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7 Golden Spells of Life/Time/Routine

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1.जीवन/समय/दिनचर्या के 7 स्वर्णिम मंत्र (7 Golden Spells of Life/Time/Routine),जीवन/समय/दिनचर्या अन्तर्सम्बन्धित (Life/Time/Routine Interrelated):

  • जीवन/समय/दिनचर्या के 7 स्वर्णिम मंत्र (7 Golden Spells of Life/Time/Routine) में जीवन,समय और दिनचर्या बिल्कुल अलग-अलग नजर आते हैं।हम देखेंगे कि जीवन,समय और दिनचर्या आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।विद्यार्थी को इन्हें समझ कर उचित उपयोग करना होगा।
  • यह लेख जाॅब करने वाले एम्प्लॉइज,छात्र-छात्राओं,व्यवसायियों,फुटकर और रिटेलर विक्रेताओं तथा विभिन्न प्रोफेशनल्स व्यक्तियों आदि सभी के लिए उपयोगी है। >
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2.जीवन का वास्तविक अर्थ (The Real Meaning of Life):

  • जीवन का शाब्दिक अर्थ है जीता रहना,प्राण धारण,जीवित दशा,जीविका,पुत्र,परमात्मा आदि।यदि जीवन का इतना ही अर्थ लिया जाए कि ‘जीवित रहना’ तो ऐसा जीना तो दो कोड़ी का है।इस प्रकार से तो चोर,लुटेरे,डकैत,हत्यारे आदि भी जीवित है जो मनुष्यता के नाम पर कलंक है।कई विद्यार्थी जीवन का अर्थ लेते हैं कि ‘खाओ पियो और ऐश करो’ यानी कोई कामनाएँ बाकी मत छोड़ो।(Eat drink and be marry) क्या रखा है नियम,संयम और अनुशासन का पालन करने में। मरना तो एक दिन है ही,भले ही अच्छा-विचार धारण करके मरो या मनमाना आचार-विचार धारण करके मरो! मन को मार कर भी कोई जीना है।यह मत करो,वह मत करो,यह मत खाओ वह मत खाओ,इतनी सारी पाबन्दियाँ हम अपने ऊपर लगाएंगे तो यह जीवन जेलखाना बन जाएगा।हमारा दिमाग इसी में उलझा रहेगा तो हम जीवन में क्या खाक उन्नति करेंगे? और फिर सौ बात की एक बात तो यह है कि आजकल जमाना कैसा है,यह भी तो सोचो! वातावरण कैसा है इस पर विचार करो! क्या ये सब नियम-संयम और सिद्धांत मौजूदा माहौल में उपयोगी हो सकते हैं? इनका पालन करके क्या हम जमाने के साथ चल सकेंगे? क्या पुराने जमाने की इन दकियानूसी बातों को साथ लेकर आज की तेज रफ्तार जिंदगी का साथ दिया जा सकेगा? इस जेट युग में भी आप बैलगाड़ी में ही सवार रहने की सलाह दे रहे हैं?
