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Normal Student VS Intelligent Student

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1.सामान्य छात्र बनाम बुद्धिमान छात्र (Normal Student VS Intelligent Student),सामान्य बनाम बुद्धिमान छात्र की पहचान (Identification of Normal VS Intelligent Student):

  • सामान्य छात्र बनाम बुद्धिमान छात्र (Normal Student VS Intelligent Student) में किस आधार पर फर्क करें? ऐसे कौन-से गुण हैं या ऐसे कौन-से कर्म हैं जो बुद्धिमान छात्र को सामान्य छात्र से अलग करते हैं।आईए जानते हैं।
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2.नकारात्मक छात्र की कार्यप्रणाली (Negative Student Methodology):

  • सामान्य छात्र की दृष्टि वर्तमान समय पर टिकी रहती है।सामान्य छात्र अपने आप को देखता है और अपने भोग-विलास (सुख-सुविधाओं एवं विलासिता) में जुटा रहता है और उसमें डूबा रहता है।उसे आगत की संभावनाओं से अधिक सरोकार नहीं होता।वर्तमान के सुख का क्षण उसके लिए पर्याप्त होता है,परंतु बुद्धिमान छात्र-छात्रा अपने वर्तमान को संघर्ष में झोंक देता है,विद्या अर्जित करने में जुटा रहता है,कष्ट-कठिनाइयों को झेलने में अपने आप को सक्षम बनाता है;क्योंकि उसे भविष्य (करियर एवं जीवन निर्माण) की संभावनाएं एवं चुनौतियां नजर आती हैं,जिनका सामना संघर्ष के बगैर संभव नहीं है।संभावनाओं को साकार करने तथा चुनौती को स्वीकार करने के लिए वर्तमान को राग-रंग में नहीं डुबोया जा सकता,वरन प्रतिपल सतर्क,सावधान एवं सजग होकर उसका सामना करने के लिए पूर्व तैयारी में जुटना पड़ता है।
  • सामान्य छात्र-छात्रा और बुद्धिमान छात्र-छात्रा के बीच यही विभाजन एवं विभेदक रेखा है,जो दोनों के विचारों में परिलक्षित होती है।छात्र-छात्रा की दृष्टि वर्तमान के भोग भोगने (खाओ-पीओ और ऐश करो) पर टिकी रहती है।उसे अपना सुखमय पल स्वर्ग से भी अधिक भव्य जान पड़ता है और वह सोचता है कि यह समय कभी खत्म नहीं होगा।उसे यह सुख चिरस्थायी जान पड़ता है।उसे नहीं लगता कि सुख के अलावा सृष्टि में और कुछ है,भविष्य का निर्माण करना है,विद्या अर्जित करनी है।वह बस,सुख की इस रंगीन स्वप्निल छाँह तले ऐसा पसर जाता है,जैसे जीवन सुख का ही पर्याय हो,परंतु तरंगों की भाँति सुख का पल बुलबुले के समान फट जाता है-सुख का अवसान जल्दी हुआ जान पड़ता है।
  • इसके पश्चात उसे अथाह एवं असह्य दुःख आकर घेर लेता है और छात्र-छात्रा दुःख की इस अष्टभुजी बाँहों में बँधा छटपटाता,कसमसाता रहता है।इसकी चुभन की पीड़ा उसे सालती है।दर्द से वह चीत्कार करता है।अपने ही स्वजन-संबंधी उसे पराए लगते हैं।वह अपनी पीड़ा का कारण दूसरों पर मढ़ता है और मानता है कि वर्तमान की दुर्दशा अपने कर्मों का परिणाम नहीं है,बल्कि वह पीड़ा उसे औरों ने दी है।वह बैठे-बैठे नकारात्मक विचारों से घिरा रहता है तथा दूसरों को कोसता रहता है।उसका वर्तमान क्षण किसी नारकीय यातना से कमतर प्रतीत नहीं होता है;क्योंकि उसकी दृष्टि वर्तमान के सुख-दुःख में अत्यधिक घुली-मिली रहती है।कर्म के सिद्धांत को समझ नहीं पाता है।
  • छात्र-छात्रा या तो सुख में भीगा रहता है या फिर दुःख में चिपका रहता है।वह अति के दो छोरों पर गतिमान रहता है-या तो सुख की कल्पना में जीता है या फिर भीष्ण दुःख को स्वतः आमंत्रित कर उसकी असह्य तपन से भागता-फिरता रहता है।वह कभी भी इन दोनों को संतुलित करने का प्रयास नहीं कर पाता है।उसका वर्तमान जीवन दुःख या सुख में बुरी तरह से घुला-मिला रहता है।वह इन चीजों से इतना अधिक भावनात्मक संबंध स्थापित कर लेता है कि उनसे उबरना या निकलना मुश्किल होता है।

