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Erosion of Value Due to Liberalization

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1.उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Erosion of Value Due to Liberalization),वैश्विक उदारीकरण के दुष्प्रभाव (Side Effects of Global Liberalization):

  • उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Erosion of Value Due to Liberalization) को समझने से पूर्व उदारीकरण,वैश्वीकरण,वैश्विक उदारीकरण,भूमंडलीकरण को समझ लेना आवश्यक है।हालांकि ये सभी शब्द समानार्थक अर्थ रखने वाले हैं।आर्थिक उदारीकरण को ही संक्षिप्त में उदारीकरण कहा जाता है।
  • उदारीकरण तथा उपर्युक्त शब्दों का आर्थिक क्षेत्र में उपयोग 1991 से बहुतायत रूप में होने लगा है।आर्थिक उदारीकरण को समझने के बाद ही यह समझ में आएगा कि मानवीय मूल्यों में ह्रास क्यों और किस प्रकार हुआ है?
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2.उदारीकरण का अर्थ (Meaning of Liberalization):

  • अर्थतंत्र में उदारीकरण का अर्थ है अधिक से अधिक निजीकरण और देश की कंपनी का बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा करना।इस प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियाँ उत्पादन लागत को कम करने के लिए मशीनों को बढ़ावा दे रही है और कम से कम श्रमिक रख रही है।यही नहीं,श्रमिकों के वेतन में भी कटौती कर रही हैं।
  • उदारीकरण में प्रतिस्पर्धा इतनी है कि कंपनियां उत्पादन लागत कम करने के लिए मजबूर हैं।जब कंपनियां अपनी उत्पादन लागत कम करने की सोचती है तो सबसे पहले वह श्रमिकों की छँटनी करती है या उनकी मजदूरी और उनकी सुविधाएँ कम कर देती हैं।
  • दरअसल 1991 में जब नरसिम्हाराव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ हुई तब,भारत की अर्थव्यवस्था विध्वंस के कगार पर खड़ी थी।भुगतान संतुलन के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत थी और वह जिन तरीकों से मिल सकती थी,उनमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से कर्ज लेना भी शामिल था।
  • अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों का ही इन दोनों कर्जदाता संगठनों में वर्चस्व था।इसलिए उन्होंने अपने देशों के हित के लिए इन दोनों संगठनों का भरपूर उपयोग करना शुरू किया।द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों के अलावा बहुपक्षीय व्यापारिक समझौतों पर बल दिया जाने लगा।इन्हीं विकसित देशों द्वारा दोनों कर्जदाता संगठनों की नीतियाँ और शर्तें निर्धारित हुई और बाद के वर्षों में भारत समेत दुनियाभर के देशों ने उनकी शर्तों पर कर्ज लिए।उनकी प्रमुख शर्तें थी:अर्थव्यवस्था का उदारीकरण,सुधार और वैश्वीकरण।इस दौर में अमेरिका और यूरोप के देशों ने अन्य देशों पर काफी दबाव डाला कि वे उनकी चीजों को अनिवार्यतः पेटेंट दें।यह दबाव ऋण की उपलब्धता की संभावनाओं से जुड़ा था,जिसके कारण विकसित देशों को ‘गैट’ जैसे बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते कराने में सफलता मिली।
  • समझौता कितना गलत था और कितना सही यह विचारणा का एक अलग मुद्दा है,लेकिन जब समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर कर ही दिए,तब भारत के समक्ष दो ही विकल्प शेष बचे थे।या तो भारत संगठन में रहे या उससे बाहर हो जाए।बाहर हो जाने का दूसरा विकल्प तो तभी संभव है,जब कोई देश इस स्थिति में हो कि दुनिया के देशों से अलग-थलग रहकर भी अपना काम चला ले।आज भारत या कोई भी देश इस स्थिति में नहीं है।इसलिए पहला विकल्प ही ज्यादा उपयुक्त समझा गया कि भारत विश्व व्यापार संगठन में ही रहे और अपने हितों के प्रति सजग भी रहे।
  • विश्व व्यापार संगठन के 1 जनवरी 1995 को अस्तित्व में आने के बाद हमारी सरकारें सोती रही,जबकि समझौते के तहत सबको मालूम था कि 5 वर्षों के भीतर अर्थात् सन् 2000 तक विकासशील देशों के उत्पाद पेटेंट की व्यवस्था (प्रोडक्ट पेटेंट रेजिम,product patent regime) लागू करना है और यदि वे इतनी जल्दी ऐसा नहीं कर सकते तो यह अवधि 10 वर्षों अर्थात् सन् 2005 तक की हो सकती है,बशर्ते वे उन वस्तुओं के लिए अपने देश में विशिष्ट विपणन (बिक्री) अधिकार (ईएमआर) दें,जिनके पेटेंट अन्य देशों में हैं।
  • जब भारत सरकार सोती रही थी तब अमेरिका और यूरोपीय देशों ने विश्व व्यापार संगठन में शिकायत दर्ज की कि भारत अपने वचन से मुकर रहा है।इस बीच (ईएमआर) के लिए लगभग 3000 आवेदन भारत के पास भेजे गए।अब भारत के पास दो ही विकल्प शेष थे।पहला यह कि ‘ईएमआर’ के आवेदन प्राप्त करना स्वीकार करते हुए वह 2005 तक की अवधि तक मोहलत हासिल करे और इस दौरान व्यापक पेटेंट कानून बनाए और लागू करे।दूसरा विकल्प था कि ‘ईएमआर’ के आवेदन स्वीकार करे और सन् 2000 तक व्यापक पेटेंट कानून बनाकर उसे लागू कर दे।
  • दूसरा विकल्प चुनने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा स्वयं सरकार रही है।उसे भरोसा ही नहीं था कि वह सन् 2000 तक व्यापक पेटेंट कानून बना लेगी।इसलिए पहला विकल्प चुना गया और ‘ईएमआर’ के आवेदन पत्र प्राप्त करना स्वीकार किया गया।यह पेटेंट की तरह की ही मोनोपोली है।
  • इसके तहत विदेशी दवाओं और कृषि रसायनों को बिना पेटेंट के ही पेटेंट की तरह स्वीकारना पड़ेगा,वह भी आवेदन में दी गई सूचनाओं की जांच के बिना ही इस आधार पर कि उस उत्पाद को विश्व व्यापार संगठन के किसी देश में पेटेंट मिल चुका है।ट्रिप्स समझौते में स्पष्ट है कि भारत को इस मामले में स्वविवेक इस्तेमाल का अधिकार नहीं होगा।

