6 Spells of How to Succeed with Etique
1.शिष्टाचार से से सफल कैसे हों के 6 मंत्र (6 Spells of How to Succeed with Etique),जीवन में सफल होने के लिए शिष्टाचार की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips of Etique to Succeed in Life):
- शिष्टाचार से से सफल कैसे हों के 6 मंत्र (6 Spells of How to Succeed with Etique) के आधार पर आप जान सकेंगे कि शिष्टाचार हमारे लिए,जॉब के लिए और विद्यार्थी जीवन में कितना उपयोगी है।शिष्टाचार से परायों को अपना बनाया जा सकता है और अशिष्ट व्यवहार से अपने भी पराए हो जाते हैं।
- यह लेख प्रतियोगिता परीक्षाओं तथा आपस के सम्बन्धों का निर्वाह करने के लिए उपयोगी है।
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2.शिष्टाचार जीवन का दर्पण (Etiquette is the mirror of life):
- शिष्टाचार मनुष्यता की सबसे बड़ी पहचान है।मनुष्य को मनुष्य की तरह ही रहना शोभा देता है।जो मनुष्य होते हुए भी अपने शील-स्वभाव को उसके अनुरूप नहीं ढालता,वह पशु से भी गया गुजरा होता है।पशु तो पशु होता है,उसमें वह विवेक-बुद्धि नहीं होती जिसके बल पर वह अपने आचरण को सुंदरता के साँचे में ढाल सके,किंतु परमात्मा ने मनुष्य को विशेष रूप से बुद्धि-विवेक का बल दिया है,ताकि वह अपनी जड़ता का परिष्कार करके सुंदर एवं सभ्य बन सके।
- शिष्टाचार जीवन का दर्पण है,जिसमें हमारे व्यक्तित्व का स्वरूप दिखाई देता है।शिष्टाचार के माध्यम से ही मनुष्य का प्रथम परिचय समाज को होता है।अच्छा हो या बुरा,इसका दूसरों पर कैसा प्रभाव पड़ता है,यह हमारे उस व्यवहार पर निर्भर करता है,जो हम दूसरों से करते हैं।शिष्ट व्यवहार का दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है,दूसरों की सद्भावना,आत्मीयता और सहयोग की प्राप्ति होती है साथ ही समाज में लोकप्रियता बढ़ती है। इसके विपरीत अशिष्ट व्यवहार दूसरों में घृणा,द्वेष पैदा कर देता है,अशिष्ट व्यक्ति को कोई आत्मीय सहयोग नहीं मिलता,अपने भी पराये बन जाते हैं।अशिष्टता से व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है।अशिष्ट व्यक्ति को समाज अकेला छोड़ देता है।निःसंदेह मनुष्य में कोई विशेषता या आकर्षण ना हो,परंतु शिष्ट व्यवहार से सहज ही दूसरों की सद्भावनाएँ अर्जित की जा सकती है,जो जीवन-पथ पर आगे बढ़ने के लिए बड़ी उपयोगी और आवश्यक है।शिष्टाचार और सद्व्यवहार से विरोधियों को भी अपना बनाया जा सकता है।यह वह अमृत है,जिससे कटुता,विरोध और शत्रुता पिघल जाते हैं।
- शिष्टाचार व्यवहार की वह रीति-नीति है,जिसमें व्यक्ति एवं समाज की आंतरिक सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं।परस्पर बातचीत,संबोधन से लेकर दूसरों की सेवा,त्याग,सम्मानयुक्त भावनाएं आदि तक शिष्टाचार में आ जाते हैं।शिष्टाचार हमारे आचरण एवं व्यवहार का नैतिक मापदंड है,जिस पर सभ्यता एवं संस्कृति का भवन निर्माण होता है।एक दूसरे के प्रति सद्भावना,सहानुभूति,सहयोग आदि शिष्टाचार के मूलाधार हैं।इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नम्र,विनयशील,आदरपूर्ण उदार आचरण ही शिष्टाचार है।
