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6 Tips to Give Right Direction to Youth

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1.युवाओं को सही दिशा देने की 6 टिप्स (6 Tips to Give Right Direction to Youth),भटकती युवा पीढ़ी को सही दिशा कैसे दें? (How to Give Right Direction to Going Astray Younger Generation?):

  • युवाओं को सही दिशा देने की 6 टिप्स (6 Tips to Give Right Direction to Youth) के आधार पर आप जान सकेंगे कि युवा पीढ़ी किस तरफ जा रही है और किस तरफ जानी चाहिए? युवाशक्ति राष्ट्र निर्माण में लगनी चाहिए न कि विध्वंस में।
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2.आधुनिकता की बयार में दिशाहीन युवा (Directionless youth in the wind of modernity):

  • युवा पीढ़ी राष्ट्र का भाग्य एवं भविष्य है।इन्हीं के सुदृढ़ एवं मजबूत कंधों पर राष्ट्र का आधार एवं विकास सुरक्षित एवं संरक्षित होता है,परंतु वर्तमान युवा पीढ़ी को घुन लग गया है।ये अंदर और बाहर,दोनों से खोखले होते चले जा रहे हैं।इनके भटकते एवं बहकते कदम सोचनीय एवं चिंता का सबब बन गए हैं।सड़क हादसों,हिंसा,नशे से लेकर यौन अपराधों में आकंठ डूबे युवाओं से भला कैसे राष्ट्रार्चन किया जाए! इनकी इस दयनीय एवं निंदनीय करतूतों से सभी शर्मसार हैं।क्या होगा इस राष्ट्र का भाग्य और भविष्य? कौन है,जो राष्ट्र की रगों में फिर से उष्ण रक्त का संचार करेगा? एक गहरा प्रश्न है।किशोरावस्था (टीन एज) 12 से 21 वर्ष की आयु के बीच की अवस्था मानी जाती है।इस उम्र में मन में उमंगों की बयार बहती है,सपनों के कोमल संगीत फूटते हैं,आंखों में उजले भविष्य की नई चमक होती है,जीवन पुष्प-सा सुरभित हो उठता है और ये विशेषताएं उन्हें किसी भी देवी-देवताओं से बढ़-चढ़कर बनाए रखने के लिए पर्याप्त होती है।ऐसे जीवन के लिए देवता भी तरस उठते हैं।ऐसे जीवन की ज्वलंत मिसाल थे ब्रह्मगुप्त,महावीराचार्य,आर्यभट,भास्कराचार्य,आइंस्टीन, कार्लफेड्रिक गौस,न्यूटन जैसे गणितज्ञ भगतसिंह,सुभाषचंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी;ध्रुव,प्रहलाद जैसे वीर;लक्ष्मीबाई,दुर्गावती जैसी वीरांगनाएँ।ये राष्ट्र की प्रदीप्त शिखा थे।किसी को भी इन पर गर्व होना स्वाभाविक था,परंतु कहां गईं इनकी पीढ़ियां,जिनमें कुछ कर दिखाने का जज्बा था,जान पर खेलकर औरों को बचाने का जज्बा फूट पड़ता था।क्या भारत माता की कोख सूनी पड़ गई कि ऐसी अग्निशिखाओं का अकाल पड़ गया था या फिर किस कालनेमि ने अपने वीर बालकों को अपने फंदे में कैद कर लिया है।
  • इस राष्ट्र के इन नौनिहालों पर किसकी बुरी नजर लग गई है कि सब कुछ उलट सा गया है।मंजिल एवं लक्ष्य की ओर बढ़ते कदम किसी अंधेरी खाई एवं भग्नावेश खंडहर  की ओर मुड़ गए,जहां केवल विनाश एवं पतन के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचता है।इस भीषण मंजर को आंकड़ों के आईने में देखें तो परिदृश्य कितना भयावह हो जाता है,कल्पना नहीं की जा सकती है।आंकड़ों की माने तो कच्ची उम्र के नौजवानों के व्यवहार और जीवन शैली में तीव्र बदलाव एवं परिवर्तन आ रहा है।यह परिवर्तन सुकून एवं सुख देने वाला कम एवं चिंता को बढ़ाने वाला अधिक है।किशोरों में हिंसा,नशा एवं अपराध के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है।अपराध के नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।ये क्रेडिट कार्ड से धोखाधड़ी करने,मोबाइल और नगदी लूटने और कार चोरी करने के मामले में संलिप्त पाए गए हैं।जब से देश में तथाकथित आधुनिकता की बयार बही है,तब से अनगिनत स्थापित मान्यताओं और परंपराओं का टूटना जारी है।
  • हिंसा और अपराध की यह बयार बाजारवादी अपसंस्कृति को फैलाने वाले टीवी चैनल आदि से बह रही है।एक अध्ययन के मुताबिक 14 वर्ष के 500 बच्चों को अपराध एवं हिंसा से संबंधित सीरियल दिखाया गया तथा उसके बाद उसका पर्सनाॅलिटी टेस्ट लिया गया।टेस्ट में इनमें से 435 बच्चों की आक्रामकता दर बढ़ गई थी।इस प्रकार इनको कई प्रकार के नकारात्मक दृश्यों से गुजारा गया।निष्कर्ष में पाया गया कि अश्लील दृश्यों के देखने के बाद 389 बच्चों में अपराध बोध (गिल्ट) का स्तर बढ़ गया था।अनैतिक एवं अवांछनीय दृश्यों से उनका आत्मविश्वास का स्तर एकदम निचले स्तर तक पहुंच गया था।इस प्रकार टीवी चैनल नवयुवकों की मानसिकता को गिराने एवं दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ाने वाला खतरनाक खेल खेल रहे हैं और अजीब मानसिकता के ये किशोर इनके अनुकरण से अपना सर्वस्व लुटाते जा रहे हैं।

