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6 Ways to Make Progress with WillPower

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1.इच्छाशक्ति से प्रगति करने के 6 उपाय (6 Ways to Make Progress with WillPower),इच्छाशक्ति से प्रगति कैसे करें के 6 उपाय (6 Ways on How to Make Progress by Willpower):

  • इच्छाशक्ति से प्रगति करने के 6 उपाय (6 Ways to Make Progress with WillPower) के आधार पर आप जान सकेंगे कि किसी कार्य को करने के लिए तीव्र,प्रबल इच्छा की दरकार होती है।तीव्र,उत्कट इच्छा ही नहीं होगी या दुर्बल इच्छाशक्ति होगी तो आप क्यों कर अध्ययन करेंगे,आप क्यों जाॅब या अन्य कार्य करेंगे?
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2.इच्छाशक्ति को विकसित करें (Develop willpower):

  • जीवन की सफलता एवं विफलता के निर्णायक तत्त्वों में इच्छाशक्ति का स्थान सर्वोपरि है।इच्छाशक्ति के होने पर व्यक्ति जैसे शून्य में से ही सब कुछ प्रकट कर देता है और उसके अभाव में व्यक्ति सब कुछ होते हुए भी दुर्भाग्य एवं असफलता का रोना रोता रहता है।वस्तुतः इच्छाशक्ति की न्यूनता जीवन की विफलताओं एवं संकटों का मूल कारण है।इसके रहते व्यक्ति छोटी-छोटी आदतों एवं वृत्तियों का दास बनकर रह जाता है और व्यक्तित्व तमाम तरह के छल-छिद्रों से भरता जाता है।छोटी-छोटी नैतिक व चारित्रिक दुर्बलताएं जीवन की बड़ी-बड़ी त्रासदियों और दुर्भाग्यों को जन्म देती है।इच्छाशक्ति की दुर्बलता के कारण ही व्यक्ति छोटे-छोटे प्रलोभनों एवं दबावों के आगे घुटने टेक देता है और उतावलेपन में ऐसे-ऐसे दुष्कृत कर बैठता है कि बाद में पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता।
  • जीवन की इस मूलभूत त्रासदी की स्वीकारोक्ति महाभारत में दुर्योधन के मुख से भगवान श्रीकृष्ण के सामने कुछ इस तरह से होती है:’धर्म को,क्या सही है,इसको मैं जानता हूं,किंतु इसको करने की मेरी प्रवृत्ति नहीं होती।इसी तरह अधर्म को जो अनुचित व पापमय है,इसको भी मैं जानता हूं,किंतु इसको करने से मैं रोक नहीं रोक सकता।दुर्योधन की इस प्रकार स्वीकारोक्ति में मानवीय इच्छाशक्ति की आत्यन्तिक दुर्बलता एवं विफलता का मर्म निहित है।
  • जीवन की आत्यन्तिक सफलता के लिए,एकमात्र रास्ता इच्छाशक्ति का विकास रह जाता है।इसके विकास से पूर्व प्रथम यह जानना उचित होगा की इच्छाशक्ति है क्या? यह माया अर्थात् प्रकृति से संयुक्त होने वाली आत्मा की प्रथम अभिव्यक्ति है।इच्छा,आत्मा और मन का संयोग है।व्यावहारिक जीवन में यह मन की वह रचनात्मक शक्ति है,जो निर्णित क्रिया को एक निश्चित ढंग से करने की क्षमता देती है और उतने ही निश्चित ढंग से अनिर्णित क्रिया को न करने में सक्षम होती है।
  • इच्छाशक्ति के विकास के संदर्भ में दूसरा तथ्य यह है कि इसको प्रत्येक व्यक्ति द्वारा बढ़ाया जा सकता है।वेदों में कहा गया है कि ‘उठो,वीर बनो,शक्तिमान बनो।जानो कि तुम अपने भाग्य के निर्माता आप हो।’ सारी शक्ति एवं सफलता तुम्हारे अंदर सन्निहित है,इस सत्य को गहनता से हृदयंगम कर हम इच्छाशक्ति के विकास पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
  • इच्छाशक्ति के विकास के लिए सर्वप्रथम हमें मस्तिष्क एवं हृदय,विचार एवं भाव के बीच में विभाजन को हटाना होगा।इसके लिए हमें अपने अस्तित्व के उच्चतम सत्य से प्रेम करना होगा कि हम दिव्यता के अंशधर हैं,हम शाश्वत की संतान हैं।हमारे भीतर अनंत संभावनाएं विद्यमान है,जिन्हें हमें अभिव्यक्त करना है। यह वस्तुतः मन,वाणी एवं कर्म तथा विचार,भाव एवं क्रिया की एकता का प्रतिपादन है।
  • हो सकता है कि इस कार्य को सिद्ध करने में हमें लंबा संघर्ष करना पड़े।इस संदर्भ में दो प्रधान व्यवधान कायरता एवं पाखंड के रूप में हमारे अंदर से ही आएंगे,जो इस कार्य को यथासंभव टालने का प्रयास करेंगे।अपनी अंत:प्रकृति में विद्यमान इस शाश्वत कुटिलता एवं दुर्दशा से लोहा लिए बिना और कोई चारा नहीं।हमें वीर बनना होगा और दोनों हाथों में साहस बटोरकर अपने सत्य का अनुसरण करना होगा।वास्तविक सत्य के प्रति हमारा प्रेम ही यहाँ निर्णायक तत्त्व है।जितना जितना हम अपने अस्तित्व के दिव्य सत्य से प्रेम करेंगे,उतना ही हमारी इच्छाशक्ति के विकास का पथ प्रशस्त होता जाएगा।

