’ कहते हैं।सबीज संस्कार ही निरंतर संसारचक्र के फेर में उलझाए रखते हैं।कुछ पुण्य के कारण इनमें भी कुछ ऐसे संस्कार होते हैं,जो विवेक-ज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं।अतः इन्हें ‘प्रज्ञा संस्कार’ कहते हैं।ये संस्कार अक्लिष्ट अर्थात् बाँधने वाले नहीं होते हैं।ये जीवन की सच्चाई की राह में आगे बढ़ाते हैं।वस्तुतः ये पुण्य कर्म के संस्कार होते हैं।
  • इस प्रकार सबीज संस्कार क्लिष्ट और अक्लिष्ट,दो तरह के होते हैं।क्लिष्ट अज्ञाजन्य वृत्तियों,जैसे काम-वासना,मोह,अहंकार आदि को उत्पन्न करते हैं; जबकि अक्लिष्ट विवेक,वैराग्य,ज्ञान आदि को पैदा करते हैं।योगी इन क्लेशमूलक सबीज संस्कारों को ही कर्माशय का नाम देते हैं।’कर्माशय’ शुक्ल (पुण्य),कृष्ण (पाप) और शुक्ल-कृष्ण (पुण्य-पाप) तीन प्रकार के होते हैं।इन तीनों प्रकार के कर्मों के अनुरूप सबीज संस्कार चित्त में अंकित होते हैं।पुण्यकाल से साधन-सुविधा,मान-यश,प्रतिष्ठा मिलती है।पाप से जीवन नारकीय यंत्रणा को झेलता है।संस्कारों का परिमार्जन अत्यन्त दुष्कर कार्य है;क्योंकि चित्त के संस्कार जब जीवन में उतरते हैं तो प्रचण्ड बाढ़ के बहते पेड़ों के समान या चक्रवात के अंधड़ में उड़ते तिनके के समान जीवन बस,बहता-उड़ता चला जाता है।तपस्या एवं शुभ कर्मों से इन संस्कारों का क्षरण किया जा सकता है।
  • संस्काररूपी इन वृत्तियों को परिशोधित करने के लिए सरस्वती स्तोत्र का पाठ करने से सारे संस्कार जड़मूल से कटते हैं तथा प्रमाणवृत्ति अर्थात् जीवन के अजन्मे सवाल साफ-साफ दिखाई देते हैं।मन में संचित लालसाओं,वासनाओं एवं कामनाओं का नशा उतरने से मन की विपर्यय (मिथ्या ज्ञान) अवस्था का अवसान होता है।विकल्प अथवा कल्पना का श्रेष्ठ उपयोग शाश्वत अनंतता की अनुभूति में है।श्रेष्ठतम महत्त्वाकांक्षाओं को जीवन में धारण कर कल्पनाशक्ति की सहायता से संस्कारों की समझ एवं उस परमतत्त्व की अनुभूति पाई जा सकती है।निद्रा मन की समग्र निर्विषय अवस्था है।मन की समग्र निर्विषय अवस्था में यदि जागरूक हुए जा सके तो समाधि फलित होती है।समाधि में सारे संस्कार वाष्प बनकर उड़ जाते हैं।
  • ध्यान-समाधि से स्मृति को योग-साधना का रूप दिया जा सकता है।इस साधना से संस्कारों की गहराई में उतरकर विगत जन्मों में किए गए कर्मों के परिणामस्वरूप संचित संस्कारों को जाना-समझा एवं उन्हें मिटाया जा सकता है।संस्कारों के क्षरण के लिए अंतर में एक जज्बा होना चाहिए,साहस होना चाहिए,तभी इससे पार पाया जा सकता है।कुशल मार्गदर्शक के मार्गदर्शन में यह प्रक्रिया निरापद हो जाती है,परंतु चोट सहन करने की क्षमता तो फिर भी जगानी ही पड़ती है।मनोविज्ञान में इसके बाह्य स्वरूप के कुछ ही भागों में इसकी तकनीक मिलती है।हर व्यक्ति के संस्कार भिन्न-भिन्न होते हैं,अतः इन्हें काटने की तकनीक भी भिन्न होती है।
  • संस्कारों के समूल नाश के बगैर जीवन की दिव्य क्षमताओं का समुचित विकास संभव नहीं है।अध्यात्म तो इसके बाद प्रारंभ होता है,अतः जो साहसी एवं शूरमा हैं,जो दैवों के दुःखरूपी घन को बर्दाश्त कर सकते हैं,वही इस प्रक्रिया में सफल हो सकते हैं।ऐसे सामान्य पूजा-पाठ,उपासना,ध्यान,सत्संग,सत्साहित्य का पठन,अध्ययन,मनन-चिंतन,श्रेष्ठ कर्मों आदि से भी संस्कारों का क्रमशः क्षरण होता जाता है।अतः कठिन तप न कर सकें,न सही,सामान्य जीवनयापन करते हुए शुभ विचार के साथ शुभ कर्म तो किए ही जा सकते हैं।शुभ की इच्छा करते हुए अध्ययन-मनन-चिंतन करते हुए संस्कारों का क्षय किया जा सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके (8 Ways for Knowing Instincts of Mind),छात्र-छात्राओं के लिए मन की वृत्तियों को जानने की 8 तकनीक (8 Techniques for Students to Know Mentality of Mind to Make Proper Use of Mind) के बारे में बताया गया है।

