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Significance of Prosperity and Plenty

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1.समृद्धि एवं संपन्नता की सार्थकता (Significance of Prosperity and Plenty),धन कमाने की सार्थकता (Significance of Earning Money):

  • समृद्धि एवं संपन्नता की सार्थकता (Significance of Prosperity and Plenty) क्या है? अर्थात समृद्धि या धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके में ही उसकी सार्थकता है साथ ही उसे खर्च यानी सदुपयोग में सार्थकता सम्मिलित है।यदि धन उचित तरीके से कमाया जाए और उसे विलासिता के साधनों या फिजूल में खर्च किया जाए या अनैतिक तरीके से कमाया जाए और अनैतिक तरीके से खर्च किया जाए तो दोनों तरीके ही गलत है।
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2.शेयर बाजार का अर्थशास्त्र (Economics of the Stock Market):

  • साफ-सुथरे अर्थशास्त्र का अर्थ है-तनावमुक्त समृद्धि। ऐसी समृद्धि में संपन्नता,जिसमें तनाव न हो और सहज विकास हो।समृद्धि के साथ विकास जुड़ा हुआ है।नदी में पानी आ जाए तो बहेगा।यही समृद्धि के साथ विकास का अर्थ है,परंतु नदी में पानी इतना ज्यादा ना हो कि वह अनियंत्रित होकर किनारे को तोड़कर बहने लगे और बाढ़ आ जाए।बाढ़ तबाही का मंजर खड़ा कर देती है और चारों ओर विनाश का भयावह दृश्य उपस्थित कर देती है।अनियंत्रित विकास के साथ ठीक यही संबंध है।आज समृद्धि या धन की बाढ़ से विकास की गति तो बहुगुणित हुई है,परंतु इससे तनाव में जो भी भारी वृद्धि हुई है।साफ-सुथरे धनार्जन में समृद्धि तो होती है,परंतु इसमें तनाव नहीं होता है और विकास की गति नियंत्रित होती है।
  • वर्तमान युग में धन का अधिकतम भाग शेर बाजार द्वारा नियंत्रित होता है।शेयर बाजार में धन का उतार-चढ़ाव पल-पल बना रहता है।इसमें पलभर में व्यक्ति करोड़पति से अरबपति हो सकता है और उसी पल में अरबपति से कंगालपति भी हो सकता है।वर्तमान समय में व्याप्त वैश्विक आर्थिक मंदी के शुरुआती दौर में अपने देश का शेयर बाजार पिछले वर्षों में कई बार न्यूनतम अंक को छू गया था।इसका तात्पर्य था हजारों-करोड़ों अरबों का घाटा होना।जो अरबपति थे,उन दिनों सड़क पर दर-दर भटकते भिखारी के समान डोलने लगे।इस सदमे को सह न सकने के कारण कई तो हार्ट अटैक से ऊपर (मृत्यु को प्राप्त) पहुंच गए।आर्थिक संपन्नता एवं विपन्नता के बीच एक सुनिश्चित फैसला होता है,एक दूरी होती है।किसी समय में अनगिनत प्रयास-प्रयत्न के बाद सालोसाल बाद कोई संपन्नता को स्पष्ट कर पाता था और वह संपन्नता स्थायी होती थी।उसमें तनाव नहीं होता था,समृद्धि एवं संपन्नता स्थायी होती थी।इसका प्रभाव सभी पर होता था।एक संपन्न व्यक्ति औरों के लिए देवता के समान होता था।वह सुख-दुःख में सभी को यथासंभव आर्थिक लाभ प्रदान करता था।ठीक इसी प्रकार समाज,राज्य एवं राष्ट्र की समृद्धि एवं संपन्नता से सर्वत्र खुशहाली,सुख एवं वैभव पसर जाता था।हालांकि समृद्धि के साथ इन गुणों का संबंध अभी भी है,परंतु इस संबंध की व्यापकता में एवं प्रभाव में कुछ व्यक्तिक्रम हुआ है।

3.धन विनिमय का साधन (Means of Money Exchange):

