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How to Have Clean Ways to Make Money?

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1.धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके कैसे हों? (How to Have Clean Ways to Make Money?),धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे हों (Ways to Earn Money Should be Clean):

  • धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके कैसे हों? (How to Have Clean Ways to Make Money?) ताकि जीवन सुख-शांति और आनंद के साथ गुजारें।हमारे ऋषियों ने कहा है और धर्मशास्त्रों में भी वर्णित है कि धर्मपूर्वक कमाए गए धन से ही बरकत होती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है,असंतोष नहीं रहता।
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2.पाश्चात्य देशों में धन के अजीब फंडे (Strange Fande of Money in Western Countries):

  • यावज्जवेत सुखं जीवेत,ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
    भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमन कुतः।।
  • अर्थात जब तक जीना सुख से जीना (यानी खूब ऐश करो,कोई कामनाएँ बाकी मत छोड़ो) और भले ही कर्जा करना पड़े पर घी पीना।क्योंकि मरने पर शरीर भस्म हो जाता है फिर पुनः आगमन कहां होता है।यह चार्वाक दर्शन है जिसे अपने देश में ही नहीं,अमेरिका के मध्यम वर्ग ने काफी अंगीकार किया।यह मान्यता आज सर्वाधिक रूप में चरितार्थ हो रही है और अधिकांश स्त्री-पुरुष अधिक से अधिक भोगों को भोग लेना चाहते हैं।भोगों को भोगने के लिए धन की आवश्यकता है अतः आज के लोग धन के पीछे पागल बने हुए हैं।
  • इससे प्रभावित साहित्य ने उधार लेकर घी पीने की सीख देने वाला एक नया पंथ प्रारंभ किया।इस साहित्य ने अमेरिका के मध्यम वर्ग में अंधाधुंध एवं बेशुमार कर्ज लेने की मानसिकता तैयार की।ये रचनाकार इस बात पर बल देते हैं कि कभी भी पैसे के लिए काम मत करो,ऐसी परिस्थिति रचो कि पैसा तुम्हारे लिए काम करे-डोंट वर्क फॉर मनी,लेट मनी वर्क फॉर यू।अस्सी और नब्बे के दशक में बहुप्रचलित एवं चर्चित इस साहित्य ने अपनी उलटी दिशा से विश्व के बेहद शक्तिसंपन्न देश अमेरिका को एक हीन,दुर्बल एवं आत्मसंशयी देश बना दिया।
  • चार्वाक साहित्य का समर्थन करने वाली अमेरिकी जनता को अमीरी का ख्वाब दिखाने वाली प्रतिनिधि किताब है-‘रिच डैड पुअर डैड’।इसके लेखक है,रॉबर्ट कियोसाकी और शैरोन लेचर।इस किताब ने अमेरिका में ही नहीं,बल्कि सारे विश्व में लोकप्रियता प्राप्त की।इसकी प्रसिद्धि इतनी हुई कि लेखकों ने टाइटल और उसकी सीरीज को,भविष्य के लिए पेटेंट करा लिया।ख्याति का कारण इसकी आत्मकथात्मक शैली एवं कथावस्तु का रोचक होना है।सैंतालीस साल की उम्र में अत्यंत समृद्धि उपलब्ध कर लेने का दावा करने वाले रॉबर्ट ने इसमें बताया है कि यह कहानी एक गरीब लड़के की है,जो अपने दो पिताओं से संबंधित है।एक उसका वास्तविक गरीब पिता,जो ईमानदार,टेक्स चुकाने वाला,उच्च शिक्षित एवं उसूलों का पक्का है,पर आजीवन गरीबी से लड़ता-जूझता रहा और दूसरा उसका अमीर आठवीं फेल मानस पिता,जो वास्तव में उसके एक दोस्त का पिता था और जिसने उसे गरीबी से उबारकर धनी बनने का सूत्र समझाया।
  • इस कथा के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि पैसा तो पानी जैसा है,उसे मोड़ने की जरूरत है।बस,एकत्र हो जाता है।संपत्ति अर्जित करने के लिए मेहनत एवं ईमानदारी की आवश्यकता नहीं है,बल्कि उसके लिए अपने दिमाग का प्रयोग करना है और इसी का परिणाम है कि विश्व में शेयर मार्केट चल पड़ा है।इससे प्रभावित होकर डायरेक्ट मार्केटिंग,पिरामिड मार्केटिंग और मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियों ने इस किताब को अपना ब्रांड एंबेसडर बना लिया।किसी ने ठीक ही कहा है कि यदि बिना श्रम किए आपको बेशुमार दौलत मिले तो आप श्रम क्यों करेंगे और आज जबकि समाज में संपत्ति की खूब प्रतिष्ठा है और चाहे इसके लिए अर्जन का तरीका कैसा भी क्यों ना हो,तो क्यों व्यक्ति श्रम एवं मेहनत करके अर्थ-लाभ करने की सोचेगा।

