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6 Mantras to Entry Simplicity in Life

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1.जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 मंत्र (6 Mantras to Entry Simplicity in Life),छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 अमोघ मन्त्र (6 Mantras to Incorporate Simplicity in Students Life):

  • छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 मंत्र (6 Mantras to Entry Simplicity in Life) के आधार पर आपको मालूम होगा कि सरलता ज्ञान प्राप्ति के लिए कितनी जरूरी है और सरलता का समावेश जीवन में कैसे करें?
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2.आधुनिक शिक्षा का प्रभाव (Impact of Modern Education):

  • आधुनिक शिक्षा में ज्यों-ज्यों छात्र-छात्रा निष्णात होता जाता है उसमें अकड़,घमंड का प्रवेश होता चला जाता है।यदि किसी छात्र-छात्रा की गणित पर पकड़ मजबूत होती चली जाती है तो वह अपने समान किसी को नहीं समझता है और यहीं से उसकी उन्नति,विकास होने के बजाय अवनति और पतन प्रारंभ हो जाता है।
  • ज्ञान अनंत है और उसका कोई ओर-छोर नहीं है अतः किसी एक विषय में भी कुछ पर पकड़ मजबूत हो जाने पर अपने आप को यह समझना कि उसके जितना होशियार,बुद्धिमान नहीं है,मूर्खता और नासमझी है।इस प्रकार के दृष्टिकोण से छात्र-छात्रा अपने ज्ञान के स्रोतों को बंद कर लेता है।क्योंकि शेखीबाज,अपने आपको बहुत बड़ा समझने वाले के निकट कोई भी दूसरा छात्र-छात्रा नहीं आना चाहता है।यहां तक कि शिक्षक भी ऐसे छात्र-छात्रा से दूरी बनाकर रखते हैं।
  • जो छात्र-छात्रा थोड़ा-सा ज्ञान पाकर हवा में उड़ने लगे,अपने आप को बहुत श्रेष्ठ समझने लगे और दूसरों को अपमानित करने लगे तो कौन उसकी मदद करेगा,कौन उससे मित्रता करेगा,कौन उससे सवाल अथवा समस्याओं को पूछने का साहस करेगा? ऐसे विद्यार्थी की अकड़ की वजह से न तो वह किसी का मित्र होता है और न कोई उसका मित्र बनना चाहता है।कोई भी व्यक्ति या विद्यार्थी ऊपर चढ़ता है,विकास करता है तो अनेक लोगों के सहायता-सहयोग से ही करता है।लेकिन सरल,निष्कपट हृदय वाले विद्यार्थी की ही सहायता-सहयोग करने के लिए दूसरे लोग तैयार होते हैं,अकड़बाज या शेखीबाज की नहीं।
