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6 Mantras of Personality Purification

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1.व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मंत्र (6 Mantras of Personality Purification),छात्र-छात्राओं के लिए व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मूल मंत्र (6 Besic Spells of Personality Purification for Students):

  • व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मंत्र (6 Mantras of Personality Purification) हमारे लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि हमारे व्यक्तित्व में कुछ ऐसे दुर्गुण है जो हमारे व्यक्तित्व को बदरंग करते हैं।हमारा ध्यान इस तरफ रहता ही नहीं है और यह दुर्गुण वैसे ही हमें नष्ट कर देते हैं जैसे अनाज को घुन।
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2.व्यक्तित्व निर्माण साधना है (Personality building is spiritual practice):

  • व्यक्तित्व निर्माण नगर पुरस्कार है।यह नगद सौदा व व्यापार है,इसके परिणाम-प्रतिफल के लिए लंबे समय की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।इसका उपहार हाथोंहाथ मिलता है।इसकी साधना के अंतर में संचित पशु-प्रवृत्तियों का आवरण कटता मिटता है तथा व्यक्तित्व निरंतर उच्चस्तरीय बनता जाता है।उत्कृष्टता और आदर्शवाद की दिव्य उपलब्धियां सतत मिलने लगती हैं।नर-पशु के अंदर नर-देव की झलक-झांकियां झलकने लगती हैं और इसी के आधार पर अध्ययन को वैज्ञानिक ढंग से कर पाना,चिंतन और चरित्र का निर्माण करना संभव होता है।यही वास्तविक उपलब्धि है,जिसे व्यक्तित्व शुद्धि के रूप में जाना-समझा जाता है।यही वह प्रतिभा है,जिसे उत्कृष्ट संपदा कहा जाता है।
  • व्यक्तित्व शुद्ध करने का तात्पर्य है,व्यक्तित्व को उत्कृष्ट एवं परिष्कृत करना।यह अनमोल संपदा है जो स्वयं के द्वारा अर्जित की जाती है।इसे स्वयं में श्रद्धा,नियम-संयम और अनुशासन के सहारे अर्जित करना पड़ता है।इसके लिए किसी से कोई अपेक्षा नहीं की जाती,यह स्वयं के प्रचण्ड पुरुषार्थ एवं भागीरथी प्रयास के द्वारा प्राप्त की जाती है।यह न तो उत्तराधिकार में मिलती है और न किसी से वरदान-उपहार में उपलब्ध होती है।व्यक्तित्व का निर्माण स्वयं को ही करना पड़ता है।निजी तन्मयता एवं तत्परता को अपनाकर ही इसे अर्जित किया जा सकता है।इसके लिए अपने अंदर आवश्यक सामर्थ्य एवं योग्यता उत्पन्न करनी पड़ती है,बीज के समान स्वयं को गलना पड़ता है,दीपक के समान स्वयं को जलाना पड़ता है।
  • व्यक्तित्व शुद्ध साधना है।जीवन को सार्थक एवं समर्थ बनाने वाली क्षमता अर्जित करने का दूसरा नाम व्यक्तित्व निर्माण है।संयमशील,अनुशासित और सुव्यवस्थित क्रियाकलाप अपनाना व्यक्तित्व शुद्ध कहा जाता है।छात्र जीवन का श्रेष्ठतम एवं सर्वोत्तम सदुपयोग करना ही व्यक्तित्व साधना है।व्यक्तित्व को पवित्र,प्रामाणिक,प्रखर बनाने की प्रक्रिया एक साधना है।यह साधना हमारे अंदर फैले दोष-दुर्गुणों को गलाकर निकालती है;तो सुसंस्कारिता की सुगंध को फैलाती है और बाहरी जीवन में सभ्यता के रूप में दिखाई देती है,व्यवहार को शालीनता के रूप में निखारती है।यों तो इस उपलब्धि को प्राप्त करने में वातावरण एवं सम्पर्क-सानिध्य भी सहायक होते हैं,तो भी मुख्यतया योगदान अपने दृष्टिकोण एवं प्रयास का रहता है।यही सच्ची पात्रता है।ऐसे ही सत्पात्रों को बेहतरीन जाॅब,अच्छा वेतन,सुख-शांति,सुविधाएँ जैसी दिव्य विभूतियां मिलती है और कृतार्थ करती हैं।इनमें
  • सद्भावना,शालीनता,सहृदयता के समस्त लक्षण प्रकट होते हैं,जो स्वयं को तो प्रसन्न एवं आनंदित बनाते हैं,दूसरों की प्रेरणा के स्रोत भी बनते हैं।सामान्य स्थिति में रहते हुए भी ऐसे ही विद्यार्थी ह्यूमन कंप्यूटर,इंजीनियर,गणितज्ञ,वैज्ञानिक,प्राध्यापक के पदों पर पहुंचकर चमत्कारी कार्य संपन्न करते हैं।इन कार्यों को देखकर लोग अपने दांतों तले उंगली दबा लेते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं।

