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6 Spells for Walking Path of Humanity

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1.मानवता के पथ पर चलने के 6 मंत्र (6 Spells for Walking Path of Humanity),छात्र-छात्राओं के लिए मानवता का पाठ सीखने की 6 युक्तियाँ (6 Best Tips for Students to Learn Lesson for Humanity):

  • मानवता के पथ पर चलने के 6 मंत्र (6 Spells for Walking Path of Humanity) के आधार पर छात्र-छात्राएं जान सकेंगे कि उन्हें मानवीय गुण धारण करने की जरूरत क्यों हैं? मानवीय गुणों को कैसे धारण करें आदि।
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2.छात्र-छात्राएं मानवीय गुण क्यों धारण करें? (Why should students imbibe human qualities?):

  • अध्ययन करने में,जाॅब प्राप्त करने अथवा परीक्षा देने में कहाँ मानवीय गुणों की जरूरत पड़ गई,यह एक प्रश्न मन में उठता है।मनुष्य केवल मशीन नहीं है,एक सामाजिक प्राणी है।अतः समाज में रहने के लिए एक व्यक्ति का दूसरे से संपर्क होता है,भावों और संवेदनाओं का आदान-प्रदान होता है।अतः मानवीय गुणों का,शिष्टाचार का,एक-दूसरे से व्यवहार में निभाना पड़ता है।इसी प्रकार एक छात्र-छात्रा दूसरे छात्र-छात्रा के संपर्क में आता है,एक-दूसरे से अंतर्क्रिया होती है।यही नहीं विद्या अर्जित करने के बाद छात्र-छात्रा समाज में रहता है,वहां भी व्यावहारिक कुशलता और मानवीय गुणों के बिना उसका काम नहीं चल सकता है।
  • साथ बैठकर अध्ययन करते हैं,आपस की समस्याएँ एक-दूसरे से साझा करते हैं,सवाल के हल पूछते हैं।इसके अलावा भी दिनभर एक जगह शिक्षा संस्थानों में अध्ययन करते हैं तो मन को हल्का-फुल्का करने के लिए आपस में वार्तालाप करते हैं।
    इसके अलावा पूरे जीवन की नींव विद्यार्थी जीवन ही होता है।विद्यार्थी जीवन में ही सामाजिक तौर-तरीके,एक-दूसरे से व्यवहार करने की कला सीखनी पड़ती है अन्यथा जीवन एक बोझ बन जाता है।नींव ही कमजोर होगी तो भवन भरभरा कर गिर जाएगा।नींव मजबूत होगी तो भवन टिकाऊ और मजबूत होगा।
  • जीवन भावना,संवेदना,करुणा,सेवा,व्यवहार एवं पुरुषार्थ का अद्भुत समुच्चय है।इस बहुआयामी जीवन का इंद्रधनुषी रंग निराला है एवं अनोखी है इसकी अपूर्व क्षमता,परंतु आधुनिकता के दौर में हमने अपने जीवन को एक पक्षीय एवं एकांगी कर दिया है।आज जीवन जितना यांत्रिकीय हुआ है,संभवतः कभी इतना नहीं था।स्वार्थ के संकीर्ण दायरे में सिमटकर केवल हम ही सब कुछ का उपभोग कर लेना चाहते हैं।इस उपभोग में हम किसी को भागीदार नहीं बनाना चाहते।’स्व’ की परिधि में सिमटा हमारा जीवन इतना संवेदनहीन हो चुका है कि किसी का दुःख-दर्द हमें पीड़ित ही नहीं करता।हमें केवल अपनों का कष्ट ही सालता है।यंत्रवत हमारा जीवन भारवत् बन बैठा है और हम इसे ढोने के लिए विवश हैं।
  • जीवन संवेदना का समुच्चय है।औरों की पीड़ा हमें पीड़ित करती है,औरों की कष्ट कठिनाइयाँ हमें बेचैन करती हैं।संवेदनशीलता जितनी अधिक होगी,हम औरों के दर्द को उतनी ही नजदीकी से महसूस करेंगे।संतो का जीवन अतिसंवेदनशीलता का पर्याय होता है।संवेदना का अर्थ है-सम+वेदना अर्थात् वेदना को,पीड़ा को उसी रूप में,समानरूप से अनुभव करना।साधक की करुणा इसी का उत्कृष्ट एवं पावन विकसित रूप है।यही परिमार्जित होकर यह साधक की साधना का अलंकरण बनती है।विद्यार्थी भी एक साधक और कर्मयोगी है,यदि सही रूप में विद्या का अर्जन करें तो।उसे असह्य वेदना को सहन करना पड़ता है।उसे स्वयं की ही नहीं औरों (सहपाठियों,मित्रों की) की पीड़ा को भी समझना होता है।जो भी गहराई से इसे अनुभव करेगा,वह शांत नहीं रह सकता,तड़प उठेगा।
  • विद्यार्थी को अतिसंवेदनशील तो नहीं होना चाहिए,परंतु संवेदनहीन भी नहीं होना चाहिए।हालांकि आज हर काम के पीछे व्यवसायिकता की छाप नजर आती है,परंतु तब भी संवेदना,सहायता,सहयोग,सेवा भावना भी जरूरी है।इनके बिना हर काम,जाॅब नीरस लगता है,जो बोझ ढोने के के समान है।

