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Economic Prosperity VS Affluence

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1.आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता (Economic Prosperity VS Affluence),आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है (Economic Prosperity is Not Indicator of Prosperity):

  • आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता (Economic Prosperity VS Affluence) अर्थात आर्थिक रूप से सुदृढ़ता से यह नहीं समझा जाना चाहिए कि व्यक्ति संपन्न है,खुशहाल है।आर्थिक समृद्धि केवल हमारे एक पक्ष को ही मजबूत करता है परंतु हमारे अन्य पक्षों को भी मजबूत करना जरूरी है।
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2.धन के बिना भी कार्यसिद्धि संभव (Accomplishment is possible even without money):

  • इमरसन के अनुसार “मैं इस बात की आज्ञा नहीं दे सकता कि कोई व्यक्ति यह कहे कि मेरे पास लंबी-चौड़ी जमीन है।इसलिए मैं धनी हूं,मैं उसे यह अनुभव करवा दूंगा कि मैं उसके धन के बगैर भी काम चला सकता हूं,परंतु आत्म-संतोष के बल पर मैं अपने को संपन्न समझूंगा।”
  • संसार में अनेक लोग हैं जो बिना धन के प्रसन्न रहते हैं।हजारों ऐसे हैं जिनकी जेबें खाली हैं,परंतु वे संपन्न हैं। सुदृढ शरीर,अच्छे दिल और अंगों वाला व्यक्ति वास्तव में सर्वसंपन्न है।हड्डियां मजबूत होना सोने से अधिक अच्छा है,मांसपेशियां कठोर होना चांदी से अधिक मूल्यवान है और सारे शरीर में ऊर्जा पहुंचाने वाली नस-नाड़ियाँ अनेक मकानों और भूमि का मालिक होने से अच्छी है।
  • फ्रैंकलिन का कहना है कि धन से मनुष्य प्रसन्न नहीं हो सकता।इसमें ऐसी कोई भी चीज नहीं जो मनुष्य को प्रसन्नता दे सके।जिसके पास जितना धन होता है वह और धन की उतनी ही आकांक्षा करता है।एक रिक्त स्थान को भरने के बजाय वह और रिक्तता पैदा करता है।लंबा चौड़ा बैंक खाता (अकाउंट) मनुष्य को धनी नहीं बना सकता है।केवल उसके विचार ही उसको संपन्न बनाने में सहयोग दे सकते हैं।जिस व्यक्ति का दिल गरीब है उसके पास बहुत-सा धन और संपत्ति होने पर भी उसको धनी नहीं कहा जा सकता है।कोई भी व्यक्ति धनी और निर्धन अपने विचारों के अनुरूप ही होता है,जो कुछ उसके पास है उसके कारण नहीं।
  • जो संतुष्ट है वही धनी है भले ही उसके पास संपत्ति ना हो।अनेक ऐसे व्यक्ति है जिसके पास स्वाध्याय की दौलत है वे सदा प्रसन्न रहते हैं।वे कठिनाइयों को बड़ी आसानी से पार कर जाते हैं।कुछ व्यक्ति अपने परिवार तथा मित्रों के कारण संपन्न कहला सकते हैं।कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं,जिन्हें देखकर सभी उनसे प्रेम करने लगते हैं।उनके चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छाया रहता है।क्या इन्हें आप संपन्न नहीं समझते हैं?
  • जीवन का सबसे बड़ा सबक यही है कि हम मानव मूल्यों का सही मूल्यांकन कर सकें।जब कोई युवक कोई कार्य प्रारंभ करता है,उसमें अनेक वस्तुओं को प्राप्त करने की आकांक्षा पैदा होती है,परंतु उसकी सफलता उसकी योग्यता पर निर्भर करती है ना कि उसके द्वारा इकट्ठी की गई वस्तुओं से।प्रलोभनों में पड़कर हमें जीवन के वास्तविक मूल्यों पर जोर देना चाहिए।
    समृद्ध मस्तिष्क और श्रेष्ठ आत्मा किसी भी घर में सौंदर्य का प्रकाश दे सकती है।घर की साज-सज्जावाले व्यक्तियों के लिए ऐसा करना असंभव है।ऐसा कौन-सा व्यक्ति होगा जो उच्च चरित्र,संतोष और तृप्ति रूपी धन को प्राप्त न करके निकृष्ट सिक्कों के पीछे भागेगा? वास्तव में वही व्यक्ति संपन्न है जिसने संस्कृति को समृद्ध बनाने में योग दिया है,भले ही वह बिना पैसे के मर गया।आने वाली पीढ़ियां ऐसे लोगों के स्मारक खड़ी करती है। समग्रता का दूसरा नाम संपन्नता है।

