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6 Spells on How to Comply with Pledge

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1.प्रतिज्ञा का पालन कैसे करें के 6 मंत्र (6 Spells on How to Comply with Pledge),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिज्ञा का पालन करने के 6 श्रेष्ठ मंत्र (6 Best Mantras for Students to Observe Pledges):

  • प्रतिज्ञा का पालन कैसे करें के 6 मंत्र (6 Spells on How to Comply with Pledge) में बताया गया है की प्रतिज्ञा का पालन क्यों करें,किस प्रकार करें और प्रतिज्ञा का अर्थ क्या होता है,प्रतिज्ञा का पालन क्यों आवश्यक है आदि।
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2.प्रतिज्ञा का अर्थ (The Meaning of the Promise):

  • अपने आप का ज्ञान,अपनी सुप्त शक्तियों का ज्ञान,छिपी शक्तियों का ज्ञान या शाश्वत जीवन का बोध प्रतिज्ञा का पालन करने के द्वारा होता है।ऊपर चढ़ने की जरूरत पड़ती है तो सीढ़ी लगाते हैं।एक डंडे को हाथ से पकड़कर दूसरे पर पैर रखते हुए ऊपर आसानी से चढ़ जाते हैं।जीवन में क्रमिक रूप से छोटी-छोटी प्रतिज्ञाओं से प्रारम्भ अंत में बड़ी प्रतिज्ञा की परिधि प्राप्त करना अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक सरल है।
  • उन्नत जीवन की योग्यता मनुष्य को प्रतिज्ञा से प्राप्त होती है।इसे दीक्षा कहते हैं।दीक्षा से दक्षिणा अर्थात् जो कुछ कर रहे हैं,उसके सफल परिणाम मिलते हैं।सफलता के द्वारा आदर्श और अनुष्ठान के प्रति श्रद्धा जागृत होती है और श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।सत्य का अर्थ मनुष्य के जीवन-लक्ष्य से है।यह एक क्रमिक विकास की पद्धति है।प्रतिज्ञा जिसका प्रारंभ और सत्य-प्राप्ति ही जिसका अंतिम निष्कर्ष है।
  • प्रतिज्ञा का अर्थ उन आचरणों से है जो शुद्ध,सरल और सात्त्विक हों और उनका पालन विशेष मनोयोगपूर्वक किया गया हो।यह देखा गया है कि व्यावहारिक जीवन में सभी लोग अधिकांश सत्य बोलते हैं और सत्य का ही आचरण भी करते हैं,किंतु कुछ क्षण ऐसे आ जाते हैं,जब सत्य बोल देना स्वार्थ और इच्छापूर्ति में बाधा उत्पन्न करता है,उस समय लोग झूठ बोल देते हैं या असत्य आचरण कर डालते हैं।निजी स्वार्थ के लिए सत्य की अवहेलना कर देने का तात्पर्य यह हुआ कि आपकी निष्ठा उस आचरण में नहीं है।इसे यों कहेंगे की प्रतिज्ञाशील नहीं है।
  • बात अपने हित की हो अथवा दूसरे की,जो शुद्ध और न्यायपूर्ण हो उसका निष्ठापूर्वक पालन करना ही प्रतिज्ञा कहलाती है।संक्षेप में आचरण-शुद्धता को कठिन परिस्थितियों में भी न छोड़ना प्रतिज्ञा कहलाती है।संकल्प का छोटा रूप प्रतिज्ञा है।संकल्प की शक्ति व्यापक होती है और प्रतिज्ञा उसका एक अध्याय होती है।वस्तुतः प्रतिज्ञा और संकल्प दोनों एक ही समान हैं।
    विपरीत परिस्थितियों में भी हँसी-खुशी का जीवन बिताने का अभ्यास प्रतिज्ञा कहलाती है।इससे मनुष्य में श्रेष्ठ कर्मों के सम्पादन की योग्यता आती है।थोड़ी-सी कठिनाइयों में कर्म-विमुख होना मनुष्य की अल्पशक्ति का बोधक है,जो कठिनाइयों में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहे,ऐसी शक्ति प्रतिज्ञा में होती है।
  • नियम पालन से मनुष्य में आत्मविश्वास और अनुशासन की भावना आती है।जीवन के उत्थान और विकास के लिए वह दोनों शक्तियां अनिवार्य है।आत्मशक्ति या आत्म-विकास के अभाव में मनुष्य छोटे-छोटे भौतिक प्रयोजनों में लगा रहता है।अनुशासन के बिना जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है।शक्ति और चेष्टाओं का केंद्रीकरण ना हो पाने के कारण कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं बन पाती।सांसारिक और आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करना और उन्हें मनोयोगपूर्वक जीवन-ध्येय की ओर लगाए रखना आचरण में नियमबद्धता से ही हो पाता है।नियमितता,व्यवस्थित जीवन का प्रमुख आधार है।आत्मशोधन की प्रक्रिया इसी से पूरी होती है।
  • आत्मोन्नति वाले पुरुष का कथन होता है:मैं जीवन में उत्तरोत्तर उत्कर्ष प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखता हूं।यह कार्य पवित्र आचरण या आत्मा को शुद्ध बनाने से ही पूरा होता है,इसलिए मैं पवित्र आचरण की प्रतिज्ञा लेता हूं।