- शिष्टाचार का क्षेत्र उतना ही व्यापक है,जितना हमारे जीवन-व्यवहार का।समाज में जहां-जहां भी हमारा दूसरे व्यक्तियों से संपर्क होता है,वहीं शिष्टाचार की आवश्यकता पड़ती है।घर में परिवार के छोटे से लेकर बड़े सदस्यों के साथ,सभी जगह हमें शिष्टाचार की आवश्यकता पड़ती है।जहां एक से अधिक व्यक्तियों का संपर्क हो,वहीं शिष्टाचार की अपेक्षा रहती है।हमारा संपूर्ण जीवन,कार्य-व्यापार,मिलना-जुलना सभी में शिष्ट व्यवहार की आवश्यकता पड़ती है।
- शिक्षा,सम्पन्नता एवं प्रतिष्ठा की दृष्टि से कोई व्यक्ति ऊंचा हो और उसे हर्ष के अवसर पर हर्ष,शोक के अवसर पर शोक की बातें न करना आए तो लोग उसके सम्मुख सम्मान भले ही करें,परंतु मन में उसके प्रति कोई अच्छी धारणाएं नहीं रख सकेंगे।शिष्टाचार और लोक-व्यवहार का यही अर्थ है कि हमें समयानुकूल आचरण एवं बड़े-छोटे से उचित बरताव करना आए।यह गुण किसी विद्यालय में प्रवेश लेकर अर्जित नहीं किया जा सकता,इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए संपर्क एवं पारस्परिक व्यवहार का अध्ययन तथा क्रियात्मक अभ्यास ही किया जाना चाहिए।
3.शिष्टाचार का हर कहीं पालन आवश्यक (Etiquette is necessary everywhere):
- अधिकांश व्यक्ति यह नहीं जानते कि किस अवसर पर,किस व्यक्ति से,कैसा व्यवहार करना चाहिए।कहाँ किस प्रकार उठना-बैठना चाहिए और किस प्रकार चलना-रुकना चाहिए।यदि खुशी के अवसर पर शोक और शोक के अवसर पर हर्ष की बातें की जाएँ या बच्चों के सामने दर्शन एवं वैराग्य तथा वृद्धजनों की उपस्थिति में बालोचित या युवकोचित शरारतें,हास्य-विनोद अथवा गर्मी में चुस्त,गरम,भड़कीले वस्त्र और शीत ऋतु में हल्के कपड़े पहने जाएँ तो देखने-सुनने वालों के मन में आदर नहीं उपेक्षा और तिरस्कार की भावनाएँ ही आएँगी।
- खान-पान,वेशभूषा,चलने-खड़े होने,उठने-बैठने और कहीं आने-जाने में शिष्टाचार बरतना आवश्यक है।शिष्टता व्यक्ति के अंग-अंग और छोटे से छोटे कार्यों में व्यक्त होनी चाहिए अर्थात् क्षण-क्षण शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए।मानवीय सभ्यता के स्तर को बनाए रखने का उत्तरदायित्व हम कितनी कुशलता के साथ निभा रहे हैं,यह हमारे आचरण और व्यवहार में बरते गए शिष्टाचार से ही जाना जा सकता है,लेकिन शिष्टाचार की कोई सर्वांगपूर्ण परिभाषा नहीं की जा सकती,क्योंकि उसका क्षेत्र बहुत व्यापक है।वह व्यक्ति द्वारा प्रतिपल होने वाली क्रियाओं का नियमन करता है और उसके स्वरूप का निर्धारण करता है।फिर भी उस संबंध में यह मानकर चला जा सकता है कि दूसरों के द्वारा हम जिस प्रकार सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं,उसी प्रकार दूसरों के प्रति स्वयं भी व्यवहार करना चाहिए।जिन कारणों से हमें अपनी भावनाओं पर ठेस लगती अनुभव हो,उन कारणों को स्वयं भी दूसरों के लिए प्रस्तुत न किया जाए।