3.हिंसक मानसिकता युवाओं की (Violent mentality of youth):

  • यह हिंसक मानसिकता अत्यंत खतरनाक है।आंकड़ों को देखें तो चिंता और भी बढ़ने लगती है।आंकड़ों के अनुसार जिन घरों में माता-पिता के बीच मतांतर,मतभेद एवं मार-पीट जैसी स्थिति आती है,उससे बच्चे अत्यन्त प्रभावित होते हैं।परेशान माता-पिता अपनी निजी आक्रामकता को अपनी संतानों में प्रक्षेपित करते हैं।इनमें 40 लाख बच्चे,इस सामान्य हिंसक वृत्ति से प्रभावित होते हैं और अपने व्यवहार में इसी हिंसक वृत्ति को अपनाते हैं।लड़कियों में यह वृत्ति माता के व्यवहार से आती है।40% किशोरियाँ ऐसी हैं,जो अपने संबंधों में कहीं ना कहीं हिंसक कारनामों को अंजाम दे रही हैं।बड़े शहरों में पढ़ने वाली हाईस्कूल की 10 में से एक लड़की हिंसक बर्ताव वाली है।अमेरिका में यह आंकड़ा पांच में से एक है।वहाँ तो और भी बदतर स्थिति है।सन् 2015 में 2000 लड़के जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है,हत्या के मामले में दोषी पाए गए हैं।वहां पर कुल 12% हत्या तो इन्हीं उम्र के लड़कों द्वारा की गई।10 में से एक लड़का किसी हिंसक कारनामों को अंजाम करने में दोषी पाया जाता है।
  • अमेरिका युवा हिंसक वारदातों में अग्रणी हैं।किशोर हिंसा को यदि आर्थिक नुकसान के आंकड़ों में देखें तो वहां पर यह 200 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है।यदि इस धन को किसी रचनात्मक कार्य में लगा दिया जाए तो कितने परिवारों को आजीविका मिल जाती।सर्वेक्षण से पता चला कि अमेरिका में 22% छात्र स्कूल,कॉलेज जाते समय चाकू,पिस्तौल या अन्य हथियार साथ रखते हैं।इसका प्रभाव अपने देश में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगा है।एक शहर में एक बच्चे द्वारा स्कूल में बंदूक से एक बच्चे की जान लेने की घटना को सामान्य नहीं माना जा सकता।
  • आंकड़े तो कम-ज्यादा हो सकते हैं,परंतु आंकड़े बताते हैं कि हिंसक वृत्तियों में निरंतर दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है।यह थमने का नाम नहीं ले रही है।यह वृद्धि अनेक अन्य आपराधिक घटनाओं को जन्म देती है।शराब पीकर गाड़ी की रफ्तार तेज करना युवाओं का चलन बन गया है।बीते दिनों एक शहर में शराब पीकर तेज गिरफ्तार में गाड़ी चलाते हुए तीन धनाढ्य वर्ग के लड़के काल के गाल में समा गए।उनकी उम्र 20 वर्ष से कम थी।ये सभी एक अंग्रेजी स्कूल के छात्र थे और दुर्घटना की रात राजधानी के फाइव स्टार होटल के पब में पार्टी के दौर से लौट रहे थे।लौटने में रफ्तार का रोमांच इनोवा गाड़ी पर सवार हो गया।कच्ची उम्र और मदहोशी के इस अजीब मिश्रण ने अपना रंग दिखाया और ये दुर्घटना की भेंट चढ़ गए।
  • कभी शराब को जहर एवं दुर्गुणों की जननी मानकर इससे दूर रहने की सलाह दी जाती थी,परंतु इससे उलट आज यह आधुनिक फैशन का आवश्यक अंग बन गया।अमेरिका में 50% लड़के इसका सेवन करते हैं।वहां छात्र प्रतिवर्ष इस पर सात अरब डालर खर्च कर लेते हैं।तीन में से एक लड़का शराब का अवश्य उपयोग करता है।इसी का दुष्परिणाम है कि वहाँ प्रतिदिन 8 युवा शराब संबंधित दुर्घटना में मारे जाते हैं।