3.प्रतिज्ञा पालन का प्रभाव (Impact of Keeping a Pledge):

  • प्रतिज्ञा-पालन से आत्मविश्वास के साथ संयम की वृत्ति भी आती है।आत्मविश्वास शक्तियों का संचय बढ़ाता है और संयम से शक्तियों का अपव्यय रुकता है।इस तरह जब विपुल शक्ति का भंडार आत्मकोष में भर जाता है,तो आत्मा अपने आप प्रकट हो जाती है।शक्ति के बिना आत्मा को धारण करने की क्षमता नहीं आती।प्रतिज्ञा शक्ति का स्रोत है,इसलिए आत्मशोधन की वह प्रमुख आवश्यकता है।अपनी शक्ति और स्वरूप का ज्ञान मनुष्य को ना हो तो वह जीवन में किसी तरह का उत्थान नहीं कर सकता।शक्ति आती है,तभी आत्मविश्वास की भावना का उदय होता है और मनुष्य विकास की ओर तेजी से बढ़ता चला जाता है।
  • प्रतिज्ञा जीवन की त्रुटियों और भूलों को सुधार कर मनुष्य को शुद्ध बनाता है।असंयमित जीवन के कारण जो अनियमितताएं और अशुद्धियाँ आ जाती हैं उनका एक सफल उपचार है:प्रतिज्ञा पालन।विद्यार्थी विद्यार्जन करने के काल में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की प्रतिज्ञा ले लें तो उनकी प्रसुप्त शक्तियां जाग सकती हैं और उनका जीवनक्रम व्यवस्थित होने लगेगा।व्यवस्थित दिनचर्या और आतंरिक शक्तियों के जागरण से वे असाधारण कार्य कर सकते हैं।महापुरुषों का जीवन सदैव व्रतशील रहा है।आत्मनिर्माण के साधकों को भी सफलता के लिए आचरण की शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है।
  • जीवन की सफलता के लिए जिन-जिन विचारकों ने अपने अनुभव दिए हैं,उन सबने सबसे पहले उसे कसौटी पर कसा होता है।उन नियमों की सत्यता के लिए हमें लंबे परीक्षण की आवश्यकता नहीं है।इसमें समय बर्बाद करने की अपेक्षा यह अधिक श्रेष्ठ है कि उदाहरण और विवेक के द्वारा नियमों की परख कर लें और उन्हें प्रयोग करने लगें,इतने से हम अपने श्रेष्ठ जीवन का निर्माण कर सकते हैं।
