6 Techniques of How to Develop Talent
1.प्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (6 Techniques of How to Develop Talent),छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को विकसित करने की 6 तकनीक (6 Techniques to Develop Student’ Talent):
- प्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (6 Techniques of How to Develop Talent) के आधार पर आप जान सकेंगे कि पुरातन काल में प्रतिभा परिष्कृत कैसे की जाती थी? प्रतिभा को विकसित करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए? यों प्रतिभा विकसित करने के बारे में और भी लेख पोस्ट किए हुए हैं,उनसे भी आप लाभ उठा सकते हैं।
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2.प्रतिभा का अर्थ (Meaning of Talent):
- हर व्यक्ति की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह स्वयं प्रतिभाशाली बने,साथ ही उसकी संतति भी प्रतिभासंपन्न हो।वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग के प्रतिस्पर्द्धा भरे आधुनिक दौर में तो यह और भी आवश्यक हो गया है कि व्यक्ति जीनियस बने और हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़े।इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्तित्व का विकास बहुआयामी हो;अर्थात् वह मात्र शैक्षणिक योग्यता एवं बौद्धिक प्रखरता हासिल कर लेने तक सीमित ना हो।’प्रतिभा’ शब्द अपने में बहुत व्यापक अर्थ समेटे हुए है।दीप्ति,प्रभा,प्रगल्भता,चमक,विवेक बुद्धि,विलक्षण बौद्धिक शक्ति,कुशाग्र बुद्धि,प्रखर बुद्धि,प्रत्युत्पन्न बुद्धि,नवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण अर्थ ‘प्रतिभा’ शब्द के हैं।
- वस्तुतः प्रतिभा कहीं बाहर से बटोरनी नहीं पड़ती,उसे सदैव अपने भीतर से ही उभारा और विकसित किया जाता है।इसके लिए उन आवरणों को,अवरोधों को हटाना अनिवार्य है,जो भारी चट्टानों की तरह उत्कृष्टता के मार्ग में भयानक अवरोध बनकर अड़े होते हैं।प्राचीनकाल से ही भारतीय ऋषि-मनीषियों ने इस तथ्य को भली-भाँति जाना-पहचाना था।उनका निष्कर्ष था कि प्रतिभा-प्रखरता के लिए,सूर्य,चंद्र एवं अग्नि की भांति बाह्याभ्यंतर रूप से चमक बिखरने के लिए यह आवश्यक है कि तपस्वी जैसा जीवन जीते हुए औसत स्तर का निर्वाह अंगीकार किया जाए,अन्यथा तृष्णा और वासना की लिप्सा इतनी सघनता के साथ छाई रहेगी कि अपनी सामर्थ्य की तुलना में अकिंचन औसत पुरुषार्थ भी करते बन सकेगा।
- साधना विज्ञान में इसके लिए संयम-नियम के कितने ही अनुबंधों का पालन करना अनिवार्य माना गया है।इन अनुबंधों में आहार-विहार की शुद्धि,सज्जनता,सद्भावना,श्रमशीलता,मितव्ययता,स्वच्छता,सादगी,सहकारिता,अनुशासनप्रियता आदि मुख्य है।