4.युवाओं में शराब और ड्रग्स का चलन बढ़ा (Consumption of alcohol and drugs has increased among the youth):

  • इस अपसंस्कृति का प्रभाव अपने देश में सिर चढ़कर बोल रहा है।तथाकथित धनाढ्य वर्ग के लिए देर रात तक चलने वाली पार्टियाँ रोजमर्रा के जीवन का अंग बन गई हैं।इस पार्टी के प्रमुख आकर्षणों में एक महंगी शराब होती है।पीना और पिलाना यहां प्रतिष्ठा मानी जाती है।इस परिवेश में पले-बढ़े बच्चे जब किशोरावस्था में कदम रखेंगे तो स्वाभाविक रूप से इसके प्रभाव से सरोबार होंगे।वे जब पब में जाते हैं तो इसी चीज को प्रश्रय देते हैं।अब तो बड़े शहरों में चल रही शिक्षण संस्थानों में जो पार्टी आदि का आयोजन किया जाता है तो उसमें भी सिगरेट और शराब के सेवन की शिकायत पाई गई है।यह सच है कि सभी जगह ऐसा नहीं हो रहा,परंतु ऐसा नहीं होगा,इसका कौन दावा कर सकता है।
  • किशोरों में शराब और सिगरेट का प्रचलन ही नहीं है,वरन आत्मघाती ड्रग्स का चलन बढ़ा है।भारत के स्कूल-कॉलेजों में मारिजुआना-45%,एम्फेटेमाइन-26. 4%,कोकीन-32.8%,क्रेक-24.2%,एल०एस०डी०-17. 5%,ट्रेक्वीलाइजर्स 24.9%,हीरोइन 17.6%,क्रिस्टल मेथ-18.7%,पीसीपी-13.2% आदि ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।ड्रग्स के साथ विकृत सेक्स की कुप्रवृत्तियाँ भी बढ़ी हैं।
  • यौनाचार अपराध की दर भी बढ़ी है।इंटरनेट के माध्यम से सहजता से उपलब्ध पोर्नोग्राफी वेबसाइट का प्रचलन किसी भी अन्य साइट से कई गुना अधिक है।इन साइटों पर अश्लीलता का दबाव है।इसी का परिणाम है कि भारत में किशोरियाँ प्रतिवर्ष बिन ब्याही मां बन जाने का चलन बढ़ता जा रहा है।इनमें से 50% बच्चों को जन्म देती हैं।45% गर्भपात के दौर से गुजरती हैं तथा 5% मिस कैरेज हो जाता है।यह आंकड़ा चौंकाने वाला है।अपने देश में यह विषबेल अपना पांव पसारते दीख रही है।मनोवैज्ञानिकों की मानें तो किशोरावस्था में इस ओर तीव्र आकर्षण होता है।इस आकर्षण को सही दिशा दी जा सकती है।इसके प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान एवं आंदोलन चलाने की आवश्यकता है।
  • किशोरों की समस्याएँ विशिष्ट प्रकार की होती है।आज ये नियंत्रण से बाहर हो गई हैं और इनका व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है।ऐसा यदि चलता रहा तो हमारा देश रुग्ण,अशक्त तथा निर्वीर्य युवाओं का गढ़ बन जाएगा।इसको रोकने के लिए समय की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती है।चिंताजनक समय-सीमा कब की पार हो चुकी है।अब तो स्थिति है कि कितना बचाया जा सकता है।कारण तो अनगिनत हैं।इनकी समस्याओं के कारणों को अवश्य परखा जाए,परंतु ठहरना उचित नहीं।इसका समाधान खोजकर दृढ़ता के साथ क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है।
  • बहुत कुछ खो जाने के बावजूद कुछ ऐसा होता है,जिससे बुझे दीपक को फिर से प्रदीप्त किया जा सकता है।ऐसा साहस कौन कर सकता है? यह युग की मांग है कि खुद युवा इस चुनौती को स्वीकार करें और अपनी दुर्बलता को तिलांजलि देकर साहस के सत्पथ पर आगे बढ़ें।अभी भी हमारी रगों में संतों,सज्जनों,ऋषियों,सद्गुरुओं का उष्ण लहू बह रहा है।इसे पहचानें तो सही,सब बदल जाएगा।कहते हैं तीव्र पतन तीव्र उत्थान का कारण भी बनता है।गिरे बहुत हैं,अब उठने की बारी है।खुद को उठाकर,अनगिनत को उठाकर ले चलने का साहस केवल युवकों में ही होता है।आज इसी अदम्य साहस,शौर्य,पराक्रम,धैर्य एवं विवेक की आवश्यकता है,जिनके माध्यम से इस कठिन दौर को पार किया जा सकता है।युवाओं! राष्ट्र तुम्हारे लिए प्रतीक्षारत है,इसे निराश ना करो,अपने नेक कार्यों,श्रेष्ठ कार्यों से जता दो की यह भूमि बंजर नहीं है,अब भी इसमें ज्ञानियों,वैज्ञानिकों,गणितज्ञों,महापुरुषों,
    ,सज्जनों,श्रेष्ठ व्यक्तियों,कर्मठ नेताओं की फसल तैयार होती है।

