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8 Secrets for Creating Study Timetable

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1 1.अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (8 Secrets for Creating Study Timetable),अध्ययन की समय सारणी कैसे बनाएँ? (How to Create Study Timetable?):

1.अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (8 Secrets for Creating Study Timetable),अध्ययन की समय सारणी कैसे बनाएँ? (How to Create Study Timetable?):

  • अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (8 Secrets for Creating Study Timetable) के आधार पर आप समय की कमी महसूस नहीं करेंगे,आप अध्ययन ही नहीं बल्कि हर कार्य व्यवस्थित ढंग से कर सकेंगे।
  • यह लेख जाॅब करने वाले एम्प्लॉइज,छात्र-छात्राओं,व्यवसायियों,फुटकर और रिटेलर विक्रेताओं तथा विभिन्न प्रोफेशनल्स व्यक्तियों आदि सभी के लिए उपयोगी है।
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2.टाइम टेबल क्यों जरूरी? (Why is a time table important?):

  • यों तो जॉब करने,किसी संगठन का कार्य करने यानी जीवन के हर मोड़ पर टाइम टेबुल उपयोगी है लेकिन एक छात्र-छात्रा के लिए समय सारणी का बहुत महत्त्व है।स्कूल में,कोचिंग संस्थान में शिक्षक तथा विभिन्न कंपनियों में एम्प्लॉइज टाइम टेबल के अनुसार कार्य करते हैं।परीक्षाएं भी समय सारणी के अनुसार होती हैं,टीवी चैनल्स पर प्रोग्राम नियत समय पर आते हैं तो भला विद्यार्थी समय सारणी से क्यों न पढ़े? समय को किसी भी सूरत में रोका नहीं जा सकता है,समय का चक्र निरंतर चलता रहता है।अतः केवल समय का सदुपयोग या दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • समय सभी के लिए समान है।फिर भी कई छात्र-छात्रा हैं कि सदा ही समय की कमी महसूस करते रहते हैं।जब भी उनसे पढ़ाई के बारे में पूछा जाए,सदैव ही उनसे सुनने को मिलेगा क्या करें? समय ही नहीं मिलता? कहना न होगा जो छात्र समय सारणी को अपने अध्ययन का हिस्सा बना लेते हैं उन्हें न केवल पढ़ाई ही बल्कि किसी भी काम के लिए समय की कमी नहीं रहती।

3.समय सारणी से अध्ययन व्यवस्थित (Organize the study by time table):