इस राजमार्ग का अनुसरण प्राचीनकाल से आज तक जहां कहीं भी हुआ है,प्रतिभाओं की एक से बढ़कर एक उच्चस्तरीय पीढ़ियों से विश्व-वसुंधरा धन्य हुई है। भारतवर्ष में यह कार्य प्राय: आरण्यकों,आश्रमों,मठों आदि में तपस्वी व सदाचारी ऋषि-मुनियों के सानिध्य में आदिकाल से ही होता रहा है,जहां से निकलने वाले छात्र अपनी प्रतिभा से दिग्दिगंत तक ज्ञान का प्रकाश फैलाते रहे हैं।ऐसा नहीं है कि प्रतिभा-निर्माण का कार्य अपने ही देश में होता रहा है,वरन पाश्चात्य जगत में भी ऐसे तपस्वी संत हुए हैं,जिन्होंने मनुष्य में प्रतिभा या देवत्व निखारने-जगाने के अपने प्रयास में सफलता पाई है।
- संसार में अगणित व्यक्ति विलक्षण मेधावान हुए है। कितनों की स्मरणशक्ति आश्चर्यजनक थी।किन्हीं में दूरदर्शिता,प्रतिभा,सूझबूझ एवं संभावनाओं का सही अनुमान लगा सकने जैसी विशेषताओं का बाहुल्य पाया गया है।ऐसे असाधारण मेधावी लोगों का अपना इतिहास और कीर्तिमान है।कभी ऐसे प्रसंगों को दिव्य वरदान या भाग्योदय जैसे कारण बताकर समाधान किया जाता था;पर अब पर्यवेक्षण ने सिद्ध कर दिया कि मनःक्षेत्र की प्रसुप्ति में जहाँ-तहाँ जागरण होने भर का चमत्कार है।उस आधार पर मानसिक और क्षमताओं की दृष्टि से वह अपनी स्थिति असामान्य स्तर की बना सकता है।
3.पाश्चात्य देशों में प्रतिभा संवर्द्धन (Talent Promotion in Western Countries):
- ईसाई धर्म के महान संत मिश्र निवासी सेंट एंथोनी की कहानी भी ऐसी ही है,जिन्हें ‘डेजर्ट फाॅदर’ अर्थात् आरण्यक के पिता कहा जाता है।उन्होंने तीसरी शताब्दी के आरंभिक दिनों में सन 300 में लाल समुद्र के पास प्रतिभाएं निखारने के लिए एक कठोर तपश्चर्यारत जीवन को आधार बनाया था।प्रख्यात मनीषी डोनाल्ड बरबिक ने अपने एक लेख ‘डेडली लाइफ इन ए मॉनेस्ट्री’ अर्थात् मठों की दैनिक कठोर दिनचर्या में इस संबंध में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है।
- उसके अनुसार सेंट एंथनी के ‘तबेना’ मठ में तेरह सौ साधु और साध्वियाँ रहती थीं।इनका जीवन आश्रम पद्धति के अनुसार कठोर तपस्वियों जैसा था।मठ में साधकों के लिए लगभग 4 घंटे प्रार्थना आदि के लिए निश्चित थे।अन्य समय में मठ की आवश्यकतानुसार बढ़ई,मिस्त्री,लोहार,बागवानी,बंजर एवं बेकार पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाए जाने जैसे कार्यों के लिए निरत रहते थे।इतना ही नहीं,मठ के अधीन जमीन का कृषि कार्य भी वे स्वयं करते थे,ताकि आत्मनिर्भर रहे।
- इसी तरह रोमन साम्राज्य के पतन के बाद छठी सदी में संत बेनेडिक्ट के यूरोप के सर्वाधिक विख्यात ‘मोंटे कासीनो’ नामक मठ की स्थापना की थी और सभी यूरोपीय मठों के लिए एक आचार संहिता बनाई थी।ग्यारहवीं शताब्दी की एक हस्तलिपि प्राप्त हुई है,जिसमें इस ख्यातनाम मठ के कई चित्र भी दिए गए हैं।पांडुलिपि संत ग्रेगरी ने तैयार की थी,जिसमें संत बेनेडिक्ट की जीवनचर्या भी विस्तार से बताई गई है।मठ में निवास करने वालों के लिए इटली में संत घोषित किए गए ‘बेनेडिक्ट ऑफ नरसीया’ ने सादगी,ब्रह्मचर्य और कठोर अनुशासन का विधान किया था।