5Tips for Student to Get Free from Ego
1.छात्र-छात्राओं के लिए अहंकार से मुक्त होने की 5 टिप्स (5Tips for Student to Get Free from Ego),अहंकार से मुक्त होने के 5 अमोघ मन्त्र (5 Unfailing Spells to Get Free from Arrogance):
- छात्र-छात्राओं के लिए अहंकार से मुक्त होने की 5 टिप्स (5Tips for Student to Get Free from Ego) के आधार पर आप जान सकेंगे कि अहंकार क्या है,अहंकार हमारी प्रगति और विकास में कैसे रोड़ा बन जाता है? विद्या ग्रहण करने के लिए अहंकारी होने के बजाय विनम्रता धारण करना जरूरी है।
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2.अहंकार क्या है? (What is arrogance?):
- अहंकार एक भ्रम है,जो व्यक्ति के अंदर तब उत्पन्न होता है,जब वह स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगता है;स्वयं को शक्तिमान मानने लगता है और यह मानने लगता है कि ये दुनिया उसी के इशारों पर चल रही है;वह ही सृष्टि का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है,उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता।अहंकारी व्यक्ति को स्वयं पर इतना घमंड हो जाता है कि वह स्वयं को दुनिया से अलग,सबसे विशिष्ट समझने लगता है;जबकि ऐसा होता नहीं।उसे तो पता ही नहीं होता कि उसके इस अहंकार का आधार किस सच्चाई पर टिका है और इसका परिणाम क्या होगा।अपने इस अहंकार के कारण वह दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पाता,उन पर अधिकार जमाना चाहता है और यह चाहता है कि सारी दुनिया केवल उसका ही गुणगान करें और उसी के इशारों पर चले।
- अहंकार व्यक्ति को किस दिशा की ओर ले जाता है इससे संबंधित एक सत्य घटना है।दक्षिण में मोराजी पंत नामक एक बहुत बड़े विद्वान थे।उनको अपनी विद्या का बहुत अभिमान था।वे अपने समान किसी को भी विद्वान नहीं मानते थे और सब को नीचा दिखाते रहते थे।एक दिन की बात है कि दोपहर के समय वे अपने घर से स्नान करने के लिए नदी पर जा रहे थे।मार्ग में एक पेड़ पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे।वे आपस में बातचीत कर रहे थे।एक ब्रह्मराक्षस बोला:”हम दोनों तो इस पेड़ की दो डालियों पर बैठे हैं,पर यह तीसरी डाली खाली है,इस पर बैठने के लिए कौन आएगा?” तो दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला:” यह जो नीचे से जा रहा है न,यह आकर यहां बैठेगा;क्योंकि इसको अपनी विद्वता का बहुत अधिक अभिमान है।” उन दोनों के संवाद को मोरोजी पंत ने सुना तो वे वहीं रुक गए और विचार करने लगे कि हे भगवान! विद्या के अभिमान के कारण मुझे ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा और प्रेतयोनियों में जाना पड़ेगा।अपनी होने वाली इस दुर्गति से वे घबरा गए और मन ही मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति शरणागत होकर बोले:”मैं आपकी शरण में हूं,आपके सिवाय मुझे बचाने वाला कोई नहीं है।” ऐसा सोचते हुए वे वहीं से आलंदी के लिए चल पड़े और जीवन पर्यंत वहीं रहे।आलंदी वह स्थान है,जहाँ संत ज्ञानेश्वर ने जीवित समाधि ली थी।संत की शरण में जाने से उनका अभिमान चला गया और संत कृपा से वे भी संत बन गए।