  • ऐसी बहुत सी और भी बातें हैं जिनको यहां प्रस्तुत करके बात को और लंबा खींचना,व्यर्थ कागज खराब करना ही होगा।इतने इशारों से काफी कुछ अंदाजा लग जाता है कि ऐसी मनोवृत्ति और मान्यताओं वाले लोगों का दृष्टिकोण क्या है।ऐसे ही लोगों का सिद्धांत होता है कि ‘पठितव्यं तदपि मर्तव्यं,अपठितं तदपि मर्तव्यं दन्तकटाकटेति किं कर्तव्यं’ अर्थात पढ़ेंगे तो भी मरेंगे,नहीं पढ़ेंगे तो भी मरेंगे फिर दांत बजाने यानी पढ़ने लिखने से क्या फायदा?
  • ऐसी विचारधारा आज ही पैदा हुई है ऐसा नहीं है।हर जमाने में नाना प्रकार की विचारधारा के लोग रहे हैं और आगे भी रहेंगे।जितने मुंह उतनी बातें होती हैं।अलग-अलग लोगों के हाथों और अंगुलियों की रेखाएं जब आपस में नहीं मिलती तो विचार कैसे मिल सकते हैं।जितने मिल गए उतने मिल गए,नहीं मिले तो नहीं मिले।विचार करने और कर्म करने के मामले में जब दुनिया के बनाने वाले ने ही सबको स्वतंत्र रखा है तो कौन किस पर दबाव डाल सकता है कि ऐसा करो और ऐसा मत करो।दबाव डाला भी जाए तो मानने वाले की मर्जी पर ही निर्भर रहेगा कि वह चाहे तो माने,ना चाहे तो ना माने।
  • तात्पर्य यही है कि जिसने जीवन का जितना समय सदुपयोग में व्यतीत किया उतनी ही जिंदगी जी हुई मानी जा सकती है।समय नष्ट करना ही जीवन नष्ट करना होता है क्योंकि जीवन और समय एक ही चीज के दो नाम है।जीवन के जो क्षण मनुष्य यों ही आलस्य अथवा उन्माद में खो देता है,वे फिर कभी लौटकर वापस नहीं आते।जीवन के प्याले से क्षणों की जितनी बूंदे गिर जाती है,प्याला उतना ही खाली हो जाता है।प्याले की वह रिक्तता फिर किसी भी प्रकार भरी नहीं जा सकती।मनुष्य जीवन के जितने क्षणों को बरबाद कर देता है,उतने क्षणों में वह जितना काम कर सकता था,उसकी कमी फिर वह किसी प्रकार भी पूरी नहीं कर सकता है।
  • जीवन का हर क्षण एक उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है।हर घड़ी एक महान मोड का समय हो सकती है।मनुष्य यह निश्चय पूर्वक नहीं कह सकता कि जिस समय,जिस क्षण और जिस पल को वह यों ही व्यर्थ में खो रहा है,वही क्षण,वही समय उसके भाग्योदय का समय नहीं है।क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ बरबाद कर रहे हैं,वही हमारे लिए अपनी झोली में सुंदर सौभाग्य की सफलता लाया हो।समय की चूक पश्चात्ताप की हूक बन जाती है।जीवन में कुछ करने की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि वे अपने किसी भी ऐसे कर्त्तव्य को भूलकर भी कल पर न टाले,जो आज किया जाना चाहिए।आज के लिए आज का ही दिन निश्चित है और कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित है।