5.युवाओं को सही दिशा कैसे मिलें? (How do young people get the right direction?):

  • युवाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए पूरी व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा।सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी,पूरी ईमानदारी,सच्चाई और संकल्प के साथ।माता-पिता को शुरू से बच्चों में ऐसे संस्कार डालने होंगे जिससे वह गलत दिशा की ओर जाने के बारे में सोच भी नहीं सके।माता-पिता को अपने बच्चों को समय देना होगा,व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल न होकर अपना नैतिक व चारित्रिक दायित्व निभाना होगा।माता-पिता स्वयं में नैतिकता का पालन करेंगे,चरित्रवान होंगे तो बालक भी वैसे ही बनने का प्रयत्न करेंगे।क्योंकि बालक की प्रथम पाठशाला माता-पिता ही होते हैं,माता-पिता ही बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करते हैं।परंतु आर्थिक और व्यावसायिक घुड़दौड़ में वे बच्चों के प्रति इस कर्त्तव्य का पालन नहीं करते हैं।स्वयं चरित्रवान और नैतिक नहीं होंगे तो बच्चों से यह अपेक्षा रखना कि वे चरित्रवान बन जाएंगे,थोथी कल्पना और सब्जबाग देखना है।
  • सबसे अधिक समय बच्चा अपनी मां और पिता के साथ ही व्यतीत करता है।इसलिए केवल उन्हें चलना,उठना,बैठना,खाना-पीना,बोलना सीखाना ही पर्याप्त नहीं है।आज के युग में साक्षरता का आंकड़ा देखकर यह तो कहा ही जा सकता है कि लगभग थोड़े-बहुत हर माता-पिता पढ़े-लिखे मिल ही जाएंगे।बस जरूरत है कि इस साक्षरता के बल पर शिक्षित होने की,अच्छे गुणों को धारण करने की।
  • आप बच्चों के लिए कितनी ही अकूत धन-दौलत कमाकर छोड़ जाएं परंतु यदि अपने बच्चों को योग्य नहीं बनाया,शिक्षित नहीं किया,चरित्रवान नहीं बनाया तो जीवन में कुछ भी नहीं किया,यह समझ लेना चाहिए।क्योंकि भटका हुआ बालक,युवा आपकी सारी धन-दौलत को अनैतिक,दुर्व्यसनों,गलत कार्यों में उड़ा देगा और आपकी की गई सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा,आपकी कड़ी मेहनत की कमाई को मटियामेट कर देगा।हमारे विचार में माता-पिता का सबसे प्रमुख दायित्व है बच्चों को शिक्षित करना,योग्य बनाना अतः उन्हें इस तरफ सबसे अधिक ध्यान केंद्रित करके उनकी परवरिश करनी चाहिए।बच्चों को पालना,बड़ा करना,उनकी रक्षा करना आदि कार्य तो हर जीव-जंतु करते हैं।परंतु मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने बच्चों को ज्ञानी,चरित्रवान बना सकता है और चाहे तो उन्हें पशुओं से भी नीचे गिरने दे सकता है।हालांकि कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहेगा कि उसकी औलाद बिगड़ जाए,चरित्रहीन,दुर्व्यसनी,चोर,डाकू,लुटेरा आदि बनें।यहां तक कि चोर,लुटेरे और गलत कार्य में संलग्न व्यक्ति भी अपनी सन्तान को शिक्षित करना चाहते हैं,वे नहीं चाहते हैं कि उनकी संतान उन जैसी बनें।एक बेईमान व्यापारी भी नहीं चाहता है कि उसके यहां कोई बेईमान मुनीम या नौकर काम करें।गलत धंधों में संलग्न व्यवसायी भी नहीं चाहते हैं कि उनके यहां कोई मुफ्तखोर,चोर,भ्रष्टाचारी एम्प्लाॅई नियुक्त हों।परंतु चाहत से ही ऐसा नहीं होता है।यदि आप ईमानदार व्यक्ति की चाहत रखते हैं तो आप को स्वयं ईमानदार बनना होगा।
  • इसके पश्चात शिक्षक का दायित्व है कि वे बच्चों को पाठ्यक्रम पढ़ाने तक ही अपने आप को सीमित न रखें।उन्हें चारित्रिक,नैतिक,धार्मिक शिक्षा का पाठ प्रसंगवश उन्हें पढ़ाने का प्रयास करें,उन्हें अच्छी बातें सीखने के लिए प्रेरित करें।ऐसे कई प्रसंग आते हैं,बच्चे भी ऐसी जिज्ञासाएं प्रस्तुत करते हैं उनका समाधान करते हुए वे प्रेरक प्रसंग सुना सकते हैं जिससे छात्र-छात्राएं चरित्रवान बनने के लिए प्रेरित हो सकें।तात्पर्य यह है कि माता-पिता,शिक्षक,सामाजिक,धार्मिक संगठन,सद्गुरु,कथावाचक,ज्ञानी,सज्जन एवं समाज के श्रेष्ठ व्यक्ति यह संकल्प ले लें कि उन्हें चरित्रवान भारत का निर्माण करना है तो इस देश की तस्वीर बदलने में समय नहीं लगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में युवाओं को सही दिशा देने की 6 टिप्स (6 Tips to Give Right Direction to Youth),भटकती युवा पीढ़ी को सही दिशा कैसे दें? (How to Give Right Direction to Going Astray Younger Generation?) के बारे में बताया गया है।