  • यह सच है कि अर्थ विनिमय की प्रक्रिया है।विनिमय अर्थात् सतत प्रवाहमान होना-एक स्थान से दूसरे स्थान एवं एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास स्थानांतरित होना।अर्थ रुकता नहीं है।अर्थशक्ति है।ज्ञान भी एक शक्ति है।ठीक उसी प्रकार आर्थिक शक्ति की अपनी अनोखी क्षमता एवं सामर्थ्य होती है।यह तीन शक्तियों सत्ता,धन एवं काम शक्ति में से एक है।देखा जाए तो वर्तमान समय में धन के सदुपयोग की अपेक्षा दुरुपयोग अधिक होता है।धन को खोजने वाले एवं रखने वाले अधिकतर उसके स्वामी नहीं दास होते हैं।विरले होते हैं,जो इसकी विकृति से दूर रह पाते हैं;इसके दुष्प्रभाव से बच पाते हैं।धनशक्ति के इतिहास को खोजा जाए तो प्रतीत होता है कि लंबे समय से यह आसुरी शक्तियों के हाथों रहने एवं इसका भीषण दुरुपयोग होने से इसी तरह मान लिया गया है।यही कारण है कि कई ऋषियों द्वारा स्त्री के साथ धन को भी त्यागने की बात कही गई है।कहीं-कहीं तो इसको प्रतिबंधित कर दरिद्रता एवं रिक्तता को ही एकमात्र मुक्ति का मार्ग घोषित कर दिया गया है,परंतु यह उचित नहीं है,मान्य नहीं है।
  • धन शक्ति है।संसार में इसकी महत्ता स्पष्ट है।जीने के लिए इसकी आवश्यकता तो है ही,अनेक श्रेष्ठ कार्यों में भी इसकी उपयोगिता सराहनीय है।यही कारण है कि भारतीय संस्कृति के चार पुरुषार्थों में धर्म के बाद इसे दूसरे स्थान पर रखा गया है।इसका यहाँ उपयुक्त स्थान है।धर्म अर्थात् नीति-नियम का विधान।सर्वप्रथम धर्म,नीति एवं मर्यादा का स्थान आवश्यक है।नीतिवान पुरुष ही धन की शक्ति का सार्थक सदुपयोग कर सकता है।प्राचीनकाल में धर्मपरायण राजा अर्थ एवं संपदा का उपयोग अपने निहित स्वार्थ में कम और लोक-कल्याण एवं राष्ट्र के उत्थान में अधिक किया करते थे।वे उसको परमार्थ में लगाते थे और यही कारण है कि शिखर पर पहुंची आर्थिक समृद्धि के बावजूद राजा,प्रजा एवं राज्य में शांति एवं खुशहाली बनी रहती थी।कहीं कोई तनाव नहीं था।समृद्धि के कारण अहंकार का प्रभाव नहीं था,परंतु जहां ऐसी स्थिति नहीं थी,वहाँ धनशक्ति का उद्धत एवं आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन का बोलबाला भी था;क्योंकि वहां पर धर्म से पहले अर्थ को प्रश्रय मिला था।नीति से पहले अर्थ अनर्थ का कारण बनता है।
  • वर्तमान समय में अर्थ का अनर्थ होने के कारण यही है कि इसे धर्म से पहले सर्वोपरि मान लिया गया है।धर्म अर्थ पर अंकुश लगाता है,उसका सार्थक एवं श्रेष्ठता के पथ पर सदुपयोग कराता है,अतः अर्थशक्ति एवं उसकी समृद्धि से सर्वोत्तम अमन एवं चहुँमुखी विकास के नूतन आयाम खुलते थे।आज यह नियंत्रण हट गया है।अतः आर्थिक शक्ति का दुरुपयोग होना स्वाभाविक है और उसके उपार्जन के लिए गलत हथकंडे का प्रयोग भी लाजिम हो गया है।वर्तमान समय में अर्थ की महत्ता सर्वाधिक है।समाज में इसे सर्वोपरि स्थान दिया गया है।अतः सभी का झुकाव इस ओर होना स्वाभाविक है।संसार में जो जितना संपदावान है,धनी है वह उतना ही प्रतिष्ठित,सम्मानित माना जाता है और समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए आज हर व्यक्ति धन प्राप्ति की होड़ में बेतहाशा दौड़ लगा रहा है।चाहे कुछ भी हो और कैसे भी हो,धन का अर्जन किया जाए।
  • धनोपार्जन का यह मानदंड एवं मापदंड अनेक विकृतियों को पैदा करता है।इसी विकृति की वजह से व्हाइट मनी के स्थान पर ब्लैक मनी में घोर इजाफा हुआ।व्हाइट मनी का अर्थ है ईमानदारी एवं मेहनत से अर्जित धन तथा ब्लैक मनी का तात्पर्य है अनैतिक एवं अवांछनीय ढंग से उपलब्ध धन।वर्तमान समृद्धि में ब्लैक मनी का बड़ा योगदान है और यदि यह सच है तो यह समृद्धि अवश्य ही अनेक विकृतियों को जन्म देगी।अनुचित एवं गलत राह से प्राप्त समृद्धि से कभी भी शांति एवं सुख की तलाश नहीं की जा सकती है।यह अविराम तनाव का कारण बनता है।इस माध्यम से उपलब्ध धन की रक्षा करने में अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती है।एक तो इसके टिकने में संदेह है और यह टिक भी जाता है तो अनगिनत संकटों को आमंत्रण देता है।इसकी विकृति के प्रभाव से अछूता रह पाना अति कठिन हो जाता है।ऐसी समृद्धि अपने साथ रोग,शोक एवं संकट को लेकर आती है।

