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Personality is Enhanced by Tenacity

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1.तप से व्यक्तित्व निखरता है (Personality is Enhanced by Tenacity),तप से व्यक्तित्व का विकास (Develop of Personality Through Tenacity):

  • तप से व्यक्तित्व निखरता है (Personality is Enhanced by Tenacity) और व्यक्तित्व तेजस्वी,दिव्य और भव्य बनता है।आज तक ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा जिसका बिना तप के व्यक्तित्व निखरा हो।जब तक उसके दोषों का परिमार्जन नहीं होता।
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2.कष्ट-कठिनाईयों से व्यक्तित्व का निर्माण (Formation of personality from hardships):

  • यह बात सभी जानते हैं कि खरे सोने की कीमत बहुत होती है,पर मिलावटी सोने की कीमत घट जाती है।जिसकी मात्रा में मिलावट होती है,उसकी कीमत उतनी ही मात्रा में घटती चली जाती है।मिलावट वह कारण है,जिसकी वजह से शुद्ध धातु की कीमत कम हो जाती है।सोने से बने कुछ गहने व जेवरात में तो थोड़ी मिलावट होती है,ताकि गहने मजबूत,टिकाऊ व सुंदर आकार में ढाले जा सकें पर वे भी कीमती होते हैं।खरे सोने के छोटे से टुकड़े को भी लोग संभालकर तिजोरी में रखते हैं कि कहीं वह खो न जाए या वह किसी भी दूसरे के हाथ में न पड़ जाए।ठीक इसी तरह यदि मनुष्य का जीवन,उसका व्यक्तित्व खरा (परिष्कृत) हो जाए तो उसकी कीमत अधिक ही नहीं,बल्कि अमूल्य हो जाती है।
  • मनुष्य के व्यक्तित्व में गुण व अवगुणों की मिलावट के कारण उसके जीवन की कीमत स्वयं उसकी नजरों में न के बराबर हो जाती है।चित्त में जमे हुए जन्म-जन्मान्तरों के कुसंस्कारों के कारण व्यक्तित्व की अंतश्चेतना पर आवरणों की परत चढ़ती चली जाती है और उसके जीवन की खूबसूरती उन आवरणों में दबती चली जाती है,फिर जीवन की खूबसूरती व प्रकाश दिखाई नहीं देता और न उसका अनुभव होता है,केवल बाहरी आवरण दिखाई पड़ते हैं।
  • जिस तरह अशुद्ध सोने को भट्टी में गलाने से उसकी अशुद्धियां पिघल कर बाहर निकल जाती है और भट्टी में केवल शुद्ध सोना बचता है,ठीक उसी प्रकार प्रकृति व परमेश्वर हर क्षण मनुष्य जीवन की शुद्धता को निखारने के लिए ऐसी परिस्थितियाँ गढ़ते हैं,जिनका सामना करने में मनुष्य की अशुद्ध विकृतियाँ,कुसंस्कार धुलते चले जाते हैं और उससे दूर होते चले जाते हैं।यद्यपि मनुष्य मिलने वाले इन कष्टों से दूर भागना चाहता है,उनका सामना नहीं करना चाहता;क्योंकि इनका सामना करने पर उसे कष्ट होता है,फिर भी यदि उसे अपने जीवन को निखारना है तो इन परिस्थितियों का सामना तो उसे करना ही पड़ेगा।
  • यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में कष्टों का सामना ना करे,विपरीत परिस्थितियों के सामने अपने पांव पीछे हटा ले,तो ना तो उसके व्यक्तित्व का विकास हो पाएगा और न ही वह अपनी कीमत व अपनी क्षमताओं से परिचित हो पाएगा।हमारे ऋषि-मुनियों ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि आपके पास कठिन परिस्थितियाँ नहीं है तो आप उन्हें आमंत्रित कीजिए,उनका निर्माण कीजिए,उनका सामना कीजिए और उनसे भयभीत बिल्कुल भी ना होइए,बल्कि साहस के साथ उनका मुकाबला कीजिए।
  • कठिन परिस्थितियों के बीच से स्वयं को गुजारना तपश्चर्या है और इस तपश्चर्या के माध्यम से व्यक्तित्व के परिष्कार की गति बहुत तेजी से होती है।इसलिए प्राचीन समय से लेकर आज तक प्रायः सभी ऋषि-मुनि जंगलों में जाकर तप करते हैं,कठिन परिस्थितियों में जीवन जीते हैं।जीवन के कष्टों को सहते हैं।परमेश्वर का ध्यान,चिंतन-मनन करते हैं और साधारण जीवन जीते हैं।लंबे समय तक ऐसा करने से उन्हें मनोवांछित साधना की सिद्धि प्राप्त होती है या निष्काम भाव होने पर उनका जीवन प्रकाशित हो जाता है।