- अहंकार हमारे जीवन में ऐसे छद्म रूप में आता है कि हम उसे पहचान ही नहीं पाते और धीरे-धीरे विचारों और भावनाओं का पोषण पाकर वह अपना रूप विकसित कर लेता है।जिस प्रकार जल से आधा भरा हुआ मटका सिर पर रखकर ले जाने पर छलकता हुआ जाता है और यह बताता है कि उसके अंदर जल भरा हुआ है;जबकि जल से संपूर्ण रूप से भरा हुआ मटका छलकता नहीं है।उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति अपने अंदर के थोड़े से गुणों का इतना बखान करता है,जैसे वह ही सबसे गुणवान व सर्वोत्तम हो।बात-बात में यह जताता है कि उसके समान कोई नहीं,वह ही सबसे अच्छा है,बाकी सब तो कितने बेकार हैं।इसलिए दूसरों की बुराई करने में भी वह हिचकता नहीं है;क्योंकि इससे वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश करता है।अहंकारी व्यक्ति अपनी शक्ति को व्यर्थ ही स्वयं को दूसरों से बड़ा सिद्ध करने में गँवाता है।
3.अहंकार का दुष्परिणाम (Side effects of arrogance):
- भारत में एक बहुत ज्ञानी और मेधावी छात्र था।यह छात्र भौतिक शिक्षा अर्जित करने के साथ-साथ अतिरिक्त समय में एक आश्रम में आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त करता था।एक दिन उस आश्रम में एक विद्वान व्यक्ति आये और आश्रम में प्रवेश करते ही उनका उस छात्र से किसी विषय पर विवाद हो गया।छात्र मेधावी था अतः उसने देखते ही देखते उन विद्वान महाशय के तर्कों को अपने तर्कों से तहस-नहस कर डाला।छात्र के सामने उस विद्वान व्यक्ति की एक न चली और स्थिति यहाँ तक आई कि आगन्तुक विद्वान व्यक्ति को उस छात्र से क्षमा याचना करनी पड़ी।इस घटना ने छात्र को पुलकित कर दिया।उस छात्र ने बड़े ही उत्साहपूर्वक यह घटना अपने गुरुदेव को सुनाई और यह सोचा कि गुरुदेव प्रसन्न होकर उसकी पीठ थपथपाएँगे,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ,बल्कि उसका ठीक विपरीत हुआ।
- उनके गुरु ने छात्र को कड़ी फटकार लगाई।वे छात्र से बोले-“शिष्य! श्रेष्ठ चिंतन की सार्थकता तभी है,जब उससे चरित्र बने और श्रेष्ठ चरित्र तभी सार्थक है,जब वह श्रेष्ठ व्यवहार बनकर प्रकट हो।तुमने वेदांत का चिंतन तो किया,पर ज्ञाननिष्ठ साधक का चरित्र नहीं गढ़ सके और न ही तुम ज्ञाननिष्ठ साधक का व्यवहार करने में समर्थ
- हो पाए,इसलिए तुम्हारे अब तक के सारे अध्ययन-चिंतन को बस,धिक्कार योग्य ही माना जा सकता है।”
गुरु के इन वचनों को सुनकर छात्र का अहंभाव चूर-चूर हो गया।उसने बड़े ही विनम्र भाव से पूछा: “हे गुरुदेव! हम अपना व्यक्तित्व किस भाँति गढ़े।” उत्तर में गुरुदेव बोले: “वत्स! व्यक्तित्व को नए सिरे से गढ़ने के लिए पहले अपने विचारों में उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए।इसमें दूसरी महत्त्वपूर्ण बात है कि उद्देश्य के अनुरूप चिंतन के अलावा कोई भी दूसरा विचार या चिंतन मन में प्रवेश न करने पाए और तीसरा तथ्य यह है कि उद्देश्यपूर्ण विचार की प्रगाढ़ता निरंतर बनी रहे।मनन और निदिध्यासन निरंतर होता रहे।ऐसे प्रगाढ़ चिंतन से ही तदनुरूप चरित्र का निर्माण होता है,लेकिन यह ध्यान रहे की चिंतन स्वयं के चरित्र को निर्मित करने के लिए होता है न कि दूसरे के तर्क को पराजित करके स्वयं के अहं की तुष्टि के लिए।तर्क-कुतर्क करने वाले का चिंतन कभी भी तदनुरूप चरित्र का निर्माण नहीं कर पाता है।इसके विपरीत यदि तर्क-कुतर्क से बचा जाए तो सर्वथा एक नया चरित्र गढ़ा जाता है।”
