6 Specific Tips to Pray for Students
1.छात्र-छात्राओं के लिए प्रार्थना करने की 6 विशिष्ट टिप्स (6 Specific Tips to Pray for Students),प्रार्थना क्यों और कैसे करें? (Why and How to Pray?):
- छात्र-छात्राओं के लिए प्रार्थना करने की 6 विशिष्ट टिप्स (6 Specific Tips to Pray for Students) में बताया गया है कि प्रार्थना क्यों की जाती है,प्रार्थना कैसे करें,प्रार्थना से क्या तात्पर्य है? प्रार्थना क्या किसी मांग को पूरी करने के लिए की जाती है,सच्ची प्रार्थना से क्या आशय? आदि।
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2.प्रार्थना क्यों की जाती है? (Why is prayer prayed?):
- प्रार्थना करने का कुछ ना कुछ उद्देश्य होता है।प्रार्थना करने के भी अपने-अपने उद्देश्य होते है।कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए,अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए,जाॅब प्राप्त करने के लिए,विघ्नों,विपत्तियों और संकटों से उबरने के लिए की जाती है।
- वस्तुतः प्रार्थना मन की शांति,भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए की जाती है।भगवान ने हमें मनुष्य जन्म,हवा,पानी आदि निःशुल्क दिए हैं अतः उनके प्रति अहोभाव,कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए प्रार्थना की जाती है।छात्र-छात्राओं को जो भी सुख-सुविधाएँ,पढ़ाई के लिए साधन-सामग्री उपलब्ध कराई है उसके लिए आभार जताना आवश्यक है अन्यथा हमारे अंदर अहंकार का प्रवेश हो सकता है।
- प्रार्थना अंतर्मन से,हृदय से की गई पुकार है।जब भी हम संकट में घिरे होते हैं,पीड़ा-परेशानी में होते हैं या किसी मुसीबत से बाहर निकलना चाहते हैं तो हम परमेश्वर को पुकारते हैं।उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमारी मदद करें,हमें उबार लें।प्रार्थना करते समय मन सात्त्विक विचारों से भरा होता है।भावनाएं उभरती हैं,इसलिए कभी-कभी प्रार्थना करते समय सहज ही आंसू झरने लगते हैं।लेकिन सामान्य-सी दीखने वाली प्रार्थना साधारण नहीं होती है,यह अपना असाधारण प्रभाव भी दिखाती है।
- प्रार्थना का अर्थ केवल शब्दों को दोहराना मात्र नहीं है। यह कोई इच्छायुक्त सकारात्मक भावना भी नहीं है। प्रार्थना के बारे में यह सोच भी गलत है कि प्रार्थना करने से तुरंत उसका परिणाम मिल जाएगा,जैसे किसी दुकान में किसी वस्तु का मूल्य चुकाने पर वह वस्तु मिल जाती है,उसी तरह प्रार्थना बिकाऊ नहीं है।प्रार्थना वह है,जिसमें व्यक्ति हृदय की गहराई से,स्थिर व एकाग्र होकर भगवान से संवाद स्थापित करता है और अपनी पीड़ा-परेशानी कहता है,उसे दूर करने के लिए मदद मांगता है।हृदय की पुकार श्रद्धा और विश्वास के भाव की अभिव्यक्ति का दूसरा नाम ‘प्रार्थना’ ही है।
- प्रार्थना व्यक्ति को विशेष आत्मिक शक्ति प्रदान करती है।इसकी एक विशेषता यह है कि इसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है,इसे करने के लिए जाति,वर्ण,धर्म आदि का कोई भेदभाव नहीं है,किसी भी तरह के कर्मकांड की आवश्यकता नहीं है और यह अपना चमत्कारिक प्रभाव सभी के ऊपर समान रूप से दिखाती है।प्रार्थना किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करती;क्योंकि भगवान भाव के भूखे हैं,शाब्दिक जंजालों के नहीं,लेकिन प्रार्थना तभी चमत्कारी होती है,जब हमारा अंतर्मन सच्चाई के साथ भगवान को पुकारता है।इस संसार में लगभग सभी लोगों के अंदर कोई ना कोई अवगुण है।ऐसा कोई नहीं है,जिससे गलती ना होती हो,गलत कर्म न होते हों,फिर प्रार्थना भी तो इसलिए की जाती है कि हम इन सबसे उबरें।इसलिए प्रार्थना करने का सबको समान अधिकार है।