  • अकड़बाज,शेखीबाज छात्र-छात्रा में अनेक ऐब और भी प्रवेश करने लगते हैं।वह दूसरों की उन्नति,प्रगति देखकर कुढ़ता है,उसके अंदर जलन और ईर्ष्या की भावना पैदा हो जाती है।वह बात-बात में अपने अहंकार का प्रदर्शन करता है,अपनी प्रशंसा करता है,थोड़ी सी सफलता मिलते ही चने के पेड़ पर चढ़ जाता है।और अपनी करतूतों के कारण नीचे मुंह के बल गिरता है,उसे सम्हालने,हमदर्दी जताने कोई भी उसके निकट नहीं आता है क्योंकि वह अपनी आदतों से सबसे दूरी बना लेता है।यूं कई छात्र-छात्रा दिखावे के तौर पर ऐसे विद्यार्थी के साथ जरूर रहते हैं लेकिन जरूरत पड़ने पर वे उसका साथ छोड़ देते हैं।
  • ऐसा छात्र-छात्रा दूसरों का सगा नहीं होता वहीं खुद का सगा भी नहीं होता है।थोड़ी-सी सफलता पाने पर फुटबॉल की तरह,गुब्बारे की तरह फूल जाता है।लेकिन ऊपर की कक्षाओं में चढ़ने के लिए अनेक लोगों का सहयोग चाहिए।सारी बातें अपनी प्रतिभा,चिंतन-मनन के बल पर हल नहीं की जा सकती है।कुछ सवाल,प्रमेय और समस्याएं ऐसी भी होती है जिन्हें हल करने के लिए मानवीय सहयोग की आवश्यकता होती है,वार्तालाप से कुछ रहस्यों का खुलासा होता है,आपस में डिस्कस करने से अनेक गुत्थियाँ सुलझती है।परंतु ऐसा विद्यार्थी इन सबसे वंचित रहता है।
  • सही बात की जानकारी हो,अकड़बाज न हो इसके लिए विवेक का होना जरूरी होता है,सही बातों का ज्ञान हो,प्राप्त किए गए ज्ञान का हैजा न हो और सही दिशा में चलने के लिए सुदृढ़ संकल्प का होना जरूरी होता है और यह सब होता है अच्छी शिक्षा से।अच्छी शिक्षा के बिना ज्ञान नहीं होता,ज्ञान ना हो तो विवेक नहीं होता और विवेक ना हो,तो जो कुछ भी किया जाता है,वह अच्छा नहीं होता।अच्छी शिक्षा हमें अच्छा ज्ञान देती है,अच्छा ज्ञान हमें अच्छे विचार देता है और अच्छे विचार हमारे आचरण को अच्छा बनाते हैं।प्रत्यक्ष यानी जो सामने है उसे तो कोई भी आंख वाला देख सकता है पर परोक्ष जो आंखों के सामने नहीं हो,उसे देखने के लिए ज्ञान-चक्षु का होना जरूरी होता है,अक्ल की आंखों का होना जरूरी होता है।बिना आंख वाला तो अंधा होता ही है पर जिसके पास ज्ञान चक्षु नहीं होते वह आंखों के होते हुए भी ‘अक्ल का अंधा’ होता है।ऐसी अच्छी शिक्षा का आधुनिक शिक्षा में अभाव है।