3.बिना श्रम किए धन कमाने की थ्योरी (The Theory of Making Money Without Labor):

  • बिना श्रम के अपार संपत्ति अर्जन को खूब समझाने वाली राॅबर्ट की किताब इकलौती नहीं है।इस क्रम में अनेक साहित्य हैं,जिनकी कथावस्तु का आधार यही है।ग्लोबल वित्तीय साहित्य के लेखकों में ‘अनलिमिटेड वेल्थ’ के लेखक पाॅल जेन पिल्जर,’दि वारेन वफेट’ लिखने वाले राॅबर्ट हेमस्ट्रांग,’ओवर दि टॉप’ के जिग जिगलर, ‘क्रिएटिंग वेल्थ’ के रॉबर्ट एलेन, ‘बीटिंग दि स्ट्रीट’ के पीटर लिंच, ‘ट्रंपःदि आर्ट ऑफ डील’ के रचयिता डोनाल्ड ट्रंप, ‘इन्वेस्टमेंट वाइकर’ के जिम रॉजर्स,’दि न्यू पोजिशनिंग के लेखक जैक ट्राउट समेत हजारों लेखक शामिल हैं।ये बेस्ट सेलर लेखक हैं,जिनकी प्रसिद्धि सारे विश्व में प्रसिद्ध हुई।जिन्होंने वित्तीय साक्षरता,फाइनेंशियल एप्टीटयूड,फाइनेंशियल फ्रीडम,कैश फ्लो एनालिसिस,वर्किंग मनी जैसे जुमलों को सबकी जुबान पर चढ़ा दिया।आखिर उन्होंने चार्वाक संस्कृति को ही नए ढंग से परोसने का प्रयास किया है।आखिर इसमें है क्या,जिसे इतनी ख्याति मिली।इसकी दिलचस्प नसीहतें हैं:
  • (1.) इतनी पूंजी एकत्र कर लो कि उसका ब्याज तुम्हारी नियमित आय बन जाए और तुम किसी भी काम को करने से सदा ही मुक्त हो जाओ तथा शारीरिक श्रम की आवश्यकता ही नहीं पड़े।
  • (2.)ऐसा व्यवसाय करो,जिसमें न मेहनत करनी पड़े और न ही उपस्थिति की आवश्यकता हो।बाॅन्ड,शेयर,प्रतिभूतियाँ,डिबेंचर,म्युचुअल फंड यूनिट,विभिन्न प्रकार की रॉयल्टी,प्रॉपर्टी की मिल्कियत के दस्तावेज आदि कागजी कारोबार की ओर उन्मुख हो जाओ।
  • सोचने वाली बात यह है कि बिना मेहनत किए कमाया हुआ धन,बेशुमार दौलत,अकूत धनसंपत्ति किसी भी व्यक्ति के दिमागी संतुलन को नहीं बिगड़ेगी क्या,बुद्धि चंचल व तमोगुण तथा रजोगुण वाली नहीं होगी क्या? ऐसी स्थिति में व्यक्ति विलासितापूर्ण जीवनव्यापन करेगा,ऐशोआराम की जिंदगी जिएगा।फलतः अनेक बीमारियां आ दबोचेंगी,अनेक मानसिक विकृतियां पैदा होंगी।धनाढ्य व्यक्ति राॅकफेलर की तरह दुर्गति नहीं होगी क्या? कठिन परिश्रम,नैतिक और साफ-सुथरे तरीके से कमाई हुई आय ही फलदायी होती है।ऐसी आय को खर्च करने के लिए व्यक्ति 10 बार सोचेगा,जहां आवश्यकता और जरूरी होगा वही खर्च करेगा,अनाप-शनाप खर्च नहीं करेगा।मानसिक संतुष्टि मिलेगी और बीमारियों से बचा रहेगा।
  • (3.)उपभोग छोड़ो,निवेशक बनो।गरीब अपनी कमाई से बेहद जरूरी सामान क्रय करते हैं;जबकि धनाढ्य वर्ग अपनी कमाई संपत्तियाँ खरीदने में निवेश करते हैं।
  • यदि इसी थ्योरी पर हर व्यक्ति काम करने लगेगा तो श्रम तो कोई करना चाहेगा ही नहीं,सभी निवेशक बनना चाहेंगे।फिर उत्पादन कौन करेगा? कारोबार कैसे चलेगा? सभी आराम करना और घर पर बैठना ही पसंद करेंगे।बैठे-बैठे यही तिकड़म लगाएंगे कि बैठे-बैठे अधिक से अधिक कमाने का क्या फंडा अपनाया जाए? कैसे लोगों को मूर्ख बनाकर,ठगकर उल्लू सीधा किया जाए।