3.इच्छाशक्ति में बाधक तत्त्व (Factors that hinder willpower):

  • इस रचनात्मक प्रक्रिया में दो प्रमुख व्यवधान हैं,भूतकाल के पश्चात्ताप एवं भविष्य की चिंताएं।दोनों इच्छाशक्ति के विकास में बाधक हैं।भूत के प्रति अत्यधिक पछतावा और भविष्य की अति चिंता,दोनों न केवल वर्तमान को नष्ट करते हैं व मन को दुर्बल बनाते हैं,बल्कि भविष्य को भी धूमिल कर देते हैं।
  • इनसे मुक्त होना अनिवार्य है।भूतकाल के पाप एवं दुष्कृत्यों के अपराध बोध से मुक्ति के लिए सच्चे हृदय से पश्चात्ताप करना होगा।यदि इन गतिविधियों में अभी भी संलग्न है,तो उन्हें विराम देना होगा व दुबारा न करने का दृढ़ संकल्प लेना होगा।इस कृत्य की सफलता के अनुरूप हमारी इच्छाशक्ति के विकास का नया अध्याय शुरू होगा।
  • भविष्य की चिंता एक गंभीर बीमारी है और इसका उपचार वर्तमान को पूर्ण जागरूकता और होशो-हवाश के साथ जीने में है।इस क्षण (वर्तमान) के गर्भ में अनंत समाया हुआ है।यदि हम हर क्षण को सही ढंग से जीना सीख जाएं,तो भविष्य के प्रति निश्चिंत हो सकते हैं,क्योंकि एक-एक क्षण को सही ढंग से जीकर हम अनंत भविष्य को अपने पक्ष में करते हैं।
  • इस संदर्भ में जीवन मूल्यों का उचित ज्ञान व निर्धारण अनिवार्य है,जो दिशासूचक के रूप में जीवन को सही दिशा दे सकें अन्यथा अनुचित दिशा में जाने वाला हर कदम जीवन के संकट को और बढ़ाता ही जाएगा।इस विषय में सद्गुरुओं की अमृतवाणी,महापुरुषों का सत्साहित्य व धर्मग्रंथो का नित्य स्वाध्याय एवं चिंतन-मनन अतीव उपयोगी एवं सहयोगी है।इसी के प्रकाश में इच्छाशक्ति के जागरण एवं विकास की प्रक्रिया गति पकड़ती है,जिसमें तीन चीजें अभिन्न रूप से जुड़ी होती हैं:(1.)सत्य और असत्य,उचित और अनुचित के बीच सतत विवेक,(2.)जो सही है,उसको करने में संलग्नता,(3.)जो अवांछनीय व अनुचित है,उसके प्रतिकार में जागरूकता।
  • इस तरह जीवन मूल्यों का सम्यक बोध एवं उनके अनुरूप जीवन की रीति-नीति के निर्धारण को इच्छाशक्ति के जागरण एवं विकास का प्राथमिक शुभारंभ मान सकते हैं,किंतु इसके विकास का मार्ग सीधा व सरल नहीं है।इसमें तमाम तरह के अवरोध आएंगे।वातावरण का दुषित प्रवाह,कुटुंबीजनों व मित्रों के दुराग्रह एवं निरर्थक सुझाव आदि जाने-अनजाने इसके उद्भव एवं विकास पर तुषारापात करने का प्रयत्न करेंगे।अपनी सजगता व अध्यवसाय (कठिन परिश्रम) के बल पर इन्हें निर्देशित किया जा सकता है।वस्तुतः इच्छाशक्ति का विकास सरल कार्य नहीं है।किसी ने ठीक ही कहा है कि सबसे कठिन कार्य बच्चे व बूढ़े की देखभाल नहीं,बल्कि अपनी देखभाल है,अपना निर्माण व विकास है।

