How to Manage Moment of Grief Properly?
1.दुःख के पलों का सही प्रबंधन कैसे करें? (How to Manage Moment of Grief Properly?),दुःख का सही प्रबन्धन कैसे करें? (How to Manage Grief Properly?):
- दुःख के पलों का सही प्रबंधन कैसे करें? (How to Manage Moment of Grief Properly?) दुःख का आम आदमी या खास आदमी तथा विद्यार्थियों आदि सभी को सामना करना पड़ता है।आईए जानते हैं,दुःख का प्रबंधन कैसे करें?
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:असफलता मिलने पर कैसे उदास ना हो?
2.सुख-दुःख का चोली-दामन का साथ (The perpetual association of happiness and sorrow):
- जीवन सुख-दुःख का संयोग एवं सम्मिश्रण है।जीवन में सुख और दुःख धूप-छाँह के समान सतत परिवर्तित होते रहते हैं।कभी सुख की शीतल सुगंध की फुहारें उड़ती हैं तो कभी दुःख की जलती-बिखरती चिंगारियां फैलती हैं। सुख के पल यों फिसल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता है।सुख की सदियां ऐसी गुजर जाती हैं,जैसे अभी-अभी तो घटित हुई थीं,परंतु दुःख के पल काटे नहीं कटते। लगता है,दुःख के पल ठहर गए,स्थायी आवास बना लिए हैं,वे जाते ही नहीं।इंच-इंच खिसकता हुआ पता चलता है।गति बड़ी मंद हो जाती है।यह अनुभव केवल अनुभवी का ही सच है।सुख के तो पर होते हैं और वह उड़ जाता है।दुःख पंख कटे पक्षी के समान फड़फड़ाता है और उड़ने के प्रयास में औंधे-मुँह गिरता है।
- सुख का पल सहज है।दुःख का पल अति कठिन होता है।सुख का पल यों ही अनकहे चला आता है और पता ही नहीं चलता है,परंतु दुःख पल-पल,क्षण-क्षण बताता-जताता है कि वह है और उसे गुजरने देना है।उसकी खबर समूचे अस्तित्व को होती है; परिसर-परिकर को भी पता होता है।दुःख के पल के साथ जीना एक चुनौती को स्वीकारने जैसा है,दुर्द्धर्ष संघर्ष के समान है।जो सफलतापूर्वक इस दरिया को पार कर लेता है,वही शूरवीर कहलाता है;क्योंकि वह आग का दरिया है और इसमें डूबकर जाना होता है।कमजोर इसमें डूब जाते हैं और बहादुर डूबकर पार चले जाते हैं।जो पार हो लेता है,सही मायने में वही विजेता जाना जाता है।
- जीवन के संघर्ष की कहानी किसी भी रोमांचक घटना से कम नहीं हैं।यह एवरेस्ट की पढ़ाई से भी दुर्लंघ्य जैसी है,परंतु संभव नहीं है।हां,कठिन एवं दुष्कर अवश्य है।जो इसे पार कर लेता है,वह फौलाद के समान सुदृढ़ एवं सशक्त हो जाता है।उसको फिर इससे भी बड़ी चुनौती मिलती है।हर चुनौती एकदम नई एवं रोमांचक होती है। थका देने वाली,डराने वाली एवं अति भीषण यह चुनौती बड़े-बड़े सूरमाओं को चूर कर देती है,परंतु सबको नहीं-कुछ होते हैं,जो हारने के लिए पैदा ही नहीं होते।जीवन को खेल मानकर उसके सुख-दुःख के दोनों पहलुओं को अंत तक खेल के समान खेल लेते हैं।इसे खेल मानने की तकनीक यह है कि कैसे दुःख को,पीड़ा को,कठिनाइयों को खेल के समान सहजता से लिया जा सके,ताकि दुःख के पल के अवरोध को न्यूनतम किया जा सके।
3.दुःख का प्रबंधन करें (Manage grief):