- इस तरह उनके गुरु ने छात्र से अहंकार को त्यागकर अपने चिंतन को विकसित करते के लिए कहा,न कि तर्क-कुतर्क के माध्यम से स्वयं की विद्वता का प्रदर्शन करने के लिए।हमारे जीवन में होता यही है कि हम अपने जीवन में किसी भी तरह झुकना पसंद नहीं करते और अपने अहंकार के कारण दूसरों के तर्कों को अपने तर्कों से पराजित करने में लगे रहते हैं कि किस प्रकार हम सही है और दूसरा गलत है।इस प्रक्रिया में हमारे जीवन में अधिकांश समय चला जाता है और कुछ भी हस्तगत नहीं होता।
आजकल के छात्र-छात्राएं स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय में डिग्री पर डिग्री हासिल करते चले जाते हैं और अपने अहंकार को बढ़ाते जाते हैं।जीवन में विनम्रता,सहनशीलता,धैर्य,सद्बुद्धि आदि गुणों के विकास पर ध्यान नहीं रहता है,फलतः उनका जीवन अहंकार का पोषण करने में व्यतीत हो जाता है।
4.अहंकार के अन्य परिणाम (Other consequences of arrogance):
- विनम्रता,शालीनता ऐसे गुण हैं जिनके माध्यम से अहंकार का विलय होता है और जीवन सुविकसित बनता है।विनम्र व्यक्ति का जीवन फल से लदे हुए वृक्ष के समान होता है,जो हमेशा दूसरों को देता ही रहता है और झुका रहता है; क्योंकि उसके पास ऐसी कई विभूतियां होती है,जिनसे वह सरोबार रहता है।ऐसे ही व्यक्ति जीवन में सही पुरुषार्थ कर पाते हैं और सही मायनों में अपने लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं;जबकि अहंकारी व्यक्ति कभी-भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता और न ही दूसरों को कुछ अच्छा दे पाता है।जीवन में अहंकार उत्पन्न होने से प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं और व्यक्ति का जीवन भटकने लगता है,ऐसी परिस्थिति में भगवान (अध्ययन,विद्या ग्रहण करने) शरणागति,समर्पण भाव व विनम्रता ही हमें सही रास्ते पर ला सकती है।
- अहंकार व्यक्ति के जीवन को एक ऐसे नशे में डुबोता है जिसके कारण वह इससे उबरना नहीं चाहता,बल्कि और डूबना चाहता है व डूबता रहता है,लेकिन पाता कुछ नहीं।व्यक्ति यह सोचता है कि उसका अहंकार ही सर्वोपरि है।इसी की वजह से वह इस मुकाम तक पहुंचा है और इसी के कारण उसका समाज में इतना सम्मान है,लेकिन सच यह नहीं है।अहंकारी व्यक्ति को कोई भी हृदय से पसंद नहीं करता और उसके अहंकार को तो बिल्कुल भी नहीं।हाँ,यह जरूर है कि वह अपने अहंकार को बहुत बड़ा मानता है उसको निरन्तर विविध उपायों से पोषित करता रहता है और उसको पोषित करने में जब वह असफल हो जाता है तो उसका अहंकार एक घाव की भाँति रिसने व दुःखने लगता है और धीरे-धीरे उसके मन में हीनता की ग्रंथि बन जाती है,जो सदा-सर्वदा उसे डराती रहती है।
- सच मायने में अहंकार का कोई सच्चा अस्तित्व है ही नहीं,वह तो गुब्बारे में भरी हुई हवा के समान फूला रहता है; जब तक हवा है,तब तक फूला है,जैसे ही हवा निकलती है तो वह पिचक जाता है और फिर स्वयं को फुला नहीं सकता।जिस तरह गुब्बारा हवा की वजह से फूलता है स्वयं से नहीं,उसी तरह व्यक्ति को आगे बढ़ाने वाली शक्ति व प्रेरणा उसे परमात्मा की कृपा से मिलती है,उसके अहंकार की वजह से नहीं,लेकिन जब व्यक्ति सफल होता है तो वह परमात्मा की कृपा को धन्यवाद देना भूल जाता है और यह सोचता है कि उसी ने सब कुछ किया है और वह अकेले ही सब कुछ कर सकता है,उसे किसी के सहयोग की जरूरत नहीं।
- अहंकार हमें परमात्मा (लक्ष्य) से दूर करता है और इसीलिए अगर किसी व्यक्ति को अहंकार होता है तो उसका अहंकार नष्ट करने के लिए कोई ना कोई उपक्रम भी अवश्य होता है,जिसके कारण उसका अहंकार चूर-चूर हो जाता है।इतिहास में अनेकों ऐसे व्यक्ति हुए हैं,जो बहुत अहंकारी हुए हैं,पर आज उनका अस्तित्व कहीं नहीं है,जैसे:रावण,कंस,महमूद गजनवी,सिकंदर,हिटलर आदि।इन सबकी दुर्गति से हम यही सीख सकते हैं कि अहंकार हमें किसी काम का नहीं छोड़ता है,बल्कि हमारी क्षमताओं को नष्ट ही करता है।