  • पूर्व जन्मों के संस्कारों के थोड़े से अपवाद हो सकते हैं,किंतु अधिकांश लोगों के लिए आत्मज्ञान प्राप्त करने का जो एक सरल रास्ता निश्चित किया हुआ है,वह है-प्रतिज्ञाओं के पालते रहने की नियमितता।मनुष्य के जीवन में आत्मरक्षा-वृत्ति से लेकर समाजवृत्ति तक जो मर्यादाएं निश्चित हैं,उन्हीं के भीतर रहकर ही आत्मविकास करने में सुगमता होती है।एक व्यक्ति के लिए नहीं,सामूहिक हितसाधना का कार्यक्रम इसी प्रकार पूरा होता है।व्यक्ति का पूरा निजी स्वार्थ इसी में सुरक्षित है कि सबके लिए समाज व्रत का पालन करे।दूसरों को धोखे में डालकर आत्म-कल्याण का मार्ग प्राप्त नहीं किया जा सकता।साथ-साथ चलकर लक्ष्य तक पहुंचने में जो सुगमता और आनंद है,वह अकेले चलने में नहीं है।अनुशासन और नियमपूर्वक चलते रहने से समाज में एक व्यक्ति के भी हितों की रक्षा हो जाती है और दूसरों की उन्नति का मार्ग भी अवरुद्ध नहीं होता।
  • सृष्टि का संचालन नियमपूर्वक चल रहा है।सूर्य अपने निर्धारित नियम के अनुसार चलता रहता है,चंद्रमा की कलाओं का घटना-बढ़ना सदैव एक-सा रहता है।सारे-के-सारे ग्रह-नक्षत्र अपने निर्धारित पथ पर ही चलते हैं,इसी से सारा संसार ठीक-ठीक चल रहा है।यदि ये अपनी मर्यादाएं छोड़ दें तो आपस में टकराकर विश्वनाश के दृश्य उपस्थित कर दें।अग्नि-वायु,समुद्र,पृथ्वी आदि सभी अपनी-अपनी प्रतिज्ञा धारण किए हुए हैं।नियमों की अवज्ञा करना उन्होंने शुरू कर दिया होता तो सृष्टि-संचालन का कार्य कभी का रुक गया होता।अपने कर्त्तव्य का अविचल भाव से पालन करने के कारण ही देव-शक्तियाँ वरदानी कहलाती है।इन्हीं नियमों का पालन करते हुए मनुष्य भी अपना लौकिक और पारलौकिक जीवन सुखी तथा समुन्नत बना सकता है।
  • ऊंचे उठने की आकांक्षा मनुष्य की आध्यात्मिक प्रतिक्रिया है।पूर्णता प्राप्त करने की कामना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है किंतु हम जीवन को अस्त-व्यस्त बनाकर लक्ष्य-विमुख हो जाते हैं।हर कार्य की शुरुआत छोटी कक्षा से होती है,तब कहीं श्रेष्ठता की ओर बढ़ पाते हैं।आत्मज्ञान के महान लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रारंभिक कक्षा प्रतिज्ञा-पालन ही है,इसी से हम मनुष्य जीवन को सार्थक बना सकते हैं।प्रतिज्ञापालन से ही मनुष्य महान बनता है,यह पाठ जितनी जल्दी सीख लें,उतना ही श्रेयस्कर है।

4.प्रतिज्ञा पालन की रीढ़ अनुशासन (Discipline is the backbone of pledge keeping):

