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7Spells of How to Know Types of Person

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1.व्यक्ति के प्रकारों को कैसे जानें के 7 मंत्र (7Spells of How to Know Types of Person),अपने व्यक्तित्व को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Personality?):

  • व्यक्ति के प्रकारों को कैसे जानें के 7 मंत्र (7Spells of How to Know Types of Person) के आधार पर आप जान सकेंगे कि मुख्य रूप से व्यक्ति कितने प्रकार के होते हैं और हमें अपने आप को किस प्रकार के व्यक्तित्व में ढालना चाहिए।
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2.संसार के अग्रणी लोग कैसे होते हैं? (What are the leading people in the world?):

  • संसार में प्रायः तीन प्रकार के व्यक्ति पाए जाते हैं।एक आत्मविश्वासी,दूसरे आत्म-निषेधी और तीसरे संशयी।अपने इन्हीं प्रकारों के कारण एक वर्ग के लोग अपने उद्योग और पुरुषार्थ के बल पर छाए रहते हैं,अपना स्पष्ट स्थान बनाकर जीवन को सार्थक बनाते और समय के पृष्ठों पर छाप छोड़ जाते हैं।
  • दूसरा वर्ग अपने प्रकार के कारण निराशा,निरुत्साह और निःसाहस के कारण रोते-झींकते,भाग्य और विधाता को कोसते हुए जीते और अंत में एक निस्सार और निरर्थक मौत मर कर चले जाते हैं।
  • तीसरा वर्ग अपने प्रकार के कारण तर्कों,वितर्कों,हाँ-ना,क्रिया-निष्क्रियता में अपना बहुमूल्य समय और शक्ति नष्ट करते हुए-कर रहा हूं-के भ्रम में कुछ भी न करके एक असंतोष लेकर संसार से चले जाते हैं।उनकी अपूर्णता उन्हें निष्क्रियता का दोष दिलाने के सिवाय कोई उपहार नहीं दिला पाती।
  • संसार के समस्त अग्रणी लोग आत्मविश्वासी वर्ग के होते हैं।वे अपनी आत्मा में,अपनी शक्तियों में आस्थावान रहकर कोई भी कार्य कर सकने का साहस रखते हैं और जब भी जो काम अपने लिए चुनते हैं,पूरे संकल्प और पूरी लगन में उसे पूरा करके छोड़ते हैं।वे मार्ग में आने वाली किसी भी बाधा अथवा अवरोध से विचलित नहीं होते।आशा,साहस और उद्योग उनके स्थायी साथी होते हैं।किसी भी परिस्थिति में वे इनको अपने पास से जाने नहीं देते।
  • आत्मविश्वासी सराहनीय कर्मवीर होता है।वह अपने लिए ऊंचा उद्देश्य और ऊंचा आदर्श ही चुनता है।हेयता,हीनता अथवा निकृष्टता उसके पास फटकने नहीं पाती।फटक भी कैसे सकती है? जब आत्मविश्वास के बल पर वह ऊंचे से ऊंचा कार्य कर सकने का साहस रखता है और कर भी सकता है,तो फिर अपने लिए निकृष्ट आदर्श और पतित मार्ग क्यों चुनेगा? आत्मविश्वासी जहां अपने लिए उच्च आदर्श चुनता है,वहाँ उच्च कोटि का पुरुषार्थ भी करता है।वह अपनी शक्तियों और क्षमताओं का विकास करता,शुभ-संकेतों द्वारा उनमें प्रखरता भरता और यथायोग्य उनका पूरा-पूरा उपयोग करता है।नित्य नए उत्साह से अपने कर्त्तव्यपथ पर अग्रसर होता,नए-नए प्रयत्न और प्रयोग करता,प्रतिकूलताओं और प्रतिरोधों से बहादुरी के साथ टक्कर लेता और अंत में विजयी होकर श्रेय प्राप्त कर ही लेता है।पराजय,पलायन और प्रशमन से आत्मविश्वासी का कोई संबंध नहीं होता,संघर्ष उसका नारा और कर्त्तव्य उसका शास्त्र होता है।निसर्ग ऐसे सूरमाओं को ही विजयमुकुट पहनाया करती है।