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4.मन कमजोर है (हास्य-व्यंग्य) (Mind is Weak) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक:तुम्हारी गणित पर पकड़ बहुत कमजोर है।इसलिए तुम्हें इस प्रश्नावली के सवालों को दस बार हल करने के लिए कहा था,लेकिन तुमने केवल दो बार ही हल किया है।
  • राजेश:सर,आपने जितना सोचा था उससे भी ज्यादा मेरी गणित कमजोर है,मन कमजोर है।

5.मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके (Frequently Asked Questions Related to 8 Ways for Knowing Instincts of Mind),छात्र-छात्राओं के लिए मन की वृत्तियों को जानने की 8 तकनीक (8 Techniques for Students to Know Mentality of Mind to Make Proper Use of Mind) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मन की पांच वृत्तियों को जानने के लाभ बताएं। (Explain the benefits of knowing the five attitudes of the mind):

उत्तर:यदि हम इनको ठीक से जान समझ लें और इनका उचित उपयोग करें तो हम सशक्त तरीके से अध्ययन-मनन-चिंतन कर सकते हैं साथ ही अध्ययन में आने वाली अनेक अड़चनों,कष्टों,समस्याओं का समाधान कर सकते हैं,अवनति से बच सकते हैं और जीवन में उन्नति कर सकते हैं,पतन से बचकर उत्थान कर सकते हैं और राक्षस न बनकर सही अर्थ में मनुष्य बन सकते हैं।

प्रश्न:2.मन से क्या आशय है? (What do you mean by mind?):

उत्तर:मन चूँकि हर वक्त चुनाव करता रहता है,संकल्प-विकल्प करता रहता है इसलिए द्वंद्व में फंसा रहता है।एक द्वन्द्व से दूसरे द्वन्द्व की ओर,एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर तथा एक स्थिति से दूसरी स्थिति की ओर गति करते रहना ही मन का काम है बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि इस द्वन्द्व का नाम मन है,इस गति और संकल्प-विकल्प करने की प्रक्रिया का नाम ही मन है।

प्रश्न:3.मन ऊंचा उठता या गिरता है कैसे? (How does the mind rise and fall?):

उत्तर:मन हमें गुलाम भी बना सकता है और स्वतंत्र भी।हमें पतित भी कर सकता है और ऊंचा भी उठा सकता है।यह हमें श्रेष्ठ बना सकता है और नीच भी।सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि हम मन का उपयोग कैसे करते हैं।इसका उचित उपयोग हमारे जीवन को स्वर्ग बना सकता है और इसका दुरुपयोग हमारे जीवन को नर्क बना सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके (8 Ways for Knowing Instincts of Mind),छात्र-छात्राओं के लिए मन की वृत्तियों को जानने की 8 तकनीक (8 Techniques for Students to Know Mentality of Mind to Make Proper Use of Mind) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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