- सद्व्यवहार,सदाचार आदि शिष्टाचार के ही अंग हैं।शिष्टाचार मन,वचन,कर्म से किसी को हानि नहीं पहुंचाता।वह दुर्वचन कभी नहीं बोलता।न मन से किसी का बुरा चाहता है।जिससे किसी का दिल दुःखे,ऐसा कार्य भी वह नहीं करता।विनय और मधुरतायुक्त व्यवहार ही उसके जीवन का अंग होता है।किसी भी तरह के अभिमान की शिष्टाचार में गुंजाइश नहीं रहती।नम्रता,विनयशील आदि सद्गुण शिष्टाचार के आधार हैं।इतना ही नहीं शिष्टाचारी की संपदा समृद्धि बढ़ने के साथ ही उसकी निरभिमानता,नम्रता और विनयशीलता बढ़ती जाती है।जिस तरह फलों के बोझ से वृक्ष नीचे झुक जाते हैं,उसी तरह ऐसे व्यक्तियों का ऐश्वर्य बढ़ने पर भी नम्रता और विनयशीलता बढ़ जाती है।
- शिष्टाचार एक ऐसा सद्गुण है,जिसे अभ्यास और आचरण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।इसके लिए किन्हीं विशेष परिस्थितियों या उच्च खानदान में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं।किसी भी स्थिति का व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक शिष्टाचार का अभ्यास जीवन में डाल सकता है।इसके लिए संवेदनशीलता,हृदय की कोमलता अत्यावश्यक है।ऐसे व्यक्ति का अपने व्यवहार और जीवन क्रम में छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान रहता है,जिससे दूसरों को कोई दुःख महसूस ना हो।किसी का दिल न दुःखे।शिष्टाचार में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
- स्मरण रहे शिष्टाचार का संबंध मनुष्य के हृदय से है।यह आत्मरंजन का माध्यम है।इसका आधार आत्मिक सौजन्य है।कृत्रिमता का शिष्टाचार में तनिक भी स्थान नहीं है।बनावटीपन से एकदूसरे का आत्मरंजन नहीं होता और यह एक मशीनवत रूखी प्रक्रिया मात्र बनकर रह जाता है।इस तरह का कृत्रिम शिष्टाचार सीधे,भोले-भाले व्यक्तियों को प्रभावित कर उनसे अपना उल्लू सीधा करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।आजकल के तथाकथित सभ्य और पढ़े-लिखे समाज में इसी तरह का कृत्रिम शिष्टाचार बढ़ता जा रहा है,जिसमें एकदूसरे के हृदय का मिलन ही नहीं हो पाता और यह एक निर्जीव प्रक्रिया मात्र बनकर रह जाता है।शिष्टाचार आत्मा की अभिव्यक्ति है।जिस शिष्टाचार में हमारा हृदय नहीं उमड़ता,जिसमें आत्मा दूसरों से ऐक्य प्राप्त करने के लिए मचल नहीं उठती,जिससे एकदूसरे में प्रसन्नता,आनंद,सुख की लहरें नहीं उठती,वह शिष्टाचार व्यर्थ है।एक दूसरे के लिए धोखा है और तथाकथित चालाकी,कूटनीति या छल का ही एक अंग है।
4.अशिष्टता का व्यवहार त्याज्य (Abandon rude behavior):
- आजकल अशिष्टता की व्यापक रूप से वृद्धि होती जा रही है।व्यवहार में उच्छृंखलता बढ़ती जा रही है।यह हमारे समाज और देश के लिए एक अभिशाप है।दूसरे के प्रति सम्मान,सद्व्यवहार आदि का कोई ध्यान नहीं रखकर अपने स्वार्थ और स्वेच्छाचार से प्रेरित होकर दूसरों के साथ मनमाना व्यवहार करना अशिष्टता है। दूसरों की भावनाओं का ध्यान न रखकर,उनका मजाक उड़ाना,तर्क कसना,व्यंग्य बाण मारना,दूसरों में त्रुटियां निकाल कर उनका उपहास करना,अशिष्टता का साकार रूप है।