3.बुद्धिमान छात्र-छात्रा की कार्य प्रणाली (Intelligent Student Methodology):

  • मनोविज्ञानी कहते हैं कि सुख और दुःख सिक्के के दो पहलू हैं।एक-दूसरे के पूरक हैं।एक के अभाव में भी दूसरा रहेगा ही।अतः छात्र-छात्रा अनचाहे में भी इनसे चिपका रहता है।उसका वर्तमान सुख-दुःख के इन हिचकोलों से भरा रहता है और सदा उसे इनका दबाव झेलना पड़ता है।बुद्धिमान व्यक्ति इन दोनों के बीच के कारणों की खोज करता है कि आखिर क्यों ये सब आते हैं और किन कारणों से छात्र-छात्रा इन से घिरता है? वह कारणों को तलाशता है और उनका उचित प्रबंधन एवं समायोजन करता है।इन सब चीजों के लिए उसे वर्तमान समय में योजना बनानी पड़ती है।
  • बुद्धिमान छात्र-छात्रा जानता है कि जीवन महज एक संयोग नहीं है और जो दीख रहा है,वही सच्चाई नहीं है,बल्कि जीवन कर्म के सिद्धांत से संचालित है और वर्तमान के झलकते-झिलमिलाते पल स्थायी नहीं है।वर्तमान पल कुछ ही क्षणों में अतीत के पन्नों में सिमट जाता है।ऐसे में आगे का पल,आगत की संभावनाएँ वर्तमान में सरक आती हैं।यदि इन सम्भावनाओं पर ठीक से विचार कर लिया गया होता तो वर्तमान को बड़े ही संजीदगी एवं सजग होकर जिया जाता।बुद्धिमान छात्र-छात्रा इन संभावनाओं को साकार करने के लिए वर्तमान में नई-नई योजनाएं गढ़ता है।
  • उसकी योजनाएं अपनी सामर्थ्य एवं शक्ति के अनुरूप होती हैं।अतः उसका चल रहा निजी क्षण अत्यंत संघर्षपूर्ण होता है।आगत की अच्छी संभावनाओं को तलाशने,तराशने के लिए जो समय मिलता है,वह उसे व्यर्थ नहीं गँवाता।वह उसका भरपूर सदुपयोग करता है। यह कार्य अत्यन्त चुनौतीपूर्ण होता है;क्योंकि जिससे वह अनभिज्ञ एवं अनजान है,उसके लिए अपने समय को झोंक देता है।उसे पता नहीं,सफलता मिलेगी या असफलता हाथ लगेगी,परंतु फिर भी वह इसी सफलता-असफलता के बीच संतुलन करके अपने आगत की तैयारी में जुटा रहता है-न तो वह दुःख में चिल्लाता है और न सुख में इतराता है।वह अपने निर्दिष्ट लक्ष्य की ओर बढ़ता रहता है।इसी वजह से उसका निजी समय कांटों से भरा रहता है और उसी में वह आनंद उठाता है।
  • जो चुनौती से भागते हैं,संघर्षों से डरते हैं,कठिनाइयों से घबराते हैं,वे अपने जीवन में सार्थक एवं संतोषजनक उपलब्धियों से वंचित रहते हैं।सामान्य छात्र-छात्रा इसी श्रेणी में आता है।अपने वर्तमान जीवन को ही सब कुछ मानकर संतोष कर लेता है।उसका यह संतोष आगे चलकर विषाद बन जाता है;क्योंकि वर्तमान ही सब कुछ नहीं होता।हां,यह तभी श्रेयस्कर है,जब यह आने वाली चुनौतियों के लिए रणभूमि बन जाए।बुद्धिमान छात्र-छात्रा अपने समय की रणभूमि,संग्राम-क्षेत्र बना लेता है और यही से वह आने वाली कठिनाइयों से सूझ-बूझ पूर्वक जूझता है।यही है सामान्य एवं बुद्धिमानों में अंतर।एक अपने समय में ठहर जाता है और दूसरा जूझता हुआ आगे बढ़ता है।
  • हमें सदा जुझारू मानसिकता पैदा करनी चाहिए।जूझते हुए मर जाना किसी कायर के जीवन की हजार मौतों से भी बढ़कर होता है।यही शहीदों की शहादत की जुबानी है,जो अपने राष्ट्र और मानवता के लिए पल भर में कुर्बानी देकर अमर हो गए।हम तो हर पल मरते है जीने की चाहत के लिए।जीना होता नहीं,सार्थक जी नहीं पाते,पर मरते हजारों बार हैं।एक बार मरना,लेकिन किसी उच्चतम उद्देश्य के लिए,यह शूरवीरों का कार्य है।आओ विचारवानों!देश के युवाओं!!कर्णधारों!!!सद्बुद्धि का उपयोग मानवता धारण करने के लिए करें,मानवता पर आ पड़ी संकटों की इस घड़ी में अपने स्वार्थ एवं अहंता को छोड़कर कुछ कर दिखाने की जरूरत है।अपने सुख-दुःख से ऊपर उठकर इंसानियत को बचाने की इस महाचुनौती को स्वीकार करें,बढ़ चलें त्याग के पथ पर।मानवता नहीं बचेगी तो हम कहां जिएंगे।इस चुनौती को स्वीकारना ही युगधर्म है,जिससे हमें वंचित नहीं होना है।इसे स्वीकारना ही बुद्धिमत्ता है।