4.आर्थिक समृद्धि का उचित उपयोग जरूरी (Proper use of economic prosperity is necessary):

  • आज समृद्धि बढ़ी है।साधन एवं सुविधाओं का अंबार लगा है।पहले की अपेक्षा नवधनाढ्यों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।समृद्धि के कारण हुए विकास से विश्व वैश्विक गांव (ग्लोबल विलेज) के रूप में एक आंगन में सिमट गया है।आज कुछ इंसान भूख के कारण नहीं,भरे पेट के कारण परेशान हैं और इसी वजह से अनेक असाध्य रोग हमारी सहभागिता निभा रहे हैं।जो चीज कभी जानी-सुनी नहीं गई थी,अनजान-अनभिज्ञ थी,आज उसी के साथ अनमेल सामंजस्य करना पड़ रहा है।आज संपन्नता है,भोग-विलास के सभी साधन विद्यमान हैं,परंतु रोग से आक्रांत एवं अशक्त मन एवं शरीर न तो उसे भोग पा रहा है और न लोभ के कारण छोड़ पा रहा है।एक अजीब-सा द्वन्द्व घर कर गया है।समृद्धि की विपुलता में उस पर हमारा नियंत्रण खो गया है और परिणामस्वरूप अनगिनत संकट एवं समस्याएँ खड़ी हो गई है।
  • वर्तमान विश्व में मंदी के संकट से भी बड़ा संकट है संपदा का अर्जन,नियंत्रण और सुनियोजन।समृद्धि यदि तनाव के साथ आए तो संकट है,परंतु समृद्धि यदि तनावमुक्त हो तो यह अर्थ उपार्जन का साफ-सुथरा तरीका बन जाती है।साफ-सुथरे अर्थशास्त्र के अनुसार धन शक्ति और उसे प्राप्त होने वाले साधनों और पदार्थों का न तो दुरुपयोग होना चाहिए और ना इसके प्रति राजसिक आसक्ति रखती चाहिए और न ही इसके सुखों को भोगने की वृत्ति का दास होना चाहिए।सामान्य रूप से ऐसा ही होता है कि धन पाते ही हम इससे इतने आसक्त हो जाते हैं कि उसमें हमारा प्राण बस जाता है और यही वजह है कि शेयर बाजार के सूचकांक बढ़ते ही हम फूले नहीं समाते और घटते ही कोपभवन में घुस जाते हैं।धन तो भगवान का होता है।इसे दास न माना जाए और न स्वयं को इसका स्वामी।हम तो धन के न्यासी या ट्रस्टी हैं।आज यह हमारे पास और बाद में अन्य किसी और के पास चला जा सकता है।अतः यह जब तक पास है,इसे धरोहर के रूप में रखकर इसका श्रेष्ठतम उपयोग करना चाहिए।
  • धन जिस निमित्त मिला है,उसे उसी निमित्त उपयोग करना चाहिए।पूरी तरह निस्वार्थ,पूरे ईमानदार एवं सच्चे ढंग से इसका उपयोग करना चाहिए।धन का पूरा लेखा-जोखा रखना इसकी प्रामाणिकता है,अतः अच्छा ट्रस्टी बनना चाहिए।ध्यान रहे कि जो धन पास में है,वह हमारा नहीं है।पूँजी कभी व्यक्तिगत नहीं होती है,वह समाज की होती है।इसी रूप में इसे रखकर इसे स्वार्थ में न लगाकर पूरी ईमानदारी के साथ श्रेष्ठ कार्यों में नियोजित करना चाहिए।अर्थशास्त्र के प्रणेता आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त के सहारे अखंड भारत के सपने को महाभारत काल के बाद फिर से साकार किया था।उन्होंने भारत की समृद्धि को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाया था।चंद्रगुप्त का काल भारत के स्वर्णयुग के नाम से जाना जाता है।वह सही मायने में साफ-सुथरा अर्थवाद का युग था।समृद्धि तनावमुक्त थी।वैभव एवं ऐश्वर्य के बीच चाणक्य अपनी झोपड़ी में मिट्टी का दिया जलाकर अपना गुजारा करते थे।उन्होंने धनशक्ति का उपयोग निजी स्वार्थ के लिए कभी नहीं किया।
  • तनावमुक्त समृद्धि का सुंदर नमूना टोडरमल ने अकबर के समय में पेश किया था।आज ऐसे विकास की फिर से आवश्यकता है।समृद्धि आए,परंतु तनाव न हो,परेशानी ना हो,संकट ना हो।विकास हो,लेकिन चहुँमुखी हो,आंतरिक विकास भी जुड़ा हो।ऐसा तभी संभव है,जब अर्थोपार्जन का उद्देश्य श्रेष्ठ एवं अत्युत्तम उपयोग हो।इससे निजी स्वार्थ में नहीं,मानवता के कल्याण के लिए नियोजित किया जाए।स्वयं को ट्रस्टी मानकर इसका उपयोग किया जाए।धन की विपुलता या अभाव दोनों में आंतरिक प्रसन्नता को ना खोया जाए।यही साफ-सुथरा अर्थवाद है,जिसकी अति आवश्यकता है।