अभिभावकों की उपेक्षा या कुसंगति के फलस्वरूप बच्चे गाली का प्रयोग करना,भद्दे-अश्लील वचन बोलना आदि सीख लेते हैं और फिर इसमें तनिक भी लज्जा महसूस नहीं करते।घर हो या बाहर,एकांत स्थान हो या सार्वजनिक,लोगों को बुरे शब्द बोलते,अशिष्ट आचरण करते हुए देखा जा सकता है।सभा,जुलूसों में भाग लेते समय,रेल में सफर करते समय,सिनेमाओं में इस तरह का कुत्सित आचरण,अशिष्ट आचरण लोगों में सहज ही देखा जा सकता है।गुरुजनों अथवा परिवार में वृद्धजनों का सम्मान,आदर,उन्हें प्रणाम करने,पैर छूने की परंपराएँ भी मिटती जा रही हैं।आज के शिक्षित और सभ्य कहे जाने वाले लोग इसमें अपना अपमान समझते हैं।
- कुछ भी हो,किसी भी रूप में अशिष्टता मानव जीवन का बहुत बड़ा कलंक है,समाज में बढ़ती हुई अशिष्टता देश और जाति के लिए हानिकारक है।इसे हेय और त्याज्य माना जाए।दैनिक जीवन की छोटी से लेकर बड़ी बातों में शिष्टाचार हमारी सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है।किसी भी तरह की अशिष्टता अपनी असभ्यता और पिछड़ेपन की निशानी है।इससे दूसरे लोगों में हमारी साख और कीमत कम होती है।
- आवश्यकता इस बात की है कि हमारे पारिवारिक,सामाजिक,राष्ट्रीय जीवन में बढ़ती हुई अशिष्टता को व्यापक स्तर पर दूर किया जाए,तभी हम विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगे।परस्पर व्यवहार,बातचीत,रहन-सहन में शिष्टाचार के सिद्धांतों का पालन करने का हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए।बचपन से ही उठने-बैठने,बोलने-चलने,व्यवहार करने के शिष्ट तरीके सीखे जाएँ,बच्चों के अशिष्ट आचरण में सुधार की ओर ध्यान दिया जाए।इसके लिए शिष्टाचार का स्वयं आचरण करके अपने से छोटों के समक्ष हमें उनके सुधार का उदाहरण पेश करना चाहिए।इसके माध्यम से ही नैतिकता का विकास परिवार एवं समाज में होता है।शिष्ट व्यक्ति सभी की दृष्टि में सभ्य एवं सम्मान का प्रतीक होता है।यदि शिष्टाचार के महत्त्व को समझकर परिवार में इसे प्राथमिकता के साथ अंगीकार किया जाए,तो निश्चित रूप से सभ्य परिवार एवं समाज का निर्माण हो सकेगा।
5.छात्र-छात्राओं के लिए उपयोगी (Useful for students):
- शिष्टाचार छात्र-छात्राओं के लिए दोनों तरफ से उपयोगी है।इससे पूर्व लेख में जॉब के लिए शिष्टाचार कैसे उपयोगी है यानी परीक्षा के दृष्टिकोण से इंटरव्यू की तैयारी के लिए लेख लिखा गया था।दूसरे लेख में शिष्टाचार को उदाहरणों के जरिए समझाया गया था।इस लेख में सामाजिक और व्यवहारिक जीवन में शिष्टाचार का पालन कैसे और क्यों करें,इसके बारे में बताया गया है।शिष्टाचार की आवश्यकता आम जीवन,व्यवसाय में,रिश्तों-नातों में और इंटरव्यू के दौरान हर कहीं पड़ती है।विद्यार्थी जीवन शिक्षा स्थली है अतः शिक्षास्थली छोड़ते हुए उसे कर्मस्थली जॉब में,गृहस्थ जीवन में तथा पारिवारिक जीवन में शिष्टाचार का पालन करना जरूरी होता है।अतः विद्यार्थी जीवन में ही शिष्टाचार का पालन करना सीख लेना चाहिए।