  • प्रकृति क्षमा नहीं करती है।भगवदीय विधान में क्षमा का प्रावधान नहीं है।भगवदीय विधान अनुशासन का पर्याय है।यदि अनुशासन नहीं होता तो सृष्टि की गति अवरुद्ध  हो जाती।प्रकृति अनुशासन से आबद्ध है।जो भी इस अनुशासन को तोड़ेगा,उसे क्षमा नहीं मिल सकती है।दंड अवश्य मिलेगा।ठंडी रात में खुले बदन चलने पर प्रकृति क्षमा नहीं करेगी,ठंड तो लगेगी ही।ग्रीष्म की तपन में निकलने पर लू झूलसाएगी,वह माफ नहीं करेगी।ठीक उसी प्रकार यह सृष्टि-व्यवस्था भगवान के स्वाभाविक विधान से परिचालित है।जो भी इस विधान में व्यतिक्रम डालेगा,वह दंड पाएगा।उसे क्षमा नहीं मिल सकती।अनुशासन के प्रतिकूल चलना अनुशासनात्मक कार्यवाही के अंतर्गत आता है।भगवदीय विधान सृष्टि की स्वसंचालित प्रक्रिया है।जो इस विधान के अनुरूप चलता है और इसे सहयोग प्रदान करता है,वह पुरस्कार का भागीदार होता है,परंतु इसके प्रतिकूल चलने वाला या इस विधि-व्यवस्था में दखल देने वाला दंड पाता है।प्रकृति माफ नहीं करती है,भगवान क्षमा नहीं करता है।सृष्टि-प्रक्रिया का यह मर्म अत्यंत सूक्ष्म है।इसके जानकार एवं विशेषज्ञ इस प्रक्रिया के सहयोगी होते हैं।वे प्रकृति के विधान में सामान्य रूप से हस्तक्षेप नहीं करते हैं।यदि करते हैं तो उन्हें भी उसकी कीमत चुकानी पड़ती है और वे सहर्ष इसकी हर कीमत को चुकाते भी हैं।सामान्य जन गलती करते हैं और इसके परिणामस्वरूप मिले दंड से क्षमा की आशा करते हैं,ऐसा संभव नहीं है।यहां पर हर गलती की कोई माफी नहीं है,केवल दंड है।
  • तर्क कुछ भी कर लें कि क्षमा मिलती है,परंतु वह तर्क कुंद पड़ जाता है।जब हम खोलते गर्म पानी में हाथ डालते हैं और कहते हैं कि एक हाथ तो ठंडे पानी में है,अतः गर्म पानी से हाथ जलेगा नहीं।हाथ जलता है।यह भी सच है कि ठंडे पानी में डाला गया हाथ ठंडा रहता है,परंतु यहाँ ठंडक हाथ की जलन को कम नहीं कर पाती है।प्रकृति के नियम तोड़ते हैं तो उसके अनुरूप हमें दंड पाने के लिए तैयार रहना चाहिए।यह सोचना कि भगवान हमारी हर गलती को माफ कर देगा,ठीक नहीं है।माना जाता है कि भगवान भक्त की हर गलती को माफ कर देता है।इसके पीछे गूढ़ रहस्य है।भक्त भगवान के प्रति जितनी अधिक मात्रा में समर्पित होता है,उसी अनुपात में वह भगवान का होता है।भक्त का समर्पण एक कवच का काम करता है,जिससे वह विपरीतताओं से बचता रहता है या फिर भगवान उसे संरक्षण देता है और बचाता है;जैसे घर की छत ओला,वर्षा,धूप आदि से बचाती है।ध्यान देने वाली बात है कि भगवान का संरक्षण एवं छत,दोनों को प्राप्त करने में प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है।भक्त प्रकृति के नियमों की अवहेलना नहीं करता है।
  • हम हमेशा नियमों की अवहेलना करते हैं और उसके दंड से बचना भी चाहते हैं,परंतु ऐसा संभव नहीं है।सृष्टि नियमों से बँधी है।प्रकृति भगवदीय विधान के अनुरूप परिचालित है।नियमों के खिलाफ चलने का तात्पर्य है दंड का भागीदार होना।यहां पर क्षमा नहीं है।

5.प्रतिज्ञा पालन के उदाहरण और निष्कर्ष (Examples and Conclusions of Pledge Keeping):