- अहंकार जब व्यक्ति के सिर पर चढ़ता है तो उसे यह एहसास कराता है कि कोई उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता,क्योंकि वह सबसे श्रेष्ठ है।चूँकि ऐसा संभव नहीं है,इसलिए एक न एक दिन वह पराजित होता है और उसकी पराजय उसे यह एहसास कराती है कि अहंकार का नाश होना ही एकमात्र सच्चाई है।
5.अहंकार से कैसे बचें? (How to avoid arrogance?):
- हमारे व्यक्तित्व की सार्थकता,सद्भावनाओं,सद्विचारों और सत्कर्मों से है,अहंकार के अनुचित पोषण में नहीं।पूरे जीवन केवल अहंकार को पोषित करने के लिए जिया जाए तब भी उसकी संतुष्टि संभव नहीं है।अतः जीवन में सद्विवेक को जागृत करना,अहंकार की ऊंचाई से उतरकर वास्तविकता के धरातल पर आना,विनम्रता-शालीनता को जीवन का अंग बनाना और अहंकारपूर्ण विचारों को परमात्मा (अध्ययन-मनन-चिंतन,विद्या ग्रहण करने में) को समर्पित करना ही महत्त्वपूर्ण है तभी हम सही दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
- हमें अपने कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के अलावा भी कुछ आध्यात्मिक,व्यावहारिक ज्ञान की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।किए हुए अध्ययन पर मनन-चिंतन करें।अपने मित्रों,सहपाठियों से संवाद करें,वार्तालाप करें और अपने व्यवहार व चरित्र को उत्तम व श्रेष्ठ बनाएं।अपने आपका आत्म-विश्लेषण करें और जो भी कमजोरियाँ हैं,दोष हैं उन्हें पहचानें तथा दूर करने का प्रयास करें।
- अक्सर हमारे माता-पिता व अभिभावक तथा शिक्षक हमारे अहंकार को पुष्ट करने की डोज दिया करते हैं और हम उस डोज (dose) को लेकर मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।माता-पिता वगैराह कहते हैं कि ये बनकर दिखाओ,वो करके दिखाओ,ऐसा करके दिखाओ,वैसा करके दिखाओ।और हम उनके हाथ का खिलौना बन जाते हैं।डॉक्टर,इंजीनियर,आईएएस बनने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं।उनके अहंकार और अपने अहंकार को बढ़ाने का काम करते हैं।अगर हम वैसा बन जाते हैं तो हमारा अहंकार और मजबूत होता चला जाता है।फिर हम सुख-सुविधाएँ,विलासिता की चीजों,कार,बंगला,कोठी,धन-संपत्ति को इकट्ठा करने में लग जाते हैं।माता-पिता व शिक्षक वगैराह कभी यह नहीं कहते हैं कि तुम इंसान बन कर दिखाओ,तुम इंसान बनो,क्योंकि उन्हें लगता है कि इंसान बनने से जिंदगीभर कष्ट-कठिनाइयों,मुसीबतों का सामना करना है और फिर स्टेटस मेंटेन भी तो नहीं हो सकता है।दूसरे से बड़ा बनकर कैसे दिखाएं,दूसरे ने कार-कोठी,बंगला आदि तमाम सुविधाएं जुटा ली है तो हमें भी जुटानी चाहिए तभी उससे श्रेष्ठ बन सकते हैं।
- यहां यह मंतव्य नहीं है कि सुख-सुविधाओं के साधन नहीं जुटाने चाहिए,डॉक्टर,इंजीनियर आदि नहीं बनना चाहिए बल्कि यहां मकसद यह है कि इनसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात है,इंसान बनना।अतः कुछ भी पद,प्रतिष्ठा,सुख-सुविधाएँ प्राप्त करो परंतु उससे पहले इंसान बनों।अहंकार रहित बनो,विनम्र व्यक्ति बनो,नेक इंसान बनो,स्वार्थी ही नहीं परमार्थी भी बनो।