- प्रबंधन यहां भी प्रयुक्त होता है।प्रबंधन की कुशलता चीजों को सहज एवं आसान करती है और उपलब्धियों को बढ़ाती है तथा अवरोध-प्रतिरोध में खपने वाली ऊर्जा को सृजनात्मकता में लगाती है।हालांकि यह मैनेजमेंट स्किल थोड़ा कठिन अवश्य है,क्योंकि यहां पर जीवन के दृश्य एवं अदृश्य दोनों पहलू समाहित होते हैं।संसार में मैनेजमेंट का उपयोग एवं प्रयोग तुलनात्मक रूप से आसान इसलिए होता है,क्योंकि यहां पर सब कुछ सामने होता है।बौद्धिक कुशलता के द्वारा इसको जाँचा-परखा एवं नियोजित किया जा सकता है,परंतु बात जहां जीवन की है,वहाँ बौद्धिक गणना ही पर्याप्त नहीं है,बल्कि यह कभी-कभी नहीं,अधिकतर समय मूकदर्शक बनी खड़ी रहती है;फिर भी कुछ सीमा तक इसका महत्त्व तो है ही।वह जो जीवन को पारदर्शी ढंग से देखता है,वही इसका सही प्रबंधन कर सकता है और करा सकता है।
- दुःख के पल को जीना अत्यंत कठिन होता है।यह सच है कि उससे भागा नहीं जा सकता है,भोगना तो पड़ता ही है।हां,यह भी सच है कि सुनियोजित ढंग से एवं कुशलता के साथ समय से पूर्व इसका निर्धारण कर लिया जाए तो कठिन से कठिनतम मंजर को बहुत हद तक सहने योग्य बनाया जा सकता है।जीवन के दुःख को झेलने का यह प्रबंधन कोई नया नहीं है।हां,नया इसलिए लगता है,क्योंकि वर्तमान समय में इसकी परंपरा एवं प्रचलन लुप्त प्रायः है।प्राचीन समय में इस प्रबंधन कुशलता से सामान्यजन भी परिचित थे और इसका बखूबी उपयोग होता था।उन दिनों दृश्य एवं अदृश्य के संबंध को जानने-समझने वाले जानकारों-विशेषज्ञों की तादाद अधिक थी।वर्तमान समय में यह संख्या आश्चर्यजनक रूप से घट गई है और यही कारण है कि साधन एवं संसाधनों में अग्रणी हम जीवन के मामले में अतिदुर्बल एवं कमजोर बन जाते हैं।
- जानकार कहते हैं कि दुःख के क्षण में,बुरे समय में वाणी का प्रयोग न्यूनतम कर देना चाहिए।कोई भी समस्या जिससे सर्वाधिक रूप से प्रभावित होती है,वह बोलने से,वाणी के प्रयोग से।बुरे समय में व्यक्ति इतनी घुटन एवं असहजता अनुभव करता है कि उसकी अभिव्यक्ति वाणी के क्रूर प्रयोग के रूप में होना लाजिम है।वह अपनी पीड़ा बोलकर प्रकट करना चाहता है।बोलकर वह अपनी पीड़ा को,दर्द को बांटना तो चाहता है,परंतु इस दुनिया का एक दस्तूर है कि कोई उसे बँटाना नहीं चाहता है।कोई भी किसी की पीड़ा को सुनना पसंद नहीं करता है।अतः ऐसी भीड़ में,जहां पीड़ा के प्रति कोई संवेदना नहीं हो,बोलकर अपनी पीड़ा को बताना निरर्थक है;परंतु बोले बगैर रहा भी तो नहीं जाता।अतः केवल अपनों से,जो संवेदनशील है,वहां अपने दर्द को बांटना चाहिए।
- बुरे समय में पीड़ित व्यक्ति को अनर्गल प्रलाप करता है,अपनी वेदना का दोषारोपण औरों पर मढ़ता है और स्वयं को निर्दोष साबित करता है;भले ही वह उसे साबित न कर सके।जहां बात बन सकती थी,वहां ऐसे तर्कहीन प्रलाप से उलझ जाती है और बदले में मनोदोष एवं गलतियों को उँड़ेल दिया जाता है।पीड़ित ऐसी ही पीड़ा से छटपटा रहा है और ऊपर से ऐसी आफत और आन पड़ी।ऐसे में बात उलट जाती है,दुःख बहुगुणित हो जाता है।समस्याएं सुलझने के बदले उलझ जाती हैं।इसके मूल में जाने से पता चलता है कि ऐसा सिर्फ मिथ्या प्रवंचना से हुआ है।अतः इससे बचना हो तो वाणी की कटुता में कमी ही नहीं,बल्कि इसके प्रयोग को कम कर देना चाहिए।मानव मन के मर्मज्ञ मानते हैं कि बुरे समय में चुप रहना सीखो।
