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7 Tips on How to Enhance Your Beauty

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1.अपने सौंदर्य को कैसे निखारें की 7 टिप्स (7 Tips on How to Enhance Your Beauty),सौंदर्य का रहस्य (Secret of Prettiness):

  • अपने सौंदर्य को कैसे निखारें की 7 टिप्स (7 Tips on How to Enhance Your Beauty) सौंदर्य का तात्पर्य है सुंदर होना एवं सुंदर दीखना।सौंदर्य केवल सुंदर दीखने में सीमित नहीं है,बल्कि होने में भी है।सुंदर होना निर्भर करता है व्यक्तित्व के उन तमाम घटकों पर,जो कि उसका निर्माण करते हैं;जैसेःविचार,भाव,व्यवहार आदि।सुंदर दीखने के लिए देह का खास श्रृंगार किया जाता है,उसे अलंकरण,आभूषणों से सज्जित किया जाता है।प्रसाधनों का प्रयोग किया जाता है।वर्तमान समय में सौंदर्य का मापन सुंदर देहयष्टि एवं बनाव-श्रृंगार है। इसके लिए कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का भरपूर प्रयोग किया जाता है,जिसके कारण यह एक बड़ा उद्योग बन गया है।
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2.कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का चलन (Trend of artificial cosmetics):

  • सुंदर दीखने के लिए आजकल कृत्रिम कॉस्मेटिक्स का खूब प्रचलन हो रहा है।सुंदर दीखने की होड़ में सभी भागते चले जा रहे हैं;क्योंकि वर्तमान समय में कंपनियों एवं अन्य क्षेत्रों में सुंदर देहयष्टि को अधिक प्रश्रय मिल रहा है,परंतु सुंदर दीखने के लिए प्रयुक्त इन कॉस्मेटिक्स का बड़ा हानिकारक प्रभाव भी होता है।तात्कालिक लाभ के लिए दूरगामी इस दुष्परिणाम को नजरअंदाज कर दिया जाता है।आखिर सौंदर्य प्रसाधनों की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है? आखिर ऐसी कौन-सी वजह है,जो हमें इन कृत्रिम प्रसाधनों की जरूरत महसूस होती है?
  • सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग का मूल कारण है अपने आंतरिक खोखलेपन को ढकना,ढाँपना एवं छिपाना। जिसके अंतर में खोखलापन रहता है,उसका सब कुछ रिक्त होता है और उसे जब औरों के सामने कुछ होने का आडंबर करना पड़ता है तो उस समय उसे इस बनावटी साज-श्रृंगार की आवश्यकता पड़ती है;ताकि लोग उसके खोखलेपन को जान न पाएँ और सबकी दृष्टि उसकी कीमती एवं विचित्र वेशभूषा एवं अलंकरणों पर टिक जाए।श्रृंगार एवं कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग अपने अंतर के खालीपन को भरने के लिए किया जाता है,ताकि हमारी असलियत का पता किसी को न चल पाए और हम खोखले होकर भी बड़प्पन का स्वाँग रच सकें।सौंदर्य का यह मनोविज्ञान कटुता लिए जरूर है,परंतु है यह यथार्थ ही।यही इसका सच है।
  • सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग बुरा नहीं है;इनका प्रयोग सीमित रूप में,आवश्यकता के अनुरूप करना चाहिए,न कि नाटक-नौटंकी का पात्र बनकर उपहास का पात्र बनना चाहिए।सौंदर्य अनेक तत्वों में पाया जाता है।यह आंतरिक और बाह्य दोनों रूपों में होता है।बाहर की वेशभूषा,अलंकार,आभूषण एवं अन्य वस्तुओं के माध्यम से बाहरी सौंदर्य प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।आंतरिक गुणों में भी सौंदर्य झलकता है।भावनाओं का सौंदर्य अप्रतिम होता है।जिनमें आंतरिक एवं बाह्य,दोनों तत्त्व सुंदर हों,वे इस सृष्टि के विरल तत्त्व होते हैं।विरलों में सौंदर्य का यह संतुलन पाया जाता है।भगवान बुद्ध अध्यात्म-जगत के सबसे सुंदर पुरुष माने जाते हैं।उनकी देह भी उतनी ही आकर्षक थी,जितनी कि उनकी भावना।वे सघन एवं पवित्र प्रेम लेकर इस धरती पर भगवान के रूप में अवतरित हुए थे।शंकराचार्य,विवेकानंद,मीरा,चैतन्य भी व्यक्तित्व एवं विचार,दोनों रूपों में सौंदर्य की मूरत थे।
  • सौंदर्य एक बोध है,जिसे ग्रहण किया जाता है।यूनानियों में सौंदर्य का यह बोध खूब था।उनका जीवन सुंदर था। वहां के लोग सुंदर थे।इसीलिए तो वहां कला का विकास है।प्राचीन भारत के बारे में भी यह कहा जा सकता है।यहाँ तो सौंदर्य का संतुलन एवं विकास की यात्रा अद्भुत एवं रोमांचक है।सौंदर्य का बोध यहाँ के जीवन के रग-रग में रचा-बसा था।यही कारण है कि यहां का वेश-विन्यास,अलंकार,आभूषणों का चयन एवं अन्य प्रसाधनों का अपना विशिष्ट महत्त्व है।इनको प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया जाता है और इनका धार्मिक,सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व भी अनूठा है।यही वजह है कि विश्व की समस्त ललितकलाएं यहीं पर सर्वप्रथम आविर्भूत हुई।सौंदर्य के बिना कला का जन्म नहीं हो सकता है।सौंदर्य कला का प्राण है और जीवन का भी।