3.उदारीकरण का वास्तविक अर्थ (The Real Meaning of Liberalization):

  • वैश्विक उदारीकरण एवं विकास को एकदूसरे का पर्याय माना जाता है।आज यह एक वैचारिक मुद्दे के साथ-साथ जीवन एवं समाज में पनपने वाले अनेक विकारों से संबंधित है।उदारीकरण ने समाज एवं राष्ट्र की दीवारों को भेदकर एक आँगन में ला खड़ा कर दिया है।विश्व एक वैश्विक गांव बन गया है।इससे आर्थिक एवं तकनीकी विकास तो हुआ है लेकिन सामाजिक,नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।विकास की तुलना में जो अवमूल्यन हुआ है,उसका सीधा प्रभाव वर्तमान समाज में देखा जा सकता है।
  • उदारीकरण का संबंध उदार एवं उदात्त से होना चाहिए था।उदार एवं उदात्त का मायने उस वैचारिक एवं भावनात्मक व्यापकता से है,जो हमें मानवीय संबंधों को हर कीमत में बनाए रखना है,किन्हीं भी परिस्थितियों में उसे विकसित करना है।विकास का सही अर्थ हमारी वैचारिक,भावनात्मक ऊर्जा के अर्जन,संरक्षण एवं नियोजन से है।विकास का यह मानदंड बहुआयामी है,जिसमें जीवन से जुड़े आंतरिक के साथ बाह्य परिदृश्य जैसे आर्थिक,तकनीक,औद्योगिक,व्यापारिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र भी आते हैं।यही समग्र विकास है,जिसमें आंतरिक एवं बाह्य,दोनों क्षेत्र जुड़े हैं।
  • उदारीकरण का वास्तविक तात्पर्य तो यही है,परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे आर्थिक,तकनीकी एवं औद्योगिक क्षेत्र के विकास से जोड़ दिया गया है एवं आंतरिक उन्नति के साथ इसका कोई संबंध नहीं रह गया है।उदारीकरण के इस दौर का इतिहास कोई ज्यादा पुराना नहीं है।सन् 1980 में अर्थशास्त्रियों ने इस शब्द का प्रयोग किया,परंतु इसका प्रचार-प्रसार 1990 के बाद ही हो सका।19वीं शताब्दी में यूरोप उपनिवेशवाद ने व्यापार को अंतरराष्ट्रीय बना दिया।समस्त विश्व में ग्रेट ब्रिटेन एक व्यापारी राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अमेरिका एक समृद्ध व्यापारिक राष्ट्र के रूप में उभरा।यह उदारीकरण की प्रथम एवं द्वितीय अवस्था थी।वर्तमान समय में इस क्षेत्र में लगभग समस्त विश्व समाहित हो गया है।तकनीकी ने हमें वैश्विक नागरिक बना दिया है।विकास के युग में हम अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध एवं संपन्न हुए हैं।साधन,सुविधा एवं संसाधनों के अतिविकसित रूपों का उपभोग किया जा रहा है।वैश्वीकरण के इस दौर में ऐसे साधन खोज लिए गए हैं,जिनकी कल्पना भी दो शताब्दियों पूर्व संभव नहीं थी।