3.मस्त रहने वाला ही संपन्न है (Only those who remain intoxicated are prosperous):

  • जिस व्यक्ति के पास धन नहीं है वह गरीब है,परंतु जिसके पास धन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है,वह उससे भी अधिक निर्धन है।वास्तव में धनी वही है जो धन के बिना मस्त रहता है और निर्धन वह है जो लाखों रुपए पास होने पर भी अधिक संपत्ति पाने की लालसा रखता है।बुद्धिमत्ता में ही समृद्धि का निवास है।बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार का स्वामी व्यक्ति निर्धन नहीं कहलाता है।वह समृद्ध होने के साथ निर्धनता का मुकाबला करने के कारण बहादुर भी कहलाता है।
  • हमें अपनी इच्छाशक्ति को वस्तुओं के उज्ज्वल पक्ष पर स्थिर करना चाहिए जिससे आत्मा का विकास हो और अच्छाइयां पैदा हों।यही बातें व्यक्ति को संपन्न बनाती हैं।प्रत्येक वस्तु का उज्ज्वल पक्ष देखना अपने आप में सौभाग्य की बात है।संपन्न वही है जो स्वर्ण की अपेक्षा अपने यश को अधिक महत्त्व देता है जो ऐसा करता है।प्राचीन यूनानी व रोम के लोग धन के बजाय इज्जत को अधिक महत्त्व देते थे।समृद्धि की अपेक्षा संपन्नता उनके लिए सब कुछ थी।विलियम पिट ने कहा था कि जनता के लाभ के कार्यों के सामने धन संपत्ति पैरों की धूल के समान है।
  • अच्छे कार्यों से ही व्यक्ति वैभवशाली बनता है,परंतु लाखों की संपत्ति होने पर भी निर्धन रह सकता है।जिस धनाढ्य व्यक्ति के पास चरित्र की कमी है उसकी तुलना भिखारी से ही की जाएगी।क्योंकि माया आनी-जानी होती है,चरित्र संपन्नता नहीं।
    जो व्यक्ति अपने मस्तिष्क का विकास करता है,वह चरित्र बल से संपन्न रहता है,उसे उससे कोई वंचित नहीं कर सकता।यदि हम ज्ञान का निवेश करते हैं,तो हमको सदैव उसका लाभ मिलेगा।
  • मेरा विश्वास है कि श्रेष्ठ व्यक्ति होना बड़ी बात है,दयावान व्यक्ति की तुलना में मुकुट का कोई महत्त्व नहीं।निष्ठावान होना धनी व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक अच्छा है।आर्थिक समृद्धि साधन है,परंतु चारित्रिक संपन्नता साध्य है।आर्थिक समृद्धि एवं व्यक्तित्व की सफलता पर अंग-अंगी भाव से विचार किया जाना चाहिए।निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति धन से ही धनी नहीं होता।वास्तव में समृद्ध वही है जिसका मस्तिष्क समृद्ध हो और जिसके विचारों से संसार में बुद्धिमता का विकास है।अंग्रेजी साहित्य के उद्भट्ट विद्वान विलियम शेक्सपियर ने कहा है कि “मेरा मुकुट मेरे सिर के बजाय मेरा दिल है,उसे हीरे-मोतियों की आवश्यकता नहीं।मेरा मुकुट तो मेरी सन्तुष्टि है जिसे शायद ही कभी राजा-महाराजाओं ने धारण किया हो।

