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7 Top Tips of How to Build Character

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1.चरित्र का निर्माण कैसे करें की 7 टॉप टिप्स (7 Top Tips of How to Build Character),चरित्र का निर्माण किस युक्ति से करें? (What Tactics Do You Use to Build Character?):

  • चरित्र का निर्माण कैसे करें की 7 टॉप टिप्स (7 Top Tips of How to Build Character) में बताया गया है कि चरित्र निर्माण की कितनी महत्ती आवश्यकता है और चरित्र का निर्माण किस प्रकार करें।वर्तमान समय में चरित्र निर्माण का अकाल-सा पड़ गया है।आधुनिक जीवन शैली ने सबसे अधिक हमारे चरित्र को प्रभावित किया है।
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2.चरित्र निर्माण आज की महत्ती आवश्यकता (Character building is the need of the very much):

  • मानव सृष्टि का सबसे विचित्र एवं विलक्षण प्राणी है। उसका विरोधाभासी स्वरूप उच्चतर एवं निम्नतर प्रकृति का अद्भुत समुच्चय है।एक ओर जहाँ उसमें दिव्य संभावनाएं भरी पड़ी हैं,दूसरी ओर पाशविक प्रवृत्तियों का बाहुल्य भी उसके अस्तित्व का एक कटु सत्य है।ज्यादातर मनुष्य इसी सत्य को चरितार्थ करते हुए नरकीटक,नरपशु एवं नरपिशाच स्तर का जीवन जीते हैं।वहीं कुछ समझदार एवं साहसी लोग अपनी प्रसुप्त दिव्यता को जगाने का प्रयास करते हैं और अपने देवस्वरूप को प्राप्त करने में सफल होते हैं।वस्तुतः यह चरित्र-निर्माण की वह महान् प्रक्रिया है,जो उसे सृष्टि के अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ,भगवान के राजकुमार के पद पर प्रतिष्ठित करती है।चरित्र-निर्माण की इस प्रक्रिया में जहां व्यक्ति-निर्माण का मर्म निहित है,वहीं समाज-संसार एवं विश्व के सुधार एवं निर्माण का सत्य भी इसमें विद्यमान है।
  • आज समाज एवं युग की अंतहीन समस्याओं का मूल कारण चरित्र-निर्माण के महान कार्य की अपेक्षा ही है।मानव क्षणिक सुख-भोगों एवं क्षुद्र-स्वार्थों की अंधी दौड़ में जीवन के इस सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य को भुला बैठा है।अतः बाह्य प्रगति के नए-नए प्रतिमानों को छूते हुए भी वह आंतरिक अवगति,पतन एवं पराभाव की पीड़ा से त्रस्त है,जो गंभीर मनोरोगों से लेकर कलह,अशांति एवं गहन विषाद के रूप में उसके जीवन को दूभर किए हुए हैं।चरित्र-निर्माण के अभाव में समाधान के ढेरों प्रयास जीवन की खाई-खंदकों को पाटने में असफल उपचार सिद्ध हो रहे हैं।
  • आज हमें जिसकी सर्वोपरि आवश्यकता है,वह चरित्र-निर्माण।इसको पूरा किए बिना हम चाहे जो करें,अस्तित्व के हर स्तर पर हमारी समस्याएं बढ़ती ही जाएँगी।वैयक्तिक हो या पारिवारिक,राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर पर समस्याओं का अंबार लगा हुआ रहेगा।आज की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में समस्याओं के समाधान के ढेरों प्रयास करना,किंतु चरित्र-निर्माण के महत्त्वपूर्ण कार्य को उपेक्षित करना मनुष्य की विवेकशीलता एवं जीवनदृष्टि पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा देता है।
  • चरित्र का यूनानी पर्यायवाची शब्द ‘कैरेक्टर’ है।इसका अर्थ है:जगत में अपने अस्तित्व को उत्कीर्ण करना अर्थात् जगत में अपना अमिट प्रभाव छोड़ना।वस्तुतः चरित्र का यह प्रभाव व्यक्तित्व के सारतत्त्व को प्रतिबिंबित करता है,जो कि इसकी समग्रता से निस्सृत होता है।यह दिलोदिमाग के स्वयंसिद्ध गुणों का वह समुच्चय है,जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन के सत्यों एवं शक्तियों को नियंत्रित करता है तथा रचनात्मक ढंग से नियोजित करता है।इस तरह जीवन की पूर्णता के महान पथ पर आगे बढ़ता है और दूसरों को भी इस कल्याणकारी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
  • इस तरह चरित्र शांत एवं ससीम व्यक्ति द्वारा अपनी अनंतता एवं असीमता को चरितार्थ करने की प्रक्रिया से उद्भूत एक अलौकिक शक्ति है।यह स्वप्रकाशित ज्योति है,जो सूर्य न रहने पर भी अपने आलोक का वितरण करती रहती है।यह वह अजेय शक्ति है,जिसके साथ हारता हुआ योद्धा भी विजयमाला का वरन करता है। चरित्र मनुष्य में जागृत वह दिव्यता है,जिसके समक्ष मूर्खों के अतिरिक्त अन्य सभी का सिर झुक जाता है।चरित्र ही वह सतत उद्दीप्त उत्प्रेरणा है,जो बड़े-से-बड़े प्रलोभनों के बीच भी प्रदीप्त रहती है।यही वह अनश्वर एवं अटल आधार है,जहां से जीवन के अविनश्वर सत्य का बोध होता है।यह मनुष्य की ऐसी अमूल्य संपदा है,जिसे कोई चुरा नहीं सकता,लूट नहीं सकता।