3.यूरोप में सौंदर्य का दिखावा (Showing off beauty in Europe):

  • यही वजह है कि हमारी संस्कृति में सत्यं,शिवम के साथ सुंदरम को भी जोड़ा गया।केवल अस्तित्व की सच्चाई ही पर्याप्त नहीं है,बल्कि यह शुभकारी,कल्याणकारी एवं मंगलमय भी होना चाहिए और इसमें सौंदर्य की आभा भी झलकनी चाहिए।इन तीनों के दिव्य संयोग से ही जीवन का सर्वांगपूर्ण विकास संभव हो पाता है।इनमें किसी एक की कमी जीवन को अपूर्ण एवं अपंग बना देती है।सौंदर्य का यह बोध हमारी संस्कृति का आधार है।यूनान में भी इस सौंदर्य बोध का प्रचलन था,परंतु आधुनिक यूरोप ने यूनानियों से जो एक बात ग्रहण नहीं की,वह है सुंदरता।यूनान ने यूरोप को प्रभावित किया,परंतु यूरोप यूनान के सौंदर्य बोध से अप्रभावित रहा।इसलिए यूरोप में सौंदर्य बोध नहीं है और उसे बेहद कुरूप माना जाता है।
  • यूरोप को सौंदर्य तत्व का अनुभव ही नहीं है,जिसके कारण उसका जीवन अत्यंत नीरस एवं शुष्क है।वहाँ विज्ञान के आविष्कार तो हुए,परंतु कलात्मक विकास नहीं हुआ।यूरोपीय प्रभाव के कारण हमने भी अपने सौंदर्य का अधिकतम भाग खो दिया है।यूरोप ने अपनी इस कुरूपता को छिपाने के लिए जो यत्न एवं प्रयास किया,वह चौंकाने वाला है एवं विनाशकारी भी।संसार में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ एवं सुंदर दिखाने के प्रयास में वहां पर कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग प्रारंभ हुआ।यूरोपीय सौंदर्य के अंतर्गत प्रचलित वेश-विन्यास तन को ढकने के लिए नहीं,बल्कि उसे उभारने के लिए किया गया और जिसकी गिरफ्त में हमारा देश भी आ गया।जापान ने अपने जीवन में सौंदर्य को लंबे समय तक जीवंत रखा,परंतु यूरोपीय प्रभाव में पड़कर वह भी अब उसे खो चुका है।
  • इस विश्व में सौन्दर्य का आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन यूरोप से प्रारंभ हुआ,क्योंकि सौंदर्य के अभाव में,उसका बोध किए बिना यदि इसका प्रचलन होगा तो विसंगतियाँ तो पैदा होंगी ही।हमने भी गुलाम और अनुकरण करने की मानसिक ग्रंथियों से ग्रस्त होकर जब अपनी संस्कृति के प्रतिकूल होकर उनको अपनाया तो अपसंस्कृति का खतरा बढ़ गया।हमने अपने सौंदर्य का आधार छोड़ दिया,जो कि हमारी संस्कृति,वेशभूषा से लेकर भाव-विचार तक व्यापक था और बिना सोचे-विचारे आधुनिक बनने की होड़ में उनके आडंबर को ओढ़ लिया।इसका दुष्प्रभाव एवं दुष्परिणाम तो होना ही था और हुआ भी।आज अपने यहां सौंदर्य के वे तत्त्व,जैसे- शालीनता,शील,लज्जा,मर्यादा आदि को नजरअंदाज कर पश्चिमी अपसौंदर्यीकरण को बसा लिया गया है।
  • पश्चिमी सौंदर्य का अभिप्राय दीखने से और अपने यहाँ होने एवं दीखने,दोनों में है।होने में कठिनाई है और इसकी एक विशिष्ट प्रक्रिया है,जैसे-वैचारिक सौंदर्य,चारित्रिक सौंदर्य,भावनाओं का सौंदर्य,सुंदर देह आदि।यह इतना जल्दी नहीं पाया जा सकता है,परंतु दीखना एक आसान चीज है।इसे कृत्रिम बनाव-श्रृंगार से रातों-रात खड़ा किया जा सकता है।हमारी इसी मानसिकता का भरपूर लाभ उठाकर कॉस्मेटिक के अनेक उद्योग एवं व्यवसाय फल-फूल गए हैं और हमें भ्रमित कर रहे हैं,परंतु ध्यान रहे,सौंदर्य का यह अर्थ नहीं है।इसका तात्पर्य तो स्वस्थ शरीर,स्वच्छ मन एवं पवित्र भाव एवं सभ्य समाज में सन्निहित है।यही सच्चा सौंदर्य है,जिसे बढ़ाना चाहिए।