अक्सर शिक्षा अर्जित करते समय विद्यार्थी इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं।इसका कारण है कि विद्यार्थी अपने कोर्स की पुस्तकें पढ़ने में ही लगे रहते हैं,दूसरा उन्हें शिष्टाचार की उपयोगिता का ज्ञान नहीं होता है।सामाजिक,गृहस्थी जीवन तो फिर भी टूटे-फूटे शिष्टाचार से धका लेते हैं परंतु व्यवसाय और इंटरव्यू में शिष्टाचार के बिना आप सक्सेस नहीं हो सकते हैं।
- विद्यार्थी जीवन में भी शिष्टाचार के बिना आप अपना काम नहीं कर सकते हैं।किसी सहपाठी,मित्र से या शिक्षक से सवाल पूछना हो तो शिष्टाचार के बिना आपको वे बताने के लिए तैयार नहीं होंगे।लेकिन आप प्लीज,माय डियर मोहन और शिक्षक को गुरुदेव,प्लीज सर,डिअर सर आदि संबोधन करके बोलेंगे तो आपको सवाल या प्रश्न तत्काल बताने के लिए तैयार हो जाएंगे।यात्रा के समय,विभिन्न सामाजिक फंक्शन में,स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में,वार्षिक उत्सव में,शादी-विवाह आदि में,रिश्तेदारों,मित्रों,सहपाठियों से वार्तालाप या गुफ्तगू करते समय शिष्टाचार का पालन करना जरूरी है।अपने से बड़ों को आप कह कर संबोधित करें,वाणी में मिठास और विनम्रता झलकनी चाहिए।
- साक्षात्कार केवल ज्ञान की परीक्षा नहीं है बल्कि आपके बोलचाल,हावभाव,आपके आचरण यानी संपूर्ण व्यक्तित्व को जाँचा परखा जाता है।व्यक्तित्व का गठन केवल ज्ञान से नहीं बल्कि सरलता,विनम्रता,शिष्टाचार,धैर्य,ईमानदारी,जागरूकता आदि अनेक गुणों से निर्मित होता है।अतः शिष्टाचार का पालन करना विद्यार्थी काल से ही आरंभ कर देना चाहिए क्योंकि शिक्षा पूरी करने के बाद व्यक्तित्व का गठन करना बहुत मुश्किल होता है।बचपन में ही हमारे अंदर व्यावहारिक व आचरण संबंधी मूल गुणों का विकास होते-होते युवा अवस्था तक परिपक्व हो चुके होते हैं।आप चाहे प्राइवेट जॉब करें या स्वयं का स्टार्टअप खड़ा करें उसमें कस्टमर से शिष्टाचार पूर्वक व्यवहार करने से वह कस्टमर आपसे जुड़ाव रखेगा। हालांकि आधुनिक युग बिल्कुल प्रोफेशनल हो गया है तब भी शिष्टाचार की,मानवीय गुणों की महत्ता कम नहीं हो जाती है।शिष्टाचार से सौम्य,सुसंस्कृत और सभ्य व्यवहार करने में कुशल और सबका चहेता बन जाता है।साक्षात्कार में ऐसा विद्यार्थी इंटरव्यूअर पर प्रभावी छाप छोड़ता है।यदि आप विषय का प्रस्तुतीकरण शिष्ट व्यवहार के साथ करते हैं तो साक्षात्कार में आप अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
- शिष्टाचार का दायरा इतना व्यापक है कि हमारा जीवन समाप्त हो जाता है लेकिन शिष्टाचार की बातें,सदाचरण को सीखना बाकी रह जाता है।अतः अभी से विद्यार्थीकाल से ही छोटी-छोटी बातों में,आपसी व्यवहार में,वार्तालाप में शिष्टतापूर्वक व्यवहार को सीखते रहना चाहिए ताकि आप अपने गृहस्थ जीवन को सुख-शांति और सफलता के साथ जाॅब और व्यवसाय को तहेदिल से,शिष्टाचार से नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकें।इंटरव्यू में आपको बगले नहीं झाँकना पड़े,शिष्टतापूर्वक व्यवहार से साक्षात्कार मंडल को प्रभावित कर सकें।विद्यार्थी को अपने गुणों को विकसित करने के लिए,विद्या ग्रहण करने के लिए कष्ट,कठिनाइयाँ तो थोड़ी-बहुत सहन करनी ही चाहिए।गुणों को विकसित करने में हमारे मनोविकार,हमारी गलत आदतें अवरोधक बन जाती हैं अतः उनको हटाकर गुणों को विकसित करने में कष्ट होता है,तप करना पड़ता है।लेकिन एक कर्मयोगी की तरह यदि आप लगातार कर्म करते रहेंगे तो एक न एक दिन सफल हो ही जाएंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में शिष्टाचार से से सफल कैसे हों के 6 मंत्र (6 Spells of How to Succeed with Etique),जीवन में सफल होने के लिए शिष्टाचार की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips of Etique to Succeed in Life) के बारे में बताया गया है।
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6.इस बार अच्छे अंक आएंगे (हास्य-व्यंग्य) (There Will be Good Marks This Time) (Humour-Satire):
- रामसिंह:इस बार गणित में मेरे और विद्यार्थियों से अधिक नंबर आएंगे।
- गोपाल:तुम तो बहुत कमजोर हो,फिर ऐसा क्या जादू कर दिया?
- रामसिंह:बस सवाल वगैराह तो कुछ नहीं किया,परंतु कॉपी में शिष्टाचार सूचक शब्द गुरुदेव,डिअर सर मुझे नम्बर दे देना आदि शिष्टाचारसूचक शब्दों से काॅपी (उत्तर पुस्तिका) को भर दिया।
7.शिष्टाचार से से सफल कैसे हों के 6 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6 Spells of How to Succeed with Etique),जीवन में सफल होने के लिए शिष्टाचार की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips of Etique to Succeed in Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.शिष्टाचार का मूल आशय क्या है? (What is the basic meaning of etiquette?):
उत्तर:शिष्टाचार का मूल अर्थ है दूसरों से प्रेम और आदर के साथ व्यवहार करना।किसी को ऐसी कड़वी बात ना कहना जिससे दूसरों को पीड़ा और कष्ट होता है।
प्रश्न:2.शिष्ट किसे कहेंगे? (Who would you call courteous?):
उत्तर:सभ्य,शिक्षा-दीक्षा द्वारा सुसंस्कृत,सभ्य समाज में रहने योग्य,आधुनिक लोकाचार व्यवहार आदि में पटु,सुशील,शांत,बुद्धिमान,धीर,विनीत,नीतिमान,श्रेष्ठ व्यक्ति को शिष्ट कहेंगे।
प्रश्न:3.छद्म शिष्ट व्यक्ति को स्पष्ट करो। (Make it clear to the pseudo-polite):
उत्तर:छद्म शिष्ट व्यक्ति ऊपर-ऊपर से मीठी-मीठी,गोल-गोल,चिकनी-चुपड़ी बातें करता है और हृदय में हलाहल विष भरा होता है,हृदय में द्वेष व ईर्ष्या पाले रखता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा शिष्टाचार से से सफल कैसे हों के 6 मंत्र (6 Spells of How to Succeed with Etique),जीवन में सफल होने के लिए शिष्टाचार की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips of Etique to Succeed in Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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