4.छात्र-छात्राएं सद्बुद्धि धारण करें (Students should imbibe good sense):

  • मनुष्य जिस विभूति के कारण अन्य शक्तियों में श्रेष्ठ है, वह विभूति है बुद्धि।परमात्मा ने मनुष्य को यह विभूति वरदानस्वरूप दी है,अन्यथा शारीरिक दृष्टि से तो वह अन्य प्राणियों की तुलना में इतना क्षुद्र बैठता है कि उनके सामने कहीं टिक नहीं सकता।एक बुद्धि ही है,जिसके बल पर वह हिंस्र से हिंस्र पशुओं पर भी नियंत्रण कर लेता है,उन्हें अपने वशवर्ती बना लेता है। प्रकृति पर नियंत्रण पाने,मौसम को प्रभावित करने से लेकर जीवन में आने वाली जटिल गुत्थियों को सुलझाने तक जिस आधार पर वह सफल हो सकता है,वह केवल बुद्धि ही है।बुद्धि को यदि मनुष्य का सर्वस्व कहा जाए तो भी कोई अत्युक्ति नहीं होगी।संसार के मनीषियों और सफल व्यक्तियों ने अपनी सफलता के मूल में बुद्धि को ही आधार बताया है।अतः परमात्मा से यही प्रार्थना करें कि भले ही मेरा सब कुछ चला जाए,पर सद्बुद्धि बनी रहे।
  • बुद्धि तो सहज रूप में सभी मनुष्यों को प्राप्त होती है-किसी को कम,किसी को ज्यादा।बुद्धि प्राप्त होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है सद्बुद्धि का प्राप्त होना।बुद्धि यदि भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बन जाए तो वह व्यक्ति का स्वयं का पतन तो करती ही है,उसके क्रियाकलाप समाज को भी क्षति पहुंचाते हैं।यदि मनुष्य सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ-साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है।गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि बुद्धिमानों की बुद्धि मैं ही हूँ।
    सद्बुद्धि के जागृत और प्रखर होने पर ही छात्र-छात्रा को उसका सही लाभ मिलता है।सद्बुद्धि का तात्पर्य है विवेकयुक्त बुद्धिमत्ता,सात्विक बुद्धि।यह सद्बुद्धि ही शुभ परिणाम प्रस्तुत करती है।यह सद्बुद्धि ही संसार के समस्त महान कार्यों में प्रकाशित है।यही सबसे बड़ी सामर्थ्य है।
  • सामान्यतः मस्तिष्क की तीक्ष्णता,चतुरता,सूझबूझ,स्मरण क्षमता,प्रत्युत्पन्नमति को बुद्धिमत्ता समझा जाता है,पर जिस बुद्धि की यहां चर्चा की जा रही है,वह इस बुद्धिमत्ता से सर्वथा भिन्न है। दूरदर्शी विवेकशीलता को प्रज्ञा कहा जाता है।यही आध्यात्मिक बुद्धिमता है।बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ और शुद्ध रूप प्रज्ञा शक्ति के रूप में होता है।साधक को उस उपासना का प्रत्यक्ष उपहार यही मिलता है कि वह अपनी चिंतन-चेतना को निकृष्ट प्रयोजनों से विरत करके उस तरह सोचना प्रारंभ कर देता है,जिससे जीवन चर्चा,अध्ययन करने का सारा ढांचा ही बदल जाता है और मात्र लक्ष्य रूपी गतिविधियों को क्रियान्वित करने की सम्भावना ही शेष रह जाती है।
  • किसी छात्र-छात्रा (व्यक्ति) को जब यह उपलब्धि या सिद्धि प्राप्त हो जाती है तो वह सद्बुद्धि से प्रेरित सुव्यवस्थित क्रिया-पद्धति और उत्कृष्ट रीति-नीति को अपनाता है तथा उसके परिणामस्वरूप निश्चित रूप से सर्वतोमुखी प्रगति की मार्ग को बढ़ता चलता है।जिन ऐश्वर्य-साधनों को प्राप्त करने के लिए लोग लालायित रहते हैं,वे प्रबल पुरुषार्थ के बल पर ही पाए जाते हैं।यह तथ्य सद्बुद्धि के प्राप्त होने पर ही समझ में आता है और तब यह आस्था सुदृढ़ बनती है कि देवता किसी को छप्पर फाड़ कर धन की वर्षा नहीं करते।वे केवल ऐसी सत्प्रेरणा उल्लसित करते हैं,जिससे चिंतन और कर्तृत्व,दोनों ही क्षेत्र सद्ज्ञान तथा सत्कर्म से ओतप्रोत होते चलते हैं।प्रबल पुरुषार्थ से तात्पर्य उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने से है,अन्यथा दुर्बुर्द्धि-प्रेरित पुरुषार्थ दुष्ट-दुर्गुणी भी बना सकता है।जहाँ सद्बुद्धि की प्रेरणा से सत्कर्मपरायणता का पुरुषार्थ जाग्रत होगा,वहाँ किसी वस्तु का अभाव नहीं रहेगा।

5.सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें (Pray for Wisdom):