4.सौंदर्य के बजाय लुभाता फैशन (Alluring fashion rather than beauty):

  • सौंदर्य प्रसाधनों में आज फैशन का महत्त्वपूर्ण स्थान है।वर्तमान युग को फैशन का युग कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।बाहरी सौंदर्य को निखारने के लिए किसी सभ्यता विशेष में जिन संसाधनों का प्रयोग किया जाता है,उसे फैशन कहा जाता है।इसका प्रचलन और प्रभाव समय के साथ परिवर्तित होता रहता है।फैशन को ग्लैमर,ब्यूटी और स्टाइल के रूप में जाना-माना जाता है।इस दृष्टिकोण से इसे ‘कम्युनल आर्ट’ भी कहा जाता है,जिसके द्वारा कोई संस्कृति विशेष अपने भावों को सौंदर्य एवं श्रेष्ठता के रूप में अभिव्यक्त करती है।इसका नकारात्मक पक्ष भी है,जिसके माध्यम से देह-प्रदर्शन को प्रश्रय दिया जाता है।वर्तमान समय में यही पक्ष सर्वाधिक प्रचलित है।
  • समय और परिस्थिति के अनुरूप फैशन का प्रचलन बदलता रहता है।आज जो प्रचलन में है,वह कल नहीं था और वर्तमान का प्रचलन आने वाले समय में बदल जाएगा।हर व्यक्ति वर्तमान समय के अनुरूप चलना चाहता है।व्यक्ति आंतरिक रूप से सौंदर्यप्रिय होता है। उसके अंदर कहीं ना कहीं सौंदर्य छिपा हुआ रहता है।वैसे इसे अपने बाहरी प्रसाधनों,जैसे कपड़े,अलंकरण आदि के माध्यम से,विभिन्न प्रकार के डिजाइन किए गए कपड़े,हेयर स्टाइल,मोबाइल,बाइक,कार,ब्रांडेड चीजों आदि के माध्यम से बाहर लाता है।समाज में महंगी और कीमती ब्रांडेड चीजों से किसी की प्रतिष्ठा का आकलन करना आज की प्रथा बन गई है।
  • आज हाई प्रोफाइल सोसाइटी में इन चीजों का खास महत्त्व माना जाता है।इनके बिना इस वर्ग में शामिल नहीं हुआ जा सकता है।इस वर्ग में शामिल होने अर्थात् प्रतिष्ठित होने के लिए फैशन के इन मानदण्डों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है,अन्यथा ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसे प्रचलित शब्दों का चुभता हुआ प्रयोग चल पड़ता है।कभी फैशन किसी विशिष्ट अवसर,जैसे पर्व,त्यौहार,मेला,सम्मेलन आदि के समय किया जाता था,परंतु आज फैशन दैनिक जीवन का अंग बन गया है।जब कोई चीज दैनिक जीवन में प्रयोग-प्रयुक्त होने लगे तो वह एक उद्योग के रूप में पनपेगी ही।अतः इसे फैशन इंडस्ट्री के रूप में जाना जाता है।