3.विपत्ति और कठिनाइयों से जूझने पर निखरता है (Thrives when battling adversity and hardships):

  • प्रकृति का नियम है कि संघर्ष से तेजी आती है।रगड़ और घर्षण यद्यपि देखने में कठोर कर्म प्रतीत होते हैं,पर उन्हीं के द्वारा सौंदर्य का प्रकाश होता है।जीवन वही निखरता है,जो कष्ट और कठिनाइयों से टकराता रहता है।विपत्ति,बाधा और कठिनाइयों से जो लड़ सकता है,प्रतिकूल परिस्थितियों से युद्ध करने का जिसमें साहस है,उसे ही,सिर्फ उसे ही जीवन विकास का सच्चा सुख मिलता है।आज तक इस पृथ्वी पर एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ,जिसने बिना कठिनाई उठाए,बिना जोखिम ओढ़े,कोई बड़ी सफलता प्राप्त कर ली हो।कष्टमय जीवन के लिए अपने आप को खुशी-खुशी प्रस्तुत करना,यही तप का मूलतत्त्व है।तपस्वी लोग ही अपनी तपस्या से इंद्र का सिंहासन जीतने में और भगवान का आसन हिला देने में समर्थ हुए हैं।मनोवांछित परिस्थितियाँ प्राप्त करने का संसार में एकमात्र साधन तपस्या ही है।स्मरण रखिए सिर्फ वे ही व्यक्ति इस संसार में महत्व प्राप्त करते हैं,जो कठिनाइयों के बीच हँसना जानते हैं,जो तपस्या में आनन्द मानते हैं।
  • इस तरह कष्ट-कठिनाइयाँ जीवन के उपहार हैं,जो जीवन को निखारने के लिए आते हैं।इन कठिन परिस्थितियों से गुजरने पर ही हम अपने जीवन विकास की ओर कदम दर कदम बढ़ाते जाते हैं।यदि इन परिस्थितियों से गुजरने में हमें मानसिक तनाव व शारीरिक थकान होती है,भावनाओं में उथल-पुथल होती है,मन में असमंजस,दबाव व घबराहट होती है,लेकिन इन मार्गों से गुजरना ही एकमात्र रास्ता होता है और इन परिस्थितियों में हमें सहारा देता है,मदद करता है सत्साहित्य पढ़ना,व्यावहारिक व ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना,स्वाध्याय,सत्संग करना और प्रार्थना करना।कठिन परिस्थितियों में आंतरिक ढाढस व सहायता पहुंचाने वाली ये ही वे तत्त्व हैं,जो हमारी मदद करते हैं।
  • अतः हमें अपनी जीवन-शैली में ही कठिन परिस्थितियों का सामना करने के योग्य होने के लिए अभ्यास करना चाहिए।अपनी जीवन शैली में कठोर परिश्रम करना चाहिए,मानसिक श्रम करना चाहिए,अपने जीवन को सुव्यवस्थित करना चाहिए और इसमें प्रार्थना,ध्यान,योग-साधना,अध्ययन-मनन,स्वाध्याय,सत्संग आदि के लिए समय निर्धारित करना चाहिए।इसके अतिरिक्त बचे हुए हमें कुछ ऐसे कार्य करते रहना चाहिए,जिनका सामना करने से हम घबराते हैं।
  • यह बात सदैव ध्यान रखनी चाहिए कि कोई भी इस संसार में जन्म से सीख कर नहीं आता।वह यहीं अभ्यास करता है और यहीं सीखता है।यह बात जरूर है कि यदि कोई व्यक्ति किसी कला में निपुण हो जाता है और एक जीवन जीने के बाद दूसरा जन्म लेता है तो पहले से ही अमानत के स्वरूप में यह कला उसके पास होती है और थोड़ा ही अभ्यास करने पर वह उसमें निपुणता प्राप्त कर लेता है;जबकि दूसरा व्यक्ति जो पहली बार उसे सीख रहा होता है,उसे उस कला में निपुणता प्राप्त करने में अधिक समय लगता है।इसलिए कर्मफल के अकाट्य सिद्धांत,प्रकृति के अपक्षपातपूर्ण व्यवहार पर भरोसा करते हुए अपनी योग्यता,प्रतिभा व पात्रता का विकास सतत करते रहना चाहिए और इसके लिए कठिन चुनौतियों को स्वीकारने में हिचकना नहीं चाहिए,यही व्यक्तित्व परिष्कार का एकमात्र मार्ग है।