- अपने अध्ययन को पूजा,आराधना समझकर करें तो अहंकार से बच सकते हैं।केवल शिक्षा ही नहीं विद्या भी अर्जित करें।केवल कोई अधिकारी,व्यवसायी,उद्यमी,कलाकार,वैज्ञानिक,गणितज्ञ आदि ही नहीं बल्कि इंसान भी बनें।सभी कार्य भगवान (अध्ययन,मनन,चिंतन,विद्या ग्रहण) को समर्पित करके किए जाएं तो अहंकार से बचा जा सकता है।अपने अध्ययन कार्य को कर्त्तव्य समझकर किया जाए तो अहंकार हमें छू ही नहीं सकता है।किसी की सहायता-सहयोग करें अहसान न समझकर सेवा,ड्यूटी की तरह किया जाए तो आपके पास अहंकार फटक ही नहीं सकता है।सज्जनों,महापुरुषों,महामानवों के जीवन चरित्र को देखें,यदि हो सके तो उनसे सत्संग करें आप महसूस करेंगे कि उन्हें पता ही नहीं होगा कि अहंकार किस चिड़िया का नाम है।अपने से बड़ों का,माता-पिता का,गुरुजनों का सम्मान करो और उन्हें प्रणाम करें,आपका अहंकार गायब हो जाएगा।आपके पास कितने भी ठाठ-बाट हों,यही समझें कि यह सब उस परमपिता परमेश्वर की अमानत है जो हमें किराए पर मिली है और एक दिन यह सब छूट जाने वाले हैं,आप अहंकार से मुक्त हो जाएंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए अहंकार से मुक्त होने की 5 टिप्स (5Tips for Student to Get Free from Ego),अहंकार से मुक्त होने के 5 अमोघ मन्त्र (5 Unfailing Spells to Get Free from Arrogance) के बारे में बताया गया है।
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6.छात्र का अहंकार (हास्य-व्यंग्य) (Ego of Student) (Humour-Satire):
- एक छात्र नौकरी की तलाश में घूमता-फिरता एक कंपनी में पहुंचा।उसने कंपनी के निदेशक को बताया कि उसने अमुक डिग्री हासिल की है।
- निदेशक ने कहा कि एक चपरासी का पद खाली है।
- उसने कहा (छात्र ने):श्रीमान मेरे पिता डिप्टी कलेक्टर थे,बाबा कलेक्टर तो परदादा कमिश्नर थे।मैं इतने ऊंचे खानदान का हूं।सबका हर कहीं आदर होता है।
- निदेशक ने कहा:यह नौकरी (चपरासी) आपकी योग्यता के अनुसार दी जा रही है,ऊंचे खानदान के कारण नहीं।जितनी योग्यता होगी उसी के अनुसार पद मिलेगा।
छात्र का अहंकार जाता रहा।
7.छात्र-छात्राओं के लिए अहंकार से मुक्त होने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5Tips for Student to Get Free from Ego),अहंकार से मुक्त होने के 5 अमोघ मन्त्र (5 Unfailing Spells to Get Free from Arrogance) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.अहंकार का अर्थ क्या है? (What is the meaning of arrogance?):
उत्तर:अहंकार अपने आप से अलग होने की अनुभूति है।अपनी आत्मिक शक्ति से पूर्णतया कटकर अलग होना अहंकार है।हालांकि,यह अनुभूति,ऐसा एहसास केवल एक विचार या कल्पना मात्र है,हकीकत नहीं बस निरा,भ्रम है।
प्रश्न:2.अपने आपसे पृथक होने का क्या नुकसान है? (What is the harm in separating from yourself?):
उत्तर:हम अपनी आत्मिक ऊर्जा,जीवन ऊर्जा का उपयोग नहीं कर पाते हैं।हमारी ऊर्जा खंड-खंड हो जाती है,एकजुट नहीं रहती है।
प्रश्न:3.चिंता का मूल कारण क्या है? (What is the root cause of concern?):
उत्तर:चिंता का मूल कारण अहंकार है।अहंकार हमें अपने अंदर प्रवाहित प्रेम को अनुभव नहीं करने देता।कई समस्याएँ खड़ी कर देता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए अहंकार से मुक्त होने की 5 टिप्स (5Tips for Student to Get Free from Ego),अहंकार से मुक्त होने के 5 अमोघ मन्त्र (5 Unfailing Spells to Get Free from Arrogance) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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