Psyche Immunity VS Toxic Effects
1.साइको इम्युनिटी बनाम टॉक्सिक प्रभाव (Psyche Immunity VS Toxic Effects),टाॅक्सिक प्रभाव से बचने हेतु साइको इम्युनिटी बढ़ाएँ (Increase Psyche Immunity to Avoid Toxic Effects):
- साइको इम्युनिटी बनाम टॉक्सिक प्रभाव (Psyche Immunity VS Toxic Effects) से आप समझ सकेंगे कि मन की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से विषाक्त प्रभावों अर्थात् मनोविकारों से बचा जा सकता है।गणित अथवा अन्य विषयों के अध्ययन में मनोविकार कैसे विषाक्त प्रभाव डालते हैं इसके बारे में जान चुके हैं।अब जानेंगे कि मनोविकारों को साइको इम्युनिटी बढ़ाकर इनसे बचाव करें।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:मन की वृत्तियों को जानने के 8 तरीके
2.मन की प्रतिरोधक क्षमता (Immunity of the mind):
- ‘साइको इम्युनिटी’ मन की प्रतिरोधक क्षमता का परिचायक है।इम्यूनिटी कहते हैं प्रतिरोधक क्षमता को।जिस क्षमता से शरीर रोगजन्य कीटाणुओं,विषाणुओं आदि से सुरक्षा कवच बनाता है,जिससे शरीर रोग मुक्त रहे,निरोग एवं दीर्घजीवी बना रहे,इससे बायोइम्युनिटी कहते हैं।उसी प्रकार जिस क्षमता एवं सामर्थ्य के बल पर वह विभिन्न प्रकार के मनोविकारों से जूझता है और स्वयं को इससे सुरक्षित एवं संरक्षित बनाए रखना है,उस क्षमता को साइको इम्युनिटी कहते हैं।साइको इम्युनिटी अर्थात मन द्वारा मनोवृत्तियों से लड़ने की मनोप्रतिरक्षा-प्रणाली।जब तक यह प्रणाली स्वस्थ एवं सुदृढ़ रहती है,तब तक मन किसी भी नकारात्मक एवं दूषित विचारों से प्रभावित नहीं होता है,परंतु इसके कमजोर होते ही मनोविकारों का अंधड़ उमड़ने लगता है।मनुष्य की वर्तमान मनःस्थिति इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
- मनोविज्ञान के मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) के क्षेत्र में साइको इम्युनिटी एक अत्यंत नवीन एवं नूतन अवधारणा है।यों तो भारतीय मनोविज्ञान में यह उतना ही प्राचीन है,जितना कि भारतीय मनोविज्ञान का इतिहास।भारतीय मनोविज्ञान में साइको इम्युनिटी के क्षेत्र में गंभीर प्रयोग किए गए हैं।इन प्रयोगों का प्रभाव एवं परिणाम अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है।हमने चित्त का मन एवं उसकी वृत्तियों के रूप में अध्ययन किया है।मन की ये वृत्तियाँ स्थिर एवं शांत होती जाती है,मन की क्षमता में असाधारण वृद्धि होती जाती है तथा इसी से साइको इम्युनिटी बढ़ती है।
- मन की इन पांच वृत्तियों प्रमाण (सम्यक ज्ञान),विपर्यय (मिथ्या ज्ञान),विकल्प (कल्पना),निद्रा एवं स्मृति को मन की पांच संभावनाएं,मन के पांच रहस्य बताए गए हैं।इन्हें जान समझ लेने पर समूचे मन को जान समझ लिया जाता है।इन पांच वृत्तियों को मन की पांच शक्तियां भी कहा जा सकता है,जिनके सही सदुपयोग से जीवन पुष्पित एवं सुरभित हो उठता है।फिर इसे किसी प्रकार का कोई विकार स्पर्श नहीं कर सकता और मन न केवल विकारों से मुक्त ही होता है,बल्कि इसकी क्षमता में चमत्कारिक रूप से अभिवर्द्धन होने लगता है।यह साइको इम्युनिटी की सर्वोच्च स्थिति है,जिसे योग में मेधा,प्रज्ञा एवं ऋतम्भरा के रूप में उल्लेखित किया गया है।