  • फैशन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।यह पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता में प्राचीन रोम से प्रारंभ हुआ माना जाता है।रोम का तात्कालिक फैशन लंबे समय तक बिना परिवर्तन के चलता रहा।आठवीं शताब्दी में कोर्डोबा,स्पेन,जिराब में फैशन का प्रचलन था।उन दिनों बगदाद के संगीतकार का कलात्मक परिधान चर्चा का विषय था।ऊंचे घराने के लोग उनकी वेशभूषा का अनुकरण किया करते थे।14वीं शताब्दी में यूरोप में फैशन की परंपरा तीव्र परिवर्तन के रूप में सामने आई।इतिहासकार जेम्सलेवर एवं फर्नाण्ड ब्राॅडेल के अनुसार यूरोप में फैशन की शुरुआत कपड़े के रूप में हुई।पुरुषों में पैरों को ढकने के लिए पैंट एवं पतलून में उसी समय में प्रारंभ हुआ था,जो आज तक अपने प्रचलन के चरम पर है।
  • 18वीं शताब्दी में मेरी एंटायनेट प्रसिद्ध फैशन आइकान थी।इस प्रकार फैशन कपड़े से लेकर बालों तक आने लगा।कपड़ों के स्टाइल के बाद बालों का स्टाइल फैशन का अंग बना।अब तक फैशन अमीरों तक ही सीमित था।फैशन का यह संक्रमण धीरे से पर्सीया,तुर्की,जापान और चीन तक फैला।एक इतिहासकार के अनुसार जापान में 1000 वर्ष तक उसके कपड़ों की शैली में बदलाव नहीं आया,परंतु चीन में इसमें काफी बदलाव आता रहा।16वीं शताब्दी में जर्मन एवं इटली के भद्र मानुष 10 विभिन्न प्रकार के हैट पहना करते थे।उन दिनों का यह आकर्षण था।18वीं शताब्दी में फ्रेंच स्टाइल सर्वोपरि लोकप्रिय था।
  • यूरोप में कोट का प्रचलन बढ़ा,जो आज तक प्रतिष्ठित व्यक्तियों की पहचान बना हुआ है।इसके बाद कपड़ा उद्योग में काफी परिवर्तन आया और विभिन्न प्रकार के रंगीन कपड़ों का उत्पादन शुरू हुआ और इसे डिजाइन करने के लिए फैशन डिजाइन का प्रारंभ हुआ।वर्ष 1958 को पेरिस में फैशन डिजाइन का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है।भारत में इसका प्रचलन शालीन एवं सभ्य रूप में प्रारंभ हुआ।यहाँ कलात्मक वस्त्रालंकार एवं वेशभूषाओं में गहरा प्रतीक एवं संकेत निहित था।आभूषणों,परिधानों का चयन किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता था।प्राचीन भारत में बनारस,ढाका आदि रेशम के बारीक तंतुओं से कलात्मक परिधान निर्माण के लिए प्रसिद्ध थे।

