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6 Best Tips for Why Not Resort to Lies

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1.झूठ का सहारा क्यों न लें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Why Not Resort to Lies),झूठ का सहारा लेने से होनेवाली हानियाँ (Disadvantages of Resorting to Lies):

  • झूठ का सहारा क्यों न लें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Why Not Resort to Lies) के आधार पर आप जान सकेंगे कि झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए और झूठ बोलने से हमें क्या-क्या नुकसान होते हैं?
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2.झूठ और सच का खेल (The Game of Lies and Truth):

  • झूठ और सच का खेल बड़ा निराला है।आदमी झूठ क्यों बोलता है,विद्यार्थी झूठ क्यों बोलता है और सच क्यों नहीं बोलता? आखिर कौन-सी ऐसी मजबूरी है,जिससे व्यक्ति झूठ बोलता है? आज झूठ को इतनी प्रतिष्ठा मिली है? सच बोलने से व्यक्ति घबराता-कतराता है,सामाजिक मान्यता कुछ और बयान करती है और यौगिक दृष्टिकोण अपने ढंग से व्याख्या करता है।कारण जो भी हो,उक्ति तो है कि सदा सच बोलो परंतु मनुस्मृति के सूत्र कहते हैं कि ‘अप्रिय सत्य मत बोलो।’ और पुराणों में उल्लेख मिलता है-ऊंचे उद्देश्य के लिए बोला गया झूठ भी सौ सच से बड़ा होता है।इसे ‘नोबेल लाई’ कहते हैं।
  • इतिहास की सच्चाई को उजागर कर दिया जाए तो आज किसी ऐसे पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि जिसको हमने सामाजिक मान्यता प्रदान की,इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित किया,उसकी बुनियाद झूठों के पुलिंदों में खड़ी है।हमारी संस्कृति और सभ्यता में नेक काम करके उसे बताने-जताने की परंपरा नहीं है।कहते हैं कि औरों के लिए की गई सेवा-सहायता का बखान करने से पुण्य क्षय होता है और ऐसा करने में अहंकार सामने आता है;जबकि हमारी संस्कृति में अहंकार की समूल विनष्टि को ही साधना का मुख्य अंग माना जाता है और इसी से वास्तविक व्यक्तित्व का निर्माण होता है।अतः अपनी संस्कृति की बुनियाद में तो सच्चाई का बड़ा गहरा विश्लेषण हुआ है।
  • पाश्चात्य देशों का इतिहास एवं उसके पश्चात अपने देश में उसका अंधानुकरण,दोनों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि राजा,महाराजा,श्रेष्ठी,सामन्त,राजनेता आदि अनेकों ने अपनी जीवनियाँ लिखवाईं।उन्होंने अपने साम्राज्य-विस्तार का उल्लेख करवाया और वे कितने उदार,चरित्रवान एवं श्रेष्ठ हैं,इसको लिपिबद्घ करवाया; जबकि सच्चाई कुछ और कहती है।यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।वर्तमान समय में तो सच का साथ देने वाले का उपहास उड़ाया जाता है,उसे बताया जाता है कि वह आज का इंसान नहीं है।उस पर इतने कटाक्ष कर दिए जाते हैं कि फिर वह सच बोलने का साहस नहीं कर पाता है।ऐसा इसलिए है कि आज समाज में झूठ को प्रतिष्ठा मिली है।कभी समाज में सच्चाई को सर्वोपरि तत्त्व माना जाता था और इसी तरह झूठ को हेय स्थिति में देखा जाता था।आज परिस्थितियाँ उलट गई हैं।

3.झूठ का सहारा लेने वालों का दृष्टांत (The Parable of Those Who Resort to Lies):