  • (4.)विश्व में चार प्रकार के लोग होते हैं:कर्मचारी,कंपनी मालिक,स्वरोजगारी और निवेशक।कर्मचारी एवं मालिक दोनों ही मेहनत करते हैं,परंतु स्वरोजगारी एवं निवेशक के लिए ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं है,अतः इसी राह पर आगे बढ़ो।विकसित देशों में जो भयंकर मंदी देखने को मिलती है,एकाएक मालदार  से कर्जदार हो जाते हैं। बाजार के उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है,भयंकर मंदी का शिकार होती है,इसी संस्कृति के कारण ऐसा होता है।कर्मचारी,मालिक (मेहनतकश) कोई बनना चाहता नहीं तो कंपनियों और कार्यालयों के काम को सम्हालने के लिए कोई देवदूत आएंगे या किसी जादू के डंडे से काम हो जाएगा।श्रम कुछ भी करना नहीं और दिमागी कसरत से धन कमाना और ठाटबाट से रहना।इसी कारण विकसित और पाश्चात्य देशों में हर व्यक्ति दुखी और परेशान है।निवेशक की कोई जिम्मेदारी रहती नहीं है,घर बैठे अपनी बुद्धि से जिन कंपनियों की साख अच्छी है उनके शेयर खरीदो या ऊपर बताए गए प्रतिभूतियों आदि में निवेश करो और कमाई करो।ऐसी हरकतों से,ऐसे कार्यों से व्यक्ति आरामतलबी हो जाता है,व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण नहीं हो पाता है।निवेश से आया हुआ ऐसा पैसा ऐशोआराम और विलासिता में ही खर्च होता है,इसलिए नई-नई बीमारियाँ और मानसिक विकृतियाँ पैदा होती हैं।
  • (5.)टैक्स तो गरीब और कर्मचारी चुकाते हैं।अमीरों की संपत्तियाँ और निवेश उन्हें टैक्स से मुक्त कर देते हैं।इस प्रकार गरीब,कर्मचारी और मध्यम वर्ग अधिक पिसता ही चला जाता है।धनाढ्य वर्ग या तो बहुत कम टैक्स चुकाते हैं या कोई ना कोई गली,रास्ते निकाल लेते हैं अथवा टैक्स की चोरी करते हैं।वास्तविक आय से कम आय अपने लेखों में दिखाना,थोक व खुदरा विक्रेताओं को कच्चे बिल पर उत्पादन सामग्री बेचना।इस प्रकार इनका व्यवसाय आपसी विश्वास पर अधिक चलता है।लेखों में नाम मात्र की आय दिखाई जाती है ताकि सरकार या टैक्स वसूलने वाली एजेंसी के पकड़ में ना आएं।
  • (6.)पुरानी कहावत है:’मेहनत करो तरक्की की सीढ़ी चढ़ो।’नई कहावत है-‘सीढ़ी को ही अपना बना लो।’ व्यवसाय में उत्पादन श्रमिक वर्ग करता है।अतः श्रमिक वर्ग,कर्मचारी और मालिक का ही आय पर ज्यादा अधिकार बनता है।परंतु अमेजॉन,फ्लिपकार्ट,मिशो आदि बिचोलियाँ ऐसी वेबसाइट्स हैं जो बिना उत्पादन किए ही सेल (sell) करके मालामाल हो रही हैं।इस प्रकार ये अधिकांश लाभांश पर कब्जा कर लेती हैं और उत्पादन करने वाली इकाइयों को बहुत थोड़े लाभांश पाकर संतोष करना पड़ता है।
  • (7.)आय के तीन स्रोत हैं:अर्जित आय (अर्न्ड इन्कम),जो कि नौकरी या व्यवसाय से प्राप्त होती है।निश्चेष्ट आय (पैसिव इनकम),यह प्रॉपर्टी किराये आदि से आती है।पोर्टफीलियो इनकम-विभिन्न मदों से प्राप्त आय।इन स्रोतों में से पहले को छोड़कर दूसरे एवं तीसरे पर आ जाओ।
  • इसमें वही फंडा है कि मेहनत करने वाले काम मत करो और दूसरे मेहनत करने वालों की आय को किस प्रकार हड़पा जा सकता है,वे तरीके अपनाओ।दरअसल ऐसे तरीके जायज व नाजायज दोनों प्रकार के होते हैं।उन्हें इससे मतलब नहीं है।उन्हें बैठे-बैठे आय होनी चाहिए चाहे तरीका गलत हो या सही,नैतिक हो या अनैतिक। एक बार इस प्रकार की आय करने की तकनीक मालूम पड़ जाती है तो उस प्रकार की आय अर्जित करने का चस्का लग जाता है और व्यक्ति बिना कुछ करे-धरे आय अर्जित करता जाता है।
  • (8.)शेयर खरीदो और कर्ज लेकर मकान बनाओं।जो व्यक्ति शेयर वगैरह खरीदने में अपनी ऊर्जा और बौद्धिक शक्ति को लगाते हैं उनकी शक्ति और ऊर्जा उत्पादक कार्यों में खर्च नहीं होती है।ऐसे व्यक्ति उत्पादक कार्य करना चाहते भी नहीं हैं।इस प्रकार उपर्युक्त जितने भी फंडे हैं ये हर दृष्टिकोण से गलत हैं।