3.समय सबसे शक्तिशाली (Time is the most powerful):

  • समय का अर्थ काल,वक्त,अवसर,नियम,आदेश,उपदेश,प्रतिज्ञा,सीमा,हद,सिद्धांत,सफलता,अभ्युदय आदि।समय परमात्मा के लिए भी प्रयुक्त होता है जिसे महाकाल कहते हैं।जिसने समय को साध लिया उसका जीवन सफल हो जाएगा,जो समय का उचित उपयोग नहीं कर पाया उसका जीवन निष्फल हो जाएगा।समय जो जाकर फिर कभी वापस लौटकर नहीं आता है।
    कुछ विद्यार्थी व्यर्थ समय नष्ट किया करते हैं और कहते हैं कि टाइम पास कर रहें हैं।वे यह नहीं समझते कि सुबह हो रही,शाम हो रही है और जिंदगी यूं ही तमाम हो रही है और एक दिन समय ही उन्हें नष्ट कर देगा और वे जिंदगी में फेल हो जाएंगे।समय धन से भी कीमती है,बेशकीमती है बल्कि कहिए कि अनमोल है।एक एक क्षण बीत रहा है जिंदगी कम हो रही है।जो बीत गया वह किसी भी मूल्य पर वापस नहीं लौटाया जा सकता।जिसने एक-एक क्षण को जिया है दरअसल उसी ने सही ढंग से जीवन जिया है।
  • हमारी सबसे बड़ी बुद्धिमानी और योग्यता यह होगी कि हम समय की कद्र करें और एक-एक मिनट का पूरा-पूरा सदुपयोग करते हुए इस जीवन में सुकृत्य (अध्ययन,मनन-चिंतन) करें,अपने गुणों को विकसित करते रहें।जो समय की कद्र करता है,समय भी उसकी कद्र करता है।आज हम जिस स्थिति में है यह हमारे पिछले कर्मों का फल है और कल हम जिस स्थिति में होंगे वह हमारे आज के और पिछले कर्मों का ही फल होगा इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं।हम इस तथ्य को स्वीकार करें या न करें,जाने या ना जाने,मानें या ना मानें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जो है सो है।प्रकृति के अपने नियम है और ये नियम बड़े कठोर हैं अपरिवर्तनशील हैं।हम इन्हें बदल नहीं सकते,या तो उनकी अवहेलना कर सकते हैं या उनका पालन कर सकते हैं।प्रकृति का ही नियम है कि यह जो समय है यही हमारा जीवन है।जितना हम समय का सदुपयोग करेंगे उतना ही जीवन का सही उपयोग होगा शेष समय यानी जीवन व्यर्थ नष्ट हो जाएगा।
  • प्रत्येक कार्य उचित समय पर करना ही शोभा देता है।कुछ काम समय से पहले कर लेना उचित है तो कुछ काम ठीक समय पर करना उचित होता है और कुछ कार्यों को समय के बाद करने पर परिणाम बदल जाता है।जैसे परीक्षार्थी की परीक्षाएं मार्च-अप्रैल अथवा किसी अन्य समय पर है तो उससे ठीक पहले यानी सत्रारम्भ से ही परीक्षा की तैयारी करना ठीक रहता है।यदि छात्र-छात्रा हर मामले में समय से पहले काम करने का नियम अपना ले तो गलत हो जाएगा।जैसे विद्यार्थी काल में ही गृहस्थाश्रम का यानी सेक्स का मजा ले लिया जाए तो यह गलत,ना समझी और हानि करने वाला सिद्ध होगा।इसी प्रकार क्रोधावेश में समय पर काम करना गलत हो जाएगा,ऐसे काम को क्रोध शांत होने के बाद विवेकपूर्वक सोचकर अर्थात् उस समय को टालने के बाद करना ठीक रहता है।यानी देश (स्थान),काल (अवसर) और परिस्थिति (माहौल) को देखकर उचित कार्य करना बुद्धिमानी और दूरदर्शिता होती है।

4.दिनचर्या समय से संबंधित कैसे हैं? (How is routine related to time?):