  • आत्मा अनंत शक्तियों का भंडार होती है।संसार की ऐसी कोई भी शक्ति और सामर्थ्य नहीं,जो इस भंडार में न होती हो।हो भी क्यों न? आत्मा परमात्मा का अंश जो होती है।सारी शक्तियाँ,सारी सामर्थ्य और सारे गुण एक परमात्मा में ही होते हैं और उसी से प्रभावित हो-होकर संसार में आते हैं।अस्तु,अंश आत्मा में अपने अंशी की विशेषताएं होना स्वाभाविक हैं।आत्मा में विश्वास करना,परमात्मा में विश्वास करना है।जिसने आत्मा के माध्यम से परमात्मा में विश्वास कर लिया है,उसका सहारा ले लिया,उसे फिर किस बात की कमी रह सकती है।ऐसे आस्तिक के सम्मुख शक्तियां,अनुचरों के समान उपस्थित रहकर अपने उपयोग की प्रतीक्षा किया करती है।
  • किंतु आत्मा का शक्ति-कोश अपने आप स्वयं नहीं खुलता,उसे खोलना पड़ता है।इस उद्घाटन की कुंजी है: शुभ संकेत।अर्थात् ऐसे विचार जिनका स्वर हो कि-“मैं अमुक कार्य कर सकता हूं।मुझमें उसे पूरा कर सकने का साहस हैं,उत्साह है और शक्ति भी है।मुझे पुरुषार्थ से अनुराग है,उद्योग करना मेरा प्रियतम व्यसन है।विघ्न-बाधाओं से मुझे कोई भय नहीं,क्योंकि संघर्ष को मैं जीवन की एक अनिवार्य क्रिया मानता हूं।मैं मनुष्य हूं। मेरे जीवन का एक निश्चित उद्देश्य है।उसे पूरा करने में अपना तन,मन और जीवन लगा दूंगा।सफलता के प्रति आसक्ति और असफलता के प्रति मेरी वृत्ति के अवयव नहीं हैं।मैं भगवान कृष्ण के अनासक्ति कर्म योग का अनुयायी हूँ।सफलता मुझे मदमत्त और असफलता मुझे निरस्त नहीं कर सकती।मुझे ज्ञान है कि लक्ष्य की प्राप्ति और उद्देश्य की पूर्ति सफलता,असफलता के सोपानों पर चलकर ही हो सकती है।मैं अखंड आत्मविश्वासी हूं।मैं यह कार्य अवश्य कर सकता हूं और निश्चय ही करके रहूंगा।”
  • इस प्रकार के शुभ और सृजनात्मक संकेत देते रहने से आत्मा का कमल-कोश खुल जाता है और उसमें सन्निहित शक्तियां सुगंध की तरह आ-जाकर पुरुष में ओतप्रोत होने लगती है।यह भाव की” मैं यह कर सकता हूं”-आते ही शरीर,मन और आत्मा की सारी उत्पादक शक्तियाँ एकत्र होकर व्यक्ति की क्रिया में समाहित हो जाती है।वह अपने में अक्षय उत्साह,साहस और आत्मा का अनुभव करने लगता है।उसके मार्ग की बाधाएँ भयभीत होकर हटने लगती हैं और कदम-कदम पर लक्ष्य स्पष्ट से स्पष्टतर और दूर से सन्निकट होता दिखलाई देने लगता है।शुभ संकेतों से उद्भूत आत्म-विश्वास केवल आत्मा तक ही सीमित नहीं रहता,वह क्रियाओं,प्रक्रियाओं और सिद्धि तक फैल जाता है।

3.दूसरे प्रकार के व्यक्ति (Second type of person):