  • घर पर आपकी पढ़ने की एक निश्चित समय-सारणी अवश्य होनी चाहिए।इसकी तुलना स्कूल या कॉलेज की समय-सारणी से की जा सकती है।इसमें होमवर्क करना और जो उस दिन पढ़ा है,उसे दोहराने तथा कुछ नोट्स बनाने का प्रावधान भी होगा।जिस दिन स्कूल या कॉलेज न जाना हो,उस दिन नोट्स बनाने और पढ़ाई करने में उस समय को बांटा जा सकता है।
    पढ़ने के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को निजी क्षमताओं को सुधारने के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए।अपनी निजी क्षमताओं द्वारा एक व्यक्ति दूसरे से भिन्न होता है।जितनी ज्यादा उसके अंदर क्षमताएँ होती हैं,वह उतना ही ज्यादा योग्य होता है।सर्वांगीण विकास की आपके पास विविध तरह की क्षमताएं होनी चाहिए।
  • अधिकांश अभिभावक शिक्षा पर बहुत ज्यादा जोर देते हैं।लेकिन न खेलने और केवल पढ़ते रहने से बच्चा ऊबने लगता है।किसी भी समय-सारणी में खाली समय और पढ़ने दोनों का ही प्रावधान होना चाहिए।खाली समय में घर में रहकर बाहर करने वाली गतिविधियों की छूट होनी चाहिए।पढ़ने और मौज मस्ती करने के बीच उचित संतुलन होना चाहिए।
  • पढ़ने के समय की अवधि कितनी होनी चाहिए? कई अभिभावक इस बात पर जोर देते हैं कि कुछ समय आराम करने के लिए छोड़कर बाकी समय पढ़ाई में लगाना चाहिए।पढ़ाई के स्तर के अनुरूप समय अवश्य अलग-अलग ढंग से बाँटा जा सकता है,पर कार्य की योजना तय करते समय किसी न किसी आधार का पालन अवश्य करना चाहिए।
  • बहुत देर तक एक साथ न पढ़ें।अभिभावक खुश होकर यह बात कहते हैं कि उनका बच्चा लगातार 3 घंटे तक पढ़ता रहता है।पर यह ठीक नहीं है।कुछ समय पढ़ने के बाद बच्चों के दिमाग की ग्रहणशीलता खत्म होने लगती है।इसके बाद अगर बच्चा पढ़ता भी रहता है तो भी उस अध्ययन से पूरा लाभ नहीं मिलता है।
  • किसी भी विषय को ग्रहण करने की क्षमता 40 से 45 मिनट तक रहती है।इसीलिए स्कूल और कॉलेज में सारी कक्षाएं इतनी देर तक ही चलती हैं।घर पर एक विषय को ज्यादा से ज्यादा एक घंटे तक ही पढ़ना चाहिए।फिर 5-10 मिनट का छोटा सा ब्रेक मददगार साबित होता है।हो सकता है बच्चा पानी पीना चाहे,चाय पीना चाहे या शौचालय जाना चाहे।
  • लेकिन इस ब्रेक का उपयोग खेलने या टी.वी. देखने में नहीं करना चाहिए।इससे ध्यान बँटता है और दुबारा पढ़ना मुश्किल हो जाता है।इन गतिविधियों के लिए अलग समय होना चाहिए।ब्रेक का मुख्य उद्देश्य है आंखों और मांसपेशियों को राहत पहुंचाना।एक ही मुद्रा में बैठना थका सकता है और शारीरिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।थोड़े से चलने से मांसपेशियों को आराम मिलता है।
  • किसी दूसरे विषय को पढ़ने से भी बीच में राहत मिल जाती है।जैसे,अगर कोई विज्ञान पढ़ रहा है तो गणित पढ़ना शुरू कर देना राहत पहुंचाता है।ऐसे ही अध्ययन की गतिविधि में बदलाव भी मददगार साबित होता है।अगर कोई लिख रहा है तो पढ़ना शुरू करने से ग्रहणशीलता बढ़ जाती है।ग्राफिक वर्क करने से भी राहत मिलती है।
  • जो काम हम कर रहे हैं,उन गतिविधियों को बदलते रहने से ग्रहणशीलता बढ़ाने में मदद मिलती है।पर कोई भी दो व्यक्तियों की स्थिति एक जैसी नहीं हो सकती है।इसलिए अपनी स्थिति के अनुसार हर व्यक्ति को निर्धारित करना चाहिए कि उसके लिए क्या उपयुक्त होगा।मन में निजी पसंद का ख्याल रखते हुए अध्ययन की सही समय सारणी बनाई जा सकती है।सबसे जरूरी है उस समय सारणी का नियमित रूप से पालन करना।तभी हम अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

4.समय सारणी कैसे बनाएं? (How to create a timetable?):

  • समय सारणी से तात्पर्य है तुलनात्मक अध्ययन या विवेचन के लिए अनेक खानों/चौखानों वाला एक फलक कागज पर बनाना।आप चाहे तो स्वयं बना सकते हैं अन्यथा बना-बनाया फॉर्मेट बाजार में भी मिल जाता है।अध्ययन के संदर्भ में पढ़ाई के साथ-साथ हर काम को योजनाबद्ध तरीके से करने के लिए समय विभाजन का खाका/ढांचा है।इसे बनाना बहुत आसान है।पहले तो आपको अपने सभी कामों को क्रम से विभाजित कर लेना चाहिए।अर्थात् सुबह उठने से लेकर सोने तक के प्रत्येक कार्य का बँटवारा कर लो।यथा प्रातः जल्दी उठना,शौच,स्नान,व्यायाम आदि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर नाश्ता समय पर करना,नाश्ते के बाद जाने से पहले स्कूल में पढ़ाए जाने वाले विषयों को दोहराना। स्कूल की पढ़ाई में लगे समय को निकाल कर बचे हुए समय को सायंकाल में खेल इत्यादि के बाद रात्रि में तीन से चार घटे रोज नियमित रूप अध्ययन के लिए समय नियत करना।रात्रि में अध्ययन के बाद पर्याप्त नींद ओर फिर सुबह जल्दी नियत समय पर फुर्ती से उठना।इस पर समयबद्ध तरीके से अध्ययन करने से पढ़ाई में रुचि बनी रहेगी और पाठ्यक्रम का भार भी हल्का होता चला जाएगा।