  • झूठ का सहारा लेकर प्रतिष्ठा के सोपान चढ़ने वालों की कमी नहीं है।पुलित्जर जैसे सम्मानित पुरस्कार विजेता डोनेट कुक ने मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर यह पुरस्कार प्राप्त किया।’कुक जिमीज वर्ल्ड’ नामक कहानी में हेरोइन व्यसनी के आठ साल के लड़के का उल्लेख किया गया है,जो चाहता था कि बड़ा होकर ड्रग डीलर बने।यह कथानक पूरी तरह से मनगढ़ंत एवं झूठ था और इसका वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं था।इसी को आधार बनाकर उसने कहानी लिख डाली और उसे पुलित्जर पुरस्कार मिला;हालांकि जब सच्चाई उजागर हुई तो उसने पुरस्कार लौटा दिया।इसके पश्चात नौकरी पाने के लिए उसने झूठा शैक्षणिक रेकार्ड भी प्रस्तुत किया था।मशहूर पत्रकार स्टीफन ग्लास ने अमेरिकी जर्नल ‘दि न्यू रिपब्लिक’ के लिए काम करते समय अपनी कहानियों के लिए झूठे तथ्य तैयार किए थे।’ए मिलीयन लिटिल पीसंगे’ नाम से अमेरिकी लेखक जेम्स क्रिस्टोफर फ्रे ने अपनी आत्मकथा लिखी।उनकी यह पुस्तक बेस्टसेलर बनी,लेकिन ओपेरा विनफ्रे के शो में यह बात उजागर हुई कि किताब के मुख्य भाग कोरी कल्पना थे,झूठे थे।2003 में पकड़े गए न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार जेसन ब्लेयर भी अपने लेखों में झूठे किस्सों का सहारा लेता था।इसी प्रकार ‘यू०एस०ए० टुडे’ के पत्रकार जैक कैली पर झूठे लेखन का आरोप लगाया गया।
  • झूठ बोलने का यह सिलसिला यहीं नहीं थमता,इसके असंख्य एवं अनंत पन्ने हैं,जिनको खोलने पर लगता है कि संसार में सच्चाई मिट चुकी है।ऐसा तो नहीं है कि सच्चाई मिट गई है,पर हाँ,यह भी सच है कि आज झूठ का दबाव भारी है।अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन एक ऐसे समय झूठ बोले और फँस गए,जहां पर उनकी प्रतिष्ठा दाँव पर लगी थी।इस क्रम में 42 वें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी आते हैं।आज के राजनेताओं की बातों का तो कोई विश्वास ही नहीं करता।
  • जर्मनी के मानचाउसेन की झूठी किंवदंतियों पर तो अनेक किताबें लिखी गई हैं।मानचाउसेन मिलिट्री में काम करता था।जब वह कार्यकाल के बाद घर लौटा तो उसने अपने झूठे साहसिक कारनामों का प्रचार किया।इन्हीं कारनामों के आधार पर किताबें लिखने के अलावा 1998 में फिल्म निर्माता टेरी गिलियम ने ‘दि एडवेंचर ऑफ बैरन मानचाउसेन’ नामक फिल्म भी बनाई;यहाँ तक कि आगे चलकर उसके नाम दो मनोरोग के नाम मानचाउसेन सिंड्रोम और मानचाउसेन सिंड्रोम बाय प्रोक्सी भी विकसित हुए।सिग्मंड फ्राॅयड ने भी अपनी साइकोएनेलिटिक थ्योरी को धार्मिक मुल्लमा चढ़ाने के लिए कार्लयुंग को झूठ का सहारा लेने का प्रस्ताव रखा था,परंतु कार्ल युंग ने इसे अस्वीकार कर दिया था।
  • झूठ हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है और यह हममें इतना अभ्यस्त और विकसित हो चुका है कि इसके बोले बगैर चैन नहीं मिलता,इसलिए रेल्फ वाल्डो इमरसन को कहना पड़ा कि निस्संदेह सच बेहद खूबसूरत होता है,लेकिन झूठ के साथ भी कुछ ऐसा ही है।इस संदर्भ में साइकाइट्रिस्ट आरनोल्ड गोल्डवर्ग का कहना है कि झूठ बोलना इंसान के लिए एक मजबूरी बन गई है और वह इसे आदत में शुमार कर चुका है।आज सच बोलने से लोग कतराते हैं और झूठ बोलने में अजीब खुशी का अनुभव करते हैं।बैंड्रीज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लिहोनार्ड सक्स के अनुसार झूठ दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है।हम झूठ बोले बिना एक घंटा व्यतीत नहीं कर सकते।
  • व्यक्ति कितना झूठ बोलता है,उसके लिए 2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ मैसासुचेट्स में मनोविज्ञान के प्रोफेसर रॉबर्ट फील्डमैन ने एक शोध किया,जिसमें उन्होंने गुप्त रूप से अजनबियों के साथ विद्यार्थियों की बातचीत को टेप किया।इस शोध से पाया गया कि विद्यार्थी प्रत्येक 10 मिनट में तीन बार झूठ बोलते हैं।’वाय वी लाई’ पुस्तक के लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू इंग्लैंड में न्यू इंग्लैंड इंस्टिट्यूट के निदेशक डेविड स्मिथ के अनुसार झूठ हमारे अचेतन में प्रवेश कर गया है और अनजाने में ही हम झूठ बोलते चले जाते हैं।केवल जब नया झूठ बोलने की योजना बनाते हैं,तभी हमें पता चल पाता है कि हम झूठ बोलने जा रहे हैं,अन्यथा ढर्रे में हम झूठ बोलते चले जाते हैं और हमें पता तक नहीं चलता।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ अलबामा,स्कूल ऑफ मेडिसिन के मनोरोग के प्रोफेसर चार्ल्स फोर्ड के अनुसार लोग प्रायः उन्हीं चीजों के बारे में झूठ बोलते हैं,जिनसे वे अच्छा महसूस करना चाहते हैं।आगे वे कहते हैं कि यह मानवीय स्वभाव होता है कि हमारे अंदर किसी अभाव-बोध का भाव पनप जाता है।यह तभी होता है,जब हम किसी चीज को करना चाहते हैं और कर नहीं  पाते हैं।उन्हें लगता है कि वे औरों की बराबरी नहीं कर पा रहे हैं या प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं।ऐसे में वे जिसे भी प्रभावित करना चाहते हैं या जिसे अपने बारे में स्वीकृति चाहते हैं,उसके सामने झूठ बोल जाते हैं।कुछ लोकप्रिय लोग भी झूठ बोलते हैं।प्रसिद्ध इतिहासकार जोसफ जे इलीस ने वियतनाम में अपनी शौर्यपूर्ण गाथा के लिए झूठ बोला था।पॉप आर्टिस्ट एंडी बारहोल ने अपने जीवन के बारे में तरह-तरह की कहानियाँ गढ़ी थीं।अमेरिकी राजदूत लैंडी लॉरेंस भी द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने बारे में झूठ बोली थीं।ऐसे लोग प्रशंसा पाने के आदि हो चुके होते हैं,अतः फिर से वही प्रशंसा पाने के लिए वह झूठ बोलते हैं।