  • इसके विपरीत आत्म-निषेधी व्यक्ति अपनी सारी शक्तियों को नकारात्मक बनाकर नष्ट कर लेता है।आत्म-निषेध आसुरी-वृत्ति है और आत्म-विश्वास देववृत्ति।आत्मा की शिवशक्ति आसुरी वृत्ति वाले का सहयोग कर भी किस प्रकार सकती है।आत्म-निषेध और नास्तिकता एक ही बात है।जो नास्तिक बनकर परमात्मा को छोड़ देते हैं,परमात्मा उसे उससे पहले ही छोड़ देता है।जिसे परमात्मा ने छोड़ दिया,प्रभु जिससे विमुख हो गया,उसके लिए लोक,परलोक,आकाश-पाताल कहीं भी कल्याण की संभावना किस प्रकार हो सकती है? ऐसे नास्तिकवादी और आत्म-निषेधी की नाव का भवसागर के बीच डूब जाना निश्चित है।
  • आत्म-निषेधी की सारी शक्तियां,सारे देवतत्त्व और सारी संभावनाएं एक साथ रुक जाती हैं।वह अकेला एकाएक आत्म-बहिष्कृत स्थिति में डूबते व्यक्ति की भाँति व्यर्थ ही हाथ-पैर मारता,थकता और अंत में अविज्ञात अतल के गहन अंधकार में डूब जाता है।
  • आत्म-निषेधी का दुर्भाग्य उसके अंदर अशुभ एवं नकारात्मक संकेत बनकर किसी प्रेत-पुकार की तरह गूंजता रहता है।उसके मलिन मानस से ध्वनि उठती रहती है कि मैं यह काम नहीं कर सकता।मुझे उसे करने की शक्ति नहीं है।मेरे पास साधनों का अभाव है।समय मेरे अनुकूल नहीं है।मेरी योग्यता कम है।मेरे भाग्य में सफलता का श्रेय नहीं लिखा गया है।इस प्रकार के नकारात्मक संकेत सुन-सुनकर निर्जीव निर्बलताएं जीवित हो उठती हैं।निराशा,निरुत्साह और भय की भावनाएं मानस में खेलने-कूदने और द्वन्द्व मचाने लगेंगी।तन-मन और मस्तिष्क की सारी शक्ति शिथिल पड़ जाती है।अंतःकरण अवसन्न होकर निष्क्रिय हो जाता है।शरीर ढीला और मन मुरदार हो जाता है।इस प्रकार का मनुष्य संसार में कुछ भी तो नहीं कर सकता,सिवाय इसके कि वह हारा,पिछड़ा और हताश-सा आगे बढ़ते हुए लोगों को ईर्ष्या से देखे और मन ही मन दहता-सहता हुआ जिंदगी के दिन पूरे करे।

4.संशयी व्यक्ति (Skeptics):

  • तीसरे प्रकार के जो संशयी व्यक्ति होते हैं,उनकी दशा तो और भी खराब होती है।आत्म-विश्वासी जहाँ सराहनीय,आत्म-निषेधी दयनीय होता है,वहाँ आत्मसंशयी उपहासास्पद होता है।वह किसी भी पुरुषार्थ के संबंध में ‘हां-न’ के झूले में झूलता रहता है। अभी उसे यह उत्साह होता है कि वह कार्य कर सकता है,लेकिन कुछ ही देर बाद उसका संशय बोल उठता है-हो सकता है यह काम मुझसे पूरा ना हो।शायद मेरी क्षमताएं और योग्यताएं इस काम के अनुरूप नहीं है।लेकिन वह अपने इस विचार पर भी देर तक टिका नहीं रह पाता।सोचता है काम करके तो देखा जाए,शायद कर लूं।काम हाथ में लेता है तो हाथ-पैर फूल जाते हैं,अपने अंदर एक रिक्तता और अयोग्यता अनुभव करने लगता है।भयभीत होकर काम छोड़ देता है।फिर बलात् उसमें लगता,थोड़ा-बहुत करता और इस भाव से उसे अधूरा छोड़ देता है कि हो नहीं पा रहा है।बेकार समय नष्ट करने से क्या लाभ।
  • इस प्रकार संशयी व्यक्ति जीवनभर यही करता रहता है।कार्य आरंभ करने का साहस नहीं करता और यदि उसमें हाथ डालता है तो कभी पूरा नहीं कर पाता।इसी प्रकार के तर्क-वितर्क और ऊहापोह में उसका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है।शेखचिल्लियों की तरह अस्थिर मन,मस्तिष्क और अविश्वास वाले संसार में न तो आज तक कुछ कर पाए हैं और न आगे कुछ कर सकते हैं।उपहासास्पद स्थिति में ही संसार से विदा हो जाते हैं।