4.इच्छाशक्ति को कैसे विकसित करें? (How to develop willpower?):

  • इच्छाशक्ति के विकास में एकाग्रता की शक्ति बहुत सहायक है।वास्तव में दोनों अन्योन्याश्रित हैं।इसके लिए हम जो भी कार्य करें,उसे पूरे मन से करें।इससे इच्छाशक्ति के विकास में बहुत सफलता मिलेगी।साथ ही ऐसे कार्यों से बचें,जिनमें ऊर्जा का अनावश्यक क्षय होता है।वृथा बातें,उद्देश्यहीन कार्य,निरर्थक वाद-विवाद,परदोष-दर्शन,परनिंदा,दिवास्वप्न आदि से दूर ही रहें।अपने व्यवहार व क्रियाकलापों को दिशाबद्ध व संयत बनाएं।मानसिक ऊर्जा का शारीरिक ऊर्जा विशेषकर काम ऊर्जा से सीधा संबंध है।काम ऊर्जा की अतिशय बर्बादी जहां शरीर ऊर्जा को बेतहाशा नष्ट करती है वहीं मन को भी उथला व इच्छाशक्ति को दुर्बल बनाती है।वास्तव में इच्छाशक्ति के विकास का मुख्य रहस्य ब्रह्मचर्य के उचित अभ्यास में निहित है।
  • सुव्यवस्थित दिनचर्या एवं इंद्रिय संयम के साथ अपनी विचार प्रणाली पर समुचित ध्यान देना अनिवार्य है।इसके लिए सतत मन पर निगरानी रखनी होगी।इस प्रक्रिया में यह याद रखना चाहिए कि गलत विचारों पर विजय का एकमात्र मार्ग समय-समय पर मन की गतिविधियों का परीक्षण करना,उन पर चिंतन-मनन करना और जो कुछ निम्न एवं हेय है,उसको त्यागते हुए श्रेष्ठ एवं उदात्त का वरण एवं विकास करना है।इस तरह जब छात्र-छात्राएं अपने बुरे विचारों पर विजयी हो जाएगा,वह एक दिन अपने मन का स्वामी बनेगा और सदैव के लिए बुराई एवं दुःख से मुक्त हो जाएगा।
  • इस तरह हेय विचारों पर विजय के अनुरूप हमारी इच्छाशक्ति की दृढ़ता भी बढ़ती जाएगी,किंतु अवांछनीय विचारों को निरस्त कर,वांछनीय विचारों की खेती इतना सरल कार्य नहीं।हम इस प्रयास में स्वयं को अपनी आंतरिक,असहाय स्थिति एवं शर्मनाक दुर्बलताओं से आमना-सामना करते हुए पा सकते हैं।यदि हम अपनी वास्तविक दुर्बलता को अनुभव करते हैं,तो हमें विनम्रता से एक सरलतम कार्य करना चाहिए।हमें सर्वशक्तिमान भगवान से इच्छाशक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।अपनी असहाय एवं बेबस स्थिति में हम अपने परमात्मा,अपने आदि स्रोत,अपने दिव्य अंशी से सहायता नहीं मांगें तो और किससे मांगें।सरल हृदय से किया गया यह विनम्र प्रयास अवांछनीय विचार प्रवाह को निरस्त करने का एक अचूक उपाय है।अपने सच्चे प्रयास व भगवान की कृपा के साथ हम इच्छाशक्ति के विकास पर आगे बढ़ सकते हैं और भगवान के प्रति समर्पण भाव के अनुरूप इसकी पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं।इसके पूर्ण विकास की अवस्था उस क्षण आएगी,जब हम आत्यन्तिक सहजता एवं आनंद के साथ हर स्थिति में कह सकें कि भगवान! तेरी इच्छा पूर्ण हो,मेरी नहीं।
  • अतः जितना हमारा जीवन जागरण,विकास एवं भगवद् भक्ति की पुण्य क्रिया में संलग्न होगा,उतना ही इच्छाशक्ति के विकास का पथ प्रशस्त होता जाएगा और उतना ही हमारा जीवन सच्चे सुख,शांति व सफलता से परिपूर्ण होता जाएगा।इच्छाशक्ति के जागरण एवं विकास द्वारा जीवन के सर्वांगीण अभ्युदय का राजमार्ग हम सबके लिए खुला हुआ है।यह हमारी इच्छा पर निर्भर है कि उस पर कितना बढ़ पाते हैं।