4.झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए? (Why shouldn’t you lie?):

  • लालच,भय,स्वीकृति और आदत,चार ऐसे कारण हैं,जो हमारे असत्य बोलने के कारण बनते हैं।मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट फील्डमैन के अनुसार झूठ हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है।जैसे ही लोगों के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है,वे ऊँचे स्वर में झूठ बोलना शुरू कर देते हैं।बेवजह झूठ नहीं बोलना चाहिए।झूठ बोलने वाले व्यक्ति अप्रामाणिक होते हैं,उन पर कोई विश्वास नहीं करता।इस अप्रामाणिक व्यक्तित्व को लेकर जीना एक मुर्दे के समान है,जो केवल झूठ बोलने के कारण होता है।झूठ नहीं बोलना चाहिए,यह सच है,परंतु अप्रिय एवं कड़ुआ सच भी किसी को नहीं बोलना चाहिए।अंग्रेजी साहित्यकार वर्जीनिया बुल्फ ने स्पष्ट कहा है कि दूसरों की भावनाओं की परवाह किए बिना सच का अनुसरण मानवीय शिष्टाचार का उल्लंघन है।
  • दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचे,दूसरों की भावना को ठेस न पहुंचे,ऐसी बात बोलनी चाहिए।ऐसी कही बात झूठ होकर भी सच के बराबर है।दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाला या आहत करने वाला सच भी एक झूठ के बराबर है।एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में मनोरोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर चार्ल्स एल राईसन के अनुसार सच बोलना अच्छा होता है,लेकिन कभी-कभी सच उजागर नहीं करना भी लाभदायक होता है।कई जटिल बीमारियों में लोग डॉक्टर द्वारा बँधाई गई झूठी उम्मीद के सहारे लंबा जीवन गुजार देते हैं।
  • महाभारत के युद्ध में धर्मराज युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा मारा गया कहकर आधा झूठ,आधा सच बोला था; हालाँकि उनका उद्देश्य पावन था,इसलिए उसे झूठ की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।शास्त्रों,पुराणों में ऐसे अनेक कथानक आते हैं,जिससे पता चलता है कि अप्रिय सत्य की अपेक्षा भला करने वाले झूठ का सहारा लिया गया है।जो भी हो,झूठ बोलना जब आदत बन जाती है,तब वह अच्छी-बुरी दोनों बातों में समाहित हो जाता है।अतः विष मानकर इससे दूर रहने का प्रयास करना चाहिए।व्यक्तित्व को प्रामाणिक बनाने के लिए,प्रखर रूप से गढ़ने के लिए हमें सदा सच का सहारा लेना चाहिए।सत्य में हजार हाथियों का बल होता है;जबकि झूठ का कोई अस्तित्व नहीं होता।सच बोलें,पर औरों की भावनाओं का ख्याल रखें।नीति कहती है कि झूठ में नुकसान न हो तो ठीक है,पर झूठे वादे कभी नहीं करने चाहिए।जो कहा है,उसे अंत तक निभाना चाहिए।यह सर्वोपरि प्रामाणिकता है।वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम सदा सत्य के पक्षधर थे।वे एक लक्ष्य के लिए दो बार तीर नहीं चलाते थे और एक तथ्य के लिए दो बात नहीं करते थे।यही सच्चाई की विशेषता एवं प्रखरता है।अतः हमें सदा सच्चाई का पक्षधर होना चाहिए।