5.तीन प्रकार के व्यक्तियों का विश्लेषण (Analysis of three types of individuals):

  • आत्म-निषेध एक भयंकर अभिशाप है।इस वृत्ति का कुप्रभाव मन,मस्तिष्क पर ही नहीं,संपूर्ण जीवन-संस्थान पर पड़ता है।”मैं यह नहीं कर सकता”-ऐसा भाव आते ही मनुष्य का मन और मस्तिष्क तो असहयोगी हो ही जाता है,शरीर पर भी बड़ा कुप्रभाव पड़ता है।रक्त की पोषण-शक्ति क्षीण हो जाती है।सारे तंतुजाल और नाड़ी संस्थान निर्बल हो जाते हैं।रोग तक उठ खड़े होते हैं और तब बेचारा मनुष्य किसी काम का नहीं रह जाता।आत्म-निषेध मानव जीवन के लिए विष विधान के समान है।इससे अपनी रक्षा करनी ही चाहिए।
  • आत्म-विश्वास जीवन के लिए संजीवनी शक्ति के समान है।”मैं यह कार्य अवश्य कर सकता हूं-” ऐसा विश्वास आते ही मानव मन में आशा और उत्साह उत्पन्न हो जाता है।सारा जीवन-संस्थान संगठित होकर पुरुषार्थ के लिए अपनी शक्ति और सेवाएँ समर्पित कर देता है।रक्त प्रवाह में एक स्वस्थ-उल्लास और शिराजालों में स्निग्धता आ जाती है।जीवनी-शक्ति को सहायता मिलती है और वह सारी कर्मेंद्रिय और ज्ञानेंद्रिय की सक्रियता में सहयोग करने लगती है।मन,मस्तिष्क और शरीर के सारे रोग-दोष दूर हो जाते हैं और मनुष्य एक प्रसन्न-पुरुषार्थी की तरह अपने लक्ष्य पथ पर अभय-भाव से बढ़ता चला जाता है।
  • इस विवेचना के प्रकाश में अपने आप को देखिए कि आप किस वर्ग में चल रहे हैं। आत्म-विश्वासी,आत्म-निषेधी अथवा आत्म-संशयी।यदि आप अपने आप को आत्म-विश्वासी पाते हैं-तो बड़ा शुभ है।अपने इस विश्वास को और विकसित कीजिए।नए-नए और ऊंचे काम हाथ में लीजिए और अपने जीवन की संपूर्ण सफलता की ओर बढ़ाते चले जाइए।
  • यदि आप अपने को आत्म-निषेधी अथवा आत्म-संशयी के वर्ग में पाते हैं,तो तुरंत ठहर जाइए और संपूर्ण शक्ति लगाकर अपनी विचारधारा को मोड देने का प्रयत्न करिए।आत्मा में परमात्मा का विश्वास करिए।अपने मन और मस्तिष्क को शुभ संकेत और संकल्प दीजिए। अपनी दिव्य पैतृकिता का सहारा लीजिए।परमपिता का स्मरण करिए और साहसपूर्वक श्रेय-पथ पर बढ़ चलिए। आत्मा आपका साथ देगी,परमात्मा आपकी सहायता कर करेगा।

6.विद्यार्थियों को सुझाव (Suggestions to Students):