  • ग्वाला जिस प्रकार लाठी लेकर पशुओं की रक्षा करता है,उस तरह देवता किसी की रक्षा नहीं करते।वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं,उसकी बुद्धि को सन्मार्ग पर नियोजित कर देते हैं।सद्बुद्धि का निवास शिरोभाग मस्तिष्क बताया गया है।देव शक्तियाँ इसी स्थान पर निवास करती हैं।मस्तिष्क के इस केंद्र को ब्रह्मरंध्र (आज्ञा चक्र) बताया गया है।सैकड़ों-हजारों दिव्य शक्तियाँ इस केन्द्र पर विद्यमान रहती हैं,इसलिए इसे शतदल कमल और सहस्रार कमल भी कहा गया है।सरस्वती इन दिव्य शक्तियों को स्पंदित,स्फुरित और जाग्रत करती है।सूर्य के समान तेजस्वी सरस्वती का स्थान सिर है।
  • सद्बुद्धि की प्रेरणा से जब विद्यार्थी आत्मशोधन करता है तो उसके भीतर दुर्गुणों का निराकरण होने लगता है और तब उसके भीतर निहित आत्मचेतना की क्षमताएँ सहज ही प्रकट होने तथा प्रखर बनने लगती हैं।अंगारे पर चढ़ी हुई राख की परत जब हटा दी जाती है तो उसकी धूमिल पड़ी हुई अग्नि पुनः प्रदीप्त होने लगती है।उसी प्रकार आत्मचेतना पर से अज्ञान,दुर्गुणों का निवारण होने के उपरांत उसका बर्ताव भी सहज ही प्रकट होने और दृष्टिगोचर होने लगता है।यही वह स्थिति है,जिससे कई प्रकार की दिव्य विशेषताओं का आभास मिलता है।
  • अंतः चेतना स्वभावतः रहस्यमय सिद्धियों का भंडार है। इस भंडार को जब प्राप्त कर लिया जाता है तो अंतःक्षेत्र में स्वर्ग और मुक्ति जैसा आनंद प्राप्त होता है तथा साधक अपने साथ-साथ अनेकों को धन्य बनाता है।सरस्वती वेद जननी है,पापों का नाश करने वाली है और उपासक की अभीप्सित कामनाएं पूर्ण करने वाली है।सरस्वती से बढ़कर पवित्र करने वाली और कोई शक्ति न इस लोक में है,ना स्वर्ग लोक में।वह नरकरूपी समुद्र में गिरे हुए हाथ का सहारा देकर उबारती है।
  • अज्ञान,दुर्गुण ही वे दोष हैं,जो विद्यार्थियों को मलिन किए रहते हैं।दोष-दुर्गुणों की दलदल में फंसकर साधक अपवित्र बनता है।सरस्वती उपासना साधक में ऐसी निर्मल सद्बुद्धि जाग्रत करती है,जिसके द्वारा उसकी दोष-दुर्गुणों से विरति हो जाती है।दोष-दुर्गुणों से उत्पन्न होने वाले कष्ट-क्लेश ही जीवन को नारकीय बनाते हैं। सरस्वती उपासना जब अंतःक्षेत्र को प्रभावित करने लगती है तो दोष-दुर्गुणों से स्वभावतः ही अरुचि होने वाले कष्ट-क्लेशों से,नारकीय यंत्रणाओं से भी मुक्ति मिल जाती है।शास्त्रकारों ने इस तथ्य को नर्करूपी समुद्र में गिरे हुए को हाथ का सहारा देकर उबारने वाली शक्ति के रूप में सरस्वती का निरूपण किया है।