5.इच्छाशक्ति से प्रगति का निष्कर्ष (Conclusion of progress by willpower):

  • इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति नहीं होती है।आपकी एक इच्छा पूरी होगी और फिर दूसरी इच्छा जागृत हो जाएगी।इस प्रकार इच्छा और कामनाओं का तांता लगा रहता है।इच्छाएँ और कामनाएं अनंत होती हैं,अतः उनकी पूर्ति इस जन्म में ही क्या अनेक जन्मों में भी नहीं हो सकती है।जिस वस्तु की तुमने चाह की,यदि वह तुम्हें ना मिली तो तुम निराश होते हो।यदि वह तुम्हें मिली,तो तुम उसे और भी अधिक परिणाम में चाहते हो और इस कारण दुःखी होते हो।जब हमें इच्छाओं का खोखलापन का ज्ञान हो जाएगा तभी हम (आत्मज्ञान द्वारा) इच्छाओं से मुक्त हो सकते हैं।
  • परंतु किसी एक इच्छा को अपना लक्ष्य बना लो और अपनी सारी शक्तियों को एकाग्र करके इसमें लगा दो।जैसे किसी विद्यार्थी की कंटेंट राइटर,ब्लॉगर,यूट्यूबर,फ्लुएंसर,इंजीनियर,गणितज्ञ,प्राध्यापक,डॉक्टर आदि में से अपनी रुचि,इच्छा और योग्यता के अनुसार एक क्षेत्र का चुनाव कर लो।फिर अपनी क्रियाओं को उसी दिशा में मोड़ दो।यही उसकी इच्छाशक्ति बन जाती है।यानी अपनी कोई विशिष्ट इच्छा,चाह को लक्ष्य बनाने के बाद अपनी मानसिक,बौद्धिक,शारीरिक और आत्मिक शक्ति को लगा देना इच्छाशक्ति का रूप ले लेती है।इच्छाशक्ति के अभाव में हम हमारे लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।किसी इच्छा को लक्ष्य बनाते समय यह अवश्य सोच लेना चाहिए कि इसमें मुझे कितनी हानि और लाभ हो सकता है।इससे मन में दृढ़ता उत्पन्न होती है और मनुष्य प्रलोभनों से बचा रहता है।प्रायः ऐसा होता है कि किसी एक इच्छा को लक्ष्य बनाने के बाद ही कोई ना कोई प्रलोभन सामने आ जाता है और फिर अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • जैसे कोई विद्यार्थी बीटेक करने के बाद अपना स्टार्टअप शुरू करता है,कुछ समय बाद स्टार्टअप के शुरू करने या उसकी कीर्ति फैलने पर आपकी प्रतिभा का पता चलता है।फलतः कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी आपको कंपनी में अच्छा पद और वेतन का ऑफर देती है।आपके सामने ऐसी स्थिति में दुविधा खड़ी हो जाती है।लक्ष्य पर चलने के बाद ऐसे ही अनेक प्रलोभन,समस्याएं,कठिनाईयाँ सामने आती हैं जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।ऐसी स्थिति में मन डाँवाडोल होने लगता है।हमें ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।कार्यसिद्धि के मार्ग में न जाने कौन बाधा कहां से आ जाए,अस्तु उसका सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए तभी दृढ़ इच्छाशक्ति बनी रह सकती है।
  • अपने लक्ष्य को विचारपूर्वक निश्चित कीजिए कि मैं यह चाहता हूं और यह बनूँगा।फिर अपनी समस्त शक्तियों को लक्ष्य पर केंद्रित कर दीजिए।दूसरों की विशेषता तथा अवगुणों पर ध्यान मत दीजिए।दूसरों के देखादेखी अपना लक्ष्य तय मत कीजिए।कोई विद्यार्थी इंजीनियर बनना चाहता है तो वैसा ही बनने की मत सोचिए।यदि वास्तव में इंजीनियरिंग में आपकी रुचि है और आपमें क्षमता व योग्यता है तो ही इंजीनियर बनने की सोचिए। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सच्चाई,ईमानदारी एवं निरंतर परिश्रम से काम कीजिए,सोचिए कम,करिए अधिक।प्रत्येक काम को बिना घबराए निश्चिंत भाव से कीजिए,संतोष से काम कीजिए,मन को निर्द्वन्द्व एवं प्रसन्न रखकर आत्मबल को जागृत कीजिए।अपनी दृष्टि लक्ष्य की ओर गड़ाकर सारी शक्तियां उस पर केंद्रित कर दीजिए।