प्रत्येक मठ में धर्माध्यक्ष हुआ करता था,जिसे ‘एबोट’ कहा जाता है।आहार-विहार सात्विक व निरामिष रखना अनिवार्य घोषित किया गया था।गर्मी के मौसम में केवल एक समय आहार और शीतकाल में यूरोप की कड़ाके की ठंड से बचने के लिए दोनों समय आहार दिया जाता था।श्रमशीलता और मितव्ययता तो आत्मनिर्भर रहने के लिए आवश्यक थी।समय-प्रबंधन अर्थात् दिनचर्या का विभाजन कुछ इस प्रकार था,जिसमें चार घंटे सामूहिक प्रार्थना आदि के लिए,4 घंटे निजी प्रार्थना के लिए,6 घंटे खेतों या कारखानों में उत्पादक श्रम आदि के लिए रखे गए थे।प्रातः 2:00 बजे जागरण एवं सायं 6:00 बजे निद्रा के लिए आश्रमवासी अपने-अपने कक्ष में चले जाते थे।
- सन् 814 से सन् 840 में केरोलीगीआन साम्राज्य के सम्राट लुइस ने यूरोप के सभी मठों में बेनेडिक्ट के नियमों का परिपालन अनिवार्य बना दिया था।सन् 1000 तक तो यह व्यवस्था चलती रही,लेकिन इसके बाद संपन्न वर्ग की ओर से कृषि कार्य जैसे कठोर श्रम के लिए वेतनभोगी कर्मी रखे जाने लगे थे।विभिन्न मठों के धर्माधिकारियों पर यह बात निर्भर करती थी की मठ में कठोर तपश्चर्या पर बल देना है या शास्त्रों एवं ज्ञान प्रसारण आदि पर बल देना है।संत बेनेडिक्ट के बनाए नियम गीतोक्त निष्काम कर्मयोग एवं योगशास्त्रों-साधनाशास्त्रों में निर्धारित कठोर तपश्चर्या के मध्यवर्ती थे।आश्रम में प्रार्थना आदि के समय निश्शब्द शांति बनाए रखना आवश्यक माना जाता था,फिर भी कोई आपस में चर्चा आदि करना चाहे तो इसके लिए अलग से एक हॉल बनाया गया था।शीतकाल में ठंढक से बचने के लिए आग का प्रबंध था,साथ ही मठवासियों के लिए सादे और ऊनी वस्त्रों का समुचित प्रबंध रहता था।यही कारण था कि यहां से निकलने वाले लोकसेवी प्रतिभा के धनी होते ही थे,साथ ही वे अपनी सादगी एवं सरलता के लिए जाने जाते थे।यही कारण था कि यूरोप भर में जब प्रत्येक सदी में जगह-जगह पर छोटे-छोटे युद्ध होते रहते थे,तो भी इन मठों को इतना संरक्षण प्राप्त था कि सदियों से वहां के निवासी बेरोक-टोक अपने धर्म कार्य में अविरत लगे रहते थे।
4.भारत में प्रतिभा संवर्द्धन (Talent Promotion in India):
- भारत में प्राचीनकाल से प्रतिभा-परिष्कार के इस तरह के अनूठे प्रयास आरण्यकों,आश्रमों आदि में सतत चलते रहते थे।इसका विस्तृत विवरण सोलहवीं शताब्दी में प्रकाशित हुई पुस्तक ‘सी-यु-ची’-‘पश्चिम की यात्रा’ में चीनी यात्री ह्युएनत्सांग ने भारत के विभिन्न बौद्ध विहार एवं अन्य सनातन धर्म के मठों,मंदिरों,आश्रमों आदि के बारे में प्रस्तुत किया है।इनमें प्रतिभाओं को गढ़ने के लिए अपनायी जाने वाली जो कठिन तपश्चर्या की प्रणाली,आहार-विहार की सादगी और
- पवित्रता,श्रमशीलता,मितव्ययता,सहकारिता,अनुशासनप्रियता आदि हर जगह देखी गई थी,उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है।