  • प्रार्थना के रूप में सरस्वती सर्वश्रेष्ठ स्तोत्र है,जिसमें जीवन की सर्वश्रेष्ठ विभूति परमात्मा से मांगी गई है।इसका अर्थ-चिंतन और अर्थ-संकल्प ही साधक की आत्मिक प्रगति का पथ-प्रदर्शन करता है,किंतु इसमें मंत्र विज्ञान की जो विशेषताएं निहित हैं,वे इतनी अपूर्ण हैं कि उनके द्वारा साधक की मनोभूमि में एक चुंबकीय आकर्षण उत्पन्न हो जाता है,जो उपासक (विद्यार्थी) के भौतिक और आंतरिक जीवन को सुसंपन्न तथा परिष्कृत बनाता है।
  • विद्यार्थी को नियमित रूप से प्रातः काल शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध अन्तःकरण से,एकाग्रचित्त होकर सरस्वती स्तोत्र का जप करना चाहिए तथा परमात्मा से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि उसकी बुद्धि प्रांजल,सात्त्विक बने।साथ ही हमेशा मस्तिष्क से पॉजिटिव सजेशन देने का अभ्यास करना चाहिए।अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने,अपने आपमें सुधार का प्रयत्न करते रहना चाहिए।चालाकी वाली बुद्धि प्राप्त करने की कोशिश ना करें।चालाकी वाली बुद्धि तामसिक होती है जो हमें दुर्गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।जब हम गलत करते हैं तो तामसिक बुद्धि हमें यह सजेशन देती है कि सभी विद्यार्थी,लोग भी ऐसा ही करते हैं।तामसिक बुद्धि विद्यार्थियों को अनैतिक कार्य,अधार्मिक कार्य,नकल करने,परीक्षा में नकल करने,अनैतिक तरीके से उत्तीर्ण करने,चोरी,डकैती,अपहरण करने,विद्यार्थी काल में ही कामुक प्रवृत्ति अपनाने आदि कार्यों की ओर प्रेरित करती है।
  • अतः विद्यार्थियों को हमेशा सतर्क,सावधान और जागरूक रहना चाहिए क्योंकि तनिक-सा प्रलोभन ही हमारी तपस्या,उपासना का पतन कर देता है।तपस्या,उपासना वर्षों की साधना को पलभर में तनिक सा लोभ,तामसिक बुद्धि नष्ट कर देती है।विद्यार्थी काल तप,साधना और विद्या अर्जन करने का समय है।वर्तमान काल में भौतिकता,तकनीकी का बोलबाला है अतः विद्यार्थी के विकास के अनेक साधन उपलब्ध हैं तो वे ही पतन के मार्ग में गिरा सकते हैं,अतः सचेत रहें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सामान्य छात्र बनाम बुद्धिमान छात्र (Normal Student VS Intelligent Student),सामान्य बनाम बुद्धिमान छात्र की पहचान (Identification of Normal VS Intelligent Student) के बारे में बताया गया है।