5.समय सारणी के अनुसार अध्ययन कैसे करें? (How to study according to the time table?):

  • अब प्रश्न है कि समय सारणी के अनुसार अध्ययन कैसे करें? इसके लिए स्कूली समय के अलावा अध्ययन में लगाए गए समय को विषय के अनुसार बाँटा जा सकता है।कहना ना होगा कि विषयवार समय विभाजन कर अध्ययन करना अच्छी बात है।
    मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि प्रत्येक छात्र की हर विषय को समझने की क्षमता अलग-अलग होती है अतः समय भी अलग-अलग लग सकता है।गणित जैसे विषय के प्रश्न किन्हीं छात्र-छात्राओं को बहुत कठिन लगते हैं अतः उन्हें गणित के लिए अधिक समय देना पड़ेगा।जबकि किन्हीं को गणित इतना सरल लगता है कि वे चुटकियों में गणित के सवाल हल कर देते हैं लिहाजा उन्हें गणित पर कम समय देने की आवश्यकता होगी।
  • इसी प्रकार यदि उन्हें विज्ञान याद नहीं रहता तो निश्चित तौर पर उन्हें गणित पर बचे हुए समय को विज्ञान के अध्ययन में लगाना होगा।फिर भी,किस विषय को कितना समय दिया जाए यह पाठ्यक्रम के स्वरूप और विषय को समझने,समझने में लगने वाले समय तथा ग्रहण करने की शक्ति के अनुसार निश्चित किया जा सकता है।
  • केवल समय सारणी बनाना ही महत्त्वपूर्ण नहीं होता,उस पर अमल करना भी महत्त्व की बात है तभी सार्थक परिणाम सामने आते हैं।समय सारणी के प्रति सजगता के बारे में संकेत देते हुए कहा है कि जैसे एक व्यापारी अपने आंकड़ों पर नजर रखता है वैसे ही हमें प्रतिदिन किए हुए कार्य के आंकड़ों पर भी रात को  सोने से पूर्व विचार कर लेना चाहिए।
  • जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई को सुरुचिपूर्ण और सुव्यवस्थित बनाने के लिए टाइम टेबुल को ही अपने अध्ययन का अंग बनाया।इमैन्युएल काण्ट (Immanuel Kant) ने गणित,विज्ञान और दर्शन की उच्चतम शिक्षा प्राप्त की।महान गणितज्ञ एवं दार्शनिक काण्ट समय के इतने पाबंद थे कि जब वे प्रातः काल घूमने निकलते थे तो लोग उन्हें देखकर अपनी घड़ियां ठीक करते थे।उनका प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर व नियमानुकूल हुआ करता था।महान् गणितज्ञों और महापुरुषों की सफलता का यह भी एक रहस्य था कि वे अध्ययन के साथ सभी कार्य समय सारणी के अनुसार और नियत समय पर ही करते थे।उनका मूलमंत्र था ‘खेलने के समय खेलना और काम के समय काम।’
  • आज के विद्यार्थी (अधिकांश) प्रारम्भ से ही समय सारणी के अनुसार अध्ययन करने के प्रति जागरूक नहीं रह पाते।इसका कारण है कि रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम बच्चों के लिए भी पर्याप्त समय नहीं दे पाते।

6.अभिभावक टाइम टेबुल बनाने में मदद करें (Help create a time table by guardians):