5.विद्यार्थी झूठ का सहारा ना लें (Students should not resort to lies):

  • अक्सर कई विद्यार्थी बात-बात में झूठ बोलते हैं और अपना अहित करते रहते हैं।झूठ बोलने से अनेक हानियाँ हैं और सत्य का पालन करने के अनेक लाभ हैं।झूठ का सहारा लेने वाले विद्यार्थी की मान,प्रतिष्ठा और यश खराब होता है।चाहे विद्यार्थी पढ़ने-लिखने में कितना ही प्रखर और तेजस्वी हो परंतु झूठ का सहारा लेने पर उसका वह सम्मान नहीं रह जाता है जिसका वह हकदार है।झूठ का सहारा लेने की आदत बन जाती है तो उसके सहपाठी और लोग उसकी प्रतिभा पर संशय करने लग जाते हैं और उसके खिलाफ यह बात फैल जाती है कि शायद यह परीक्षा में नकल करके ही अच्छे अंक प्राप्त करता होगा वरना ऐसे झूठे विद्यार्थी को इतने अंक कदापि नहीं मिल सकते हैं।
  • दूसरा नुकसान यह होता है कि झूठ का सहारा लेने,झूठ बोलने की आदत होने के कारण विद्यार्थी की स्मरण शक्ति नष्ट हो जाती है।उसे याद ही नहीं रहता है कि कहाँ वह झूठ बोल गया और एक न एक दिन उसकी पोल खुल जाती है।साथी,सहपाठी मुंह पर ही उसे कहने लगते हैं कि यह तो झूठों का बादशाह है।इस प्रकार उसकी छवि गिरती चली जाती है।आप यह समझकर झूठ का सहारा लेते हैं कि इनको (दूसरों को) बेवकूफ बनाया जा रहा है परंतु जब आपकी असलियत का पता चलता है और एक न एक दिन असलियत सामने आती ही है तब आप स्वयं उपहास,हँसी के पात्र बन जाते हैं फिर आप सच्ची बात भी कहेंगे,सत्य का आचरण व पालन करेंगे तो भी लोग उस विद्यार्थी पर विश्वास नहीं करेंगे क्योंकि एक बार झूठ का ठप्पा लग जाता है तो फिर उस ठप्पे को हटाने में वर्षों लग जाते हैं।झूठ का ठप्पा लगने में समय नहीं लगता परन्तु सत्य का पालन करने और आपको सत्य का पालन करने वाला मानने के लिए वर्षों तपस्या करनी पड़ती है।
  • तीसरा नुकसान यह है कि स्मरण शक्ति और बुद्धि का नाश होने के कारण आपके आत्म-विश्वास में कमी आती है।आप पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ न तो लक्ष्य का चुनाव कर सकते हैं और न ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि लक्ष्य को प्राप्त करने में स्मरणशक्ति,सद्बुद्धि और आत्म-विश्वास की बहुत बड़ी भूमिका होती है।यदि ये तीनों हमारे व्यक्तित्व से गायब हो जाते हैं तो छोटे से छोटा लक्ष्य भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  • झूठ बोलने से तात्कालिक रूप से भले आपको राहत पहुंचती है परंतु आपका व्यक्तित्व प्रामाणिक नहीं बन सकता है।प्रामाणिक व्यक्तित्व के अभाव में न तो आप जाॅब प्राप्त कर सकते हैं और न इंटरव्यू का सामना कर सकते हैं।आपको कदम-कदम पर जलालत,अपमान,तिरस्कार आदि का सामना करना पड़ेगा।आत्मविश्वास की कमी से आपमें निराशा,ईर्ष्या,द्वेष आदि विकारों का समावेश हो जाएगा।आप जीवन में,जॉब में उन्नति व तरक्की नहीं कर सकते हैं।
  • चौथा नुकसान यह है कि झूठ का सहारा लेने वाला विद्यार्थी स्वार्थी और कायर हो जाएगा।अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उचित-अनुचित,सही-गलत का ख्याल नहीं रखेगा।दूसरों को कितना ही नुकसान हो रहा हो परंतु अपना स्वार्थ सिद्ध करने लग जाएगा।स्वार्थ में अन्धे विद्यार्थी में अनेक दुर्गुण प्रवेश कर जाएंगे।कोई भी कार्य करेगा तो वह यह निर्णय ही नहीं कर पाएगा कि क्या सही है,क्या गलत है?
  • हालाँकि वह झूठ का सहारा दूसरों को प्रभावित करने,अपनी कमजोरी छिपाने,झूठी प्रशंसा प्राप्त करने आदि के लिए करता है परंतु उसके झूठ का पर्दाफाश होने के बाद वह व्यवहार कुशल इंसान नहीं बन पाएगा।उसके सहपाठी उसके मुंह पर जली-कटी,कड़वी बातें सुनाएंगे।ऐसे विद्यार्थी में कुटिलता और निर्दयता का समावेश हो जाएगा।न वह किसी का विश्वास पात्र रहेगा,खुद पर विश्वास नहीं रहेगा,ना वह दूसरों पर विश्वास करेगा।उसमें आत्मबल नहीं रहेगा,अतः अध्ययन में आने वाली समस्याओं,कठिनाइयों को हल नहीं कर पाएगा।कष्टों,विपत्तियों का सामना नहीं कर पाएगा।उसका व्यक्तित्व,खोखला,जर्जर,विखंडित हो जाएगा। इसके अलावा भी अनेक नुकसान हैं अतः विद्यार्थियों को प्रभावी व्यक्तित्व बनाने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में झूठ का सहारा क्यों न लें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Why Not Resort to Lies),झूठ का सहारा लेने से होनेवाली हानियाँ (Disadvantages of Resorting to Lies) के बारे में बताया गया है।