4.छात्र-छात्राओं के जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ (Adverse situations in the life of students):

  • छात्र-छात्राओं के जीवन में अनेक विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं।उन्हें अनेक कष्ट कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।पूर्ण व्यक्तियों के बजाय उन्हें अनेक घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।कारण क्या है,कारण यह है कि छात्र-जीवन पूरे जीवन का प्रभातकाल है।जिस प्रकार छोटे पौधे को अनेक आंधी तूफानों का सामना करना पड़ता है और यदि आँधी-तूफानों को वह पौधा झेल लेता है तो मजबूती से खड़ा रह सकता है।
  • विपरीत परिस्थितियाँ छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व को गढ़ने के लिए आती है।जो छात्र-छात्रा इस बात को समझ लेता है,वह इनका सामना करने की कला सीख जाता है।परिपक्व व्यक्तियों के सामने भी विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं,परंतु अनुभव से,जीवन में ठोकरे खाने से वे उनका सामना करने की कला सीख जाते हैं इसलिए उन्हें कष्ट-कठिनाइयाँ भारी महसूस नहीं होती है,परंतु बालक को वे बहुत भारी महसूस होती है।जैसे एक पौधे की तुलना में वृक्ष को आंधी-तूफानों में जीने (खड़ा रहने) का अभ्यास हो जाता है और वह खड़ा रह जाता है।परंतु छोटा पौधा आँधी-तूफानों को सहन नहीं कर पाता है और उखड़ जाता है।जिस वृक्ष की नींव खोखली हो वह भी उखड़ जाता है।इसलिए बड़ा होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि नींव मजबूत होनी चाहिए यानी बाल्यावस्था,किशोरावस्था और युवावस्था में डटकर संघर्ष करना चाहिए ताकि मजबूत नींव लग सके।
  • छात्र-जीवन में अनेक विपत्ति,बाधाएँ और विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं परंतु अधिकांश छात्र-छात्राएं इनके सामने हथियार डाल देते हैं और मैदान छोड़कर भाग खड़े होते हैं।ऐसे छात्र-छात्रा जब बड़े होते हैं तो काम करने की वही कार्यशैली होती है।तनिक-सी कठिनाई आते ही उसे झेल नहीं पाते और भाग खड़े होते हैं।कदम-कदम पर उन्हें संघर्षों से गुजरना पड़ता है परंतु हर बार वे भाग खड़े होते हैं।कठिन परिस्थितियों से पलायन करने वाला अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाता।विपत्ति,बाधाओं के लिए ऐसे व्यक्ति दूसरों को जिम्मेदार ठहराते हैं और अपनी कमजोरियाँ,दोषों की ओर ध्यान नहीं देते हैं।जो स्वयं अपने आप को नहीं बदल सकता है वह दूसरों को क्या बदल सकता है।
  • लेकिन कुछ छात्र-छात्राएँ ऐसे होते हैं जो घोर विपत्तियों, कठिनाइयों में भी अविचल खड़े रहते हैं और उनसे टक्कर लेते हैं,उनका समाधान करते जाते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्व निखरता चला जाता है।ऐसे व्यक्ति जीवन में कितनी ही कष्ट-कठिनाइयां आए उनको हँसते-खेलते सामना करते हैं और उनको सुलझाते हैं।ऐसी व्यक्तित्वों के चरित्र को देखकर दूसरे लोग दाँतों तले उंगली दबा लेते हैं।बाधाओं,विपत्तियों से गुजरने के बाद वे और मजबूत होकर निकलते हैं।वे जीवन के इस रहस्य को समझ लेते हैं की कष्ट,कठिनाइयां,बाधाएँ जीवन का अंग है,इन्हें स्वीकारने,सामना करने,समाधान करने,उनसे टक्कर लेने से ही बात बनेगी।
  • पलायन करने,भाग खड़े होने से व्यक्तित्व में पैनापन नहीं आता है,व्यक्तित्व ओछा बनता है,व्यक्तित्व निखरता नहीं बल्कि बिखरता चला जाता है।मुसीबतों में ऐसे व्यक्तित्व थर-थर कांपने लगते हैं,उन्हें कोई मार्ग दिखाई नहीं देता,मुसीबतों से मुंह फेर लेते हैं।जैसे शुतुरमुर्ग के सामने विपत्ति आने पर वह रेत में मुंह घुसेड लेता है और शिकारी उसका आसानी से शिकार कर लेता है।इसी प्रकार मुसीबतों से मुंह फेर लेने वाले व्यक्ति को वे नष्ट कर देती है,वह रोता-झींकता है,जैसे-तैसे अपने जीवन को व्यतीत करता है।हमेशा इस आशंका से ग्रस्त रहता है कि कोई ना कोई विपत्ति ना आ जाए।