3.चरित्रवान समस्याओं का समाधान करने में समर्थ (Capable of solving problems of character):

  • चरित्र के साथ व्यक्ति किसी भी तरह के वर्तमान एवं भविष्य का सामना कर सकता है।बिना चरित्र के न तो हमारा कोई सार्थक वर्तमान रहता है और न ही कोई आशापूर्ण भविष्य।वस्तुतः कोई भी राष्ट्र एवं समाज अपने चरित्र की अपेक्षा अधिक मजबूत नहीं होता और कोई भी व्यक्ति अपने चरित्र द्वारा प्रदत्त सुरक्षा से अधिक सुरक्षित नहीं होता।
  • आज जब सच्चे इंसानों का अकाल-सा हो गया है,मनुष्य अपने जीवन को निरर्थक एवं असुरक्षित अनुभव कर रहा है तथा राष्ट्र एवं विश्व में हिंसा,अशांति तथा अराजकता व्याप्त है,ऐसे में मानव की सबसे निर्णायक आवश्यकता चरित्र-निर्माण बन गई है।वस्तुतः यही सच्चे मनुष्य के निर्माण का रसायन है।
  • चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने ठीक ही कहा था कि प्रखर चरित्र के साथ व्यक्ति सच्चा इंसान बन जाता है और सच्चा इंसान ही अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है तथा दूसरों के समाधान में मदद कर सकता है।उनके शब्दों में,”जो इंसान सच्चा नहीं है,वह ना तो अधिक देर तक गरीबी को झेल सकता है और न ही अमीरी को संभाल सकता है;क्योंकि चरित्र के अभाव में गरीबी उसे निष्ठुर बना देती है और अमीरी बर्बर।”
  • जीवन में चरित्र की महती आवश्यकता है।इच्छाशक्ति के सशक्तीकरण की है।इच्छाशक्ति का सतत अभ्यास करते जाओ,यह तुम्हें ऊंचा उठाएगी।यह इच्छा सर्वशक्तिमान है।कठिनाइयों की दुर्भेद्य दीवारों को चीरकर आगे बढ़ने की शक्ति चरित्र में ही है।मनुष्य का चरित्र उसकी वृत्तियों का सार है,उसके मन के झुकाव का योग है।हम वही हैं,जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है।विचार जीवित रहते हैं।वे दूर-दूर तक यात्रा करते हैं।अतः जो तुम सोचते हो,उस पर ध्यान रखो।प्रत्येक कर्म जो हम करते हैं,प्रत्येक विचार जिसका हम चिंतन करते हैं,चित्त पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं।प्रत्येक क्षण हम जो होते हैं,उसका निर्धारण मन के इन प्रभावों द्वारा निर्धारित होता है।प्रत्येक मनुष्य के चरित्र का निर्धारण इन प्रभावों के सारयोग से होता है।यदि प्रभाव अच्छा हों,तो चरित्र अच्छा होता है और यदि बुरे हों तो चरित्र बुरा होता है।
  • इस तरह कोई भी व्यक्ति सद्चिंतन एवं सद्कर्मों द्वारा चरित्र का निर्माण कर सकता है,किंतु निर्माण के बाद इसे खो भी सकता है।अतः चरित्र को सतत पोषण की आवश्यकता होती है,जैसे कि जीवित रहने के लिए सतत श्वास की जरूरत होती है।वस्तुतः चरित्र-निर्माण का मर्म अनुशासित जीवन में निहित है।आत्मानुशासन जीवन से भी अधिक कीमती है,क्योंकि उसी से मनुष्य जीवनमूल्य प्राप्त करता है।अनुशासन के अभाव में जब हम उच्च आदर्शों एवं मूल्यों के अनुरूप जीवन को संगठित करने में विफल हो जाते हैं,तो हम अंदर से विघटित हो जाते हैं और बाहरी तौर पर समाज से समायोजन कर पाने में विफल हो जाते हैं।
  • चरित्र-निर्माण में श्रेष्ठ चिंतन का जहाँ अपना महत्त्व है,वहीं श्रेष्ठ आचरण इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।जहाँ चरित्र आचरण का निर्धारण करता है,वहीं श्रेष्ठ आचरण द्वारा चरित्र का गठन होता है।चरित्र-निर्माण में नैतिक आचरण की अक्षुण्णता तभी साधित हो सकती है,जब जीवन का लक्ष्य तथा इसकी परिपूर्णता का खाका स्पष्ट हो;क्योंकि तभी अपने जीवन के उच्चतम विश्वासों एवं आस्थाओं को मूल्यनिष्ठा की कसौटी पर कसने का साहस एवं उत्साह उभर पाता है।