- आधुनिक मनोविज्ञान में ‘psyche’ (साइक) जो एक ग्रीक शब्द,को मन से जोड़ा गया है।यहां पर मन का स्वरूप तीन रूपों में प्रकट होता है:चेतन,अचेतन एवं अवचेतन।आधुनिक मनोविज्ञान की पहुंच अचेतन की ऊपरी एवं उथली परतों तक ही हो पाई है।हालांकि डॉक्टर ब्रायन वॉइस जैसे आधुनिक मनोचिकित्सकों ने अचेतन मन की निचली परतो तक हिप्नोटिक प्रणाली के द्वारा पहुंचने का प्रयास किया है,परंतु अचेतन मन के समूचे ज्ञान,इसके उपकरण एवं तकनीकों के अभाव में बात बनती नहीं है।’योग मनोविज्ञान’ के अनुसार पूर्व जन्म के ज्ञान,भावनाएं,वासनाएँ,क्रियाएं तथा उन सबके संस्कार अचेतन (unconscious) चित्त को बनाते हैं।साइको इम्युनिटी का सीधा संबंध इसी अचेतन चित्त से है।
- प्रत्यक्षीकरण,अनुमान,शब्द,भ्रम,स्मृति,विकल्प,अनुभूति,उद्वेग और संकल्प चेतन चित्त की प्रक्रियाएं हैं।योग मनोविज्ञान में मन के एक और स्तर को जोड़ा गया है,जिससे आधुनिक मनोविज्ञान अभी तक अनजान एवं अपरिचित है और वह है अतिमानस।super conscious अवस्था।
3.अवचेतन मन की उच्चतर अवस्था (Higher state of the subconscious mind):
- अतिमानस अथवा चित्त के परिशोधन एवं परिमार्जन के बाद आती है।जब मन को समस्त दोषों एवं विकारों से मुक्त कर दिया जाता है और उसकी प्रक्रियाओं को समाप्त कर दिया जाता है तो यह स्थिति प्राप्त होती है।योगी इसी अवस्था में सतत निवास करता है।उसका चित्त अर्थात् मन पूर्णतया प्रकाशित हो जाता है।उसके सभी संस्कार गिर जाते हैं और इसी कारण वह भूत,भविष्य,वर्तमान,निकट,दूरस्थ तथा सूक्ष्म विषयों का सहज ज्ञान प्राप्त कर लेता है।’योग मनोविज्ञान’ में इसके बाद भी एक अवस्था को निरूपित किया गया है,जिसे स्वरूप स्थिति कहते हैं;अर्थात् व्यक्ति अपने मूल स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाता है।’योग मनोविज्ञान’ के अनुसार ये अवस्थाएं साइको इम्युनिटी की परिष्कृत एवं अभिवर्द्धित क्षमता की परिचायक हैं।
- मन जब अपनी चरम स्थिति में होता है तो उसे विकार स्पर्श नहीं कर पाते,बल्कि उसकी क्षमता एवं सामर्थ्य बहुगुणित एवं अनंतगुना हो जाती है।प्रखर ज्ञान से संपन्न,चेतनशील तथा धैर्यसंपन्न जो मन है,वह संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरण में अमरप्रकाश ज्योतिस्वरूप है,जिसके बिना कोई भी कार्य-संपादन संभव नहीं है,ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ,कल्याणकारी,शुभ संकल्पों से युक्त हो।यह संकल्पयुक्त मन ही एक साइको इम्युनिटी का सर्वश्रेष्ठ परिचायक है;क्योंकि संकल्पयुक्त मन की क्षमता एवं विस्तार व्यापक होता है।ऐसा मन फिर अविनाशी हो जाता है और ये तीनों काल भूत,वर्तमान और भविष्य के ज्ञान का प्रत्यक्षीकरण कर लेता है।ऐसा ज्ञान सृष्टि की सभी चीजों को जान जाता है।
- भगवद्गीता में कहा है कि वह मन बड़ा चंचल,प्रमथन स्वभाव वाला,बड़ा दृढ़ और बलवान है।इसलिए उसको वश में करना वायु को रोकने की भांति दुष्कर एवं कठिन है।साइको इम्युनिटी में मन की चंचलता दूर होती है; क्योंकि इसकी चंचलता उसकी निम्नतम इम्युनिटी को दर्शाती है;जबकि गीता में इसकी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए,इसकी चंचलता को स्थिरता में परिवर्तन करने की बात कही गई है।
- निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होता है,परंतु इसे सतत अभ्यास और वैराग्य से वशीभूत किया जा सकता है।योगी इसे वशीभूत करता है।मन योगी के संपूर्ण नियंत्रण में होता है।परमयोगी का मन संसार के किसी भी वैभव एवं ऐश्वर्य के आकर्षण में स्पंदित एवं तरंगित नहीं होता है।योगी अभ्यास और वैराग्य से मन को आसानी से नियंत्रित एवं नियमित कर लेता है।
- अर्थात् जिसके वश में मन नहीं है,ऐसे असंयत साधक की साइको इम्युनिटी सध नहीं सकती है।उसे इसे पाना कठिन है।जबकि जिन्होंने अपने मन को वश में कर लिया है उनकी इम्युनिटी अपने शिखर को स्पर्श कर सकती है।इम्यूनिटी का सीधा संबंध मन से है और मन को केवल अभ्यास और वैराग्य द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है।अभ्यास और वैराग्य से मन की वृत्तियों का निरोध हो जाता है।मन के पार जाना,मन को वृत्तियों के चक्रव्यूह से उठाना है तो उपाय दो ही हैं:अभ्यास और वैराग्य।’योग मनोविज्ञान’ इन दो के माध्यम से साइको इम्युनिटी को विकसित एवं संवर्द्धित करने का मॉडल प्रस्तुत करता है।
- साइको इम्युनिटी की बात मनोविज्ञान में आती तो अवश्य है,परन्तु इसे विकसित करने का तरीका अभी उसे ज्ञात नहीं है।’योग मनोविज्ञान’ में इसकी संपूर्ण योजना है।अभ्यास से साइको इम्युनिटी के विकास का सार्थक संबंध है।अभ्यास की सफलता के लिए चार चीजों का होना आवश्यक है:(1.)दीर्घकाल तक धैर्य;(2.) निरंतरता (नियमित रूप से अध्ययन करना) (3.)श्रद्धा (गुरुजनों,पुस्तकों के प्रति श्रद्धा);(4.) अखंड निष्ठा (अध्ययन में,परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए रणनीति बनाकर,उस पर अमल करना)।साइको इम्युनिटी को अभिवर्द्धित करने के लिए सर्वप्रथम मन की वृत्तियों को नियंत्रित करना जरूरी है।यह थोड़े समय की बात नहीं है।दीर्घकाल के प्रयास के बाद ही यह सफलता हाथ लगती है।इस प्रयास एवं पुरुषार्थ के सिलसिले को जीवनपर्यंत चलते रहना चाहिए।रुक-रुककर चलना,थक-थक कर रुकना,इस तरह से अभ्यास कभी नहीं सधेगा।इसकी अविराम गति में लय का संगीत होना चाहिए।प्रयास में दीर्घकाल और निरंतरता के साथ निष्ठा एवं अडिग संकल्प का समावेश भी होना चाहिए।
4.अभ्यास और वैराग्य (Practice and Renunciation):
- अभ्यास से साइको इम्युनिटी विकसित होती है।वैराग्य भी इस कार्य में अति सहायक होता है।देखे और सुने विषयों में सर्वथा तृष्णारहित चित्त की जो वशीकार नामक अवस्था है,वह वैराग्य है।वैराग्य का जन्म विवेक के गर्भ से होता है।विवेक का अर्थ सही-गलत की ठीक समझ; उचित-अनुचित का सही ज्ञान;नाशवान और अविनाशी तत्त्व का बोध;सत और असत की पहचान। विवेक होगा तो जो तत्त्व हमारे मन को नीचे गिराता है,हम उससे दूर रहेंगे और जो इसे ऊंचा उठाता है,उसका वरण करेंगे।अतः अभ्यास और वैराग्य साइको इम्युनिटी को संवर्द्धित करने में अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं।