3.व्यक्तित्व शुद्धि की आवश्यकता (The Need for Personality Purification):

  • आज के अर्थ प्रधान आपाधापी वाले आधुनिक युग में व्यक्तित्व शुद्धि की सर्वोपरि आवश्यकता है।इन दिनों ऐसे व्यक्तित्व संपन्न एवं सुदृढ़ चरित्रवानों की आवश्यकता है,जो जीवन को मधुर बनाने वाले नियमों-सिद्धांतों को स्वयं (छात्र-छात्राएँ) अपना सके और लोगों को भी सरल और व्यावहारिक रूप में समझा सकें,उपयोगी सिद्ध कर सकें।इन्हें (छात्र-छात्राओं) को अपने प्रयास-पुरुषार्थ की नींव (आधारशिला) अब ऐसे सशक्त एवं सुबोध आधार पर खड़ी करनी होगी,जिसे उपभोक्तावादी,उच्छृंखलतावादी अपसंस्कृति का तूफान गिर ना सके,टकराकर वापस लौटने को मजबूर कर दे,जो जीवन-साधना के सरल,सहज एवं स्वर्णिम सूत्रों को स्वयं में उतारे एवं औरों को अपनाने के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करें।
  • भगवान पर आस्था मानवी नैतिकता का मेरुदंड है।यही आस्तिकता के रूप में सत्साहित्य के पन्नों-पन्नों में बिखरी मिलती है।कर्मफल के विज्ञान और विधान का संबंध भी इसी से है।कर्मफल तत्काल मिलते न देखकर विद्यार्थी कुमार्गामी बनता है।वह उच्छृंखल,स्वार्थपरता तथा अनीति के पतन के मार्ग पर बढ़ चलने का दुस्साहस करने लगता है,जबकि भगवद शासन व्यवस्था की आस्था सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती है।भगवान में विश्वास के भाव से विद्यार्थी को अपने आप पर विश्वास (आत्मविश्वास) होता है और वह लोगों की सहायता-सहयोग करता है,अपने कर्म को पूर्ण तन्मयता से करता है,साथ ही अपने अंदर जमा राग-द्वेषों को नित्य स्वच्छ करता है और अनेक लाभ पाने का अधिकारी बनता है।सर्वत्र भगवान को व्याप्त मानकर या अपने ईष्ट को भगवद सत्ता का,अपने आदर्श का प्रतीक मानकर रखना चाहिए,जिससे अपने आप पर विश्वास,भगवान पर विश्वास का वातावरण बना रहे।
  • आस्तिकता की भावना में ही आत्मविश्वास,आत्मनिष्ठारूपी आध्यात्मिकता पनपती है। यह ऐसा विश्वास है जो उसे अपने अंदर सोई पड़ी शक्तियों की पहचान कराता है और फिर वह उन्हें जागृत करने का प्रयास करता है।यहीं पर आकर बोध होता है कि अपने भविष्य और भाग्य का निर्माता विद्यार्थी स्वयं है।यह बोध होते ही विद्यार्थी अपने गुण,कर्म और स्वभाव की उत्कृष्टता को सर्वोच्च मानकर व्यवहार में उतारने लगता है।शिष्टता,सज्जनता,शालीनता,सहृदयता,उदारता जैसी प्रवृत्तियाँ जीवन के आवश्यक अंग बन जाती है।शरीर को भगवान का मंदिर मानकर उसे सदा स्वच्छ रखा जाता है।लोभ,मोह और वासना-तृष्णा से सदा इसकी रक्षा की जाती है।जीवन में छात्र-छात्रा कार्य को उत्कृष्ट तरीके से करने के लिए ललक उठता है।
  • आध्यात्मिकता की इस आंतरिक वृत्ति के जागरण के साथ ही जीवन में कर्त्तव्यनिष्ठा (अध्ययन करने की वृत्ति) उभरती है।कर्त्तव्यनिष्ठा का अर्थ हैःअपने तथा औरों के प्रति कर्त्तव्य और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना। अध्ययन करने की वृत्ति,नैतिक और अपने चरित्र को कठोर अनुशासन में बांधकर रखने की कर्त्तव्यनिष्ठा पनपती और सुदृढ़ होती है।इससे परीक्षा में उत्तर साफ-सुथरे तरीके से लिखना,जाॅब प्राप्त करने के उचित उपाय करने में नीति और औचित्य का ध्यान आता है।उसके व्यक्तित्व की छाप परिवार पर भी पड़ती है और परिवार भी विकसित और सुसंस्कृत होने लगता है।परिवार की आर्थिक सुविधाओं के साथ-साथ सद्गुणों की संपदा विकसित करने का प्रयास किया जाता है।बड़ों का आदर और छोटों को स्नेह देने में तत्परता बरती जाती है।सच्चे अर्थों में यही कर्त्तव्यनिष्ठा है,जो प्रायः परंपराओं के बंधन से मुक्त होती है।