4.संतोषी सुखी है (Santoshi is happy):

  • सुख का मूल आधार है सन्तोष अतः संतोष ही असली संपन्नता है।जो सुखी रहना चाहे उसे संतोष धारण करना ही होगा।संतोष धारण करने से अत्युत्तम सुख प्राप्त होता है।सुख के इच्छुक को संतोष का सहारा लेकर अपने आपको संयम में रखना चाहिए क्योंकि संतोष सुख का मूल (जड़) है और असंतोष दुःख का कारण है।असंतोष सबसे बढ़कर दुःख है और संतोष सबसे बढ़कर सुख है,अतः सुख चाहने वाले मनुष्य को सदा संतुष्ट रहना चाहिए।संतोष करने का मतलब निष्क्रिय और लापरवाह नहीं है बल्कि निष्काम भाव से कर्म करते रहना है ताकि कर्म का फल जो भी मिले उसे सहज भाव से स्वीकार किया जा सके इससे दुःख नहीं होता और दुःख करने से होता भी क्या है? चिंता से भी क्या होता है? बुद्धिमान लोग इसीलिए चिंता नहीं करते,चिंतन करते हैं और समस्या का समाधान खोज ही लेते हैं।संतोषी व्यक्ति कोई विशेष चाह नहीं रखता और जो चाह नहीं रखता वह सम्राट की तरह जीता है।यदि संतोषी ना हो तो लाखों करोड़ों की संपदा होने पर भी व्यक्ति दुःखी रहता है और संतोषी धनहीन होकर भी सुखी रहता है।

5.धन की महत्ता (The Importance of Money):

  • आधुनिक युग में धन की महत्ता रही हो ऐसी बात नहीं है,हर युग में धन का प्रभाव और महत्ता रही है,धन की तूती बोलती रही है।उपर्युक्त विवरण से ऐसा प्रतीत होता है जैसे धन की कोई महत्ता ही नहीं है और धन अर्जित करना,धन संपदा का होना निरर्थक है।भर्तृहरि नीतिशतक में धन के बारे में कहा गया है:
  • “यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पंडित: स श्रुतवान् गुणज्ञः।
    स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयत्ते।।”
  • अर्थात जिसके पास धन है वही पुरुष कुलीन है,वही पंडित है,वही विद्वान और गुणवान है,वही वक्ता है और वही सुंदर है।सारे गुण स्वर्ण अर्थात धन में समाये रहते हैं।यह कथन आज भी चरितार्थ हो रहा है क्योंकि आज भी अधिकांश लोगों के लिए पैसा ही भगवान है और धन ही धर्म बना हुआ है।
  • इस श्लोक में कहा गया है कि टका यानी पैसा ही धर्म है,टका ही कर्म है और टका ही परमपद है।जिसके घर में टका यानी पैसा नहीं होता वह हाय टका! हाय टका!! यानी हाय पैसा,हाय पैसा करता हुआ,टकटकी लगाए टका प्राप्त होने की राह देखता रहता है।पैसा,(पहले ₹1 में सोलह आना हुआ करते थे) सोलह आने परमात्मा की सोलह कलाओं के प्रतीक है और रुपया तो (सोलह कलाओं से युक्त होने) साक्षात भगवान का ही रूप है तभी तो रुपया कहा जाता है।आज इसलिए सब तरफ धन को धर्म की जगह देकर धन की उपासना की जा रही है और अच्छे और बुरे किसी भी तरीके से धन प्राप्त करने के उपाय किए जा रहे हैं और अधिकांश लोग धन के पीछे पागल बने हुए क्योंकि धन पास हो तो सब काम और कामनाओं की सिद्धि हो जाती है।तात्पर्य यह है कि धन की महत्ता या धन को महत्त्व देना किसी हद तक यह बात ठीक भी है पर इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि पैसा बहुत कुछ हो सकता है पर सब कुछ नहीं हो सकता,पैसे से बहुत कुछ किया जा सकता है,पर सभी काम सिर्फ पैसे के बल पर नहीं किये जा सकते।
  • सांसारिक कर्त्तव्यों और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऐसा करना जरूरी है।इसलिए जीवन में धन सब कुछ ना होते हुए भी बहुत कुछ है अतः धन का महत्त्व कम नहीं है।धन से ही हमारे सांसारिक व्यवहार और व्यापार का निर्वाह होता है इसलिए मनुष्य को धन संपत्ति प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना ही पड़ता है।सुख-सुविधा का होना जीवन को खुशहाल बनाता है इसलिए मनुष्य सुख-सुविधा के साधन जुटाने में लगा रहता है।बस,कुछ लोग एक गलती कर जाते हैं कि धन को जरूरत से ज्यादा महत्त्व और मान देते हैं और अन्य बातों को कम या देते ही नहीं तो वे भले-बुरे और ऊंच-नीच का विचार छोड़कर,येन-केन-प्रकारेण,धन पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।सिर्फ इसी एक कारण से लोग,अनैतिक तरीके,घूस,बेईमानी,भ्रष्टाचार,चोरी-चकोरी,डकैती आदि के द्वारा धन कमाने में लग जाते हैं और अंधे बन जाते हैं।