- हमारे जीवन की अँधियारी गलियों व कष्टपूर्ण स्थितियों में प्रार्थना ही आशा की किरण बनकर हमारा पथ प्रदर्शन करती है।सात्त्विक प्रार्थना वह है,जो निष्काम हो अर्थात् भगवान से कुछ मांगे नहीं,प्रार्थना में समर्पित होकर यह कह दें कि ‘हे प्रभु! जिसमें हमारा भला हो,वही हमें देना।’ हम मनुष्य अल्पज्ञ हैं व हमारी सोच भी संकुचित हैं,लेकिन भगवान दूरद्रष्टा व सर्वज्ञ हैं। प्रार्थना प्रभु को याद करने के साथ-साथ उनके प्रति कृतज्ञता का अर्पण भी है।
- कभी-कभी बहुत प्रार्थना करने पर भी हमारी इच्छाएं पूर्ण नहीं होती हैं,ऐसे में व्यक्ति निराश हो जाता है और प्रार्थना को निरर्थक मानने लगता है;जबकि वास्तव में यह सही नहीं है।प्रार्थना कोई ऐसी वस्तु नहीं है कि प्रार्थना करके हमने कुछ मांगा और वो हमें मिल गया तथा हमारी इच्छा पूर्ण हो गई।यह हमारी इच्छापूर्ति करने का साधन नहीं है।प्रार्थना के माध्यम से हम अपनी भावनाओं को भगवान तक पहुंचाते हैं और भगवान भी विभिन्न रूपों में,विभिन्न माध्यमों से हमारी मदद करते हैं,भले ही उन तरीकों को हम पहचान ना पाएँ।
- जब हम सच्चे मन से अपने इष्ट या किसी अलौकिक शक्ति से प्रार्थना करते हैं तो हमें अपने विश्वास के अनुरूप ही सहायता मिलती है।यदि हम संशय के साथ इष्ट से प्रार्थना करते हैं तो वह प्रार्थना नहीं रह जाती और संशय में बदल जाती है।यह संशय हमारी इच्छाशक्ति या संकल्पशक्ति,दोनों को कमजोर कर देता है।अतः इस भाव के साथ की गई प्रार्थना मूल्यहीन है।
3.प्रार्थना कैसे करें? (How to pray?):
- प्रार्थना की कोई भाषा नहीं होती है।वह मौन ही अपने परम प्रभु को अपने भाव को संप्रेषित करती है।भाव-संप्रेषण की तीव्रता के आधार पर इसका प्रभाव पड़ता है।हमारी भावना जितनी तीव्र होगी,हमारे अंदर जितनी कसक एवं पीड़ा होगी,उतनी ही प्रार्थना फलीभूत होती है।जब कोई दुखी व्यक्ति पीड़ा से छटपटाता रहता है तो उसके लिए की गई भाव प्रार्थना अवश्य ही उसकी पीड़ा के निवारण में सहायक होती है।प्रार्थना किसी के लिए भी की जा सकती है और कभी भी की जा सकती है।इसके लिए दूरी बाधक नहीं है।हजारों मील दूर रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए प्रार्थना की जा सकती है।
- विद्यार्थी अपने कर्त्तव्य को पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा के साथ करें तो वही पूजा है,प्रार्थना है।हृदय से,दिल से अपने अध्ययन कार्य को करना प्रार्थना है,पूजा है।हरदम हर कार्य को परमात्मा की सेवा समझकर करना आराधना है,अपने कर्त्तव्य (अध्ययन) का विधिवत पालन करते हुए परीक्षा की सही तरीके से तैयारी करके सही उत्तर लिखने का प्रयत्न करना पूजा है और हरदम भगवान को साथ समझना,परमात्मा के सान्निध्य में बने रहना उपासना (पास बैठना) है।और विद्यार्थी को इसके लिए कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं है क्योंकि कर्म के बिना कुछ नहीं मिलता है वह भगवत् कृपा से ही मिलता है इसलिए अच्छे कर्म करना और भगवान के प्रति समर्पित एवं कृतज्ञ भाव से भरे रहना ही प्रार्थना है।जो अनैतिक तरीके से परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रयास करता है,खोटे,निकृष्ट और पाप कर्म करता है वह विद्यार्थी नहीं बल्कि विद्यार्थी के वेश में दुर्जन है और वह भगवान से जुड़ा नहीं रह सकता।
- विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह किसी स्त्रोत,मंत्र का पाठ करे ही,अपने अध्ययन कार्य को ही पूजा समझकर करता है तो वही प्रार्थना हो जाती है।यदि मंत्र,स्तोत्र का पाठ भी छल-कपट के भाव से की जाए तो प्रार्थना नहीं,आराधना नहीं है।यहाँ यह मंतव्य नहीं है कि पूजा पाठ,स्त्रोत,मंत्र जाप नहीं करना चाहिए परंतु ये तभी फलित होते हैं जब शुद्ध भावना,निष्कपट भावना के साथ की जाती है।कोई भी मंत्रशक्ति,स्रोत या पूजापाठ अशुद्ध भावना से फलित नहीं होती है,साथ ही उसके साथ सत्कर्म,पुरुषार्थ भी करना जरूरी है।मुख्य बात है भाव,भावना और सत्कर्म।भावना के साथ जब सत्कर्म भी जुड़ जाता है तो उसका परिणाम भी विस्मयकारी होता है।यदि केवल प्रार्थना ही करते रहें या केवल कर्म ही करते रहें तो उसका फलित होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
- विद्यार्थी अध्ययन अथवा कोई भी कर्म पूरी निष्ठा से,मन को एकाग्र करके,दिल से करें तो उन्हें न केवल उससे आनंद की अनुभूति होगी बल्कि वही कर्म उनके लिए पूजा,प्रार्थना बन जाएगा।ऐसी प्रार्थना का प्रतिफल भगवान अवश्य देते हैं।यह हो सकता है कि हमें उसका प्रतिफल दिखाई नहीं देता हो अथवा हम समझ न पाएं अथवा हमें प्रतिफल किसी दूसरे रूप में मिले।अतः हमें भगवान में पूर्ण निष्ठा रखकर अपना कर्त्तव्य कर्म करते रहना चाहिए।भगवान के विधि-विधान में कहीं कोई त्रुटि,गलती होने की संभावना नहीं है।अतः अपनी आस्था,श्रद्धा को डिगने नहीं देना चाहिए।पूरे ब्रह्मांड के पिंड अपने पूरे अनुशासन व नियम से बद्ध है कहीं कोई अव्यवस्था नहीं है,वरना कभी के वे टकराकर चकनाचूर हो जाएं।प्रार्थना का यह अर्थ यह नहीं है कि आप बिना करे-धरे ही कुछ भी प्राप्त कर लेंगे।प्रार्थना से भगवान से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और विपत्तियों,संकटों से जूझने की शक्ति मिलती है।प्रार्थना इसलिए भी की जाती है कि भगवान हमें हमारे कर्मों का यथोचित फल प्रदान करें।जिस प्रकार एक विद्यार्थी परीक्षा देता है और उत्तर-पुस्तिका परीक्षक को दे देता है।परीक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं को लेकर अपने पास रखता है।अब यदि छात्र चोरी करके उसमें अंक देकर रख देता है या अंक बढ़ाता है अथवा बोर्ड कर्मचारियों को घूस देकर अंकतालिका में अंक बढ़वाता है तो गलत करता है।
4.प्रार्थना और संकल्पशक्ति (Prayer and Determination):
- प्रार्थना जब प्रार्थी के विह्वल अंतःकरण से निकलती है तो वह पूरी हुए बिना नहीं रहती।ऐसे अनेक अवसरों पर देखा जाता है कि आदमी बार-बार इच्छा करता है और वह पूरी हो जाती है।यह प्रार्थना नहीं संकल्प है।संकल्पबल में भी इतनी शक्ति होती है कि वह अभीष्ट पूर्ति कर दे।संकल्प और प्रार्थना दो भिन्न चीजें हैं।संकल्प भी अंतः का उपार्जन है और प्रार्थना भी,पर दोनों में एक मौलिक अंतर है,वह यह कि संकल्प आत्मा का बल है,जबकि प्रार्थना उसकी पुकार।पुकार और बल दो तत्त्व हैं।एक में दिव्यता है,दीनता है,शालीनता है।दूसरे में सशक्तता है,सबलता है,निर्भीकता है।एक जब कातर पुकार के रूप में निकलती है तो वह पुकार साधारण न रहकर असाधारण शक्तिसंपन्न बन जाती है।दूसरी ओर बल स्वयं में एक शक्ति है।वह जब लक्ष्य को बार-बार सशक्त टक्कर मारता है तो वह मूर्तिमान हो उठता है। दोनों ही विशेषताएं आत्मा की हैं।पूर्ण शुद्ध आत्मा ही पूर्ण सिद्ध होती है और संकल्प के रूप में,प्रार्थना के रूप में ऐसे चमत्कार दिखाती है,जो साधारण स्थिति और अवस्था में आत्मा नहीं दिखा पाती।अतएव हर मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी मौलिकता को,अपनी दिव्यता को,जो आत्मा का स्वाभाविक गुण है,उसे प्रकट करे।ऐसी स्थिति में उसकी साधारण सोच भी संकल्प और प्रार्थना बनकर उभरेगी और व्यक्ति को असाधारण बना देगी।
- प्रार्थना अंतःकरण की पुकार है।बाहरी वेश-विन्यास से उसका कोई मतलब नहीं।यह प्रत्येक आत्मा का गुण है,पर बाहरी आडंबर के कारण वह उसको ढक देता है। यह आच्छादन न हो और आत्मा अपनी पूर्ण सरलता और अकृत्रिमता में प्रकट हो तो दिव्यता का यही भाव प्रार्थना बन जाता है।हम स्वाभाविक बनें,निष्कपट बनें तो हम उस प्रार्थना को उत्पन्न करने में सफल होते हैं।