- विपरीत समय में खराब दौर से गुजर रहे व्यक्ति को कभी उसके खराब मंजर की याद नहीं दिलानी चाहिए,उसके सामने उसके खराब समय की भयावहता का उल्लेख नहीं करना चाहिए,परंतु ऐसा नहीं होता है।उसके सामने विस्तार से चीजों को बता दिया जाता है।पहले से ही डरा हुआ व्यक्ति इन चीजों से और भी डर जाता है।वह इतना डर जाता है कि उसका आत्मविश्वास डोल जाता है और फिर वह अवसाद से घिर जाता है। अवसाद में आते ही वह नकारात्मक चिंतन से आवृत्त हो जाता है।वह सदा स्वयं को असहाय,असमर्थ एवं अति दीन-दुर्बल समझने लगता है।अवसाद के दीर्घकाल तक बने रहने से तो वह स्वयं को इतना अलग मान लेता है कि उसे जीने की इच्छा ही नहीं होती है।ऐसी दुरवस्था में उसमें आत्महत्या के विचार उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं।
4.दुःख के प्रति संवेदनशील हों (Be sensitive to the grief):
- पीड़ित को पीड़ा से निवृत्त करना ही मुख्य कार्य है।पीड़ित व्यक्ति को विश्वास दिलाना चाहिए,सांत्वना देनी चाहिए कि उसकी स्थिति कोई अधिक खराब नहीं है,बल्कि यह एक सामान्य-सी घटना है।यह विश्वास उसे अवसाद में जाने से रोकता है,उसके आत्मविश्वास को बनाए रखता है।अतः उसके सामने नकारात्मक पहलुओं की चर्चा नहीं करनी चाहिए,अन्यथा चीजें बनते-बनते और भी बिगड़ सकती है।संभव हो तो उसके सामने ऐसे दृष्टांत प्रस्तुत करने चाहिए,जिनसे वह अपनी दुरअवस्था से बाहर निकलने के स्वप्रयत्न-पुरुषार्थ में सफल हो सके।पीड़ितों की पीड़ा का निवारण सबसे बड़ा धर्म है और इस धर्म का निर्वहन कुशलता के साथ करना चाहिए।
- जिंदगी में हरेक व्यक्ति को कहीं ना कहीं ऐसे दौर से गुजरना ही पड़ता है,अतः प्रत्येक व्यक्ति को पीड़ित की पीड़ा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।संवेदनशीलता ही ऐसा गुण है,जो पीड़ा-निवारण या सेवा के लिए तत्पर करता है।संवेदनहीन व्यक्ति किसी की पीड़ा को कभी अनुभव ही नहीं कर सकता है।एक इंसान में संवेदनशीलता सर्वोपरि गुण है,जिसके कारण उसे औरों का दर्द स्वयं के समान लगने लगता है और वह उसी त्वरा एवं तत्परता के साथ उसके निवारण एवं निराकरण में लग जाता है।पीड़ित व्यक्ति यदि स्वयं प्रार्थना करे तो वह उसका प्रत्युत्तर बहुत जल्दी प्राप्त कर सकता है; क्योंकि पीड़ा की अवस्था में इंसान की सारी चेतना एक स्थान पर आकर सिमट जाती है और जब वह केंद्रीय चेतना के साथ प्रार्थना करता है तो उसका स्वर अंतरिक्ष को भेदता हुआ लक्ष्य तक पहुंच जाता है।उसे उसका उत्तर एवं समाधान अवश्य मिलता है।मगर की कराल दाढ़ में फंसे हाथी की पुकार से भगवान दौड़े चले आ सकते हैं तो इंसान की आर्त्त पुकार भला कैसे अनसुनी हो सकती है।अतः पीड़ित प्रार्थना करे या उसके लिए प्रार्थना की व्यवस्था करनी चाहिए।
- बुरे समय के निराकरण का एक सर्वोत्तम तरीका है कि किसी योग्य एवं कुशल अध्यात्मवेत्ता से मिलकर उस अशुभ स्थिति से निपटने के लिए योजना तैयार की जाए।ऐसी स्थिति न बन सके तो महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करना चाहिए।महामृत्युंजय मंत्र के अनुष्ठान से असाध्य एवं भीषण बाधाएँ टल जाती हैं।इसके साथ नित्य सरस्वती स्तोत्र का भी जप करना चाहिए।जप की पूर्णाहुति में विधान के साथ पर्याप्त संख्या में आहुति देनी चाहिए,यज्ञ अनुष्ठान का प्राण होता है।यज्ञ से ही जप का समान फल मिलता है।इससे बुरे समय से निजात पाने में सुविधा होती है।