6.आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता का निष्कर्ष (Conclusion to Economic Prosperity VS Affluence):

  • संपन्नता और धन के उपर्युक्त तुलनात्मक विवरण से देखा जाए तो ज्ञान,चरित्र,संतोष,ईमानदारी आदि ही श्रेष्ठ साबित होते हैं क्योंकि धन का सदुपयोग भी ज्ञान के सहारे से किया जा सकता है।ज्ञान से धन प्राप्त किया जा सकता है पर धन से ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता।धन खर्च करने से घटता है पर ज्ञान खर्च करने से बढ़ता है।धन को लूटा या चुराया जा सकता है पर ज्ञान,चरित्र,संतोष को नहीं।आज के युग में ही क्यों धन की तूती हर युग में बोलती रही है लेकिन यदि साथ में ज्ञान का नगाड़ा (ढोल) ना बजे तो तूती की आवाज बेसुरी और बेताला लगती है।अतः धन कमाने में पागल नहीं होना चाहिए,धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे होने चाहिए और धन कमाने में अति नहीं करना चाहिए।मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए।
  • जरा गहराई से विचार-चिंतन करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि दरअसल कई मामलों में,कई दृष्टि से मध्य मार्ग अपनाना तथा मध्य स्थिति में रहना उचित और सुखद होता है यानी न ऊंची उड़ाने भरना ठीक होता है और न बिल्कुल धूल धूसरित होना या खाई में जा गिरना उचित होता है।न बहुत ज्यादा धनवान होना अच्छा होता है और न बिल्कुल ही दीन-दरिद्र होना अच्छा होता है,ना तो शरीर का बहुत ज्यादा मोटा होना अच्छा होता है और ना बिल्कुल सूखे कांटे की तरह दुबला-पतला शरीर होना अच्छा होता है,बहुत ज्यादा भावुक और संवेदनशील होना अच्छा नहीं होता तो बिल्कुल मतिमूढ़ और ठस बुद्धि होना भी अच्छा नहीं होता।ना ज्यादा जल्दबाजी और उतावली करना अच्छा होता है और न आलसी और ढीलाढाला होना अच्छा होता है।ऐसे और भी अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं,आप स्वयं भी किसी भी दृष्टि से कितने ही पहलुओं पर विचार कर लें तो आप भी इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि किसी भी दशा में,किसी भी दिशा में,किसी भी मामले में और किसी भी स्थिति में ‘अति’ न करके,सामान्य मध्य स्थिति में रहना ही उपयोगी और लाभप्रद होता है लेकिन इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए सूझबूझ,दार्शनिक बौद्धिकता और जीवन के ठोस अनुभवों और यथार्थों का ज्ञान होना आवश्यक होता है।
  • विद्यार्थियों को उपर्युक्त विवरण से समझ लेना चाहिए कि ज्ञान,चरित्र,संतोष धारण करना आदि ही असली सम्पदा है और इनके बिना धन का सदुपयोग नहीं किया जा सकता है।यह असली संपदा हमें भटकने नहीं देती,पथभ्रष्ट नहीं होने देती है।अतः धन कमाने की कला,जाॅब करने की कला तो सीखनी ही चाहिए परंतु अपने अंदर इन गुणों को धारण करने का प्रयास बाल्यकाल से ही प्रारंभ कर देना चाहिए क्योंकि परिपक्व होने के बाद गुणों को धारण करना,व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण करना मुश्किल ही नहीं बहुत कठिन होता है।
  • अक्सर छात्र-छात्राएं पढ़ते समय केवल कोर्स की पुस्तकें पढ़ते रहते हैं,जॉब करने की तकनीक,स्किल सीखने की तरफ ही अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं।जब जीवन क्षेत्र में उतरते हैं और सांसारिक,पारिवारिक,व्यक्तिगत समस्याओं से रूबरू होते हैं तो उन्हें कोई मार्ग दिखाई नहीं देता है।संघर्षों,कठिनाइयों से घबराकर उनकी हालत पतली हो जाती है,उन्हें कोई सही दिशा का ज्ञान कराने वाला भी नहीं मिलता और तब तक इतनी देर हो जाती है कि व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।अतः बचपन से बाल्यकाल से ही,अपने आपको जीवन क्षेत्र में सही ढंग से व्यवस्थित करने और बेहतरीन भूमिका अदा करने में पारंगत होने की कला सीखनी चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता (Economic Prosperity VS Affluence),आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है (Economic Prosperity is Not Indicator of Prosperity) के बारे में बताया गया है।