  • विद्यार्थी के हाथ कर्म करना है।’लक्ष्य के प्रति तन्मय रहना’ यह विद्यार्थी की इतनी बड़ी विशेषता,प्रतिष्ठा,सफलता और महानता है कि उसकी तुलना में अनेक प्रकार के आकर्षक गुणों को तुच्छ ही कहा जाएगा।
  • मन बड़ा शक्तिमान है,परंतु है बड़ा चंचल।उसकी समस्त शक्तियां बिखरी हुई रहती हैं और इसलिए विद्यार्थी सफलता को आसानी से नहीं प्राप्त करता।सफलता के दर्शन उसी समय होते हैं,जब मन अनेक कामनाओं को छोड़कर किसी एक कामना या एक वृत्ति पर केंद्रित हो जाता है,इसके अलावा और कुछ उसके आमने-सामने और आस-पास रहता ही नहीं।सब तरफ लक्ष्य-ही-लक्ष्य,उद्देश्य-ही-उद्देश्य होता रहता है।
  • जिन्हें हम विघ्न कहते हैं,वे हमारे चित्त की विभिन्न वृत्तियाँ हैं,जो अपने अनेक आकार-प्रकार धारण करके सफल नहीं होने देतीं।यदि हम लक्ष्य सिद्ध करना चाहते हैं,तो यह आवश्यक है कि लक्ष्य से विमुख करने वाली जितनी विचार धाराएं उठें और पथ-भ्रष्ट करने का प्रयत्न करें,प्रलोभन आएं तो हमें उनसे अपना संबंध विच्छेद कर लेना चाहिए और यदि हम अपनी दृढ़ता को कायम रखें,अपने आप पर विश्वास रखें तो हम ऐसा कर सकते हैं,इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है।
    मन की अपरिमित शक्ति को जो लक्ष्य की ओर लगा देते हैं और लक्ष्य-भ्रष्ट्र करने वाली वृत्तियों पर अंकुश लगा लेते हैं अथवा उनसे मुंह मोड़ लेते हैं,वे ही जीवन के क्षेत्र में विजयी होते हैं,सफल होते हैं।
  • तात्पर्य यह है कि कामनाओं व इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती बल्कि संकल्पों की पूर्ति होती है।संकल्प में निश्चित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभीष्ट पुरुषार्थ करने की लगन होती है,उसमें परिणाम के लिए उतावलापन नहीं होता है,उसका निश्चय होता है।उतावली में विद्यार्थी समय अधिक लगने पर अधीर हो उठता है।व्यवधान अड़ जाने पर भी उसे अपनाए रहने और कठिनाइयों से जूझते रहने का भी साहस नहीं होता।संकल्प से इच्छाशक्ति और भावनाशक्ति दोनों जुड़ी होती है।उसकी रूपरेखा विचारपूर्वक बनाई जाती है और उसे उपलब्ध करने के लिए जिन साधनों और सहयोग की अपेक्षा है,उनकी भी समय रहते व्यवस्था जुटा ली गई होती है।उसके पीछे सुनियोजित भावना होती है किंतु मनोकामना तो एक प्रकार का भावावेश है।उसके पीछे न दूरदर्शी विवेकशीलता का समावेश होता है और न समुचित तैयारी वाली परिकल्पना एवं साधन-संपन्नता।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में इच्छाशक्ति से प्रगति करने के 6 उपाय (6 Ways to Make Progress with WillPower),इच्छाशक्ति से प्रगति कैसे करें के 6 उपाय (6 Ways on How to Make Progress by Willpower) के बारे में बताया गया है।