3.छात्र-छात्राएं सरल बनें (Students should be simple):

  • सरलता एक ऐसा गुण है कि व्यक्ति में कोई और गुण हो अथवा नहीं,केवल वह सरल चित्त ही हो तो उसमें अन्य गुण उसी प्रकार विकसित होने लगते हैं,जिस प्रकार कि वर्षाऋतु में पेड़-पौधे बिना सिंचाई के बढ़ने और फलने-फूलने लगते हैं।सरल चित्त व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को सभी अहंकारों,अभिमानों और गर्व-गरूरों से मुक्त कर उसे एक स्वच्छ शीतल भवन की तरह बनाने लगता है,जिसमें सभी दिशाओं से पवित्रता की सुगंध आती और वहां के वातावरण को सुरभित कर जाती है।सरलता या निश्छलता से यही आशय है कि व्यक्ति अपने पद,प्रतिष्ठा,वैभव और ज्ञान का अहंकार ना करें तथा स्वयं को एक साधारण मनुष्य मानकर जीवन व्यतीत करे।आखिर कोई व्यक्ति मनुष्य के अतिरिक्त और होता भी क्या है?
  • एक बार भारत में एक बहुत बड़े विश्वविद्यालय की नींव रखी गई।परंतु उसके निर्माण के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी।विश्वविद्यालय की नींव रखने वाले महाशय के पास कुछ भी धन नहीं था।उन्होंने जन सहयोग,दानदाताओं से उसका निर्माण करने का निश्चय किया।एक बार वे दान के लिए एक बहुत बड़े धनाढ्य व्यक्ति के पास गए।धनाढ्य व्यक्ति ने उनकी आवभगत की और नौकर को चाय बनाने के लिए कहा।नौकर ने माचिस की एक तीली खराब कर दी तो धनाढ्य व्यक्ति ने उस नौकर को चेताया और फटकारा।यह नजारा देखकर उन महाशय को बड़ा आश्चर्य हुआ,उन्होंने समझा जो व्यक्ति एक तीली खराब करने पर इतनी लताड़ लगा सकता है वह दान में धन क्या देगा? इसलिए उन्होंने अपनी मंशा जाहिर नहीं की और इधर-उधर की बातें करते रहे।चाय-नाश्ता करके वे महाशय जाने के लिए तैयार हुए।धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि आपने अपने आने का मकसद तो बताया ही नहीं।
  • महाशय संकोच में पड़ गए।तब धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि संकोच मत करो,जो भी बात है उसे कहो।मेरी सामर्थ्य होगी तो मैं वह काम करूंगा।तब विश्वविद्यालय के संचालक ने संकोच करते हुए कहा कि वे विश्वविद्यालय के लिए दान लेने आए थे।धनाढ्य व्यक्ति ने तत्काल कई लाख रुपए का चेक दे दिया और कहा कि यदि और आवश्यकता हो तो बताना।महाशय बहुत अचंभित हुए धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि स्टोव को जलाने के लिए एक तीली काफी थी,परंतु नौकर ने एक तीली असावधानीवश बर्बाद कर दी।फिजूलखर्ची और बर्बादी क्यों की जाए,चाहे वह कितनी ही छोटी राशि की हो।परंतु जहाँ नेक कार्य किया जा रहा हो,वहां धन देने में कंजूसी क्यों की जाए? विश्वविद्यालय का निर्माण पूरा हुआ परंतु उनके संचालक सरल चित्त,निश्छल प्रकृति के थे इसलिए उनको लाखों रुपए का दान प्राप्त हुआ।
  • छात्र-छात्राएँ भी सरल चित्त बनेंगे तो उनको सहयोग करने के लिए हर कोई तैयार रहेगा।सरल चित्त छात्र-छात्रा के अनेक मित्र बन जाते हैं।यदि कोई कष्ट-कठिनाई उसके सामने आती है तो सहयोग करने के लिए उनके सहपाठी दौड़ पड़ते हैं।कोई सवाल नहीं आ रहा हो,प्रमेय हल नहीं हो कहीं हो रही हो,प्रश्न समझ में नहीं आ रहा हो तो सरल चित्त को हर कोई छात्र-छात्रा अपना अध्ययन,अपना कार्य छोड़कर उसे बताने के लिए तत्पर हो जाते हैं।सरल हृदय,सरल चित्त अध्यापक को भी छात्र-छात्राएँ बहुत चाहते हैं,उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।परंतु अकड़बाज,शेखीबाज शिक्षक से छात्र-छात्राएं दूर भागते हैं,उनसे कोई भी पढ़ने के लिए दिल से तैयार नहीं होता,विवशता हो तो अलग बात है।

4.सरलता हमारा गौरव (Ingenuity is our pride):