4.कर्त्तव्यनिष्ठा की आधारशिला (The cornerstone of conscientiousness):

  • कर्त्तव्यनिष्ठा की आधारशिला पर ही व्यक्तित्व की कली खिलती है।यही प्रगतिशीलता का पर्याय है।प्रगतिशीलता का तात्पर्य स्वस्थ रहना और साफ-सुथरे तरीके से धन कमाने के साथ-साथ अपने अनुभव ज्ञान एवं दृष्टिकोण का विकास,शुद्धि भी है।हमें विचारशील एवं दूरदर्शी होना चाहिए और पूर्वाग्रह-दुराग्रह से ऊपर उठकर हर तथ्य की तह तक पहुंचकर यथार्थवाद को समझने का प्रयास करना चाहिए।हमें सर्वत्र सत्य की तलाश करनी चाहिए और उचित व न्यायसंगत निर्णय लेना चाहिए।इसके लिए सत्साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिए,जो जीवन में नई दिशा दे सके।आत्मनिरीक्षण के लिए मनन और आत्मनिर्माण के लिए चिंतन अनिवार्य नित्य कर्म माना जाना चाहिए।सही मायने में यही प्रगतिशीलता है,उन्नति का मार्ग है।
  • उन्नति के इस प्रगति पथ पर संयमशीलता सधती है,इंद्रिय निग्रह होता है।ज्ञानेंद्रिय एवं कर्मेन्द्रियाँ,ज्ञानवृद्धि,औचित्य का निर्णय,उत्साह,प्रयत्न,निर्वाह के उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न करने में सहायता-सहयोग करती हैं।इनका समुचित उपयोग करने पर ही उस लाभ से लाभान्वित हुआ जा सकता है,जिसके लिए भगवान ने उन्हें प्रदान किया है।समझदारी इसमें है कि इन शक्तियों के दुरुपयोग से बचा जाए,क्योंकि इसके असंयम में केवल हानि ही है,लाभ कुछ भी नहीं।इंद्रिय में स्वाद और कामुकता की विकृतियां मुख्य हैं,आहार में सात्विकता तथा चिंतन में उत्कृष्टता से ही इसका निवारण किया जा सकता है।
  • संयम से मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।प्रसन्न चेहरा,रचनात्मक चिंतन करने वाले दूरदर्शी स्वभाव में मानसिक संतुलन के लक्षण प्रकट होते हैं।जो उपलब्ध है,उस पर संतोष एवं आनंद अनुभव किया जाए और अधिक प्राप्त करने के लिए एवं आगे बढ़ने के लिए उत्साहपूर्वक प्रयत्नरत रहा जाए।यही सुदृढ़ मानसिक संतुलन है।ऐसी मनःस्थिति वाला कष्ट-कठिनाइयों में भी दुःख-शोक,हताशा,निराशा,उद्विग्नता के दुष्चक्र में नहीं उलझता है।वह हरेक परिस्थिति को शांत भाव से स्वीकार करता है।साथ चलने वाले साथी-सहयोगियों में कमियां ढूंढने के बजाय उनके गुण ढूंढता तथा उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करता है।
  • ऐसे छात्र-छात्रा में पारिवारिकता एवं सामाजिकता का विकास होता है।समाज का विशाल ढांचा परिवार की छोटी-छोटी इकाइयों में बसता है।परिवार एक प्रकार से छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है।परिवार के प्रत्येक सदस्य  को व्यक्तिगत कर्त्तव्यों एवं सामाजिक उत्तरदायित्व से परिचित कराया जाना चाहिए।इसी प्रकृति के विकास में ही विश्व निर्माण,मानव परिवार के निर्माण की संभावना सम्मिलित है।अतः छात्र-छात्राएं परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्व समझें,परंतु उनके प्रति मोह जागृत न किया जाए।मोह से अपने व्यक्ति के दोष छिप जाते हैं और उन्हें संरक्षण मिलता है।दूसरों के साथ वही व्यवहार किया जाए जो हम दूसरों से अपने लिए किए जाने की अपेक्षा करते हैं।हर किसी को सम्मान देने और अच्छा व्यवहार करने की प्रवृत्ति अपनानी चाहिए।चिंतन उदार और कर्त्तव्य आदर्शपरक होना चाहिए।हमारा स्वभाव समाजनिष्ठ होना चाहिए।व्यक्ति के बजाय समूह को प्रश्रय देने से ही सामाजिकता का विकास हो सकता है।