4.चरित्र निर्माण कैसे हो? (How to build character?):

  • इस तरह चरित्र-निर्माण आत्मनिरीक्षण,आत्मशोधन एवं आत्मविकास की महान प्रक्रिया है,जो श्रेष्ठ चिंतन व आचरण द्वारा पुष्ट होती है तथा इन्हें प्रभावित करती है।यह सतत श्रेष्ठ व अवांछनीय तत्त्वों के विभेद की प्रक्रिया है,जिसमें श्रेष्ठ को वरण करने एवं धारण करने तथा अवांछनीय तत्त्वों को त्यागने की तत्परता बरती जाती है।अतः यह दैनन्दिन जीवन में नित्यप्रति सद्गुणों को अभ्यास द्वारा आदत में शुमार करने की प्रक्रिया है।
  • इस तरह अनुशासन जीवन पद्धति द्वारा अनगढ़ मन को अभ्यास द्वारा सुगढ़ बनाया जाता है और क्रमशः अंतर्निहित दिव्यता के जागरण का मार्ग प्रशस्त होता है तथा निम्न प्रकृति आध्यात्मिक या दिव्य प्रकृति में रूपांतरित होती जाती है।कन्फ्यूशियस के शब्दों में,”यही सर्वोच्च उपलब्धि है,जब हम अपने-अपने नैतिक अस्तित्व के केंद्रीय तत्व में स्थित हो जाते हैं,जो हमें ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जोड़ता है तथा व्यक्ति केंद्रीय समस्वरता को प्राप्त होता है।”
  • “तब व्यक्ति बाह्य विषय-वस्तुओं की कामना से मुक्त हो जाता है तथा मन आत्मा में स्थिर हो जाता है।यही चरित्र की परिपूर्णता है,जो अनुशासित एवं साधनामय जीवन का चरमोत्कर्ष है।”
  • यही चरित्र-निर्माण की वह महान् प्रक्रिया है,जिसमें इस सुरदुर्लभ मानव जीवन की सार्थकता का मर्म-बोध निहित है।यह अपने सुधार द्वारा समाज-सुधार एवं विश्व-निर्माण की सार्थक प्रक्रिया भी है।इसी को जीवन का एक आदर्श मंत्र माना जा सकता है कि “पहले स्वयं को गढ़ो और फिर दूसरों को इस सांचे में ढालो,उद्घोष किया था।”

5.गणित का विद्यार्थी कैसा हो? (How is a math student?):