  • अगर ऐसा होता तो सृष्टि-संचालन में सहयोग प्रदान करने वाले ऋषिगणों का अपमान,हिंसा और हत्या करने वाले रावण की आसुरी सेना को क्षमा कर दिया गया होता,परंतु इस उपद्रव का जवाब ऋषि अगस्त्य ने ऐसा दिया कि आततायी रावण को अपनी सेना से कहना पड़ा कि अगस्त्य ऋषि के आश्रम की ओर न जाएं।ब्रह्मऋषि विश्वामित्र ने तो भगवान राम और लक्ष्मण से पूरी सेना सहित रावण का ही अंत करवा दिया।अगर गलती से माफी की गई होती तो आज कुंभकरण,जयद्रथ,शिशुपाल,जरासंध,कंस,कालयवन आदि आततायियों ने इस धरती को अपने कब्जे में ले लिया होता,पर ऐसा नहीं हुआ और सभी का अंत कर दिया गया।
  • असुरों-आततायियों का अंत करने वाले स्वयं भगवान राम थे,जिनकी करुणा और संवेदना जगजाहिर है।वे करुणाकर थे,फिर भी उन्होंने असुरों को क्षमा नहीं किया।जब कोई भगवदीय विधान को तोड़ता है,क्षमा नहीं मिलती है।अगर क्षमा कर दिया जाए तो सृष्टि में अराजकता का वातावरण बन जाएगा।अराजकता अनुशासन के विरुद्ध है और इसे कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।कोई भी और कहीं भी जब नियम उल्लंघित हुए हैं तो उनका परिणाम भुगतना पड़ा है।
  • महाभारत का युद्ध इसी उद्दण्डता को दंड देने के लिए लड़ा गया था।कृष्ण स्वयं भगवान थे और वे अर्जुन को भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण के लिए दुर्योधन-दु:शासन समेत पूरे कौरवों को माफ कर देने के लिए कह सकते थे,पर उन्होंने तो अर्जुन से उनको भी मरवा दिया,जो इस उद्दण्डता के लिए जिम्मेदार पक्ष में खड़े थे।उन्होंने भीष्म पितामह,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य,कर्ण आदि का भी अंत करवा दिया,जिन्होंने कुछ किया ही नहीं था,केवल इस अनीति के साथ खड़े थे।अनीति का साथ देना भी अनीति करने जैसा है और इसे भी बख्शा नहीं जाता।इस सृष्टि में भगवदीय विधान सर्वोपरि है।कोई उससे बड़ा नहीं है।अतः इसका सम्मान किया जाता है।भगवान का बंदा भगवान के विधान का उल्लंघन नहीं करता।इसका उल्लंघन तो अहंकारी और उद्दंड आसुरी शक्तियां करती हैं और जिन्हें क्षमा नहीं,दंड दिया जाता है।
  • इसके ठीक विपरीत भगवदीय विधान का सम्मान और सहयोग करने वाले,लाभान्वित और पुरस्कृत होते हैं।ऋषि अपनी तपस्या के प्रखर कर्म के माध्यम से सृष्टि संचालन में सहयोग प्रदान करते हैं और इसी कारण भगवान उन्हें अपना पार्षद बनाकर धरती पर बारम्बार भेजता है।इसके अलावा वह कर्म,जो अति न्यून या छोटा दिखाई देता है,पर सृष्टि-भगवदीय कार्य में सहयोगी होता है तो उसका भी अत्यंत सम्मान किया जाता है।शबरी साधु-संतों की सेवा करती थी और भगवान के प्रति अनन्य भक्तिभाव रखती थी।भगवान राम ने उसके जूठे बेरों को बड़े प्रेम से ग्रहण किया।अति विपरीतताओं के बावजूद विदुर के घर भगवान कृष्ण का पदार्पण हुआ।
  • यों देखने पर ये लोग कोई बड़ा काम नहीं किए प्रतीत होते हैं,परंतु हर वह कार्य जो भगवदीय विधान में परोक्ष-अपरोक्ष साथ देता है,लाभान्वित होता है और ठीक इसके विपरीत इसके विरुद्ध जाने पर दंडित होता है।ध्यान रहे,अनीति-अत्याचार का विरोध होना चाहिए,परंतु दंड देने का अधिकार सभी को नहीं होता है।इसकी व्यवस्था होती है और व्यवस्था पर दंड का निर्णय छोड़कर हमें उसका प्रबल विरोध करना चाहिए।अतः हमें स्वयं अनुशासन में रहते हुए प्रकृति एवं भगवान के विधि-विधान के अनुरूप श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए।हमें दंड के लिए नहीं,बल्कि गौरव,सम्मान,प्रतिष्ठा के लिए कर्म करना चाहिए।
  • विद्यार्थियों को प्रतिज्ञा,व्रत,संकल्प ऐसे ही लेने चाहिए जिससे अध्ययन करने पर गौरव मिल सके।उन्हें नियम,अनुशासन,संयम का पालन करना चाहिए।परीक्षा देने के लिए उचित,नैतिक और श्रेष्ठ तरीके ही अपनाना चाहिए।यदि प्रतिज्ञा,व्रत,संकल्प लेने की मंशा गलत होगी तो वे परीक्षा में नकल करने,अनुचित तरीके अपनाने,गुंडागर्दी करने,मारपीट करने,अय्याशी करने,ड्रग्स का सेवन करने को ही उचित मानेंगे और वैसा करेंगे तो एक न एक दिन उसका दंड भी भुगतेंगे,उसका दंड उनकी एवज में और कोई नहीं भुगतेगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतिज्ञा का पालन कैसे करें के 6 मंत्र (6 Spells on How to Comply with Pledge),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिज्ञा का पालन करने के 6 श्रेष्ठ मंत्र (6 Best Mantras for Students to Observe Pledges) के बारे में बताया गया है।