इतिहास साक्षी है कि सफलता उन्हीं को मिली है,जिन्होंने निजी जीवन में कठोरता अपनायी,स्वयं पर कड़ा अनुशासन लगाकर आत्मानुशासन का अभ्यास किया एवं फिर अपनी उस बची हुई ऊर्जा को सुनियोजित किया।इसके विपरीत मध्यकाल में ऐसे कितने ही लोग हुए हैं,जो प्रतिभाशाली होते हुए भी जीवन-संपदा को कौड़ी-मोल गँवाते रहे।उनके बारे में इतिहास में यही लिखा पाया जाता है कि सब कुछ होते हुए भी यह व्यक्ति सफलता के शिखर पर नहीं पहुंच पाया और ना ही किसी को कुछ मार्गदर्शन दे पाने में सक्षम हुआ है।ऐसों को ‘अभागा’ कहकर संबोधित किया जाता रहा है व मात्र कौतुक के लिए उनके वृतांत पढ़े जाते रहे हैं।यदि अनुकरणीय,अभिनंदनीय एवं प्रखर प्रतिभा का धनी बनना हो तो मार्ग एक ही है:तपश्चर्या से स्वयं को अनुशासित कर उर्ध्वगामी बनना,व्यवहार में सज्जनता-शालीनता को सम्मानित करना एवं उदारता अपनाते हुए बांटने में संतोष अनुभव करना।शताब्दियों से जनमानस ऐसे ही युगनेतृत्व करने वाले वालों के सम्मुख अपना सिर झुकाता आया है।आज समाज को,संस्कृति को एवं समूचे विश्व को इन्हीं प्रतिभावानों की आवश्यकता है जो महान् कार्य सम्पन्न कर सकेंगे।
5.प्रतिभा संवर्द्धन के उपाय (Talent Promotion Measures):
- मानवीय मस्तिष्क असाधारण रूप से विलक्षण है।उसके रहस्यमय कोष्ठक यदि अपना-अपना काम आंशिक रूप से भी करने लगें,तो व्यक्तित्व में ऐसी विचित्रताएं उभर सकती हैं,जिन्हें चमत्कारी ऋद्धि-सिद्धियों में गिना जा सके।
- मानसिक क्षमता के अभिवर्द्धन में तीन तत्त्व काम करते हैं।एक,सात्त्विक आहार,जिससे रक्त में अनावश्यक उत्तेजना उत्पन्न न होने पाए और मस्तिष्क शांत-सौम्य बना रहे।दूसरा,उद्विग्नताओं से बचाव,चिंताओं एवं मनोविकारों से छुटकारा।यदि चिंतन विधेयात्मक रहे और आवेशों से परहेज रखें,तो सीधी-सादी,सरल,संतोषी और सही जिंदगी आसानी से गुजर सकती है।ऐसी दशा में विक्षोभरहित मस्तिष्क सही काम को सही ढंग से करते हुए क्रमिक रूप से प्रगति करता रहेगा।तीसरा आधार है-प्रशिक्षण।अभ्यास के आधार पर शरीर के किसी भी अवयव को परिपुष्ट किया जा सकता है।फिर भी मस्तिष्क भी शरीर का एक अंग ही है।उसे अभीष्ट विषय में रस लेने,महत्त्व समझने,एकाग्र रहने और नियमपूर्वक अभ्यास करने से किसी की भी प्रतिभा अभीष्ट क्षेत्र में विकसित हो सकती है।
- अपना या दूसरों का मस्तिष्क दुर्बल है-ऐसी हीनभावना किसी के भी मन पर सवार नहीं होने देनी चाहिए।जब पशु-पक्षियों को सिखाने वाले उन्हें मनुष्यों जैसी समझदारी का परिचय देने के लिए सधा लेते हैं,तो कोई कारण नहीं कि,अपना या दूसरों का मस्तिष्क प्रयत्नपूर्वक अधिक विकसित न किया जा सके।इस दिशा में अब तो मानवीय प्रयासों के साथ-साथ कंप्यूटर लर्निंग क्रम भी खूब चल गया है;परंतु पुरुषार्थपूर्वक अध्यवसाय से कमाई गई मस्तिष्कीय संपदा का महत्त्व अपने स्थान पर यथावत रहेगा।