5.फैशन के प्रति दीवानगी (Fashion Obsession):

  • अपने यहाँ सौंदर्य प्रसाधनों में फैशन सादगी एवं कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में प्रयुक्त हुआ है,परंतु जब से हम पाश्चात्य शैली का अनुकरण करने लगे एवं फैशन के पीछे निहित आदर्श एवं उद्देश्य को हमने भुला दिया,नजरअंदाज कर दिया तो फैशन का नकारात्मक पक्ष हमें प्रभावित करने लगा।आज के दौर में युवा फैशन के केंद्र बन गए हैं।सभी मॉडल इन्हीं उम्र के होते हैं।आज का फैशन ऐसा होता है,जिसमें कि देह का प्रदर्शन बखूबी होता रहे।युवा एवं युवतियां,दोनों इस प्रदर्शन में पीछे नहीं है।कहने में और सुनने में,दोनों ही दशाओं में संकोच लगने वाली बात है,फिर भी कहें तो आज फैशन वह,जो जितना अधिक देह को ढके नहीं,बल्कि उभारे। वस्त्र तन ढकने के लिए होता है,परंतु फैशन को इसे उभारने के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है।
  • फैशन का दौर इतना परिवर्तनशील हो गया है कि आज जिसका प्रयोग किया जाता है,दूसरे दिन ओल्ड एंड आउटडेटेड मानकर हटा दिया जाता है।इस सबका लाभ विज्ञापन एवं फैशन इंडस्ट्रीज को हो रहा है;क्योंकि वे व्यक्ति के अंदर के फैशन के आकर्षण को उभारकर अपना उद्योग चला रहे हैं।इससे किसी विशिष्ट एवं धनाढ्य वर्गों में बना-सिमटा फैशन आज आम आदमियों में पसर गया है।आज आम इंसान फैशनपरस्त बन गया है।इसमें जितना श्रम,धन एवं समय की खपत होती है,उसे यदि किसी रचनात्मक कार्य में नियोजित कर दिया जाए तो न जाने कितने जन-उपयोगी रचनात्मक कार्य संचालित किये जा सकते हैं।फैशन बुरा नहीं है,यदि इसे सादगी एवं शालीनतापूर्ण ढंग से बरता जाए,परंतु यह तब अभिशाप बन जाता है,जब इसे देह-प्रदर्शन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • फैशन सौंदर्य की अभिव्यक्ति का बाहरी पक्ष है।जिसे सौम्यता,शालीनता एवं सादगीपूर्ण ढंग से प्रयोग करना चाहिए।सौंदर्य का यह पक्ष एकांगी एवं अधूरा है,जब तक इसमें आंतरिक गुणों का समावेश ना हो।फैशन फबता है,जब उस लायक गुण भी हों।यों देखा जाए तो आंतरिक गुणों का सौंदर्य इतना अधिक होता है कि उसके सामने बड़े से बड़ा फैशन भी फीका लगता है,बेजान जान पड़ता है।इसलिए आकर्षक व्यक्तित्व का गठन करना चाहिए।यह भावना,विवेक,शालीनता,शिष्टता,सौम्यता जैसे गुणों का अभिवर्द्धन करके किया जाता है और इसके पश्चात सादगीपूर्ण परिधानों का चयन करना चाहिए।भारतीय वेशभूषाओं में लड़कों को पेंट-शर्ट,पाजामा-कुर्ता,धोती-कुर्ता एवं लड़कियों को टी-शर्ट प्लाजो,प्लाजो,सलवार सूट या साड़ी का प्रयोग करना चाहिए।इसमें सौंदर्य के साथ शालीनता का भी समावेश होता है।हमारे समाज और संस्कृति की दृष्टि से आज यही सच्चा फैशन है और इसे सभी को अपनाना चाहिए।

6.विद्यार्थी फैशन से दूर रहें (Students stay away from fashion):