  • एक गणित के प्रोफेसर की पूरे भारत में धूम थी।परीक्षा के दिनों में वे नाइट क्लास भी लिया करते थे।एक दिन वे दिन और रात की क्लास लेकर लौट रहे थे,काफी थक चुके थे,इसलिए सुबह होते ही जल्दी-जल्दी घर की ओर कदम उठाने लगे थे।रास्ते में एक छात्र उनका इंतजार कर रहा था और रास्ता रोक कर खड़ा था।उसने कहा कि,”यदि आप जल्दी में ना हों तो मैं एक निवेदन करूं?”
  • प्रोफेसर ने बड़ी ही आत्मीयता के साथ उसे अपनी बात कहने के लिए कहा,तो वह छात्र बोला,सुना है आप बहुत बड़े गणित के प्रोफेसर हैं।अतः मेरे कुछ सवालों को नोटबुक में हल कर दीजिए।
  • गणित के प्रोफेसर बहुत ही थके हुए थे और उन्हें अपनी प्रसिद्धि का भी भान था।चाहते तो उस छात्र को वहीं टरकाकर घर जा सकते थे,परंतु उन्होंने छात्र का मन तोड़ना उचित नहीं समझा और वह महान प्रोफेसर छात्र द्वारा दी गई नोटबुक तथा पेन लेकर बैठ गए।बड़े मनोयोग से उन्होंने सवालों को हल किया।सवाल हल हो गए तो उस छात्र को देते हुए प्रोफेसर ने पूछा? “कहो! मेरे दोस्त सवालों के हल पसंद आए?”
  • बहुत अच्छे हैं,कहकर उस छात्र ने प्रोफेसर का मुँह चूम लिया।प्रोफेसर उसी सहज भाव से वापस अपने रास्ते पर चल दिए।ऐसी सरलता कम ही अध्यापक,प्राध्यापक तथा आज के शिक्षकों में देखने को मिलती है।जिन लोगों को भी थोड़ी बहुत प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा मिल जाती है,वे अपने आपको किसी दूसरे ही लोक का आदमी या देवदूत समझने लगते हैं।जबकि योग्यता और प्रतिभा अपने साथ सरलता,सहजता के गुण नैसर्गिक रूप से साथ लेकर आती है।
  • यदि किसी छात्र-छात्रा का मेरिट में स्थान आ जाता है,या मैथमेटिक्स ओलंपियाड में पदक जीत लेते हैं अथवा जेईई-मेन व एडवांस एग्जाम को क्रैक कर लेते हैं तो उनमें कुछ तो हवा में उड़ने लगते हैं,उनके पैर धरती पर टिकते ही नहीं,अपनी शेखी बघारने लगते हैं।
  • महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक न्यूटन एक बार रिसर्च पेपर तैयार करके टेबल पर रखकर चले गए।पीछे से उनका कुत्ता डायमंड मेज पर जोर से कूदा जिससे जलती हुई मोमबत्ती उन रिसर्च पेपर्स पर पड़ गई और वे जल गए।जब न्यूटन वापस आए तो डायमंड पर तनिक भी गुस्सा नहीं हुए।उन्हें दुख तो खूब हुआ,लेकिन फिर से मेहनत करके रिसर्च पेपर्स तैयार किए ।
  • महान और सरल व्यक्तियों की पहचान होती है,साधारण बातों पर ध्यान ना देना,उन्हें अनावश्यक महत्त्व न देना तथा अनजाने में हुई भूलों या त्रुटियों से क्षुब्ध अथवा आवेशग्रस्त न होना भी सरलता का एक रूप है।सरलता को भली प्रकार अपने स्वभाव में सम्मिलित करने वाले व्यक्ति अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर पाते हैं और दूसरों की गलती से होने वाली हानि को भी व्यर्थ महत्त्व नहीं देते।
  • नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सरल और सहृदय स्वयमेव अपने को पृष्ठभूमि में कर लेते हैं और नए लोगों को बढ़ावा देते हैं।उन्हें यह गुमान नहीं होता कि हम बड़े,वरिष्ठ और अनुभवी हैं,इसलिए हमें प्राथमिकता मिलनी चाहिए।बल्कि वे अपने सरल स्वभाव से प्रेरित होकर इस दृष्टि से सोचते हैं कि नए व्यक्तियों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।अपने अंदर इस प्रकार का अहंकार नहीं रखते कि वे बहुत बड़े और महान हस्ती हैं।दरअसल जो जितना ऊपर चढ़ता है उतना ही विनम्र और सरल होता है।

5.छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने की तकनीक (Techniques to incorporate simplicity in student life):