- जापान की प्रयोगशाला में वानरों पर अनेक प्रयोग किए।टोक्यो यूनिवर्सिटी में संपन्न प्रयोगों में खरे-खोटे की पहचान करने और ढेर में से उपर्युक्त सामग्री बीन-बीनकर कायदे-करीने के साथ रख देने की शिक्षा में प्रवीणता प्राप्त कर सकने जैसा उन्हें योग्य पाया गया।प्रयोग यह भी चल रहा है कि क्या वे उन कराए गए अभ्यासों को अपनी भावीपीढ़ी के लिए भी हस्तांतरित कर सकते हैं? संभावना ‘हाँ’ में व्यक्त की जा रही है।
- मानसिक विकास की यदि उपयोगिता समझी जा सके और उसे नशेबाजी की ही तरह कामुकता,उदासी,उत्तेजना,उपेक्षा जैसे दुर्व्यसनों से नष्ट न किया जाए,तो अपने को तथा दूसरों को अपेक्षाकृत अधिकाधिक बुद्धिमान बनाते चलने में किसी को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए,विशेषकर इसलिए भी कि वे सारी संभावनाएं हर एक में विद्यमान हैं।हम प्रयत्न करें,प्रतिफल हमारे सम्मुख होगा।
- एक जमाना था,जब बुद्धिमता का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता था कि मस्तिष्क में कितना अधिक या कम द्रव है;वह कितना भारी,बड़ा या विस्तार वाला है।अब यह बात पुरानी पड़ गई।प्रतिभा और प्रखरता अब अभ्यास पर अवलंबित आँकी गई है।किसी विचारधारा में रुचिपूर्वक निमग्न रहने पर सामान्य बनावट के मस्तिष्क को भी इतना प्रशिक्षित किया जा सकता है कि उसे अपने विषय का विशेषज्ञ होने का अवसर मिल सके।कुछ अपवादों को छोड़कर सभी मस्तिष्क अपने उत्तरदायित्व का सही ढंग से निर्वाह कर सकने में समर्थ हैं।
- मस्तिष्क का आकार,प्रकार और विस्तार इस बात का चिन्ह नहीं है कि उतने भर से किसी की बुद्धिमत्ता समुन्नत स्तर की बन जाएगी।गेटे,मैकियावेली,क्राॅमवेल,मोजार्ट,ज्विंग जैसे मनीषियों के मस्तिष्क शरीरविज्ञान के अनुसार ही पूर्ण और परिपुष्ट पाए गए,किंतु आइंस्टीन का मस्तिष्कीय भार और प्रभाव कम आँका गया था।कई वर्षों तक उनका मस्तिष्क सुरक्षित रखा गया था,ताकि उस पर अध्ययन किया जा सके।लेकिन निष्कर्ष कुछ नहीं निकला।स्त्रियों के मस्तिष्क का भार और क्षेत्रफल कम होता है,इतने से ही यह नहीं कहा जा सकता कि वे बुद्धिमान नहीं होती।
- मस्तिष्क की विशेषता उसके भार या विस्तार पर निर्भर नहीं होती,वरन इस बात पर निर्भर रहती है कि उसके घटकों की संख्या,सूक्ष्मता एवं ऊर्जा की स्थिति क्या है? भार की दृष्टि से व्हेल का मस्तिष्क 7000 ग्राम होता है। मनुष्यों में नर का 1400 ग्राम और नारी का 1300 ग्राम के लगभग होता है।इस आधार पर किसी की कुशलता एवं विशेषता का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।वह तो सूक्ष्म संरचना पर आधारित है।इस दृष्टि से भी मनुष्य को अतिरिक्त रूप से भाग्यवान कहा जा सकता है कि उसने न केवल अनेक विशेषताओं से भरापूरा शरीर पाया है,इस स्तर का मस्तिष्क भी उपलब्ध किया है,जिसे विश्वसंपदा का बीजाणु कहा जा सके।सौरमंडल हलचलों तथा वैभवों का सार-संक्षेप परमाणु के छोटे-से कलेवर में भरा हुआ है।इसी प्रकार विश्वचेतना की समस्त संभावनाओं को मानव मस्तिष्क के तनिक-से क्षेत्र में केंद्रीभूत समझा जा सकता है।उसका जागृत भाग भी कम आश्चर्यजनक नहीं,फिर प्रसुप्त की परतें यदि उघाड़ी जा सकें,तो उस तिजोरी की बहुमूल्य रत्नराशि की तुलना कुबेर के वैभव से कम नहीं आँकी जा सकती।
- उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (6 Techniques of How to Develop Talent),छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को विकसित करने की 6 तकनीक (6 Techniques to Develop Student’ Talent) के बारे में बताया गया है।
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6.प्रतिभा का कमाल (हास्य-व्यंग) (Amazing Talent) (Humour-Satire):
- एक बार एकप्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (6 Techniques of How to Develop Talent) के आधार पर आप जान सकेंगे कि पुरातन काल में प्रतिभा परिष्कृत कैसे की जाती थी? प्रतिभा को विकसित करने के छात्र स्कूल गया तो उसे देखकर उसके दोस्त ने पूछा।
- पहला दोस्त:यह कैसा कमाल है कि तुम गणित में आगे की प्रश्नावलियों को हल कर रहे हो और विज्ञान में पीछे के पाठ याद कर रहे हो।
- दूसरा दोस्त:प्रतिभा-वतिभा या कमाल जैसी कोई बात नहीं है।गणित की पीछे की प्रश्नावलियाँ कठिन है इसलिए आगे की प्रश्नावलियां हल कर ली विज्ञान में आगे के पाठ कठिन है,इसलिए पीछे के पाठ याद कर लिए हैं।
7.प्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 6 Techniques of How to Develop Talent),छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को विकसित करने की 6 तकनीक (6 Techniques to Develop Student’ Talent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.प्रतिभा का विकास से क्या आशय है? (What do you mean by development of talent?):
उत्तर:अपनी समस्त छुपी हुई क्षमताओं को विकसित करना ही प्रतिभा का विकास है।आप चाहे जो कुछ हों, जिस स्थिति,जिस वातावरण में हों,आप एक कार्य अवश्य करेंगे,वह यही कि अपनी शक्तियों को ऊंची से ऊंची बनाएंगे।यदि तुम अपने मन की गुप्त महान शक्तियों को जागृत कर लो और लक्ष्य की ओर प्रयत्न,उद्योग और उत्साहपूर्वक अग्रसर होना सीख लो,तो लक्ष्य को पा सकोगे।
प्रश्न:2.प्रतिभा और विभूति में क्या फर्क है? (What is the difference between Talent and Vibhuti?):
उत्तर प्रतिभा स्वयं उपार्जित संपदा है,जबकि विभूति भगवान का वरदान।
प्रश्न:3.संसार एक रंगभूमि कैसे है? (How is the world a amphitheater?):
उत्तर:संसार प्रतियोगिता की रंगभूमि है,यहां पर जो विजयी होता है,वही पुरस्कृत किया जाता है।थोड़े से साहस के अभाव में काफी प्रतिभा खो जाती है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतिभा को कैसे विकसित करें की 6 तकनीक (6 Techniques of How to Develop Talent),छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को विकसित करने की 6 तकनीक (6 Techniques to Develop Student’ Talent) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.