- ‘योग मनोविज्ञान’ के अनुसार साइको इम्युनिटी के फलक एवं आयाम अति व्यापक एवं विस्तृत हैं। मनोविज्ञान इसके तत्त्वों को संवेगात्मक परिपक्वता (इमोशनल मैच्युरिटी),आत्मविश्वास (सेल्फ कॉन्फिडेंस),सामंजस्य क्षमता (एडजस्टमेंट कैपेसिटी) और वेलबिइंग के रूप में निरूपित करता है;अर्थात् साइको इम्युनिटी की परिवर्द्धित अवस्था में व्यक्ति अपने विचारों,भावनाओं या व्यवहारों में संतुलित रहेगा।वह अस्थिर एवं असहाय नहीं होगा।उसे निराशा,हताशा,अवसाद,चिन्ता आदि मनोविकार परेशान नहीं करेंगे।वह सुखी,संतुष्ट,स्थिर एवं शांत रहेगा।ये तत्त्व साइको इम्युनिटी के परिणाम हैं।यदि किसी व्यक्ति की साइको इम्युनिटी सुदृढ़ एवं विकसित है तो वह मनोविकारों से परे एवं पार रहकर हजारों मानसिक प्रतिघातों के बीच भी प्रसन्नता की मुस्कराहट विकसित करेगा।
- साइको इम्युनिटी हमारे मन की वह क्षमता है,जो विकारों के विषाक्त प्रभाव हमें अभेद्य कवच प्रदान करती है।मंगलमय वाणी,शुभ कर्म,सच्चिंतन,सद्भाव के द्वारा इस कवच को और भी अभेद्य किया जाता है,जबकि दूषित चिंतन,ईर्ष्या,द्वेष,निंदा,उद्विग्नता,चंचलता,अशांति से इस कवच को हम स्वयं छिन्न-भिन्न करते हैं।अतः हमारी साइको इम्युनिटी को स्थिर एवं विकसित करने के लिए हमें इनसे दूर रहना चाहिए और सदाचरण में निरत रहना चाहिए।
5.विद्यार्थी के लिए अभ्यास और वैराग्य (Practice and Renunciation for the Student):
- वैराग्य का अर्थ यह नहीं है कि साधुओं की तरह गेरुए वस्त्र पहन कर निष्क्रियता की स्थिति में चले जाएं।जीवन में भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक प्रगति के बीच एक निश्चित संतुलन होना चाहिए।आध्यात्मिकता के बिना शरीर बेजान है,शव मात्र है।इसी प्रकार भौतिक जीवन में उन्नति के बिना विद्यार्थी अनेक सुख-सुविधाओं से वंचित रहेंगे।पाखंड और आडम्बर का समावेश होगा।धन कमाने के लिए जॉब करने की स्किल सीखना कोई बुरी बात नहीं है,लेकिन उसके कमाने के तरीके अवश्य साफ-सुथरे होने चाहिए।हमारे भारतीय शास्त्रों का सार यह है कि हम अपने जीवन में अत्यधिक ऐशो-इशरत,विलासी प्रकृति की कामना करते हैं,तो यह भी सही नहीं है।पर दरअसल हम वैराग्य का अर्थ यह समझते हैं कि सब कुछ छोड़कर लुटिया,लंगोटी धारण कर लेना,पुरुषार्थ नहीं करना,कर्म से विरक्ति करना आदि जो कि वैराग्य का सही अर्थ नहीं है।और जब वैराग्य का अर्थ ही सही नहीं समझेंगे तो गलत उपाय से सही लक्ष्य को प्राप्त कैसे किया जा सकता है? अभ्यास का भी इसी तरह से अर्थ का अनर्थ करके जीवन में उपयोग करते हैं।
- वस्तुतः विद्यार्थी के लिए वैराग्य का अर्थ है मनोविकारों से विरक्ति,मनोविकारों काम,क्रोध,लोभ,मोह आदि से वैराग्य धारण करना होगा।अच्छे कार्यों का अभ्यास,बार-बार अभ्यास करना होगा।अक्सर छात्र-छात्राएं (कई) एक-दूसरे के अच्छे परिणाम,अच्छाइयों को देखकर उनसे द्वेष,ईर्ष्या करने लग जाते हैं और इस तरह मन के विकारों को गा-बजाकर वे स्वयं आमंत्रित कर लेते हैं।धीरे-धीरे उनके संस्कार अवचेतन मन में पड़ जाते हैं।फिर हम कोई भी गलत काम संस्कारों,आदतों से प्रभावित होकर करने लगते हैं।यहां तक कि हमारा संकल्प भी वर्तमान आदतों,संस्कारों,पूर्व की आदतों,संस्कारों से प्रभावित संचालित होता है और हम गलत काम करने के लिए विवश हो जाते हैं।विद्यार्थी काल में संस्कार पड़ते हैं और पुराने गत जन्मों के सोए हुए संस्कार जाग जाते हैं।संस्कार वे ही जागते हैं जैसे कर्म हम वर्तमान में कर रहे होते हैं।यदि राग,द्वेष,ईर्ष्या आदि मनोविकारों से ग्रस्त होकर कार्य करते हैं तो पूर्व जन्म के वैसे ही सुप्त पड़े संस्कार जाग जाते हैं।अतः हमेशा जागरूक,होश में रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए।