4.पाश्चात्य देशों में धन कमाने का निष्कर्ष (Conclusion to making money in Western countries):

  • यह है आज का वित्तीय दर्शन,जिसके ऑक्टोपसी पाश ने हमारे देश को भी जकड़ लिया है।इसमें चार्वाक दर्शन की गंध आती है।अमेरिका के पूंजीवादी समाज के एक बड़े हिस्से में इसको अपनाया गया है।उनकी अंतरात्मा इन चीजों से दब गई है और यही कारण है की ऐसी शिक्षा देने वाली किताबें न केवल बेस्ट सेलर साबित होती है,बल्कि वहां ऐसी शिक्षा का एक अलग पाठक वर्ग पैदा हो गया है;क्योंकि अतिशीघ्र अमीर बनने को बेताब,वित्तीय आजादी के लिए अधीर,काम से मुक्ति के लिए बेकरार वर्ग तथा स्वप्नलोक का ख्वाब देखने वालों ने इसे बहुचर्चित कर दिया।
  • इस दर्शन ने अमेरिका के मध्यम वर्ग में ऐसी मानसिकता पैदा की कि अंधाधुंध कर्ज लो और उससे गाड़ी,मकान आदि खरीदो।कर्ज लेने की भारी मांग एवं उसकी कमतर होती अदाएगी से बैंकों की हालत खराब हो गई।बैंक दिवालिया हो गए,जिनकी लिस्ट बड़ी लंबी है और यहीं से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी की शुरुआत हुई।दरअसल वहां पर कर्ज लेकर निवेश करने की एक विराट संस्कृति का ताना-बाना बुना गया और इसे प्रश्रय एवं प्रेरणा दी इस साहित्य ने।उन्होंने बैंकिंग की दुनिया में भी बेतहाशा कर्ज मंजूर करने की जायज वजहों का अव्यावहारिक तर्कशास्त्र रचा।करोड़ों पाठकों को श्रम और उत्पादन के वास्तविक संबंधों से दूर हटकर शेयरों और बाॅन्डों में निवेश के कागजी अर्थशास्त्र में अग्रसर होने की सलाह दी।पाश्चात्य देशों में इस मोहक परंतु घातक अर्थशास्त्र की नींव बुलबुलों पर धर दी,जो कभी भी फट जाते हैं और वहां का अर्थशास्त्र भरभराकर गिर जाता है।