  • उपर्युक्त विवरण से यह तो समझ में आ ही गया होगा कि फैशनपरस्ती और वास्तविक सौंदर्य में क्या अंतर है? विद्यार्थी या किसी भी व्यक्ति का वास्तविक सौंदर्य है:शालीनता,विनम्रता,अहंकाररहित होना,सज्जनता,सरलता,निष्कपट व्यवहार आदि। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि बाहरी सुंदरता पर ध्यान नहीं देना चाहिए और भूत बनकर रहना चाहिए। परंतु स्वच्छ,साफ-सुथरे,धुले हुए कपड़े पहनना चाहिए ना की तड़क-भड़क वाले,चटकीले और शरीर को असहज लगने वाले कपड़े पहनना चाहिए।कारण स्पष्ट है कि विद्यार्थी काल विद्या अर्जन करने का समय है और विद्यार्थी विद्या ग्रहण तभी कर सकता है जबकि मन एकाग्रचित हो।जबकि फैशनपरस्ती और विलासी प्रकृति विद्यार्थी के मन को चंचल कर देगी।चंचल मन से विद्यार्थी विद्याध्ययन में रुचि नहीं ले सकेगा।इस प्रकार विद्यार्थी अपने लक्ष्य से भटक जाएगा,विद्यार्थी काल ही नहीं पूरा जीवन उसके लिए नर्क बन जाएगा।
  • विद्यार्थी को आंतरिक गुणों को विकसित करने पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए।आंतरिक गुणों से उसका जीवन महक उठेगा,खिल उठेगा फिर उसके शरीर पर साधारण व साफ-सुथरे कपड़े भी फब जाएंगे। आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों में विरले ही होते हैं जो विद्याध्ययन करने के लिए विद्या अर्जित करने में बाधा पहुंचाने वाले दुर्गुणों से दूर रहते हैं तथा तपपूर्ण और साधनायुक्त जीवन जीते हैं।आधुनिक युग में फैशन,मौजमस्ती,खेल-तमाशे देखना आदि से बचना तो मुश्किल है,क्योंकि पूरा वातावरण ही इस रंग में रंगा हुआ है।परंतु असंभव भी नहीं यदि विद्यार्थी यह दृढ़ निश्चय कर ले कि उसे विद्या अर्जित करनी ही है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अपने सौंदर्य को कैसे निखारें की 7 टिप्स (7 Tips on How to Enhance Your Beauty),सौंदर्य का रहस्य (Secret of Prettiness) के बारे में बताया गया है।

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7.सौंदर्य का उपासक (हास्य-व्यंग्य) (Worshiper of Beauty) (Humour-Satire):

  • शिक्षक (छात्र से):सौंदर्या और फैशन में क्या अंतर है?
  • सुंदरता का उपासक छात्र:सर,ऐसे द्विअर्थी प्रश्न मत पूछो।
  • शिक्षक:ये द्विअर्थी प्रश्न कैसे हैं?
  • छात्र (आधुनिक सौंदर्य का उपासक):क्योंकि सौंदर्या मेरी गर्लफ्रेंड का नाम है और फैशन मेरी मंगेतर का नाम है।

8.अपने सौंदर्य को कैसे निखारें की 7 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 7 Tips on How to Enhance Your Beauty),सौंदर्य का रहस्य (Secret of Prettiness) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सुंदर को स्पष्ट करें। (Clarify the beautiful):

उत्तर:जो अहित करने वाली है वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है,क्योंकि वह अकल्याणकारी है।सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो।

प्रश्न:2.सुंदर दिखने के लिए क्या करना चाहिए? (What do you need to do to look beautiful?):

उत्तर:यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले,चटकीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए बल्कि अपने आंतरिक गुणों को बढ़ाने का सतत प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न:3.शारीरिक सुंदरता के साथ और क्या होना चाहिए? (What else should be accompanied by physical beauty?):

उत्तर:यदि सुंदरता के साथ-साथ सद्गुण है तो वह हृदय का स्वर्ग है,यदि उसके साथ दुर्गुण है तो वह आत्मा का नरक है।वह बुद्धिमान की होली और मूर्ख की भट्टी है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अपने सौंदर्य को कैसे निखारें की 7 टिप्स (7 Tips on How to Enhance Your Beauty),सौंदर्य का रहस्य (Secret of Prettiness) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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