4.उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Erosion of values due to liberalization):

  • उदारीकरण आधुनिकता के नए रंगों से रंग गया।हमने तकनीकी,विज्ञान,चिकित्सा,संचार आदि क्षेत्रों में अकल्पनीय उपलब्धियां प्राप्त की है,परंतु विकास की इस तीव्र एवं द्रुतगामी यात्रा में हमारी स्थिति अत्यंत विचित्र हो गई है।विकास की इस घटना की जो सर्वाधिक पीड़ादायक स्थिति है,वह है:सांस्कृतिक एवं सामाजिक अवमूल्यन।आधुनिक दौर में अपनी जड़ों से कटकर हमने जो विकास किया है,उसके गंभीर परिणाम सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं।इसी कारण अपने समाज के विभिन्न वर्गों में विकृति घर करने लगी है।
  • उदारीकरण का एक सच यह भी है कि त्वरित एवं अत्यधिक लाभ पाने की लालसा एवं महत्त्वाकांक्षा में मनुष्य यह भूल गया है कि हमारा समाज त्याग,दया एवं करुणा जैसे मूल्यों पर खड़ा हुआ था।’यही चाहिए और अभी चाहिए’ की यह महत्त्वाकांक्षा हमारे समाज के पारिवारिक तंत्र को ध्वस्त करने लगी है।आज सबके साथ रहकर,सबकी भावनाओं को ध्यान में रखकर सहयोग एवं सेवाभाव की प्रवृत्ति विलुप्त हो गई है।हम अपने ही परिवार से कटकर एवं अलग परिवार बसाकर रहने की कल्पना ही नहीं करते,बल्कि उसे क्रियान्वित भी करने लगे हैं।इसी कारण समाज में टूटते परिवारों की संख्या बढ़ी है।घरेलू हिंसा अपने चरम पर पहुंच गई है।विश्वास एवं सहानुभूति की डोर टूट जाने से शक,संदेह एवं भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।पति-पत्नी एवं संतान सभी आपस में एकदूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हैं।
  • युवाओं की मूल्यों के प्रति आस्था चरमरा गई है।ये कड़ी मेहनत,ईमानदारी एवं आपसी सहयोग-सहायता के स्थान पर भीषण प्रतिस्पर्धा के कुचक्र में पड़ गए हैं।किसी भी तरह से संपन्नता प्राप्त करने की होड़ ने हिंसा एवं अपराध को जन्म दिया है।ईमानदारी एवं कड़ी मेहनत करके अर्थोपार्जन करना एक कल्पना मात्र रह गई है।उदारीकरण ने हमें सिखाया है कि समाज में वही प्रतिष्ठित एवं सम्मानित है,जिसके पास अकूत संपदा एवं समृद्धि हो,फिर चाहे उसका अर्जन किसी भी तरह से भी क्यों न किया गया हो।जो इसे अर्जित कर लेते हैं,अहंकार से मदमस्त हो जाते हैं।उनके लिए नैतिकता,संवेदनशीलता आदि मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता और जो इसे प्राप्त नहीं कर पाते,वे किसी अनैतिक एवं अवांछनीय कृत्यों का सहारा लेने में झिझकते नहीं है।
  • वर्तमान समय में युवाओं का विवाह संस्था से विश्वास उठने लगा है।आज युवा शालीनता एवं शुचिता को धता बताते हुए बिना विवाह के एक साथ रहने लगे हैं और साथ भी तब तक रहते हैं,जब तक एकदूसरे की आवश्यकता को पूरा कर रहा हो।आवश्यकता पूरी होते ही इन संबंधों के टूटते देर नहीं लगती।सुख एवं भोग की यह तलाश कुछ समय बाद मृगमरीचिका ही साबित होती है।
  • इसके अलावा आधुनिक परिधान जिन्हें किसी दृष्टि से गरिमापूर्ण कह पाना संभव नहीं है,वे बेहद पसंद किए जा रहे हैं ;जबकि शालीन वेशभूषा तो आज संग्रहालय का विषय बन कर रह गई है।परिधान एवं श्रृंगार शालीनता एवं सभ्यता के मानदंडों के अनुरूप ही होने चाहिए।स्वतंत्रता का स्थान उच्छृंखलता ने ले लिया है अर्थात् अपने जीवन को हम जैसे चाहे जिएँ,चाहे इससे समाज का कितना भी अहित क्यों ना होता हो।
  • उदारीकरण से प्राप्त यह तथाकथित विकास हमें बाहर से भले ही समृद्धि एवं संपन्नता दे,परंतु अंदर से हमें खोखला कर चुका है; क्योंकि विकास एवं खुलेपन की अंधी दौड़ में हम अपनी संस्कृति और विरासत को पूरी तरह भुला चुके हैं और यही वजह है कि बहुत कुछ पाने के बाद भी हमने बहुत कुछ खो दिया है।उदारीकरण की इस आँधी से बचने के लिए समाज में जीवन मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की आवश्यकता है।विकास मूल्य आधारित हो,यही समग्र समाधान है।
  • विकास और उदारीकरण के सही स्वरूप को समझकर हमें अपनी जीवन शैली में आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।तथाकथित विकास और उदारीकरण तथा पाश्चात्य देशों की अंधे होकर नकल नहीं करना चाहिए।आज अधिकांश युवा इसीलिए दुखी,असंतुष्ट हैं कि उनका एकमात्र उद्देश्य धन कमाना है,धन किसी भी तरीके से कमाया जाए।इससे समृद्धि,भौतिक सम्पदा तो प्राप्त की जा सकती है परंतु आत्मिक संतुष्टि प्राप्त नहीं की जा सकती है।आत्मक संतुष्टि के लिए धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे एवं नैतिक होने चाहिए,जीवन में सद्गुणों को अपनाना जरूरी है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Erosion of Value Due to Liberalization),वैश्विक उदारीकरण के दुष्प्रभाव (Side Effects of Global Liberalization) के बारे में बताया गया है।