3.स्वार्थ संवेदनहीन कर देता है (Selfishness makes you senseless):

  • आज की संवेदनहीन जिंदगी अनगिनत पीड़ितों एवं शवों की पीठ से गुजरती है,परंतु अप्रभावित रहती है।उस पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है।जिंदगी हमारी इर्द-गिर्द इतनी सिमट गई है कि प्रतिदिन दुर्घटना एवं आग आदि से मरते,जलते एवं चीखते इंसानों को हम सहजता से नजरअंदाज करके आगे बढ़ जाते हैं;जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।प्रतिदिन नारी की अस्मिता को तार-तार करने वाली घटनाएं घटती हैं।हिंसा-हत्या की वारदातें हमारे लिए कोई नई नहीं है।हम इन्हें अखबारों में रोज देखते-पढ़ते हैं और मौका मिलता है तो किसी पड़ौसी को देख भी आते हैं तथा कुछ उपहार भी छोड़ देते हैं।बाढ़,भूकंप आदि से बेघर इंसान असहाय होकर घूमता है,परंतु हमें उसकी कोई परवाह नहीं और परवाह हो भी क्यों,क्योंकि हम उसे जानते-पहचानते जो नहीं है।एक इंसान की दूसरे इनसान के प्रति इतनी भावशून्यता आज से पहले कभी नहीं देखी गई।
  • पशु भी अपनी जाति-बिरादरी के बीच रहते हैं और उनके सुख-दुःख में बराबर शामिल होते हैं।कोई आपदा आप पड़ी तो सभी एक साथ मिलकर उसका सामना करते हैं।वे अपनी मर्यादाओं से बखूबी परिचित हैं,परंतु हम अपने को क्या कहें,जिसे न तो इंसानियत से मतलब है और ना इंसान से।ऐसा ना कर हम किस मर्यादा का पालन कर रहे हैं,यह समझ से परे है।ऐसा नहीं कि हम कष्ट-कठिनाइयों से पार चले गए हैं।कठिनाइयाँ हमें परेशान करती हैं और बेहद परेशान करती हैं,केवल हमारे अपने निजी स्वजनों की कठिनाइयां उनके दुःख। अपना बच्चा बीमार पड़ता है तो मां-बाप जितना हाय-तौबा मचाते हैं,उतना किसी अन्य की मौत पर भी नहीं मचाते।आज हमारी छोटी-सी परेशानी अन्य किसी की मर्मांतक पीड़ा से बड़ी-चढ़ी दीखती है।जब अपना कोई हादसे में फँसता है तो रो-रोकर बुरा हाल कर देते हैं,परंतु दूसरों के हादसे हमें रंचमात्र भी प्रभावित नहीं करते।
  • अपना भूखा पेट किसी की रोटी की तलाश में होता है,पर भरा पेट दूसरों की रोटी छीन लेने में परहेज नहीं करता।अपना नुकसान बड़े रूप में दिखाई देता है,इतना जैसे कि देश की हानि हुई हो,लेकिन औरों की गंभीर क्षति से हमारा कोई सरोकार नहीं होता है।हमें केवल अपना पेट भरना आता है।अपने बैंक बैंलेंस की चिंता है।हमें मात्र अपना और अपनों का ही सुख-दुःख प्रभावित करता है,औरों का घर जले चाहे दुनिया डूबे हमें क्या,हमारी छत महफूज हो,हमारे भोग-विलास के साधन जुटते रहें।बस,यही आधुनिक समाज एवं तथाकथित सभ्य इंसान की सचाई है।
  • स्वार्थ इंसान को संवेदनहीन कर देता है और हम अपने-अपने क्षुद्र स्वार्थों में इतने अधिक संलिप्त हो चुके हैं कि सेवा,सहयोग,भाव-संवेदना से नाता ही टूट गया है।स्वार्थ प्रेरित हमारी जिंदगी केवल अपने संकीर्ण दायरे में सिमट गई है।औरों के दुःख-दर्द से हमारा कोई वास्ता नहीं रह गया है।इस संकीर्ण एवं क्षुद्र दायरे को तोड़कर ही जीवन की व्यापकता का आनंद उठाया जा सकता है।स्वार्थ हमें बाँधता है।यह हमें एक अंधेरी कोठारी में बंदकर देता है; जबकि किसी परमार्थ,सेवा,त्याग,सहयोग,सहायता आदि हमें असीम बनाते हैं,जीवन का सही स्वरूप दिखाते हैं।असीमता में ही हम औरों की पीड़ा के साथ संवेदित होते हैं या फिर कह सकते हैं कि संवेदना के आने से हमारी असीम क्षुद्र सीमाएँ टूटती हैं।
  • जीवन को बहुआयामी एवं बहुरंगी बनाने तथा इसकी दिव्य विशेषताओं को विकसित करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने संकीर्ण स्वार्थ की मोटी दीवार को ढहा दें और अंतरात्मा की कोठरी के वातायनों को खोल दें। त्याग,सेवा,सहायतारूपी प्रेरणाप्रद प्रकाश को अंदर आने दें तथा इंसानियत की सुगंधित बयार से इसे महकने दें।इसके लिए आवश्यक है कि हम कुछ बातों को अपने जीवन में स्थान दें एवं इनका पालन करें।