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6.युवक की हरकत (हास्य-व्यंग्य) (Young Man’s Action) (Humour-Satire):

  • पहला युवक (दूसरे युवक से):आपने मेरे पर्स में हाथ क्यों डाला?
  • दूसरा युवक:मुझे मोबाइल से फोन करना आवश्यक था।
  • पहला:यह तो तुम मांगकर,इजाजत लेकर भी कर सकते थे।
  • दूसराःइतनी सी छोटी सी बात के लिए जरूरत लेने की क्या जरूरत थी।

7.युवाओं को सही दिशा देने की 6 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Tips to Give Right Direction to Youth),भटकती युवा पीढ़ी को सही दिशा कैसे दें? (How to Give Right Direction to Going Astray Younger Generation?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आदर्श बच्चा बनाने के लिए माता-पिता क्या करें? (What can parents do to create the ideal baby?):

उत्तर:माता-पिता को रोल मॉडल बनना होगा।क्योंकि बच्चा तभी आपसे सीखेगा जब आपका आदर्श उसके अनुसार होगा।स्वयं वैसे ना हो तथा बच्चों से अच्छा बनने की उम्मीद रखना रेत में तेल निकालने के समान है।

प्रश्न:2.बच्चों के चरित्र निर्माण में सहायक बातें बताएं। (Teach things that help in character building of children):

उत्तर:सत्साहित्य,प्रेरणादायक कहानियाँ,महापुरुषों के जीवन चरित्र उन्हें सुनाएं और पढ़ने के लिए प्रेरित करें।कोर्स के अलावा भी ऐसे नैतिक,चारित्रिक,शिक्षाप्रद पुस्तकें पढ़ने के लिए देंं।उन्हें अच्छा संग करने के लिए प्रेरित करें।

प्रश्न:3.बच्चों को कैसे बनाएं? (How to make children?):

उत्तर:बच्चों को ईमानदार,परोपकारी,सदाचारी,राष्ट्र के प्रति समर्पित,सेवाभावी,उदार,जिम्मेदार नागरिक बनाएं।संस्कारी,सहिष्णु,कर्मठ,संवेदनशील बनाएं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवाओं को सही दिशा देने की 6 टिप्स (6 Tips to Give Right Direction to Youth),भटकती युवा पीढ़ी को सही दिशा कैसे दें? (How to Give Right Direction to Going Astray Younger Generation?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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