5.छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थिति में क्या करें? (What do students do in adverse situations?):

  • छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थिति का सामना करें,उनका समाधान करने की कोशिश करें।यदि स्वयं विपरीत परिस्थिति को हल नहीं कर सकते हैं,तो अपने शुभचिंतकों से सहयोग लें।अथक परिश्रम करने,सहयोग लेने पर भी विपरीत परिस्थिति का हल नहीं हो पा रहा है,तो ऐसी परिस्थिति को भगवान के भरोसे छोड़ दें और उस विपरीत परिस्थितियों को सहन करना सीखें।
  • उदाहरणार्थ आप गणित में कमजोर है तो कठिन परिश्रम करके पुस्तकों की मदद से,अपने मित्रों,सहपाठियों की मदद से और शिक्षकों के मार्गदर्शन से उसे हल कर सकते हैं।बार-बार अभ्यास करने से धीरे-धीरे गणित विषय सरल लगने लगता है और आपको उसे पढ़ने में आनन्द आने लगता है।इसके पश्चात कोई भी कठिन सवाल आता है तो उसे आप अवसर के रूप में देखते हैं और उससे अठखेलियाँ खेलते हुए हल कर लेते हैं क्योंकि आपको इस रहस्य का पता लग चुका है कि बार-बार अभ्यास करने,कठिन परिश्रम करने,निरंतर अध्ययन करने,मनन-चिंतन करने से सवालों को हल किया जा सकता है।इस प्रकार की विपरीत परिस्थिति को हल करके आप उसे अनुकूल परिस्थिति में परिवर्तन कर लेते हैं और इससे आपका दिमाग मजबूत होता है और व्यक्तित्व निखरता है।
  • दूसरा उदाहरण लीजिए,आप रोजाना जिस रास्ते से जाते हैं,उस रास्ते में कोई गुंडा आपको परेशान करता है,तंग करता है।गुंडा आपसे ताकतवर है और अगर आप उसे टक्कर लेते हैं तो आपको नुकसान ही नहीं भारी नुकसान कर सकता है।उसके शागिर्द भी होते हैं,साथी भी होते हैं,उनकी गैंग होती है।ऐसी विपरीत परिस्थिति से टक्कर लेने के लिए यदि आप कानून की शरण लेते हैं,कोर्ट की शरण लेते हैं तो आपकी पढ़ाई बाधित होती है,ऐसे लोग समझाइश से भी मानने वाले नहीं है।गुंडा आपसे ज्यादा दाँव-पेच जानता है,अतः ऐसे व्यक्तियों को सहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है।इन दोनों उदाहरणों को प्रस्तुत करने का मकसद यह है कि हर विपरीत परिस्थिति का जरूरी नहीं समाधान हो ही जाए,उससे टक्कर ली जाए।
  • संकट उपस्थित होने पर विचार करना जरूरी होता है कि संकट उसे किस प्रकार की हानि पहुंचा सकता है।उसे सह लेना उचित होगा या उससे भिड़ जाना लाभप्रद होगा? यदि भिड़ने में ज्यादा नुकसान हो तो उस संकट से होने वाले नुकसान को सह लेना ही उचित होगा।संकट के समय सबसे ज्यादा जरूरी होता है अपना दिमागी संतुलन ठीक रखना क्योंकि अक्सर संकट के समय अक्ल काम नहीं करती बल्कि अक्सर उल्टे काम करती है।अक्ल से काम लेने पर संकट से पार होने का कोई न कोई उपाय खोजा भी जा सकता है।कुछ संकट ऐसे भी होते हैं जिनसे बचने के लिए कोई उपाय सोचने का ज्यादा समय नहीं होता,निर्णय लेने के लिए सिर्फ थोड़े से क्षण होते हैं।ऐसे वक्त में तत्काल ही लिया गया निर्णय संकट से उबार भी सकता है और संकट में उलझा भी सकता है।सब कुछ प्रत्युत्पन्नमति पर निर्भर होता है और दिमागी संतुलन कायम रखना जरूरी होता है।इसके लिए कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी होता है।
  • पहली बात,आप संकट से होने वाली थोड़ी बहुत हानि को सहज भाव से सहने को राजी रहे।दूसरी बात,इस हानि को अपनी कम अक्ली से बढ़ने ना दें।इस तरह आप दिमागी संतुलन को कायम रख सकेंगे जिससे आत्मविश्वास बना रहेगा और अंततः संकट को पार कर लेंगे।तीसरी बात,संकट से निपटने के लिए आपका तरीका नैतिक और न्याय संगत होना चाहिए।इससे एक तो आप में अपराध बोध नहीं आएगा और दूसरे अन्य सभी संबंधित लोगों की सद्भावना और सहमति आपके साथ होगी इन सब बातों के बावजूद एक निष्कर्ष,एक अटल सिद्धांत और एक शाश्वत नियम याद रखें कि हानि,लाभ,जीवन,मरण,यश और अपयश-ये 6 मनुष्य के हाथ में नहीं है,विधि के हाथ में होते हैं।मनुष्य के हाथ में तो सिर्फ प्रयत्न करना भर होता है जो बुद्धिपूर्वक उचित प्रयत्न करना चाहिए।संकट के समय विवेक,धैर्य और साहस का साथ कदापि नहीं छोड़े।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में तप से व्यक्तित्व निखरता है (Personality is Enhanced by Tenacity),तप से व्यक्तित्व का विकास (Develop of Personality Through Tenacity) के बारे में बताया गया है।