  • ऊपर तीन प्रकार के व्यक्तियों में बाँटकर उनके गुणधर्म बताए गए हैं।अब एक अन्य दृष्टिकोण से चार प्रकार के पुरुष हैं उनके बारे में फुटकर रूप से बताते हैं।जो अपने काम भूलकर दूसरों की सेवा किया करते हैं वे संत और महापुरुष है,जो अपने और पराए दोनों के काम संपन्न करते रहते हैं वे पराक्रमी और सज्जन पुरुष हैं,जो अपना काम बनाने के लिए दूसरों के काम बिगाड़ा करते हैं,कष्ट देते रहते हैं और दूसरों को दुःख देकर खुश होते हैं वे कौन से पुरुष हैं सो उनके बारे में कुछ भी बताना संभव नहीं है।
  • उपर्युक्त प्रकार के पुरुषों में प्रथम दो संत और सज्जन पुरुषों को आत्म-विश्वासी व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है।बाकी स्वार्थी और अकारण दूसरों को कष्ट देते रहते हैं ऐसे लोग नास्तिक (आत्म-निषेधी) और संशयी व्यक्तियों की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
  • विद्यार्थियों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि संशयी और नास्तिक बनकर विद्या और ज्ञान ग्रहण नहीं किया जा सकता है।विद्या और ज्ञान ग्रहण करने के लिए  पुरुषार्थी और आत्म-विश्वासी व्यक्ति होना जरूरी है।
  • बात-बात में संशय करने वाला ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है।गीता में कहा है कि संशयात्मा विनश्यति अर्थात् संशय में पड़ा हुआ किसी निर्णय पर नहीं पहुंचने वाला अर्थात् अनिर्णय की स्थिति में रहने वाला देर-सवेर नष्ट हो जाता है।और भी गीता में कहा है कि श्रद्धावान,संशयरहित आस्था,जितेंद्रिय यानी इन्द्रियों को वश में रखने वाला और समर्पित भाव वाला व्यक्ति ही ज्ञान प्राप्त करता है।और ज्ञान को उपलब्ध हुआ कि सारी झंझटों से मुक्त हो जाता है क्योंकि जो भी परेशानियाँ आती हैं वे ज्ञान के न होने से ही आती है।ज्ञान से ही मुक्ति संभव है।
  • अतः विद्यार्थियों को ऐसा आचरण करने का अभ्यास करना चाहिए जिससे वह आत्म-विश्वासी और पुरुषार्थी बनें,श्रद्धावान बनें,इंद्रियों को वश में रखें तभी वे ज्ञान और विद्या ग्रहण कर सकते हैं अन्यथा केवल डिग्री हासिल करने से उद्धार नहीं हो सकता है।जैसे किसी पशु पर पुस्तकें लादने से उसका उद्धार नहीं हो सकता है।
  • यह विद्यार्थी काल ही सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसमें आप अपने व्यक्तित्त्व को गढ़ने का काम कर सकते हो।एक बार नींव तैयार होने के बाद व्यक्तित्व में बदलाव करना बड़ा मुश्किल कार्य है क्यों हमारे संस्कार और आदतों का निर्माण हो चुका होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यक्ति के प्रकारों को कैसे जानें के 7 मंत्र (7Spells of How to Know Types of Person),अपने व्यक्तित्व को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Personality?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए 6 मुख्य बिंदु

7.विद्यार्थी की पहचान (हास्य-व्यंग्य) (Student Identification) (Humour-Satire):

  • गणित में एक शोध लिखा है मैंने आपकी सूरत देखकर।उस शोध को व्यवस्थित किया है आपकी मुस्कुराहट देखकर।पर उस शोध को भूल गया आपके आचरण,व्यवहार और व्यक्तित्व को पहचान कर।

8.व्यक्ति के प्रकारों को कैसे जानें के 7 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 7Spells of How to Know Types of Person),अपने व्यक्तित्व को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Personality?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.पुरुष को कैसा होना चाहिए? (What should a man be like?):

उत्तर:जो वीरता और पुरुषार्थ से भरा हुआ है,जो आत्म-विश्वासी है,जिसका नाम लोग बड़े गौरव से लेते हैं,शत्रु भी जिसके गुणों की प्रशंसा करते हैं,वही पुरुष वास्तव में पुरुष है।

प्रश्न:2.संसार में सही मायने में मानव कौन है? (Who is truly human in the world?):

उत्तर:जो पुरुष ऊपर उठता है,आत्मोन्नति करता है वही संसार में सही मायने में मानव है।

प्रश्न:3.मानव प्रकृति पर टिप्पणी लिखो। (Write a comment on human nature):

उत्तरःमानव प्रकृति के संबंध में कभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि वह कब बदल जाए।यहां तक कि मरते समय जो मति हो वैसी ही गति बतलायी जाती है।पुराने दिनों का स्मरण करके भविष्य में विश्वास खो बैठने का अर्थ है मानव प्रकृति में निहित शिवत्व की भावना में अविश्वास करना।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यक्ति के प्रकारों को कैसे जानें के 7 मंत्र (7Spells of How to Know Types of Person),अपने व्यक्तित्व को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Personality?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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