  • दिनचर्या का मतलब होता है दिन भर के हमारे कार्यों का टाइम टेबुल और इसका उद्देश्य होता है समय की पाबंदी,समय की बचत और प्रत्येक कार्य को व्यवस्थित ढंग से नियत समय पर ही करना।दिनचर्या हमारे जीवन को सुव्यवस्थित और नियमित रखती है जिससे हर क्षेत्र में लाभ होता है।सबसे बड़ा तो लाभ यही होता है कि हम समय की कद्र करना सीख जाते हैं।हमारे इस जीवन की ही नहीं बल्कि संसार भर की सर्वाधिक मूल्यवान,इतनी मूल्यवान की जिसका मूल्य दिया ही न जा सके,ऐसी अमूल्य वस्तु यदि कोई है तो वह समय है।जो समय आपने गुजार दिया वह किसी भी मूल्य पर आप प्राप्त नहीं कर सकते।ऐसी अमूल्य वस्तु को लोग व्यर्थ नष्ट करते रहते हैं,कोई फालतू गप्पे लड़ा रहा है,तो कोई ताश खेल रहा है और भी कई शुगल है लोगों के।
  • समय हमारी उम्र का ही नाम है और हम जितना समय व्यर्थ गुजारते हैं उतना जीवन नष्ट कर देते हैं लेकिन हैरत की बात यह है कि इसका हमें जरा भी अफसोस नहीं होता।हमारे रुपए कोई चुरा ले या खो जाए चाहे एक ₹1 हो तो हम बहुत दुखी होते हैं परंतु 10 मिनट या 10 घंटे फालतू खो देने पर जरा भी अफसोस नहीं करते।करें भी कैसे,इस तरफ हमारा ध्यान हो,तभी तो करें।हम सोचते हैं कि ऐसी जल्दी भी क्या है इतना वक्त पड़ा है,लंबी उम्र पड़ी है पर हम जरा पूरी उम्र का हिसाब लगाकर देखें कि हमें काम करने के लिए समय कितना मिलता है।
  • अब विद्यार्थी की दिनचर्या पर चर्चा की जाए।यों दिनचर्या पर लेख लिखा जा चुका है,उसे पढ़कर आप अपनी दिनचर्या निर्धारित कर सकते हैं।परंतु यहां दिनचर्या समय से कैसे संबंधित है इस पर फुटकर रूप से विचार करते हैं।
  • दिनभर का कार्यक्रम इस प्रकार रखें कि समय नष्ट ना हो।अपना समय आवश्यक और उपयोगी कार्यों में ही प्रयोग करें।शाम को एक-डेढ़ घंटा मनोरंजन,खेलकूद आदि के लिए निश्चित रखें।पेट को हल्का और साफ रखना चाहिए,दिनभर कुछ भी अनाप-शनाप,फास्ट-फूड,जंक फूड पेट में न ठूँसते रहें।इससे सिर में भारीपन,सिरदर्द,गैस ट्रबल,कब्ज और स्वप्नदोष नहीं होते।सुबह नींद जल्दी खुलती है और नींद खुलने पर आलस्य तथा भारीपन अनुभव नहीं होता बल्कि ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव होता है।
  • शाम का भोजन जल्दी कर लेना चाहिए।इसके बाद 15-20 मिनट विश्राम करके स्कूल का होमवर्क तथा विद्या अध्ययन के लिए बैठ जाना चाहिए।2 घंटे एकाग्रचित्त होकर अभ्यास करना पर्याप्त है।सोते समय एक गिलास मीठा दूध घूँट-घूँट करके पीना चाहिए।इसमें एक-दो चम्मच शुद्ध घी डाल सकते हैं।घी के स्थान पर चाहें तो एक-दो चम्मच शहद घोल लें।शहद डालें तो दूध बिल्कुल ठंडा होना चाहिए।दूध के साथ घी या शहद लेने से शरीर पुष्ट होता है।इसके बाद पानी से कुल्ले करके मुंह साफ करें,दंत मंजन या टूथपेस्ट से दांत मांज कर साफ करें।हाथ-पैर और चेहरा ठंडे पानी से धो लें और तौलिया से पोंछ ले।
  • बिस्तर पर 2 मिनट बैठकर दिन भर के कार्यक्रम पर विचार करें कि क्या किया,क्या करने से रह गया।क्या-क्या अच्छा किया और क्या-क्या ऐसा किया जो करना नहीं चाहिए था।ऐसा क्यों किया।कल से ऐसा नहीं करेंगे।आदि मुद्दों पर विचार कर अपने दिन भर की दिनचर्या का अवलोकन करें।इसके बाद दिमाग से सब प्रकार के विचार निकालकर मन को एकाग्र यानी एक पॉइंट पर केंद्रित करें और सो जाएं।

5.समय के सदुपयोग के लिए एकाग्रता जरूरी (Concentration is essential for the use of time):