  • किसी भी मनुष्य में कोई विशेष गुण होता है,उसी के कारण लोक में उसकी ख्याति फैल जाती है।कोई भी मनुष्य सर्वगुण संपन्न नहीं होता।उदाहरण के लिए क्या केवड़े पर फल लगता है? क्या कटहल पर फूल आते हैं? क्या पान की बेल में फूल,फल लगते हैं? अपना विकास करने के लिए गुण ही काफी नहीं होते बल्कि कोई विशेष गुण भी होना चाहिए जो साधारण स्तर से ऊंचा नजर आए।
  • किसी भी विशिष्ट गुण को आचरण में उतारने के लिए केवल कोर्स की पुस्तकें पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है।कोर्स की पुस्तकें सभी विद्यार्थी पढ़ते हैं,कुछ को कम अंक प्राप्त होते हैं तो कुछ को अधिक अंक प्राप्त होते हैं।इस शिक्षा से ज्यादा से ज्यादा आप जाॅब प्राप्त कर सकते हैं। परंतु आचरण को सुधारने के लिए आपको सत्साहित्य का अध्ययन करना चाहिए,स्वाध्याय करना चाहिए।हमेशा किसी से कुछ ना कुछ सीख लेनी चाहिए।ज्ञान अर्जित करने से अहंकार बढ़ रहा है तो समझ लें कि आपकी दिशा ठीक नहीं है।ज्ञान अर्जित करें साथ ही प्रतिदिन अपना आत्म-निरीक्षण करते रहें।महापुरुषों के जीवन चरित्र का अध्ययन करें और उनके जीवन से सीखें।स्वाध्याय,आत्म-निरीक्षण की आदत,अध्ययन करना,गुणों का अभ्यास करना (धारण करना),दृढ़ संकल्प आदि के द्वारा आप अपने जीवन में सरलता का समावेश कर सकते हैं।
  • यदि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि आज जिंदा होते तो यह देखकर महादुःख होता कि आज सबसे बड़ी आवश्यकता चरित्र नहीं बल्कि शिक्षा (डिग्री प्राप्त करना) मानी जाती है।बच्चों को,किशोरों को,युवजन को,प्रौढ़ों को शिक्षा देने के नए आडंबर रचे जा रहे हैं जैसे प्रौढ़ शिक्षा,अनौपचारिक शिक्षा,बाल बाड़ी,पत्राचार शिक्षा आदि परंतु चरित्र निर्माण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।चरित्र का यह संकट ही अनेक संकटों का कारण बन गया है।
  • राकफैलर ने युवाजनों के लिए चरित्र की साख सबसे जरूरी बात बताई है।लेकिन यह साख बढ़ने के बजाय दिन पर दिन गिरती जा रही है।इसकी ज्यादातर जिम्मेदारी उन गंदी फिल्मों,गंदे उपन्यासों,पोर्न वेबसाइट्स,अश्लील वीडियो,इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री आदि पर है जिन पर कोई अंकुश नहीं।
  • ब्लीचर का यह कथन सही है कि मनुष्य की असलियत उसके निजी चरित्र में है।उसका यदि कोई यश है,प्रतिष्ठा है तो दूसरे लोगों की राय मात्र है,दूसरों के उसके प्रति विचार हैं।चरित्र उसके भीतर है।यश-प्रतिष्ठा तो छाया मात्र है,ठोस वस्तु तो चरित्र ही है।
  • चरित्र का गठन कोई एक दिन में नहीं हो जाता है,हमारे जीवन में सरलता का समावेश एकाएक नहीं हो जाता।किसी के पास भी कोई जादू का डण्डा नहीं है जो किसी भी व्यक्ति या छात्र-छात्रा पर घुमा दिया जाए और वह सरल बन जाए।सरलता का समावेश एक साधना है,तप है।जो सरलता का,उच्च गुणों का महत्त्व समझता है वह प्रतिदिन अपने आप में सुधार करता है और सरलता का समावेश करता चला जाता है।जो सरलता और मूर्खता के अंतर को समझ लेता है,सरलता का महत्त्व समझ जाता है,वह सरलता का समावेश करता चला जाता है।उसके जीवन में सरलता रच-बस जाती है।
  • छात्र-जीवन जीवन की नींव है अतः इसमें सरलता तथा अन्य गुणों का समावेश करना सरल कार्य है।बड़े होने पर आदतें और स्वभाव परिपक्व हो जाती हैं अतः उसे बदलना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
  • महान व्यक्तियों का आचरण शुद्ध,पवित्र और अनुकरणीय होता है।शास्त्रों का अध्ययन करके भी अपने जीवन को आचरणयुक्त बनाया जा सकता है।सारांश यह है कि अध्ययन,मनन-चिंतन करें,शास्त्रों का पठन-पाठन करें,महान व्यक्तियों के जीवन चरित्र का अवलोकन करें,कोई भी साधन अपना ले परंतु जब तक उन बातों पर,उन उपदेशों पर,उनके जीवन चरित्र से सीख लेकर अमल न किया जाए तो केवल मात्र व्यसन और मूर्खता है और अमल करना ही साधना है,तप है,अपने जीवन में सरलता को अपनाना है।जबकि बहुत से छात्र-छात्राएँ ऐसा भी समझते हैं कि शास्त्रों का पाठ करने से,रट लेने से,रामायण का पाठ करा देने से उनका उद्धार हो जाएगा।बस कुकर्म करते रहो और शास्र पढ़ते रहो,बेड़ा पार हो जाएगा।इससे ज्यादा मूर्खता क्या हो सकती है?
  • उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 मंत्र (6 Mantras to Entry Simplicity in Life),छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 अमोघ मन्त्र (6 Mantras to Incorporate Simplicity in Students Life) के बारे में बताया गया है।