  • गणित एक ऐसा अमूर्त विषय है जिसको समझने में गणित के विद्यार्थी का न केवल चरित्र उज्ज्वल होना चाहिए बल्कि कई मानसिक गुणों की आवश्यकता होती है।गणित का छात्र स्वयं की सूझबूझ एवं क्षमता से इस विषय को अत्यंत रोचक बना सकता है तथा विद्यार्थी स्वयं में सोचने,समझने,निरीक्षण,विश्लेषण,तर्क-वितर्क,निर्णय आदि मानसिक शक्तियों का विकास कर सकता है।गणित का विद्यार्थी अपने प्रभावी अध्ययन द्वारा स्वयं में आत्मविकास,निष्पक्षता एवं गणितीय दृष्टिकोण का विकास कर गणित अध्ययन के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।प्रभावी अध्ययन के लिए गणित सीखने की प्रक्रिया का समुचित ज्ञान एवं विद्यार्थियों को मनोविज्ञान की जानकारी आवश्यक है।अच्छे से अच्छे पाठ्यक्रम में प्रवीणता निष्ठावान विद्यार्थी पर निर्भर करता है।नकारात्मक दृष्टिकोण वाले तथा उत्साहीन विद्यार्थी गणित विषय को कभी रुचिकर विषय नहीं बना पाते हैं।
  • गणित विषय की स्वयं की अपनी अपेक्षाएं हैं जिनकी संतुष्टि के लिए गणित के विद्यार्थी को विशेष प्रयास करना आवश्यक होता है।गणित विषय अधिकांश संकल्पनाओं तथा गणितीय संबंधों से बनी विषय सामग्री है और इस प्रकार की पाठ्य-सामग्री के अध्ययन के लिए गणित के विद्यार्थी का कार्य अत्यंत कठिन हो जाता है।अन्य विषयों के विद्यार्थियों का कार्य संभवतः इतना जटिल नहीं होता,क्योंकि गणित में उच्च स्तर का तर्क,चिंतन संबंधों का अध्ययन तथा निर्णय शक्ति की आवश्यकता होती है।गणित के सफल अध्ययन के लिए अध्ययन,मनन,चिंतन और अभ्यास आवश्यक है।गणित के अध्ययन में एक विशेष बात यह भी है कि छात्रों के गणित ज्ञान में कमियाँ (Gaps) रहने से उन्हें आगे के उपविषयों को सीखने में बहुत कठिनाई होती है तथा विद्यार्थी इन कमियों के कारण प्रगति नहीं कर पाते।इस कारण गणित विद्यार्थी को अत्यंत सतर्क रहना आवश्यक है।कोई भी विद्यार्थी यदि एक बार गणित में पिछड़ जाता है तो गणित पर पकड़ मजबूत करने के लिए विशेष प्रयास करना आवश्यक हो जाता है।

6.गणित का विद्यार्थी चरित्रवान हो (A student of mathematics should have character):