- मन के इन विकारों (शत्रुओं) को जान समझ लें और इनसे सावधान हो जाएं यह बहुत जरूरी है क्योंकि जो इन शत्रुओं से अनजान रहते हैं वे बचपन से ही इनके प्रभाव में आ जाते हैं,इनके जाल में फंस जाते हैं और जैसे-जैसे बड़े होते हैं वैसे-वैसे इन शत्रुओं की पकड़ में जकड़ते जाते हैं।बाद में इनसे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि मन इनके रंग में पूरी तरह से रंग चुका होता है।ऐसे व्यक्ति मन की प्रवृत्तियों और आदतों से मजबूर हो कर कोई सुधार करना भी चाहे तो कर नहीं पाते।यही वजह है कि ऐसे विद्यार्थी उपदेश और शिक्षा से भरी बातें पढ़ते या सुनते तो हैं तो चाह कर भी इनको अंगीकार नहीं कर पाते,इन पर आचरण नहीं कर पाते।आपको भी बड़े होकर ऐसी परिस्थितियों में फँसना ना पड़े इसलिए हम आपको अभी से सावधान कर देना चाहते हैं।असल में ज्यादातर होता यही है कि विद्यार्थी भोले,अबोध और सरल स्वभाव के होते हैं,उन्हें भले-बुरे का ज्ञान नहीं होता नहीं इसलिए वे गलत संगति में पड़कर बचपन से ही गलत आदतें ग्रहण कर लेते हैं और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे गलत आदतें भी पक्की होती जाती है।जब इनके दुष्परिणाम सामने आते हैं तब वे दुखी होते हैं कष्ट भोगते हैं और इसके लिए पछताते हैं कि उन्होंने ऐसी बुरी,हानिकारक और गलत आदतें क्यों सीखी! काश! कोई उन्हें बचपन से सावधान कर देता,भला बुरा समझा देता तो आज ऐसी नौबत नहीं आती।इस लेख के माध्यम से हम आपको सावधान कर देना चाहते हैं,अपना भला बुरा समझा देना चाहते हैं ताकि आप अभी से अपने जीवन की यात्रा ठीक दिशा में शुरू कर सकें।
- मन के ये विकार हमारे मन को दूषित कर देते हैं।मन जब दूषित हो जाता है तो हमारे विचार दूषित हो जाते हैं।दूषित विचार हमारे आचरण और स्वभाव को दूषित कर देते हैं।परिणाम यह होता है कि हम मानसिक और शारीरिक रूप से विकारग्रस्त हो जाते हैं।धीरे-धीरे हम एक ऐसे जाल में फंस जाते हैं कि जितना जाल से निकलने की कोशिश करते हैं उतने ही उलझते जाते हैं।कई बार ऐसा भी होता है कि हम जाल से निकलने की क्षमता ही खो बैठते हैं इसलिए अच्छा तो यही होगा कि अभी से संभल कर चलें।यानी बुरे कामों से दूर रहें यही वैराग्य है।
- अब अध्ययन करने के लिए,विद्या सीखने और अच्छी बातों को सीखने के लिए अभ्यास करना होगा,सतत अभ्यास करना होगा।सतत अभ्यास से बौद्धिक बल और ज्ञान बढ़ता जाता है।फालतू बातों में समय नष्ट न करके अपनी पाठ्यपुस्तकों को पढ़ने व समझने और होमवर्क पूरा करने के बाद जो समय बचे उसका उपयोग भी ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें,पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने में करना होगा।अपना होमवर्क और कोर्स का अभ्यास करके जनरल नॉलेज बढ़ाने के लिए आप आधा घंटा ऐसी पुस्तकें,पत्रिकाएँ भी पढ़ा करें।