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6.सस्ते स्कूल में एडमिशन (हास्य-व्यंग्य) (Cheap School Admission) (Humour-Satire):

  • खुश होकर टीचर ने कहा कि अब आप जब भी बच्चे को इस पब्लिक स्कूल में लेकर आएंगे तो मैं उसके लिए सबसे आगे वाली सीट रिजर्व रखूँगा।
  • ये ₹500 मैंने रिवॉर्ड इसलिए दिए हैं कि जब मैं अपने बच्चे को लेकर आऊंगा तो तुम उससे कहना कि स्कूल में सभी सीटें भर चुकी है,कोई एडमिशन नहीं लिया जा रहा है,फिर मैं उसे किसी सस्ते स्कूल में एडमिशन दिला दूंगा,इस प्रकार मेरा संकट टल जाएगा,अभिभावक ने स्पष्ट किया।

7.तप से व्यक्तित्व निखरता है (Frequently Asked Questions Related to Personality is Enhanced by Tenacity),तप से व्यक्तित्व का विकास (Develop of Personality Through Tenacity) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.विपत्ति से भी होश में ना आए तो उसे क्या कहेंगे? (What would you call him if he does not become conscious even in the face of adversity?):

उत्तर:विपत्ति में भी जिस हृदय में सद्ज्ञान उत्पन्न ना हो,वह सूखा वृक्ष (ठूँठ) है,जो पानी पाकर पनपता नहीं बल्कि सड़ जाता है।तात्पर्य यह है कि विपत्ति के समान शिक्षा देने वाला नहीं है।

प्रश्न:2.मित्रों की पहचान कब होती है? (When are friends identified?):

उत्तर:विपत्ति में,संकट के समय सच्चे व दिखावटी मित्र की परख और पहचान होती है।

प्रश्न:3.विजयी कौन होता है? (Who is victorious?):

उत्तर:कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं,जो मनुष्य साहस के साथ उन्हें सहन करते हैं वे अपने जीवन में विजयी होते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा तप से व्यक्तित्व निखरता है (Personality is Enhanced by Tenacity),तप से व्यक्तित्व का विकास (Develop of Personality Through Tenacity) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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