- संकल्प में निश्चित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभीष्ट पुरुषार्थ करने की लगन होती है,उसमें प्रतिफल के लिए उतावली नहीं होती,उसका निश्चय होता है।उतावली में आदमी समय अधिक लगने पर अधीर हो उठता है। व्यवधान अड़ जाने पर भी उसे अपनाए रहने और कठिनाइयों से जूझते रहने का भी साहस नहीं होता।संकल्प में इच्छाशक्ति और भावनाशक्ति दोनों ही जुड़ी होती है।उसकी रूपरेखा विचारपूर्वक बनाई जाती है और उसे उपलब्ध करने के लिए जिन साधनों और सहयोग की अपेक्षा है,उनकी भी समय रहते व्यवस्था जुटा ली गई होती है।उसके पीछे सुनियोजित भावना रहती है,यह मनोकामना नहीं होती है।मनोकामना तो एक भाववेश है।भावावेश के पीछे विवेकशीलता का समावेश नहीं होता है।
- संकल्प शब्दभेदी बाण की तरह है,जो निशाना बेधकर ही रहता है।पर होता यह है कि हम विकल्पों को,जो बुद्धि का लक्षण है,ही संकल्प समझ बैठते हैं।विकल्पों में एक विकल्प पर चलना प्रारंभ करते हैं और कुछ कठिनाई या समस्या उपस्थित होने पर अन्य विकल्प की तलाश करने लगते हैं।इस प्रकार हर विकल्प को आधा-अधूरे छोड़ते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं।बौद्धिक शक्ति के साथ जब तक आत्मिक शक्ति का सामंजस्य नहीं बैठता तब तक किसी कार्य की सिद्धि होना संभव नहीं है।
5.प्रार्थना से विद्यार्थी को लाभ (Student benefits from prayer):
- प्रार्थना करने अर्थात् भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने से हमारा अहंकार समाप्त होता है।जब देखते हैं कि यह जगत कितने आश्चर्य से भरा हुआ है पर हमें विस्मय होता ही नहीं।हम आश्चर्यचकित नहीं होते तो प्रार्थना कैसे प्रारंभ होगी,प्रार्थना का उदय कैसे होगा? लेकिन विद्यार्थी गहराई से आत्म-विश्लेषण करें तो उसे पता चलेगा कि वह तो इस सृष्टि का एक छोटा सा जीव है।मसलन गणित विषय को ही लें और उसकी एक शाखा का भी अध्ययन करने लगे तब उसे पता चलता है की गणित विषय कितना विशाल है।उसका केवल कुछ अंश का ही अध्ययन कर पाता है।इतना विराट विषय और उसके सवालों में नियमबद्धता देखकर आश्चर्य होता है।इतना सब कुछ देखकर हमें आश्चर्य होता है और हमारा अहंकार दूर होता जाता है।हम सोचने लगते हैं कि हमने गणित विषय का केवल कुछ अध्ययन ही किया है,वह भी रात-दिन एक करके और पूरी जिंदगी निकल गई है।अहंकार खत्म होते ही हमारे अंदर विनम्रता और सरलता का उदय होता है।
- विद्या ग्रहण करने की सार्थकता भी तभी है जब हमारा अहंकार खत्म हो और विनम्रता,सरलता और सादगी का समावेश हो।विनम्रता,सरलता और सादगी से प्रार्थना स्वयं ही निर्मित होने लगती है।प्रार्थना से,कृतज्ञता भाव से हम ऊपर उठते हैं,हमारी तरक्की और उन्नति होने लगती है।हमारे लिए प्रार्थना दोनों क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध होती है।हमारा भौतिक,व्यावहारिक क्षेत्र सुधरता है और आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति होती है।
- कुछ शब्दों,वाक्यों का पाठ कर लेना प्रार्थना नहीं है यह तो हृदय की पुकार है,कुछ पाने के लिए नहीं बल्कि अहोभाव व्यक्त करने के लिए,मन की शांति के लिए की जाती है।शुद्ध अंतःकरण से ही प्रार्थना की जानी चाहिए।
प्रार्थना करने से शरीर एवं मन में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं,शरीर स्वस्थ होता है एवं मनविकारों से मुक्त होकर सकारात्मक चिंतन करने लगता है।