4.जीवन में पालन करने योग्य बातें (Things to follow in life):

  • अपनी पीड़ा एवं कठिनाइयों से उत्पन्न दर्द के समान औरों के दर्द को समझें।ऐसा तभी कर सकेंगे जब आप अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे दूसरों को तकलीफ होती हो।उदाहरणार्थ  अपने घर का कचरा बुहारकर दूसरों के घर के सामने,खुले में,सड़क पर,मार्ग पर न फेंके क्योंकि इससे दूसरों को पीड़ा और तकलीफ होगी अतः कूड़ा-करकट यथास्थान अथवा आबादी से दूर कहीं फेंके या जला दें।
  • औरों के दर्द को अनुभव करने का प्रयास करें।यदि आप पर कोई विपत्ति-कष्ट आई है तो जिस प्रकार दूसरे आपकी हर संभव मदद करते हैं और आपकी कष्ट-पीड़ा को दूर करने का प्रयास करते हैं।इसी प्रकार आपको भी दूसरों के दुःख-दर्द को दूर करने का यथासंभव योगदान करना चाहिए।मसलन आपके यहां पानी पर्याप्त रूप में मौजूद है और किसी अन्य को पानी पीने को भी नसीब नहीं है तो आपको अपनी जरूरत से अधिक पानी बाँटकर सहयोग करना चाहिए।
  • यथासंभव पीड़ा-निवारण के आवश्यक तत्त्वों का क्रियान्वयन करें:जैसे दुखियों के दुःख दूर करने के लिए निश्छल मन से भगवान से प्रार्थना करना;रोगी,असहाय बाल-वृद्धों की सेवा-सहायता करना;मुसीबत में पड़े व्यक्ति को संवेदना के दो शब्द कहना तथा उसकी सहायता करना।कभी किसी पीड़ित व्यक्ति का अपमान,तिरस्कार एवं उस पर कटाक्ष नहीं करना चाहिए।जिस प्रकार आप दूसरे से सम्मान पाने की आकांक्षा रखते हैं और दूसरे लोग आपका आदर-सम्मान करते भी हैं तो आपका भी कर्त्तव्य बनता है कि आप भी दूसरों का आदर-सम्मान करें।उनकी भावनाओं की कद्र करें,उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचने वाले कार्य न करें।
  • इंसान को इंसान के समान समझना चाहिए।किसी के भी साथ दोयम दर्जे अथवा असभ्यता,अशिष्ट व्यवहार नहीं करना चाहिए।यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अपनी कब्र खुद खोदने का काम करते हैं।दूसरे के साथ अशिष्ट व्यवहार करने से आपके प्रति लोगों में दुर्भावना पैदा हो जाती है और धीरे-धीरे इकट्ठी होकर आपका कभी ना कभी समूल नाश का कारण बन सकती है।यह न सोचें कि यह कमजोर,निर्बल व्यक्ति है और इसके साथ कैसा भी व्यवहार करने पर यह मेरा क्या बिगाड़ेगा।
  • अपने सुख को बांटना चाहिए तथा औरों की पीड़ा को बँटाना चाहिए।सुख को सभी के अंदर बांटने पर आनंदित महसूस करेंगे,हमेशा प्रसन्न रहेंगे।दूसरों की पीड़ा के प्रति सहानुभूति ही व्यक्त ना करें बल्कि यदि हो सके तो उनकी पीड़ा को दूर करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।यही जीवन का सच्चा मंत्र है।ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि जो सुख मिल रहा है वह स्वयं की काबिलियत से मिल रहा है और दूसरों को पीड़ा हो रही है तो उसके कुकर्मों के कारण हो रही है इसलिए उसकी पीड़ा को क्यों बँटाऊं।
  • केवल अपना स्वार्थ-चिंतन नहीं,औरों के लिए भी सोचना चाहिए।अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाला व्यक्ति समाज,रिश्तेदारों और लोगों से कट जाता है,उसका कोई सगा नहीं होता है।अतः दूसरों के लिए भी,परमार्थ के लिए भी चिंतन करना चाहिए।संतुलित जीवन शैली अपनाएं,लोगों से दिल खोलकर मिलिए।
  • कभी किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए एवं दूसरों के प्रति नकारात्मक भाव न रखकर सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए।यदि दूसरा व्यक्ति आपकी मदद न कर पाया हो,आपके दुःख दर्द में शरीक न हुआ हो तो ऐसा न सोचें कि उसने मेरी मदद नहीं की तो मैं क्यों करूं बल्कि यह सोचें कि कोई परिस्थिति ऐसी आ गई होगी जिससे वह मदद नहीं कर पाया होगा,सकारात्मक सोचें।
  • प्रतिदिन किसी न किसी व्यक्ति की सहायता करने का अवसर अवश्य तलाशना चाहिए।इससे आपकी जिंदगी खुशहाल होगी और लोगों का सहयोग करने में आप अपने आप को गौरवान्वित महसूस करेंगे।
  • ये तमाम बातें हमें इंसानियत की ओर ले चलती हैं।इनका पालन करने से,इन्हें व्यवहार में उतारने से जीवन का फलक व्यापक एवं दिव्य होता है।यही वे बातें हैं,जो इंसान को दैवीय गुणों से विभूषित करती हैं।