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6.सरलता का नमूना (हास्य-व्यंग्य) (Sample of Ingenuity) (Humour-Satire):

  • चुनाव के समय नेताजी घर-घर जाकर वोट मांग रहे थे।एक नेताजी ने एक छात्र का दरवाजा खटखटाया।छात्र ने दरवाजा खोला।
  • छात्र (नेता से):नेताजी यह ओढ़ी हुई सरलता लेकर घर-घर क्यों घूम रहे हो? सब जानते हैं,आपकी असलियत।
  • नेता:नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते,हम देश को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं।
  • छात्र:तो बरसात में जैसे मेंढक टर्राते हैं,दिखाई देते हैं,वैसे ही आप चुनाव के समय ही प्रकट कैसे होते हो,क्या और दिनों देश की लुटिया डूबाने में लगे रहते हों?
  • नेता:छोरे तू ज्यादा बोल रहा है।हम तुम्हें भूमिसात कर देंगे।
    छात्र:नेताजी,इस समय नाराज होना ठीक नहीं है,चुनाव का माहौल है,इस समय तो सरल रहें।हमें तो चुनावों के समय ही आपको सुनाने का मौका मिलता है,फिर पाँच साल बाद ही मिलेगा और पाँच साल तक आपसे हम सुनते रहेंगे।

7.जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6 Mantras to Entry Simplicity in Life),छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 अमोघ मन्त्र (6 Mantras to Incorporate Simplicity in Students Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सरलता का सीधा अर्थ क्या है? (What is the direct meaning of simplicity?)

उत्तर:इसका अर्थ है निरभिमानता।अपने कुछ होने का अहंकार ही व्यक्ति को उसके गौरव से वंचित करता है तथा अपने आप की दृष्टि में स्वयं को पदच्युत करता है और कुछ नहीं केवल जीवन में सरलता का ही समावेश कर लिया जाए तो उसके पीछे अनेकों गुणअपने आप चले आते हैं।

प्रश्न:2.चरित्र उच्च कब होता है? (When does character get high?):

उत्तर:कठिनाइयों,समस्याओं का सामना करने,उनको जीतने,वासनाओं का दमन करने और दुःखों को सहन करने से चरित्र उच्च,सुदृढ़ और निर्मल होता है।

प्रश्न:3.दुर्बल चरित्र वाले की क्या स्थिति होती है? (What is the status of a person of weak character?):

उत्तर:दुर्बल चरित्र वाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंके से झुक जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 मंत्र (6 Mantras to Entry Simplicity in Life),छात्र जीवन में सरलता का समावेश करने के 6 अमोघ मन्त्र (6 Mantras to Incorporate Simplicity in Students Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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