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5.हर विद्यार्थी गणितज्ञ नहीं होता (हास्य-व्यंग्य) (Not Every Student is a Mathematician) (Humour-Satire):

  • चंद्रकांत:अभिषेक,मुझे आज पूरा यकीन हो गया कि हर छात्र गणितज्ञ नहीं बन सकता।
  • मगर-ऐसा तुझे कैसे पता चला?
  • चंद्रकांत:जब मैं तुमसे मिला।

6.उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Frequently Asked Questions Related to Erosion of Value Due to Liberalization),वैश्विक उदारीकरण के दुष्प्रभाव (Side Effects of Global Liberalization) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.ईएमआर से क्या तात्पर्य है? (What is meant by EMR?):

उत्तर:विशिष्ट विपणन (बिक्री) अधिकार को ही संक्षिप्त में ईएमआर कहते हैं।अंग्रेजी में EMR,Exclusive Marketing Rights का संक्षिप्त है।

प्रश्न:2.उदारीकरण से रोजगार पर क्या प्रभाव पड़ा है? (What is the impact of liberalisation on employment?):

उत्तर:उदारीकरण के पक्षधर उदारीकरण के पक्ष में तर्क देते हैं कि इससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं।साथ ही काबिल व्यक्ति,क्षमतावान होगा तो आगे बढ़ेगा।परंतु यह तस्वीर का एक ही पहलू है।वस्तुतः उदारीकरण में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और कंपनियां लागत कम करने के लिए मशीनीकरण को बढ़ावा देती है और कर्मचारियों की छंटनी करती है।मशीनीकरण से अधिक व्यक्तियों का कार्य कम व्यक्तियों से कराया जा सकता है अतः रोजगार के अवसर कम होते हैं।

प्रश्न:3.उदारीकरण को अपनाया जाए या नहीं। (Whether to adopt liberalization or not):

उत्तर:वस्तुत उदारीकरण जरूरी तो है परंतु सरकार को अपनी लोक कल्याणकारी नीति,समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए ही इसे लागू करना चाहिए।उदारीकरण से शिक्षा अधिक महंगी हुई है अतः शिक्षा सबको उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था सरकारों को करना चाहिए,शिक्षा भी गुणवत्तापूर्ण उपलब्ध करायी जाए ताकि इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा उदारीकरण से मूल्यों का ह्रास (Erosion of Value Due to Liberalization),वैश्विक उदारीकरण के दुष्प्रभाव (Side Effects of Global Liberalization) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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