5.छात्र-छात्राएं मानवता के गुण धारण करें (Students should imbibe the qualities of humanity):

  • उपर्युक्त विवरण से यह बात समझ में आई गई होगी कि मानवता और मानवीय गुणों को धारण करना कितना जरूरी है।अतः विद्यार्थी काल से ही इसकी नींव लगा देनी चाहिए।हालांकि विद्यार्थी के लिए निषेध किया गया है कि उसे अधिक सेवा कार्य (परोपकार) नहीं करना चाहिए।अधिक सेवा कार्य या परोपकार करने से विद्यार्थी का समय नष्ट होगा और विद्यार्थी विद्या अर्जित नहीं कर पाएगा।लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि सेवा कार्य बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए।यदि विद्यार्थी अपने कोर्स की किताबें पढ़ेगा और सेवा कार्य बिल्कुल नहीं करेगा तो बाद में मानवीय गुणों की नींव लगना असंभव तो नहीं पर कठिन अवश्य होगा।
  • अतः कुछ समय अपने व्यक्तित्व के अन्य गुणों को विकसित करने में भी समय देना चाहिए।दूसरी बात यह है कि यदि आप किसी की प्रॉब्लम्स सॉल्व करने में मदद नहीं करेंगे तो दूसरा भी क्यों अपना समय देकर आपकी प्रॉब्लम्स सॉल्व करने में मदद करेगा।सारी प्रॉब्लम्स को आप अकेले अपने दम पर सॉल्व नहीं कर पाएंगे।वैसे भी विद्यार्थी काल में शक्तियां सुप्त रहती हैं अतः उसे नहीं पता होता है कि किस काम को किस ढंग और युक्ति से करना है।कहीं ना कहीं उसे दूसरों की मदद लेना ही पड़ती है।अपनी कष्ट,पीड़ा,दु:ख-दर्द में दूसरे आपकी मदद करते हैं तो आपको भी दूसरों की मदद करनी चाहिए ताकि आप स्वार्थी न कहलाएं जाएं।
  • हर व्यक्ति हर काम में कुशल एवं पारंगत नहीं होता हैं,यहां तक कि बड़े होने,अपने पैरों पर खड़ा होने पर भी उसे कई कार्यों में दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।विद्यार्थी को गणित के सवालों या अन्य विषयों के प्रश्नों को समझने के लिए कक्षा के अन्य विद्यार्थियों और शिक्षकों पर निर्भर रहना पड़ता है।दैनिक जीवन में अनेक कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें विद्यार्थी अपने बलबूते पर नहीं निपटा सकता है।मसलन आपको अपना आधार कार्ड बनवाना है या मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाना है तो उसकी खानापूर्ति की प्रक्रिया आपको मालूम नहीं होती है।एक बार आप उस काम को करवा लेते हैं तब आपको मालूम पड़ता है कि व्यावहारिक रूप से किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और उन दिक्कतों को दूर करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। एफिडेविट लगाओ,सरपंच से सत्यापित करवाओ,पटवारी की रिपोर्ट कराओ,दो व्यक्तियों का शपथ पत्र लगाओ।इस प्रकार एक छोटा-सा काम करने में इतनी भाग-दौड़ करनी पड़ती है कि विद्यार्थी के हाथ-पैर फूल जाते हैं।ब्यूरोक्रेसी से वास्ता पड़ने पर उसे मालूम पड़ जाता है कि ब्यूरोक्रेसी से काम करवाना पहाड़ तोड़कर रास्ता निकालने के समान है।इसी प्रकार भ्रष्टाचार पनपता,फूलता-फूलता है।विद्यार्थी ले-देकर,एजेंट,बिचौलियों के मार्फत अपना काम करवाना पसंद करते हैं।
  • अतः विद्यार्थी को अपने मानवीय गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे किसी पद पर नियुक्त हों तो अन्य विद्यार्थियों या लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करें और उन्हें आप जैसी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़े।भारत की दशा और दिशा तभी बदलेगी।अन्यथा जो पहले कर रहे हैं वही परिपाटी आप भी अपनाएंगे तो भ्रष्टाचार तो पनपेगा ही साथ ही देश और रसातल में जा पहुंचेगा।एक-एक व्यक्ति के बदलने से व्यक्ति,समाज व देश बदलेगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मानवता के पथ पर चलने के 6 मंत्र (6 Spells for Walking Path of Humanity),छात्र-छात्राओं के लिए मानवता का पाठ सीखने की 6 युक्तियाँ (6 Best Tips for Students to Learn Lesson for Humanity) के बारे में बताया गया है।