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6.इच्छाशक्ति पूरी करने का उपाय (हास्य-व्यंग्य) (Way to Fulfill a Wish) (Humour-Satire):

  • रिजल्ट आने के बाद तीन भाइयों ने अपनी कामना पूरी करने के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
  • छोटे ने जोर-जोर से चिल्लाकर करना शुरू किया।छोटा: भगवान मुझे मोबाइल फोन देना,भगवान मुझे अच्छा सा फोन देना।
  • मझला भाई:भगवान मुझे लैपटॉप देना,भगवान मुझे अच्छा सा ब्रांड का लैपटॉप देना।
  • बड़ा भाई:भगवान मुझे मोटरसाइकिल देना,भगवान मुझे मॉडर्न मोटरसाइकिल देना।
  • मां:तुम तीनों इतनी जोर से क्या बोल रहे हो? भगवान बहरा नहीं है।
  • तीनों:यह कामनाएँ तो हम पिताजी को सुना रहे हैं।

7.इच्छाशक्ति से प्रगति करने के 6 उपाय (Frequently Asked Questions Related to 6 Ways to Make Progress with WillPower),इच्छाशक्ति से प्रगति कैसे करें के 6 उपाय (6 Ways on How to Make Progress by Willpower) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.किसी इच्छा को लक्ष्य बनाने से पूर्व क्या सोचें? (What to think about before you set a goal for a desire?):

उत्तर:अपनी रुचि,योग्यता,सामर्थ्य,साधन,धन,मित्र,बंधु,बांधव,आर्थिक,शारीरिक,धार्मिक व सामाजिक स्थिति कैसी है इन सभी पर विचार करके ही अपनी किसी इच्छा को लक्ष्य बनाएं।

प्रश्न:2.कार्य की सफलता के लिए क्या जरूरी है? (What is necessary for the success of the work?):

उत्तर:सफलता के लिए मानसिक,शारीरिक तथा क्रियात्मक शक्तियों को कार्य के उद्देश्य की ओर केंद्रित कीजिए।मानसिक रूप से सचेष्ट और जागृत रहिए। संकल्पशक्ति का विकास एवं संकल्प जरूरी है।इन पर विचार के पश्चात सफलता अवश्य मिलती है।

प्रश्न:3.विचार के साथ क्या जरूरी है? (What’s important with the idea?):

उत्तर:जिनकी विचारधारा संतुलित है,उसके साथ कर्म का समन्वय है,वे जीवन को सार्थक बनाकर श्रेय प्राप्त करते हैं।जीवन में कर्म को प्रधानता देने वाले व्यक्ति योजनाएं कम बनाते हैं और काम अधिक किया करते हैं।

  • उपर्युक्त आर्टिकल में इच्छाशक्ति से प्रगति करने के 6 उपाय (6 Ways to Make Progress with WillPower),इच्छाशक्ति से प्रगति कैसे करें के 6 उपाय (6 Ways on How to Make Progress by Willpower) के बारे में बताया गया है।
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