  • छात्र-छात्रा’ टाइम टेबुल’ को अमल में लाएं इसके लिए माता-पिता अथवा अभिभावकों का भी दायित्व बनता है कि वे बच्चों की पढ़ाई के बारे में जानकारी रखें।निजी स्कूलों में साप्ताहिक,पाक्षिक,मंथली,रैंकिंग टेस्ट,अर्धवार्षिक,प्री बोर्ड परीक्षाएं होती रहती है और ये टेस्ट विद्यार्थियों की प्रोग्रेस के बारे में सूचना देता है।अतः वे स्कूल में समय-समय पर लिए जाने वाले टेस्टों/परीक्षाओं के बारे में,जानकारी लेकर पता लगा सकते हैं कि उनका बच्चा स्कूल के पाठ्यक्रम के साथ-साथ चल पा रहा है अथवा नहीं।प्रतिदिन कुछ समय देकर उनकी प्रोग्रेस के बारे में पता लगा सकते हैं।इस कमी को प्रतिदिन पूरा करने के लिए यदि हम प्रतिदिन समय न निकाल सकें तो सप्ताह में कम से कम एक दिन कुछ समय निकालकर बच्चों द्वारा पढ़ाई में लगाए जा रहे समय और उनके विभाजन अथवा समय-सारणी के बारे में जानकारी लेते रहें व बच्चों को सुझाव देते रहें और बच्चे ‘टाइम टेबुल’ के अनुसार अपना अध्ययन सँवार लें तो बच्चे अपनी पढ़ाई में बहुत कुछ हासिल कर पाएंगे।
  • यदि बच्चे टाइम टेबुल मैनेज नहीं कर पा रहे हो तो अभिभावक को टाइम टेबुल बनाने में सहयोग करना चाहिए।पर इसके लिए अभिभावकों को थोड़ा जागरूक होना पड़ेगा।परंतु देखा जाता है कि अभिभावक अक्सर स्कूल के भरोसे बच्चों को छोड़कर निश्चिंत हो जाते हैं और नौन-तेल लकड़ी की व्यवस्था में ही रात-दिन व्यस्त रहते हैं दूसरी तरफ बच्चों का बेड़ा गर्क हो जाता है।

7.प्रभावी अध्ययन की तकनीक (Techniques of effective study):

  • प्रभावी अध्ययन के लिए कई शिक्षाशास्त्रियों ने कुछ महत्त्वपूर्ण फाॅर्मूले अपनाने की सलाह दी है।अगर साधारण रूप से इन फॉर्मूलों की व्याख्या दी जाए तो यह फाॅर्मूला इस प्रकार है:

(1.)अध्ययन के बारे में जानें (Learn about the study):

  • छात्र-छात्राओं को अपने सिलेबस का अध्ययन करके या पुस्तक का इंडेक्स देखकर यह जानना चाहिए कि उसे क्या-क्या पढ़ना है और किसे कितना पढ़ना है,कब-कब पढ़ना है? इसके पश्चात ही समय सारणी बनाएं और अध्ययन करें।

(2.)अपने आप से प्रश्न पूछें (Ask yourself questions):

  • छात्र-छात्रा को अपने आप से यह प्रश्न पूछने की जरूरत है कि मुझे सीखने की जरूरत क्यों है? मैं किस विधि,किस तकनीक,किस रणनीति का पालन करके,और कैसे सीख सकता हूं? मैं अपनी कमजोरियों को कैसे दूर कर सकता हूं? मेरा सबल पक्ष क्या है? और उसे और अधिक मजबूत कैसे कर सकता हूं? मुझे कहां-कहां से और कैसे सामग्री इकट्ठी करनी है? नोट्स किस प्रकार बना सकता हूं? कब-कब रिवीजन का समय रखना है।साप्ताहिक,मासिक रिवीजन में कितना समय देना है? मेरी मदद कौन-कौन कर सकता है और उनकी मदद किस प्रकार से हासिल कर सकता हूं? क्या माता-पिता या भाई-बहन मेरी मदद कर सकते हैं? यदि हाँ तो कितनी मदद कर सकते हैं,कब मदद कर सकते हैं? कब और कहां से मुझे सारी जानकारी मिल सकती है?

(3.)पढ़ने के बारे में (About reading):

  • किसी भी विषय की विषय-वस्तु को जितना आप पढ़ सकते हैं,उतना पढ़ें।अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग करें।अपने समय को लीकेज न करें।जितना अधिक पढ़ेंगे,जितना अधिक रिवीजन करेंगे,उतना अच्छा होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम आपको पढ़ाकू बनने की सलाह दे रहे हैं।समय-सारणी में थोड़ा समय मनोरंजन,व्यायाम-खेल आदि के लिए भी दें।इससे आपका दिमाग रिफ्रेश हो जाता है और आप पुनः पढ़ने के लिए ऊर्जावान हो जाते हैं।अक्सर छात्र-छात्राओं का काफी कुछ समय बर्बाद हो जाता है और उन्हें पता ही नहीं रहता है।यदि वे सजग और सचेत होकर समय-सारणी का सख्ती से पालन करेंगे तो अध्ययन का आउटपुट अच्छा आएगा।

(4.)रिवीजन अवश्य करें (Be sure to revise):