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6.मानवता का नमूना (हास्य-व्यंग्य) (Sample of Humanity) (Humour-Satire):

  • मेहमान छात्र:सर,आखिर क्या बात है,मैं पढ़ रहा हूं तो यह छात्र मुझे घूर-घूर कर क्यों देख रहा है? जैसे मैंने उसका कुछ चुरा लिया है या छीन लिया है।
  • सर:ये छात्र इसी सीट पर बैठता है और सोच रहा है कि मेरी सीट पर इस (मेहमान छात्र) ने कैसे कब्ज़ा कर लिया है,इसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गई?

7.मानवता के पथ पर चलने के 6 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6 Spells for Walking Path of Humanity),छात्र-छात्राओं के लिए मानवता का पाठ सीखने की 6 युक्तियाँ (6 Best Tips for Students to Learn Lesson for Humanity) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मनुष्य जन्म की क्या महत्ता है? (What is the importance of human birth?):

उत्तर:मनुष्य जन्म दुर्लभ है,उसका एक क्षण भी अमूल्य है।तो भी बड़ा आश्चर्य है कि मनुष्य कोड़ियों के समान उसका व्यय करते हैं।अतः अपने आप को वश में रखने से ही पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त होता है।

प्रश्न:2.मानव परिपूर्ण कब होता है? (When is human being perfect?):

उत्तर:मानव में मानवता हो।ध्रुव सत्य है कि सर्वोच्च जाति का मानवता-परिपूर्ण प्राणी सदा उदार और सत्यप्रिय होता है।

प्रश्न:3.मनुष्य का जन्म लेना कब सार्थक होता है? (When is it meaningful for a man to be born?):

उत्तर:मनुष्य होकर भी जो दूसरों का उपकार करना नहीं जानता है उसके जीवन को धिक्कार है।उससे धन्य तो पशु ही है जिनका चमड़ा तक (मरने पर) दूसरों के काम आता है।मनुष्य का मानव होना ही उसकी जीत है और दानव होना हार है तथा महामानव होना उसका चमत्कार है।

  • उपर्युक्त आर्टिकल में मानवता के पथ पर चलने के 6 मंत्र (6 Spells for Walking Path of Humanity),छात्र-छात्राओं के लिए मानवता का पाठ सीखने की 6 युक्तियाँ (6 Best Tips for Students to Learn Lesson for Humanity) के बारे में बताया गया है।
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