- ज्योतिष का तात्पर्य प्रकाश है।प्रकाश का अर्थ जीवन की आगत समस्याओं को जानना-समझना।इस रूप में इसका प्रयोग वांछनीय है।भगवान के प्रति अगाध प्रेम सभी विघ्न-बाधाओं एवं कठिनाइयों से बचाने के लिए पर्याप्त है।भगवान के प्रति यह अगाध प्रेम ही है,जो उसे हर विपरीतताओं एवं षडयंत्रों से बचाए रखता है।भक्त के लिए अपनी भक्ति की कसौटी इन्हीं कठिनाइयों में तो ली जाती है।दुःख ना हो,समस्याएं न आएँ,झंझावात ना उठें तो पता कैसे चलेगा कि हममें उससे जूझने की सामर्थ्य है या नहीं? प्रेम,भक्ति एवं प्रज्ञा की परीक्षा इसी दौरान होती है।
- दुःख इंसान को बहुत कुछ देने के लिए आता है,यदि उसे विधेयात्मक ढंग से स्वीकार कर लिया जाए तो।अन्यथा दुःख के भार से जीवन असह्य हो जाता है।दुःख देवों का धन है।उस धन से इंसान अत्यंत मजबूत एवं सुदृढ़ होता है।अतः इस धन को चलने का अवसर अवश्य आना चाहिए।सुख में यह बात नहीं है।दुःख की तपनभट्टी में इंसान ऐसे निकलता है जैसे सामान्य लोहे से फौलाद निकलता है।फौलाद बनने के लिए दुःख का वरण तो करना ही पड़ेगा।
5.विद्यार्थी दुःख का प्रबंधन कैसे करें? (How do students manage grief?):
- अपार दुःख के कारण और उसकी निवृत्ति के उपाय बताए गए हैं।अब छात्र-छात्राओं के मामले में बात करते हैं।छात्र-छात्राएं दुःखी क्यों होते हैं? कामनाओं की पूर्ति न होने,इच्छाओं की पूर्ति न होने से विद्यार्थी दुःखी होते हैं।जैसे मैं इंजीनियर बन जाऊं,डॉक्टर बन जाऊं,गणितज्ञ बन जाऊं आदि और जब उसकी कामना की पूर्ति नहीं होती है,जब वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो दुःखी होते हैं।दूसरा कारण है किसी विषय में श्रेष्ठ प्रदर्शन न कर पाना,अच्छे अंकों से उत्तीर्ण ना हो पाना।अपनी कामना है कि गणित में पारंगत और श्रेष्ठ हो जाऊं,भौतिकी की सारी समस्याओं को हल कर लूँ।ऐसा संभव नहीं है क्योंकि एक तो हर विद्यार्थी की सामर्थ्य,क्षमता और कठिन परिश्रम करने की आदत अलग-अलग होती है।दूसरा आप कितनी ही समस्याओं को हल कर लें फिर भी बहुत अधिक अनसुलझी समस्याएँ रह जाती हैं।अतः समस्याओं का अंत कभी नहीं होता और यह जीवन ही समाप्त हो जाता है।ज्यों-ज्यों आपमें परिपक्वता आती जाती है त्यों-त्यों आपको समस्याओं को हल करने की तकनीक मालूम पड़ती जाती है और धीरे-धीरे वे समस्याएँ हल्की या थोड़ी लगती हैं।
- तीसरा कारण है भोगों को भोगने में अति करना और आसक्ति का होना।आपने कोई पौष्टिक पदार्थ का सेवन कर लिया तो आपकी और अधिक खाने की लालसा उत्पन्न होती है और यह लालसा हमें अति की ओर ले जाती है।अतः भोगों को भोगने में अति न की जावे और आसक्ति न रखें।अर्थात जितना शरीर के लिए आवश्यक है उतना भोजन करें,नाश्ता करें और अपने कार्य में (अध्ययन में) जुट जाएं।इसके बाद उसका चिंतन न करें,इससे आसक्ति से छुटकारा मिल जाएगा।भोगों को भोगने का आशय केवल भोज्य पदार्थों से ही नहीं है बल्कि अन्य विषयों (भोगों) को भी इसी रूप में लेना चाहिए।
- किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में अपनी पूरी शक्ति,सामर्थ्य और योग्यता को लगाना चाहिए और फिर भी परिणाम अनुकूल नहीं मिल रहा है तो यह देखना चाहिए कि कहां कमी रह गई है।उन कमियों को ढूंढकर अपनी रणनीति में आवश्यक सुधार करें और फिर से प्रयास करें।बार-बार प्रयास करने पर भी लक्ष्य प्राप्त नहीं हो रहा है,इच्छित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो संतोष धारण कर लेना चाहिए,इससे परिणाम जो भी मिलेगा उसे सहज भाव से स्वीकार कर लेंगे और दुःखी होने से बच जाएंगे।संतोष धारण करने का अर्थ यह नहीं है की लापरवाह या आलसी हो जाएं।संतोष का मतलब अपने प्रयासों को पूर्ण क्षमता,सामर्थ्य से करना और जो परिणाम मिले उसे सहज भाव से स्वीकार करना।सहनशक्ति,सूझबूझ,संतोषी स्वभाव आदि से दुःख की अनुभूति से बचा जा सकता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में दुःख के पलों का सही प्रबंधन कैसे करें? (How to Manage Moment of Grief Properly?),दुःख का सही प्रबन्धन कैसे करें? (How to Manage Grief Properly?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:छात्र-छात्राएं उदासी से छुटकारा कैसे पाएं?
6.दुःखी छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Grieving Student) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक (छात्र से):तुम दुःखी क्यों हो जबकि तुम्हारे गणित व अन्य विषयों में अच्छे अंक प्राप्त हुए हैं।
- छात्र:मैं दुखी इसलिए हूं कि कई अन्य छात्र-छात्राओं ने मुझसे अधिक अंक प्राप्त कर लिए हैं।
- गणित शिक्षकःदूसरों से तुलना करोगे तो दुःखी होंगे ही।यदि दूसरों से तुलना करो भी तो उतने अंक प्राप्त करने का प्रयत्न करो,दुःखी होने से लाभ होने वाला नहीं है।
- गणित छात्र:लेकिन इस कक्षा में नहीं तो राज्य या देश में कोई ना कोई तो मुझसे अधिक अंक प्राप्त कर ही लेगा न।
7.दुःख के पलों का सही प्रबंधन कैसे करें?(Frequently Asked Questions Related to How to Manage Moment of Grief Properly?),दुःख का सही प्रबन्धन कैसे करें? (How to Manage Grief Properly?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.दुःख क्यों आवश्यक है? (Why is grief necessary?):
उत्तर:क्योंकि दुःख हमारे विकास का साधन है।दुःख (विपत्ति,समस्या) को हल करने से जीवन खिल उठता है।सोने का रंग तपाने पर ही चमकता है।
प्रश्न:2.क्या दुःख कभी खत्म हो सकता है? (Can the grief ever end?):
उत्तर:सुख और दुःख का चोली दामन का साथ है।यदि आप सुख चाहते हो तो दुःख भी मिलेगा।आनंद की स्थिति में सुख-दुःख से छुटकारा मिल सकता है।आनंद समभाव रखने पर ही होता है।
प्रश्न:3.साधारण और असाधारण छात्र में क्या फर्क है? (What is the difference between an ordinary and an exceptional student?)
उत्तर:साधारण छात्र दुःखों,समस्याओं के चंगुल में फंस जाता है जबकि असाधारण छात्र उनसे ऊपर उठ जाता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दुःख के पलों का सही प्रबंधन कैसे करें? (How to Manage Moment of Grief Properly?),दुःख का सही प्रबन्धन कैसे करें? (How to Manage Grief Properly?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here | |
7. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.