  • जितना पढ़ना आवश्यक है उतना ही बल्कि उससे भी अधिक रिवीजन (दोहराना) जरूरी है,जिससे पढ़ा हुआ याद रहता है।पढ़ा हुआ याद रहे,जानकारी कायम रहे,विषयवस्तु ठीक से समझ में आ जाए यही तो विद्यार्थी की पहचान है।रिवीजन किसका करना है,कैसे करना है,इसे समझें।नोट्स का रिवीजन करना है,मॉडल पेपर्स,गत वर्षो के प्रश्न-पत्र,मॉक टेस्ट के जरिए रिवीजन करना है।समय रहते नोट्स बनाना जरूरी है,इसमें लापरवाही न बरतें,आलस्य न करें।आपकी नींव तभी मजबूत होगी जब आप कठिन परिश्रम करेंगे,समय का पूरा उपयोग करेंगे।नोट्स स्वयं के बनाना ही उचित होता है।नोट्स बनाने के अनेक फायदे आपको आगे जाकर मिलेंगे।

(5.)बार-बार दोहराएं (Repeat over and over):

  • अध्ययन किए हुए की पुनरावृत्ति एक बार करने से ही संतोष ना कर लें बल्कि बार-बार अभ्यास और पुनरावृत्ति करें।समय-समय पर विषय को बार-बार दोहराने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।समय सारणी के अनुसार अध्ययन करेंगे,समय के एक-एक क्षण का उपयोग करेंगे तो आपको समय की कमी नहीं खलेगी।आप इसी समय में कोर्स पूरा भी कर लेंगे और कई बार पुनरावृत्ति भी कर सकेंगे,इससे पढ़ा हुआ ठीक से याद हो जाएगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (8 Secrets for Creating Study Timetable),अध्ययन की समय सारणी कैसे बनाएँ? (How to Create Study Timetable?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें?

8.छात्र ने टाइम टेबुल बनाया (हास्य-व्यंग्य) (Student Made a Timetable) (Humour-Satire):

  • एक छात्र अपने दोस्त से बोला:कल मैं गणित पढ़ूँगा।
  • दोस्त:वाह,क्या बात कर रहे हो? पर यह सूरज पूर्व से पश्चिम में कैसे उगेगा?
  • छात्र:अरे साफ है,पिछली कक्षाओं में मैंने टाइम टेबुल नहीं बनाया था इसलिए कुछ भी नहीं पढ़ा था।इस बार टाइम टेबुल बनाया है तो पढ़ूंगा।
  • दोस्त:अरे बुद्धू टाइम टेबुल बनाकर तो अनेक छात्र-छात्रा अपने कक्ष में टांग लेते हैं।

9.अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (Frequently Asked Questions Related to 8 Secrets for Creating Study Timetable),अध्ययन की समय सारणी कैसे बनाएँ? (How to Create Study Timetable?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.लंबे समय तक क्यों न पढ़ें? (Why not read for a long time?):

उत्तर:लंबे समय तक पढ़ने से रसायनों (शरीर में) में कमी आ जाती है,जो दिमाग में सूचना प्रक्रिया को प्रभावित करता है।पढ़ने के प्रत्येक एक घंटे बाद पाँच-दस मिनट का ब्रेक लेने के बाद बावजूद,बिना रुके 4 घंटे से ज्यादा नहीं पढ़ना चाहिए।

प्रश्न:2.करने योग्य बातें क्या हैं? (What are the things to do?):

उत्तर:(1.)इस लेख में चर्चित किए गए परामर्शों को ध्यान में रखते हुए घर में अपने अध्ययन की समय-सारणी जाँचें।
(2.)आप अपने सीखने की ग्रहणशीलता को किस तरह आँकते हैं:उत्तम,अच्छा या बुरा? आप इन्हें सुधारने के लिए क्या योजना बना रहे हैं?

प्रश्न:3.लेख का सारांश बताएं। (Summarize the article):

उत्तर:(1.)बेहतर ग्रहणशीलता के लिए विभिन्न तरह की गतिविधियां करें।
(2.)पढ़ने में संतुलित रुचि बनाएं रखने के लिए विभिन्न विषय पढ़ते रहें।
(3.)निजी पसंद के साथ पढ़ने की योजना का सामंजस्य बनाकर रखें।
(4.)लंबे समय तक न पढ़ें।इससे पढ़ने में व्यवधान उत्पन्न होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन की समय सारणी बनाने के 8 रहस्य (8 Secrets for Creating Study Timetable),अध्ययन की समय सारणी कैसे बनाएँ? (How to Create Study Timetable?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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