5.व्यक्तित्व शुद्धि के लिए अन्य गुण (Other Qualities for Personality Purification):

  • छात्र-छात्रा की स्वच्छता और सादगी को ही शालीनता के रूप में निरूपित किया जाता है।स्वच्छता छात्र-छात्रा की जागरूकता एवं सुरुचि की परिचायक है।इसमें उसके कलात्मक दृष्टिकोण एवं सौंदर्यप्रियता का प्रमाण मिलता है।उसके विकसित सभ्यता-स्तर का पता इस तथ्य से लगता है कि उसका स्वभाव कितना सादगीप्रिय है।सौंदर्य सादगी में झलकता है।सज-धज,फैशन की कृत्रिमता और उद्धत प्रदर्शन से शालीनता का स्तर गिरता है।यह सौन्दर्य की विकृति है।इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए।इससे समय और श्रम का संतुलन सधता है,नियमितता पनपती है।समय और धन का अधिकतम अपव्यय इसी उद्धत प्रदर्शन में चला जाता है।इसे बचाया जाना चाहिए और उपयोगी कार्य में लगाना चाहिए।कार्यपरायण समय ही सार्थक है।इस प्रवृत्ति के अपनाने से छात्र-छात्रा प्रामाणिक बनता है तथा लोगों के हृदय में उसके प्रति सम्मान बढ़ता है।
  • सज्जनता,नम्रता,उदारता,सहायता-सहयोग आदि सद्गुणों की प्रशंसा की जाती है,परंतु प्रखरता,साहस और पराक्रम के बिना यह विशेषताएं भी अपनी उपयोगिता खो बैठती हैं।अतः छात्र-छात्रा को निर्भीक और साहसी होना चाहिए।हर किसी को आत्मविश्वासी होना चाहिए।अपने पुरुषार्थ और साहस पर अगाध आस्था होनी चाहिए।स्वयं के सहारे,स्वयं के साधनों से,स्वयं के संकल्प-बल के सहारे अपनी योजनाएं बनानी चाहिए।दूसरों की सहायता के लिए बैठे नहीं रहना चाहिए।लक्ष्य तक पहुंचने की दृढ़ता और हिम्मत अपने अंदर उगानी चाहिए।यही व्यक्तित्व-साधना के स्वर्णिम सूत्र हैं,जिनसे व्यक्तित्व सधता है एवं छात्र-छात्रा का व्यक्तित्व शुद्ध होता है।हम सबको इन सूत्रों को अपनाना चाहिए,ताकि जीवन की गौरव गरिमा बनी रहे।
  • हमारा व्यक्तित्व हमारी पहचान है।हम जब भी कभी किसी के विषय में बात करते हैं तो अक्सर उसके व्यक्तित्व की चर्चा करते हैं।हम अक्सर कहते हैं कि फलां व्यक्ति का व्यक्तित्व अच्छा है,फलां का नहीं।व्यक्तित्व एक ऐसी छवि है जो हमारे आचरण के आधार पर हमें समाज से मिलती है,परंतु इसका निर्माण हम स्वयं करते हैं।व्यक्तित्व हमारा पहचान पत्र है।जब भी हमारे मन में किसी का नाम आता है,उसके गुण हमारे मस्तिष्क में आने लगते हैं और उसकी एक छवि हमारे मन में उभरती है।यह छवि नकारात्मक भी हो सकती है और सकारात्मक भी।
  • व्यक्तित्व बाहरी और आंतरिक गुणों से मिलकर बनता है।व्यक्तित्व के बाह्य गुण वे गुण हैं जो सामने वाले को हमारे आवरण में दिखाई देते हैं जैसे कद-काठी,रंग-रूप,चेहरे की बनावट,वेशभूषा,जूते,हेयर स्टाइल,चेहरे पर भाव,शारीरिक भाषा (body language) इत्यादि। व्यक्तित्व के ये बाहरी गुण बहुत महत्त्व रखते हैं,जैसे आपके कपड़े अच्छे से धुले हुए,प्रेस किए हुए हो,आपके रंग-रूप और कद-काठी से मेल खाते हुए हों,चेहरे पर मुस्कुराहट हो और बात करते वक्त हाथों का प्रयोग सामान्य हो,यदि आप खड़े हैं तो दोनों पांवों पर वजन रखें,कोई पान-मसाला या गुटखा न चबाया हुआ हो,शरीर को ढीला न छोड़ा गया हो इत्यादि।
  • एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए अपने बाह्य गुणों पर काम करना बहुत जरूरी है।पहली छाप छोड़ने का अवसर बाहरी व्यक्तित्व से ही मिलता है।यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है कि बड़े-बड़े व्यवसायी,प्रेरक,वक्ता,नेता,प्राध्यापक,खिलाड़ी किस प्रकार अपने व्यक्तित्व का ध्यान रखते हैं।इनकी अपनी एक विशेष वेशभूषा होती है,जिससे वे पहचाने जाते हैं।इनकी एक विशेष शारीरिक भाषा होती है,जो इनके काम को आसान बनाती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मंत्र (6 Mantras of Personality Purification),छात्र-छात्राओं के लिए व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मूल मंत्र (6 Besic Spells of Personality Purification for Students) के बारे में बताया गया है।