5.वर्तमान समय में धन को अधिक महत्त्व (Money is more important in the present time):

  • आधुनिक युग में अर्थ को महत्त्व दिया जाता है,क्योंकि अधिकांश व्यक्ति सुख-सुविधाओं और विलासिता की वस्तुएं जुटाना चाहते हैं और उनका उपयोग करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते हैं।विकसित देशों विशेषकर अमेरिका जैसे देशों और उनमें रहने वाले लोगों की थ्योरी है कि सुख-शांति और खुशहाल जिंदगी पूंजी और धन से प्राप्त की जा सकती है।लेकिन अमेरिका जैसे विकसित देशों में साक्षरता बढ़ने तथा बेतहाशा धन कमाने के बावजूद बच्चे अपराधी बन रहे हैं और लोग असंतुष्ट नजर आते हैं।
  • धन कमाने और मालामाल होने के लिए अमेरिका दूसरे देशों पर टैरिफ बढ़ा देते हैं।धन कमाने का यह फंडा उसके लिए केवल धनार्जन का माध्यम ही नहीं है बल्कि अमेरिकी नीति का जो समर्थक नहीं है उसे टैरिफ लगाकर हड़काया और धमकाया जाता है।धन की आवक का इसे कमाल समझा जाए या इसकी विकृति कि यह समझदार और अच्छे भले लोगों की बुद्धि को चंचल कर देता है।टैरिफ बढ़ाना,फीस वृद्धि करना,वीजा की फीस बढ़ाने का यह तौर-तरीका मक्कार,लंपट और बदमाश देशों की अकड़ ठीक करने के लिए तो ठीक है परंतु भारत जैसे देश पर उपर्युक्त देशों जैसा ही बर्ताव करना ठेठ दादागिरी और अर्थशास्त्र का चरमोत्कर्ष है।
  • कहने को अमेरिका में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है,परंतु यह रवैया लोकतांत्रिक और सुसभ्य व सुसंस्कृत देश का तो कतई नहीं हो सकता है।
  • भारत के लोगों,पढ़े-लिखे युवाओं और प्रोफेशनल्स को यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें धन चाहिए या राष्ट्रभक्ति।भारत के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाकर अमेरिका के प्रति ऐसी दीवानगी किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कही जा सकती है।अनेक विद्वान और सज्जन बार-बार यह राग अलापते हैं और सचेत करते हैं कि भारत को प्रतिभा पलायन को रोकना चाहिए परंतु न तो भारत सरकार और विभिन्न उद्योगपतियों द्वारा और न ही प्रतिभाओं द्वारा ऐसा सार्थक प्रयास किया जा रहा है।
    ठोकर लगने के बाद भी विदेश (अमेरिका) जाने वाली प्रतिभाएं और भारत सरकार तथा उद्योगपति इस तरफ ध्यान नहीं देंगे तो अमेरिका जैसे देशों के सामने वैसा ही नाचना पड़ेगा जैसा वह नचाना चाहेगा।आखिर सच्ची समृद्धि,संपत्ति और संपदा प्रतिभाएं ही तो होती है।जिस प्रकार का दृष्टिकोण प्रतिभाओं में होता है वैसा ही देश का चित्र और चरित्र बनता है और विश्व के अन्य देशों में भी वैसी छवि बनती है।
  • युवा प्रतिभाएं स्वार्थ में अंधे न बनें,वे यह सोचें कि धन के अलावा जीवन में और कुछ भी है।पारिवारिक सौहार्द एवं संस्कार,राष्ट्रीय-सामाजिक सरोकार,स्वयं की आत्मिक संतुष्टि आदि बातें भी जिंदगी की अहम बातें हैं।धन कुछ है,बहुत कुछ है पर उसे सब कुछ नहीं समझा जाना चाहिए।देखा यह जाता है कि आज के दौर की युवा प्रतिभाएं धन के पीछे तेजी से भाग रही हैं,फिर भले इसके लिए उन्हें स्वाभिमान,स्वास्थ्य एवं मानसिक सुकून से क्यों न वंचित रहना पड़े।
  • नौकरी वहीं जहाँ धन हो,फिर यह देश में मिले या विदेश में ज्यादातर युवा इसी सूत्र में अपने जीवन को गूँथे हुए हैं।अधिक से अधिक धन की प्राप्ति उनके जिंदगी का मकसद बना हुआ है।इसके लिए वे कुछ भी करने के लिए उतारू हैं।धन की ख्वाहिश में ज्यादातर प्रतिभाएं विदेशों में पलायन कर जाती है।अमेरिका उनके लिए स्वर्ग लोक है।युवाओं का सपना होता है कि जिस किसी तरह से अमेरिका का ग्रीन कार्ड हासिल करें और हरे रंग वाले डालरों की रिमझिम बरसात में नहाए,भारत में तकनीकी विकास और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा पैर पसारने के बावजूद युवा प्रतिभाओं के मन में अमेरिका की आभा कम नहीं हुई है।अमेरिका की तरफ रुझान का कारण है उच्च तकनीकी विकास,सॉफ्टवेयर सर्विस और अत्याधुनिक साधनों से शिक्षा उपलब्ध करना तथा डॉलर की विश्व मान्यता।डॉलर सोने और चांदी की तरह युवाओं को लुभाती है।
  • धन कमाना बुरी बात नहीं है परंतु उसके कमाने के तरीके साफ-सुथरे और नैतिक होने चाहिए।धन कमाने के लिए अति नहीं करनी चाहिए अर्थात् धन कमाने के पीछे पागल नहीं होना चाहिए।साधुओं की तरह गेरुए  वस्त्र धारण करके न तो निष्क्रियता की स्थिति में चले जाना चाहिए और न ही धन कमाने के लिए पागल हो जाए,धन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में समृद्धि एवं संपन्नता की सार्थकता (Significance of Prosperity and Plenty),धन कमाने की सार्थकता (Significance of Earning Money) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता

6.धन हड़पने की तरकीब (हास्य-व्यंग्य) (Money Grabbing Tricks) (Humour-Satire):

  • जज ने छात्र से कहा:क्या तुम कुछ दिन पहले भी मोबाइल फोन रिचार्ज कराके दुकानदार को बिना ₹500 दिए ही रफू चक्कर हो गए थे?
  • छात्र ने कहा:जज साहब इस टेक्नोलॉजी के युग में जबकि बिना डाटा के रहा ही नहीं जाता,वहां रिचार्ज किया हुआ फोन का डाटा कितने दिन तक चलता,इसके बिना तो अब रहा ही नहीं जाता,इसलिए ऐसा करना पड़ता है।

7.समृद्धि एवं संपन्नता की सार्थकता (Frequently Asked Questions Related to Significance of Prosperity and Plenty),धन कमाने की सार्थकता (Significance of Earning Money) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.साफ-सुथरे तरीके से कमाने का क्या अर्थ है? (What does it mean to earn neatly?):

उत्तर:मेहनत,ईमानदारी से धन कमाना और आवश्यकता तथा सुख-सुविधाओं की पूर्ति होने पर बचे हुए धन को विलासिता या फिजूल में खर्च न करके जरूरतमंदों की सहायता करना।

प्रश्न:2.धन कैसे सुरक्षित रहता है? (How is money safe?):

उत्तर:धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है,प्रगल्भता (साहस,योग्यता,कीर्ति,वेग,दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है,चतुराई से फलता-फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है।

प्रश्न:3.धर्म का पालन किससे होता है? (What is the practice of religion?):

उत्तर:मनुष्य में सभी गुण हों,पर धन ना हो तो धर्माचरण (कर्त्तव्यों का पालन) नहीं हो सकता।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा समृद्धि एवं संपन्नता की सार्थकता (Significance of Prosperity and Plenty),धन कमाने की सार्थकता (Significance of Earning Money) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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