5.भारतीयों की व्यापार करने की तकनीक (Techniques of Trading of Indians):

  • परंतु अपने देश की संस्कृति श्रम एवं ईमानदारी से अर्थोपार्जन की संस्कृति है।अपनी संस्कृति में धन का स्थान धर्म के बाद आता है,जो कि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।अतः इसके उपार्जन के साधनों को भी अति पवित्र एवं श्रेष्ठ माना गया है।अथर्ववेद में व्यापार को श्री और समृद्धि का साधन माना गया है।व्यापार में सफलता के लिए दो गुणों की आवश्यकता बताई गई है:चरितम: चरित्र एवं व्यवहार।आचरण की शुद्धता और व्यवहार में निष्कपटता होने से मनुष्य विश्वसनीय होता है।इसके द्वारा उसका व्यापार उन्नति करता है।
  • (2.)उत्थितम: उठना या अध्यवसाय।दृढ़ निश्चयपूर्वक कार्य में जुट जाना अध्यवसाय है।यह दृढ़ निश्चय एवं उत्साह उसे समृद्धि की ओर ले जाता है।
  • व्यापार में से श्रम एवं चरित्र को ही यदि हटा दिया जाए तो फिर वह व्यापार नहीं होता,कुछ और हो जाता है।आध्यात्मिक अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि अर्थ के अर्जन का साधन एवं उद्देश्य स्पष्ट एवं शुद्ध होना चाहिए एवं यथासंभव पारदर्शिता होनी चाहिए,जिससे अर्जन की प्रक्रिया स्पष्ट हो सके।इसमें प्रामाणिकता का होना भी आवश्यक है,क्योंकि यही विश्वास का आधार है और विश्वास के बल पर ही व्यापार का सारा ताना-बाना बुना जाता है।उपार्जित धन का निवेश भी महत्त्वपूर्ण है।इसके कुछ अंश को लोकहित के लिए नियोजित भी करना चाहिए।आध्यात्मिक अर्थशास्त्र का यह दर्शन हमारे जीवन को समृद्ध एवं सुखी बनाता है।इस दर्शन का कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं स्मृतियां व पुराण आदि में  जिक्र है।इन सभी में अर्थ का स्वरूप,लक्ष्य,उद्देश्य एवं उसकी प्राप्ति के साधन का विशेष रूप से वर्णन किया गया है।
  • अपनी संस्कृति में अर्थ का उपार्जन देखते-देखते अमीर बनने के लिए नहीं किया जाता है,बल्कि इसे मेहनत एवं ईमानदारी से उपार्जित करने का धर्म एवं नीतिपूर्ण ढंग से उपार्जित करने की शिक्षा दी जाती है और इसलिए इसे पुरुषार्थ चतुष्टय में दूसरा स्थान प्राप्त है।ऋग्वेद के एक मंत्र में एक कथा का उल्लेख मिलता है।एक व्यापारी ने अपनी महंगी वस्तु कम कीमत में बेच दी।बाद में उसे जब पता चलता है तो वह ग्राहक के पास जाकर कहता है कि मेरी वह वस्तु न बेची हुई समझी जाए और वस्तु का कम मूल्य पूरा किया जाए।ग्राहक उसे अमान्य कर देता है।इस समस्या के समाधान के रूप में निर्णय दिया गया कि क्रय के समय जो मूल्य तय हो जाता है,वही मान्य है और यह सभी के लिए सर्वमान्य है।इस प्रकार हमारा अर्थशास्त्र नीतिपरक और अनीति का इसमें कोई स्थान नहीं है।
  • ऋण लेना और देना,दोनों ही हमारे यहां अच्छा नहीं माना जाता है।कहा जाता है कि श्रेष्ठपुरुष को इससे बचकर रहना चाहिए।अथर्ववेद के सूत्र 6 के 117,118,119 में ऋण लेने से होने वाली हानियों की चर्चा की गई है।इसमें बताया गया है कि ऋण लेने वालों को लज्जित होना पड़ता है और ऋण न चुकता होने पर उस पर कर्मबंधन लगते हैं,जो जन्मान्तरों तक पीछा नहीं छोड़ते।अतः हमारी संस्कृति में पुरुषार्थ करके,नीतिपूर्वक एवं धर्माचरण के माध्यम से अर्थोपार्जन पर बल दिया जाता है।आवश्यकता से अधिक अर्थ को किसी की सेवा,सहायता करने या श्रेष्ठ कर्मों में नियोजित करने या फिर उसे सत्पात्र को दान देने की श्रेष्ठतम व्यवस्था दी गई है।अर्थ को जब धर्म से,नीति से अधिक महत्त्व दिया जाता है तो वह अनर्थकारी होता है।अतः इससे सावधान किया गया है और यही कारण है कि हमारा राष्ट्र आर्थिक रूप से स्वावलंबी है,श्रेष्ठ एवं समृद्ध है।अतः हमें नीतिपूर्वक अर्थोपार्जन करना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके कैसे हों? (How to Have Clean Ways to Make Money?),धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे हों (Ways to Earn Money Should be Clean) के बारे में बताया गया है।