  • अब यह बात तो ठीक से समझ में आ गई होगी कि जीवन,समय और दिनचर्या आपस में एक-दूसरे से बहुत गहराई से अंतर्संबंधित हैं।समय का सदुपयोग,दिनचर्या का पालन और जीवन को सही ढंग से व्यतीत करने और किसी भी काम को दक्षतापूर्वक करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हमारा मन भी एकाग्रतापूर्वक हमारे साथ ही हो,कहीं और उड़ान न भर रहा हो।मन का एकाग्रचित्त रहना ही वर्तमान में जीना होता है लेकिन ज्यादातर ऐसा होता है कि हम जहां होते हैं वहां हमारा मन अक्सर नहीं होता,कहीं ओर होता है।इसे उच्चाटन (Absence of mind) यानी मन की चंचलता कहते हैं।इससे हम पूरी दक्षता से काम नहीं कर पाते क्योंकि जहां हम होते हैं वहाँ हमारा ध्यान यानी मन नहीं होता और जहां हमारा मन होता है वहाँ हमारा शरीर नहीं होता।इस तरह हमारा व्यक्तित्व दो खण्डों में विभाजित हो जाता है।जो वर्तमान छोड़कर भूतकाल या भविष्य काल में खोए रहते हैं वे मौजूदा समय में मौजूद नहीं रहते इसीलिए वर्तमान काल से वंचित रहते हैं।
  • अगर हम भूत या भविष्य में खोए रहेंगे तो वर्तमान से चूक जाएंगे और वर्तमान से चूकना यानी वंचित रहना समय नष्ट करना होगा।समय नष्ट करना ही जीवन को नष्ट करना होता है क्योंकि जीवन और समय एक ही चीज के दो नाम है।
    जो वर्तमान में जीते हैं,उनके शरीर की उम्र कुछ भी हो वे दिल से हमेशा युवा बने रहते हैं,उनका शरीर बूढ़ा दिखता है पर उनका दिल तो युवा बना रहता है,उमंग और जोश से भरा रहता है,इसलिए वे सदैव समय का सदुपयोग करते रहते हैं।

6.मन को वश में रखें (Keep the mind in check):

  • समय का सदुपयोग करने के लिए मन का एकाग्र रखना जरूरी है।मन एकाग्र तभी होता है जब उस पर विवेक का नियंत्रण,आत्मिक नियंत्रण हो।आत्म-नियंत्रण तभी हो सकता है जब हम अपने आपके होने की अनुभूति कर सके।इसीलिए ध्यान,धारणा और समाधि की जरूरत पड़ती है।आत्म-नियंत्रण,आत्मानुभूति तभी होती है जब मन को काम,क्रोधादि से मुक्त रखा जाए और सद्गुणों को धारण करते जाएं।ध्यान का अर्थ है मन को विचार रहित करना और मन को एकाग्र करने का अर्थ है मन को किसी एक विचार पर केंद्रित करना,एक विचार पर स्थिर करना।
  • काम को दक्षतापूर्वक करने के लिए एकाग्रता की जरूरत होती है।तब प्रश्न यह उठता है कि किसी भी कार्य को करने के लिए मन को एकाग्र करना पर्याप्त है फिर ध्यान की अवस्था प्राप्त करने की क्या आवश्यकता है।ध्यान की अवस्था प्राप्त होने अर्थात् विचार के न होने से ऊर्जा का क्षय होना रुक जाता है।जैसे गाढी नींद में सोकर उठते हैं तो हम अपने आप को तरोताजा महसूस करते हैं,चुस्ती-फुर्ती का अनुभव करते हैं,थकावट और खुमारी का जरा भी अनुभव नहीं होता है।यही उपलब्धि जाग्रत अवस्था में भी हो सकती है ध्यान के माध्यम से,क्योंकि गाढ़ी नींद अ-मनी भाव दशा,ध्यान की अवस्था में उपलब्ध रहती है।शरीर को स्वस्थ व निरोग बनाए रखने तथा अध्ययन करने के लिए मनोबल बढ़ाना ध्यान के द्वारा संभव है।इसीलिए प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करना आवश्यक भी है।ध्यान का अभ्यास हमें चिन्ताओं और अशांतियों से बचाता है तथा शांतिपूर्ण और स्वस्थ स्थिति प्रदान करता है।
  • हमारे जीवन का उत्थान या पतन करने में,हमारे भविष्य को उज्ज्वल या अंधकार पूर्ण बनाने में और हमारे पूरे जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करने में जो कारण सबसे अधिक शक्तिशाली और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है वह है हमारा मन क्योंकि हमारे सारे कार्यकलाप हमारे मन के द्वारा ही प्रेरित,संचालित और नियंत्रित रहते हैं।यदि हमारा आचरण अच्छा है,आहार-विहार और आचार-विचार अच्छा है तो उसका पूरा श्रेय हमारे मन को ही दिया जाएगा और यदि बुरा है तो इसके लिए भी मन को ही जिम्मेदार माना जाएगा।हम प्रसन्न होते हैं तो मन के कारण और दुःखी होते हैं तो मन के कारण।हम स्वस्थ रहते हैं तो मन के कारण और अस्वस्थ होते हैं तो भी मन के कारण ही होते हैं।हमारी सफलता-असफलता,उन्नति-अवनति तथा संपन्नता-विपन्नता आदि का कारण भी यही मन ही है।परंतु इस मन को वश में करना कोई सरल कार्य नहीं है,अच्छे-अच्छे ध्यानी,तपस्वी,योगी आदि के भी छक्के छूट जाते हैं।जप,भजन गाना,पूजा करना,संगीत साधना करना,एकाग्रता का अभ्यास के लिए ही किए जाते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन/समय/दिनचर्या के 7 स्वर्णिम मंत्र (7 Golden Spells of Life/Time/Routine),जीवन/समय/दिनचर्या अन्तर्सम्बन्धित (Life/Time/Routine Interrelated) के बारे में बताया गया है।