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6.बुद्धिमान छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Intelligent Student) (Humour-Satire):

  • एक छात्र को गणित के सवाल हल नहीं हो रहा थे,अतः पेन और नोटबुक को एक तरफ रखकर सरस्वती स्तोत्र का जप करने लगा।हे सरस्वती माता मेरा सवाल हल कर दे।
  • गणित शिक्षक:क्या कर रहे हो,गणित सवाल को हल क्यों नहीं कर रहे हो?
  • छात्र:सर,सरस्वती माता से प्रार्थना कर रहा हूं कि वह सवाल हल कर दे।
  • गणित शिक्षक:सरस्वती माता से तो प्रार्थना करो,पर अपने हाथ पैर तो हिलाओ,बिना कर्म किए सवाल अपने आप हल नहीं होगा।

7.सामान्य छात्र बनाम बुद्धिमान छात्र (Frequently Asked Questions Related to Normal Student VS Intelligent Student),सामान्य बनाम बुद्धिमान छात्र की पहचान (Identification of Normal VS Intelligent Student) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्न:1.सीखने की क्या प्रक्रिया है? (What is the process of learning?):

उत्तर:बुद्धिमान विवेक से,साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं।

प्रश्न:2.मूर्ख और बुद्धिमान में क्या फर्क है? (What’s the difference between a fool and a wise man?):

उत्तर:मूर्ख लोग छोटा-सा कार्य आरंभ करते हैं और उसी में अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं,बुद्धिमान लोग बड़े से बड़े कार्य करते हैं और निश्चिन्त बने रहते हैं।अर्थात् सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न:3.बुद्धिमान प्रतिष्ठा कैसे प्राप्त करता है? (How does wise man gain a reputation?):

उत्तर:बुद्धिमान के पास थोड़ा सा धन हो तो वह भी बढ़ता रहता है वह दक्षता पूर्वक काम करते हुए संयम के द्वारा सर्वत्र प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सामान्य छात्र बनाम बुद्धिमान छात्र (Normal Student VS Intelligent Student),सामान्य बनाम बुद्धिमान छात्र की पहचान (Identification of Normal VS Intelligent Student) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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