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6.पढ़ने के बाद कैसा व्यक्तित्व होगा? (हास्य-व्यंग्य) (What will be Your Personality After Reading?) (Humour-Satire):

  • बृजेश:सोनू से,गणित पढ़ने के बाद कैसा व्यक्तित्व लेकर निकलोगे?
  • सोनू:आंखों पर चश्मा लगाए हुए एक मरियल की तरह का व्यक्तित्व लेकर निकलूंगा।
  • बृजेश:ऐसा क्यों कह रहे हो,गणित के छात्र-छात्रा की तो विशेष इमेज होती है।
  • सोनूःसो तो है,पर गणित की रात-दिन पढ़ाई करने के बाद शरीर और दिमाग का कचूमर निकल जाता है,फिर शरीर और दिमाग में बचता ही क्या है?

7.व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6 Mantras of Personality Purification),छात्र-छात्राओं के लिए व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मूल मंत्र (6 Besic Spells of Personality Purification for Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यक्तित्व कैसा बनाएं? (How to create a personality?):

उत्तर:आपका व्यक्तित्व आपका आईना है,अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं जैसा आप स्वयं को देखना चाहते हैं।

प्रश्न:2.व्यक्तित्व की पहचान कैसे करें? (How to identify personality?):

उत्तर:यदि आप किसी के आंतरिक गुणों को नहीं जानते तो आप किस व्यक्ति के साथ बात करना पसंद करेंगे।ऐसे व्यक्ति से जो तनावग्रस्त और बदहाल हो या ऐसे व्यक्ति से जो चुस्त-दुरुस्त खड़ा मुस्कुरा रहा हो।

प्रश्न:3.बाह्य व्यक्तित्व पर ध्यान क्यों दें? (Why pay attention to external personality?):

उत्तर:लोग सबसे पहले आपके बाहरी व्यक्तित्व को ही देखते हैं और आपका मूल्यांकन करते हैं,इसलिए अपने बाह्य व्यक्तित्व पर अवश्य ध्यान दें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मंत्र (6 Mantras of Personality Purification),छात्र-छात्राओं के लिए व्यक्तित्व शुद्धि के 6 मूल मंत्र (6 Besic Spells of Personality Purification for Students) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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