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6.उधार में कोचिंग करा दो (हास्य-व्यंग्य) (Get Coaching on Credit) (Humour-Satire):

  • ऋषि (गणित टीचर से):सर,कोचिंग करा दो।
  • गणित टीचर:मैं तुम्हें नगद फीस देने पर ही कोचिंग नहीं करा सकता।
  • ऋषि:सर,कोई बात नहीं तो फिर उधार में कोचिंग करा दो।
  • गणित टीचर:अरे भाई मेरा अमेरिका की तरह मात्र रुपये कमाने का ही मकसद नहीं है।चाहे आप उधार में कोचिंग करो या नकद में गणित टीचर ने स्पष्ट किया।

7.धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके कैसे हों?(Frequently Asked Questions Related to How to Have Clean Ways to Make Money?),धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे हों (Ways to Earn Money Should be Clean) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या व्यवसाय के लिए ऋण नहीं लेना चाहिए? (Should you take out a loan for business?):

उत्तर:आधुनिक युग में व्यवसाय करने या व्यवसाय का विस्तार करने के लिए ऋण लेना गलत नहीं है।क्योंकि आज के युग में व्यवसाय के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं होती है,ऐसी स्थिति में ऋण लेकर व्यवसाय करना उचित है।

प्रश्न:2.क्या पाश्चात्य देशों की व्यावसायिक पद्धति भारत में नहीं अपनायी गई है? (Has the business practice of the western countries not been adopted in India?):

उत्तर:पाश्चात्य देशों के रहन-सहन,खान-पीन,चाल-चलन,शिक्षा पद्धति और व्यावसायिक पद्धति आदि का बहुत प्रभाव पड़ा है परंतु अभी भारतीय संस्कृति जिंदा है इसीलिए विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न:3.विकसित देश जैसी टेक्नोलॉजी अपनाने में क्या दिक्कतें हैं? (What are the problems in adopting technology like developed countries?):

उत्तर:इसके दो मुख्य कारण है:एक तो इसके लिए जितनी पूंजी चाहिए वह अल्पविकसित देशों के पास नहीं है और दूसरे इन देशों में बेरोजगारी की समस्या हल होने के बजाय बढ़ेगी।

  • उपर्युक्त आर्टिकल में धन कमाने के साफ-सुथरे तरीके कैसे हों? (How to Have Clean Ways to Make Money?),धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे हों (Ways to Earn Money Should be Clean) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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