  • उपर्युक्त विवरण में केवल यह बताया गया है की गणित के विद्यार्थी का बौद्धिक स्तर कैसा हो? परंतु बुद्धि तेजस्वी हो इतना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसका आचरण,चरित्र भी उज्ज्वल,निष्कलंक,साफ-सुथरा और अच्छा हो।आचरण का गणित के अध्ययन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से बहुत प्रभाव पड़ता है।सदाचारी विद्यार्थी ही गणित का अध्ययन ठीक प्रकार से कर सकता है।सदाचारी विद्यार्थी का ही सहयोग करने के लिए अन्य विद्यार्थी भी तत्पर रहते हैं।कई विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर तो बहुत अच्छा होता है परंतु आचरण के मामले में अच्छे विद्यार्थी नहीं होते हैं।ऐसे विद्यार्थी से अन्य विद्यार्थी किनारा करने लगते हैं।उनसे दूरी बनाकर रखते हैं,घनिष्ठता नहीं रखते हैं।
  • सदाचार के कारण बुद्धिमान छात्र-छात्रा के गुण वैसे ही सुशोभित हो जाते हैं जैसे स्वर्ण में जड़ित रत्न सुशोभित होता है।आपस में मेलजोल रखने वाला,विनम्र,सहनशील,सरल,ईमानदार आदि गुणों से सम्पन्न विद्यार्थी अपने मित्रों,सहपाठियों,अध्यापकों,माता-पिता आदि का ही नहीं बल्कि हर मिलने जुलनेवालों का प्रिय पात्र बन जाता है।
  • आधुनिक शिक्षा में नैतिक व चारित्रिक गुणों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है फलस्वरूप छात्र उद्दण्ड,उत्पाती,आचरणहीन बन जाते हैं।ऐसे विद्यार्थी अच्छे अंक अर्जित करने के कारण भले ही अच्छे लगते हों परंतु जीवन क्षेत्र में उतरते हैं,जॉब करते हैं,गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं तो उनकी करतूतों को कोई भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है।सदाचारी छात्र व व्यक्ति हर कहीं,हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ता है,उससे हर कोई संबंध बनाना चाहता है।एक बेईमान व्यवसायी व व्यापारी भी ईमानदार व सदाचारी व्यक्ति को ही नौकरी पर रखना पसंद करता है।
  • गणित का अध्ययन करने के लिए विशेष एकाग्रता,चिंतन-मनन,विद्या ग्रहण करने की लगन,ईमानदार,अनुशासन प्रिय,संयमी,धैर्य,संतोषी,विनम्रता,सरलता आदि गुणों की आवश्यकता होती है।यदि ये गुण नहीं है तो बुद्धि के बल पर शुरू में भले कोई विद्यार्थी सफलता प्राप्त कर सकता है परंतु ज्यों-ज्यों ऊपर उठता है तो आगे ऊपर प्रगति की गति रुक जाती है।
  • महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों,शिक्षकों और महापुरुषों का जीवन चरित का अध्ययन करके देख लो।उन सभी में ये तथा इनके अलावा भी अनेक गुण विद्यमान थे तभी वे इतने ऊंचे पायदान पर चढ़ सके थे।गणित के विद्यार्थियों में ये गुण अवश्य होने ही चाहिए।
  • चरित्रवान बनने के लिए विद्यार्थी को अच्छे विचार रखना चाहिए।सकारात्मक चिंतन करना चाहिए,मन में नकारात्मक चिंतन नहीं करना चाहिए।अच्छे मित्रों,अच्छे लोगों के साथ ही सत्संग करना चाहिए।भूल से भी दुराचारी,दुर्जन छात्र-छात्राओं के साथ सत्संग नहीं करना चाहिए क्योंकि पतन होने में देर नहीं लगती है परंतु ऊपर चढ़ने के लिए समय लगता है,बहुत तपस्या करनी पड़ती है साथ ही जितना ऊपर चढ़ते हैं उतना ही सावधान,सजग,सचेत रहना पड़ता है क्योंकि ऊपर चढ़ने पर गिरने के अधिक चांसेज होते हैं।हमेशा सत्साहित्य,ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।अधिक से अधिक गुणों को,सद्गुणों को धारण करने की चेष्टा करनी चाहिए।
  • सदाचारी बनना तप है और तपस्या में कष्ट-कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है।एक-एक विकार,दुर्गुणों को हटाने में कठिन संघर्ष करना पड़ता है तब कहीं जाकर दुर्गुण कट-कटकर,गलकर बाहर निकलते हैं।
  • पतन के लिए जीभ और कामवासना ये ही सबसे अधिक जिम्मेदार होते हैं।इन पर नियंत्रण के लिए मन को साधना पड़ता है,मन पर नियंत्रण करना पड़ता है,मन बिगड़ैल पशु की तरह है जो एक बार बिदकता है तो अपने सवार को ऐसा पटकता है जिससे हाथ-पैर ही नहीं शरीर भी बुरी तरह से जख्मी हो जाता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में चरित्र का निर्माण कैसे करें की 7 टॉप टिप्स (7 Top Tips of How to Build Character),चरित्र का निर्माण किस युक्ति से करें? (What Tactics Do You Use to Build Character?) के बारे में बताया गया है।

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7.छात्र के चरित्र का निर्माण (हास्य-व्यंग्य) (Building Student’s Character) (Humour-Satire):

  • छात्र ने अपनी मां से पूछा:आखिर आप मुझे स्कूल क्यों भेजती हो?
  • मां:तुम्हारे चरित्र का निर्माण करने के लिए,तुम्हें एक अच्छा इंसान बनाने के लिए।
  • छात्र:पर गुरुजी तो कहते हैं तू गधा है,गधा बन जा।

8.चरित्र का निर्माण कैसे करें की 7 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 7 Top Tips of How to Build Character),चरित्र का निर्माण किस युक्ति से करें? (What Tactics Do You Use to Build Character?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.चरित्र की क्या महत्ता है? (What is the importance of character?):

उत्तर:चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्त्व है और वह प्रतिभा से उच्च है।चरित्र शक्ति है।ज्ञान व्यक्ति के चरित्र को और अच्छा बनाता है।

प्रश्न:2.चरित्र का निर्माण कैसे वातावरण में होता है? (In what environment is character constructed?):

उत्तर:गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होते हैं;चरित्र का निर्माण संसार के भीष्ण कोलाहल (तेज प्रवाह) में होता है।

प्रश्न:3.चरित्र और ख्याति में अंतर स्पष्ट करें। (Distinguish between character and reputation):

उत्तर:चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है।छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं,परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा चरित्र का निर्माण कैसे करें की 7 टॉप टिप्स (7 Top Tips of How to Build Character),चरित्र का निर्माण किस युक्ति से करें? (What Tactics Do You Use to Build Character?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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