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6.नींद में भी झूठ बोलने की आदत (हास्य-व्यंग्य) (The Habit of Thinking Even in Sleep) (Humour-Satire):

  • भव्य:मुझे नींद में भी झूठ बोलने की आदत है,इससे मैं बहुत परेशान रहने लगा हूं।
  • दिव्य:इसमें परेशान होने की कौन-सी बात है,आजकल का माहौल ही ऐसा है,झूठ के बिना कोई काम ही नहीं होता है।मसलन आप ओबीसी प्रमाण-पत्र में असली इनकम भर दोगे तो आपका सर्टिफिकेट ही नहीं बनेगा।
  • भव्य:दरअसल मैं सहपाठियों के साथ,टीचर के साथ जो भी झूठ बोलता हूं वे सभी बातें और भी अनेक बातें घर पर बोल देता हूं,जो मैंने कही ही नहीं।

7.झूठ का सहारा क्यों न लें की 6 बेहतरीन टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Best Tips for Why Not Resort to Lies),झूठ का सहारा लेने से होनेवाली हानियाँ (Disadvantages of Resorting to Lies) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.असत्य की मर्यादा क्या है? (What is the limit of falsehood?):

उत्तर:हंसी-मजाक में,विवाह के अवसर पर,जान खतरे में हो,सारा धन नष्ट होने पर तथा स्त्रियों का झूठ बोलना पाप नहीं।(महाभारत) यह उक्ति महाभारत में इसलिए कही गई है कि एक तो इनमें झूठ बोलने की मंशा गलत नहीं होती,दूसरा आदर्श का पालन वे ही कर सकते हैं जो राग-द्वेष से मुक्त हों।

प्रश्न:2.सत्य का पालन से क्या आशय है? (What does it mean to practice the truth?):

उत्तर:सच बोलना,सौम्य स्वभाव,ईर्ष्या न करना,क्षमा,लज्जा,सहनशीलता,द्वेष न करना,त्याग,ध्यान,श्रेष्ठ जीवन,सुख-दुःख में चित्त की स्थिरता,दया तथा अहिंसा आदि का पालन सत्य का पालन करना होता है।

प्रश्न:3.झूठे लोगों से दूसरे क्यों डरते हैं? (Why are others afraid of liars?):

उत्तर:लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से।संसार में सत्य ही सबसे महान धर्म हैं।वही सब का मूल कहा जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा झूठ का सहारा क्यों न लें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Why Not Resort to Lies),झूठ का सहारा लेने से होनेवाली हानियाँ (Disadvantages of Resorting to Lies) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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