इतना विवरण पढ़कर आप यह तो समझ गए होंगे कि बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करने व इनका बल बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ और एकमात्र उपाय है विद्या का अभ्यास करना,सतत अभ्यास करना।इसमें आलस्य करना,लापरवाही करना और ढील पोल करना ऐसा ही है जैसे जिस डाल पर हम बैठे हों उसी को कुल्हाड़ी से काटना बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने की यही तो उम्र है।भले ही असुविधा हो,थोड़ा कष्ट उठाना पड़े फिर भी विद्या के अभ्यास में कमी नहीं आने देना चाहिए।इस प्रकार अभ्यास व वैराग्य से साइको इम्युनिटी को बढ़ाया जा सकता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में साइको इम्युनिटी बनाम टॉक्सिक प्रभाव (Psyche Immunity VS Toxic Effects),टाॅक्सिक प्रभाव से बचने हेतु साइको इम्युनिटी बढ़ाएँ (Increase Psyche Immunity to Avoid Toxic Effects) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:सकारात्मक विचारों से मन को समर्थ बनाएं
6.साइको इम्युनिटी बढ़ाने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to Increase Psyche Immunity) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक:अब मैं तुम्हारी साइको इम्युनिटी बढ़ाने के लिए तुम्हारे ऊपर शक्तिपात कर रहा हूं।
- गिरवर:एक मिनट सर,मैं अपनी पुस्तकों,नोटबुक,मोबाइल फोन आदि को गिन लेता हूं।
7.साइको इम्युनिटी बनाम टॉक्सिक प्रभाव (Frequently Asked Questions Related to Psyche Immunity VS Toxic Effects),टाॅक्सिक प्रभाव से बचने हेतु साइको इम्युनिटी बढ़ाएँ (Increase Psyche Immunity to Avoid Toxic Effects) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.नरक के द्वार किन विकारों को बताया गया है? (What disorders are mentioned at the gates of hell?):
उत्तर:काम,क्रोध और लोभ नरक के द्वार हैं अतः इन तीनों का त्याग ही रखना चाहिए।ध्यान रहे यहाँ काम का उपयोग वासना के रूप में अतिरेकपूर्वक किया जाना ही वर्जित है,सृजन के रूप में नहीं।
प्रश्न:2.लोभ से क्या आशय है? (What do you mean by greed?):
उत्तर:लोभ का मतलब लालच होता है और लालची होना भी अच्छा नहीं होता।जैसे कामुक व्यक्ति काम से अंधा होता है,क्रोधी क्रोध से अंधा होता है वैसे ही लालची व्यक्ति भी लोभ से अंधा होता है।
प्रश्न:3.ईर्ष्या को स्पष्ट करो। (Clarify jealousy):
उत्तर:दूसरे के बड़प्पन को पसंद नहीं करना,दूसरे के मुकाबले अपने को हीन समझ कर द्वेष भाव रखना ईर्ष्या करना होता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा साइको इम्युनिटी बनाम टॉक्सिक प्रभाव (Psyche Immunity VS Toxic Effects),टाॅक्सिक प्रभाव से बचने हेतु साइको इम्युनिटी बढ़ाएँ (Increase Psyche Immunity to Avoid Toxic Effects) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
| No. | Social Media | Url |
|---|---|---|
| 1. | click here | |
| 2. | you tube | click here |
| 3. | click here | |
| 4. | click here | |
| 5. | Facebook Page | click here |
| 6. | click here | |
| 7. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.