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7.निर्धन छात्र की अजीब स्थिति (हास्य-व्यंग्य) (Strange Situation of Poor Student) (Humour-Satire):

  • एक गरीब छात्र गुरु जी के पास विद्या अर्जित करने गया।
  • गुरु जी ने उसे दक्षिणा में कुछ द्रव्य समर्पित करने के लिए कहा।
  • छात्रःमेरे पास जो द्रव्य है,वो गुरु जी को समर्पित करता हूं।इतने में अन्य छात्र-छात्राओं ने जोर से आवाज लगाई।इस बेचारे के पास द्रव्य के नाम पर पुस्तकें हैं,वो भी दक्षिणा में गई।

8.आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता (Frequently Asked Questions Related to Economic Prosperity VS Affluence),आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है (Economic Prosperity is Not Indicator of Prosperity) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्न:1.धन का उपयोग क्या है? (What is the use of money?):

उत्तर:कमाए हुए धन को व्यय (त्याग) करना या उपयोग करना ही उसकी रक्षा करना है।जैसे तालाब में भरे हुए पानी को निकालते रहने से ही पानी शुद्ध और पवित्र रहता है।

प्रश्नः2.धन की कौन-सी गतियां हैं? (What are the speeds of money?):

उत्तर:धन की तीन ही गतियां हैं:दान देना,उपभोग करना और नष्ट होना।जो न धन का दान करता है और न उपभोग करता है उसका धन नष्ट हो जाता है अतः धन की रक्षा करने के लिए धन का दान और उपभोग करते रहना चाहिए।

प्रश्न:3.क्या विद्या भी धन है? (Is knowledge also wealth?):

उत्तर:जो मनुष्य धन से हीन है,वह दीन-हीन नहीं है,यदि वह विद्या रूपी धन से युक्त है तो वह निश्चय ही महाधनी  है।परंतु जो मनुष्य विद्या रूपी धन से हीन है,वह सभी वस्तुओं से हीन है।

प्रश्न:4.क्या धन से धर्म होता है? (Does money lead to religion?):

उत्तर:धर्म और धन अन्योन्याश्रित है।धन से धर्मकार्यों का अनुष्ठान होता है और धर्म से धन की प्राप्ति होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आर्थिक समृद्धि बनाम संपन्नता (Economic Prosperity VS Affluence),आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है (Economic Prosperity is Not Indicator of Prosperity) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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