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6.अंदर आने का नियम (हास्य-व्यंग्य) (Rule of Entry) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:क्या तुम्हें पता नहीं कि बिना आज्ञा अंदर आना माना है।यह संस्था का नियम है।इस नियम का उल्लंघन करने पर दंड भी मिलेगा।
  • छात्र:जी मैं आज्ञा लेने ही अंदर आया हूं,तो दंड मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि मैंने किसी नियम का उल्लंघन ही नहीं किया।

7.प्रतिज्ञा का पालन कैसे करें के 6 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6 Spells on How to Comply with Pledge),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिज्ञा का पालन करने के 6 श्रेष्ठ मंत्र (6 Best Mantras for Students to Observe Pledges) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.दृढ़ प्रतिज्ञा क्यों आवश्यक है? (Why is a firm pledge necessary?):

उत्तर:दृढ़ प्रतिज्ञा एक गढ़ के सदृश है जो भयानक प्रलोभनों से हमारी रक्षा करता है और दुर्बलता एवं अस्थिरता से हमें बचाता है।

प्रश्न:2.प्रतिज्ञाहीन जीवन कैसा होता है? (What is a life without promise?):

उत्तर:प्रतिज्ञाहीन जीवन बिना नींव का घर है अथवा यूं कहिए कि कागज का जहाज है।प्रतिज्ञा के बल पर ही संसार टिका हुआ है।प्रतिज्ञा न लेने का अर्थ अनिश्चित या डाँवाडोल रहना है।

प्रश्न:3.अति को क्यों छोड़ देना चाहिए? (Why should the extremes be abandoned?):

उत्तर:अति सुंदरता के कारण सीता का हरण हुआ,अति घमंड से रावण मारा गया,अतिदान के कारण बलि को बंधन में बंधना पड़ा है अतः अति को सब जगह छोड़ देना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतिज्ञा का पालन कैसे करें के 6 मंत्र (6 Spells on How to Comply with Pledge),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिज्ञा का पालन करने के 6 श्रेष्ठ मंत्र (6 Best Mantras for Students to Observe Pledges) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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