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7.समय का नाम (हास्य-व्यंग्य) (Time Name) (Humour-Satire):

  • एक छात्र ने एक काली आकृति से पूछाःआपका नाम क्या है?
  • काली आकृति:मुझे अलग-अलग नाम से पुकारते हैं,कोई समय,कोई टाइम,कोई वक्त,कोई काल,कोई कुछ नाम से कहता है।
  • छात्र:तुम इतनी तेजी से कैसे जा रहे हो?
  • काली आकृतिःमैं कभी भी नहीं रूकता और पकड़ में नहीं आता हूँ परंतु जो होश में रहता है वही मुझे पकड़ सकता है।

8.जीवन/समय/दिनचर्या के 7 स्वर्णिम मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 7 Golden Spells of Life/Time/Routine),जीवन/समय/दिनचर्या अन्तर्सम्बन्धित (Life/Time/Routine Interrelated) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.जीवन क्या है? (What is life?):

उत्तर:जीवन एक प्रश्न है और मरण है उसका अटल उत्तर।जीवन एक यात्रा है जिसकी समाप्ति मृत्यु है।

प्रश्न:2.समय की महत्ता क्या है? (What is the importance of time?):

उत्तर:सोने का प्रत्येक धागा मूल्यवान होता है इसी प्रकार समय का प्रत्येक क्षण।समय और विचार महान शोक को भी निस्तेज कर देता है।

प्रश्न:3.मन की महत्ता क्या है? (What is the importance of the mind?):

उत्तर:मन मनुष्य योनि में ही प्राप्त है तथा यह बहुत महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली है,जिसके द्वारा हमारे अधिकांश कार्य संपन्न किए जाते हैं।मन एक महाशक्ति है जो हमें उठा भी सकता है और गिरा भी सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन/समय/दिनचर्या के 7 स्वर्णिम मंत्र (7 Golden Spells of Life/Time/Routine),जीवन/समय/दिनचर्या अन्तर्सम्बन्धित (Life/Time/Routine Interrelated) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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