- प्रार्थना से आध्यात्मिक प्रगति भी होती है।प्रार्थना सर्वप्रथम प्रारब्ध जाल-जंजाल का परिष्कार करती है तथा पवित्र हुई चेतना से हम उत्कृष्ट,प्रांजल अध्ययन,मनन,चिंतन कर पाते हैं।चेतना से हमारा व्यावहारिक जीवन,अध्ययन काल,विद्यार्थी काल दिव्य हो उठता है।चेतना की अक्षय ऊर्जा भंडार का उपयोग विद्या अर्जित करने में कर पाते हैं वह (प्रार्थना) चमत्कारी कार्य कर सकती है।अतः प्रार्थना से चमत्कार घटित होते हैं।
- प्रार्थना से अनेक लौकिक एवं अलौकिक उपलब्धियां हस्तगत होती है।प्रार्थना में सभी समस्याएँ समाधान पाती हैं या ठीक होती है;मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं,अंतर तृप्त होता है;बशर्ते कि वह दिल की गहराई से की गई हो।अतः हम भी अपने जीवन में अलौकिक परिवर्तन चाहते हैं तो हमें पवित्र भाव से प्रार्थना करनी चाहिए।इसमें बड़ा बल है।प्रार्थना हमारे एवं जिसके लिए की जाती है,उसके जीवन में अभीष्ट परिवर्तन ला सकती है।अतः परमात्मा का स्मरण करना चाहिए,नित्य प्रार्थना करनी चाहिए।
विद्यार्थियों को उथले मन से,तोतारटन्त की तरह प्रार्थना नहीं करनी चाहिए बल्कि भावपूर्ण प्रार्थना करनी चाहिए।आपका जीवन रूपांतरित होकर कमल के पुष्प की तरह खिल उठेगा,जीवन सुगंधित हो जाएगा।आपका जीवन पवित्र हो जाएगा,आसपास के लोगों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।विद्यार्थी जीवन का कायाकल्प हो जाएगा और शिक्षा अर्जित करने के बाद आप एक पवित्र आत्मा,शुद्ध आत्मा से युक्त होकर निकलेंगे।आपका जीवन पूरी तरह रूपांतरित हो जाएगा,संपर्क में आने वाले भी आपके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। - उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए प्रार्थना करने की 6 विशिष्ट टिप्स (6 Specific Tips to Pray for Students),प्रार्थना क्यों और कैसे करें? (Why and How to Pray?) के बारे में बताया गया है।
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6.ताजा प्रार्थना (हास्य-व्यंग्य) (Fresh Prayer) (Humour-Satire):
- शिष्य (गुरु जी से):आज तो कुछ ताजा-सी प्रार्थना कराओ।
- गुरुजी:ये ताजी और बासी कौन-सी प्रार्थना आ गई और क्या आज तक तुम बासी प्रार्थना ही करते आ रहे हो क्या?
- शिष्य:जी हां।
- गुरुजीःऐसी बात है तो कल आना,कल इसे रिफ्रेश करके तैयार कर लूंगा।
7.छात्र-छात्राओं के लिए प्रार्थना करने की 6 विशिष्ट टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Specific Tips to Pray for Students),प्रार्थना क्यों और कैसे करें? (Why and How to Pray?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.प्रार्थना में क्या भाव होने चाहिए? (What should be the emotion in prayer?):
उत्तर:प्रार्थना अर्थात् भगवान के पास पहुंचने की इच्छा,अपने इष्ट के पास पहुंचने की इच्छा।हम भगवान के शरण में आए हैं,यह भावना प्रार्थना में होनी चाहिए।
प्रश्नः2.प्रार्थना का क्या अर्थ है? (What does prayer mean?):
उत्तर:प्रार्थना के संयोग से हमें बल मिलता है।अपने पास का संपूर्ण बल काम में लाकर और बल को भगवान से मांग करना यही प्रार्थना का मतलब है।
प्रश्न:3.प्रार्थना किनके मेल साधती है? (Whose union does prayer serve?):
उत्तर:प्रार्थना में दैववाद और प्रयत्नवाद का समन्वय है।दैववाद में नम्रता है वह जरूरी है,प्रयत्नवाद में जो पराक्रम है वह भी आवश्यक है,प्रार्थना इसका मेल साधती है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए प्रार्थना करने की 6 विशिष्ट टिप्स (6 Specific Tips to Pray for Students),प्रार्थना क्यों और कैसे करें? (Why and How to Pray?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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